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Sunday, 6 August 2017
Sunday, 5 June 2016
सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों की मिलीभगत का परिणाम है मथुरा में हथियारों का जखीरा ------ रिहाई मंच
Rihai Manch : For Resistance Against Repression
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मथुरा समेत पूरे सूबे में सत्ता सरंक्षण में पल रहे हैं हिंसक संगठन- रिहाई मंच
हथियारों और विस्फोटकों का इतना बड़ा जखीरा बिना सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों के मिलीभगत के बगैर सम्भव नहीं
सैन्य प्रशिक्षण देने वाले संगठनों पर लगे पाबंदी
लखनऊ 4 जून 2016। रिहाई मंच ने मथुरा में हुए हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने की मांग करते हुए कहा है कि इतने बड़े पैमाने पर असलहों और विस्फोटकों का जखीरा बिना राजनीतिक संरक्षण के इकठ्ठा नहीं किया जा सकता था। मंच ने सवाल किया कि जो आईबी बिना सबूतों के किसी नासिर को 23 साल जेल में सड़ाकर जिंदा लाश बना देती है उसे क्या इस बात की जानकारी नहीं थी कि जवाहरबाग में जमा दहशतगर्द उनके पुलिसिया अमले पर हमला कर देंगे। मंच जल्द ही मथुरा का दौरा करेगा।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मथुरा समेत पूरे सूबे में जिस तरीके से लगातार कहीं फैजाबाद और नोएडा में बजरंग दल तो वाराणसी में दुर्गा वाहिनी के सैन्य प्रशिक्षण कैंप चल रहे हैं वो यह साफ करते हैं कि सूबे में आतंरिक अशांति के लिए सरकार संरक्षण में प्रयोजित तरीके से षड़यंत्र रचा जा रहा है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से मथुरा में भारी पैमाने पर असलहे और विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया वह सामान्य घटना नहीं है। इस घटना ने खुफिया एजेंसियों की नाकामी नहीं बल्कि उनकी संलिप्तता को पुख्ता किया है। उन्होंने सवाल किया कि यह कैसे सम्भव हो जाता है कि किसी बेगुनाह दाढ़ी-टोपी वाले मुस्लिम को आईएस और लश्कर ए तैयबा से उसका लिंक बता करके पकड़वाने वाली खुफिया एजेंसियां यह पता नहीं कर पाईं कि जवाहर बाग में हथियारों और विस्फोटकों का इतना बड़ा जखीरा कैसे इकठ्ठा हो गया। उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह गाजियाबाद के डासना में हिंदू स्वाभिमान संगठन के लोग पिस्तौल, राइफल, बंदूक जैसे हथियारों की ट्रेनिंग आठ-आठ साल के हिंदू बच्चों को दे रहे थे उस पर आज तक खुफिया-सुरक्षा एजेंसियां और सरकार चुप है। जिस तरह से मथुरा हिंसा में रामवृक्ष यादव को सत्ता द्वारा संरक्षण दिया जाना कहा जा रहा है ठीक इसी तरह हिंदू स्वाभिमान संगठन के स्वामी जी उर्फ दीपक त्यागी कभी सपा के यूथ विंग के प्रमुख सदस्य रह चुके हैं इसलिए उनके खिलाफ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। ठीक इसी तरह पश्चिमी यूपी में मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा में सक्रिय संघ शक्ति हो या फिर संगीत सोम जिन्होंने फर्जी वीडियो वायरल कर मुसलमानों का जनसंहार कराया उसपर खुफिया एजेंसियों को कोई जानकारी नहीं रहती है। पर वहीं खुफिया बिना किसी सबूत के ही राहत शिविरों में जेहादी आतंकियों की सक्रियता के झूठे दावे करके बेगुनाहों को फंसाने में लग जाते हैं।
लखनऊ रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने कहा कि मई माह में आजमगढ़ के खुदादादपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा में हिंदू महिलाओं द्वारा राहगीर मुस्लिम महिलाओं पर न सिर्फ हमला किया गया बल्कि उनके जेवरात छीने गए तो वहीं मथुरा में महिलाओं द्वारा फायरिंग व वाराणसी में दुर्गा वाहिनी द्वारा महिलाओं को हथियारों की ट्रेनिंग यह घटनाएं अलग-अलग हो सकती हैं पर इनका मकसद हिंसा है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से मथुरा में कब्जा हटाने के मामले में सेना तक की मदद लेने की बात सामने आ रही है उससे साफ है कि स्थिति भयावह थी और सरकार में या तो निपटने की क्षमता नहीं थी या फिर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का राजनीतिक साहस नहीं दिखा पाई।
रिहाई मंच ने कहा है कि मथुरा काफी संवेदनशील जगह है ऐसे में इस पूरे मामले में खुफिया विभाग की भूमिका की जांच होनी चाहिए। वहीं जातिवादी व सांप्रदायिक वोटों की खातिर जिन देशद्रोहियों को सरकार पाल रही है वह देश के नागरिकों के हित में नहीं है। ऐसे में मथुरा से सबक लेते हुए प्रदेश में बजरंगदल समेत अनेकों संगठनों द्वारा जो संचालित प्रशिक्षण केन्द्र हैं उन पर तत्काल कार्रवाई करते हुए इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम
(प्रवक्ता, रिहाई मंच)
09415254919
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मथुरा समेत पूरे सूबे में सत्ता सरंक्षण में पल रहे हैं हिंसक संगठन- रिहाई मंच
हथियारों और विस्फोटकों का इतना बड़ा जखीरा बिना सुरक्षा-खुफिया एजेंसियों के मिलीभगत के बगैर सम्भव नहीं
सैन्य प्रशिक्षण देने वाले संगठनों पर लगे पाबंदी
लखनऊ 4 जून 2016। रिहाई मंच ने मथुरा में हुए हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने की मांग करते हुए कहा है कि इतने बड़े पैमाने पर असलहों और विस्फोटकों का जखीरा बिना राजनीतिक संरक्षण के इकठ्ठा नहीं किया जा सकता था। मंच ने सवाल किया कि जो आईबी बिना सबूतों के किसी नासिर को 23 साल जेल में सड़ाकर जिंदा लाश बना देती है उसे क्या इस बात की जानकारी नहीं थी कि जवाहरबाग में जमा दहशतगर्द उनके पुलिसिया अमले पर हमला कर देंगे। मंच जल्द ही मथुरा का दौरा करेगा।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मथुरा समेत पूरे सूबे में जिस तरीके से लगातार कहीं फैजाबाद और नोएडा में बजरंग दल तो वाराणसी में दुर्गा वाहिनी के सैन्य प्रशिक्षण कैंप चल रहे हैं वो यह साफ करते हैं कि सूबे में आतंरिक अशांति के लिए सरकार संरक्षण में प्रयोजित तरीके से षड़यंत्र रचा जा रहा है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से मथुरा में भारी पैमाने पर असलहे और विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया वह सामान्य घटना नहीं है। इस घटना ने खुफिया एजेंसियों की नाकामी नहीं बल्कि उनकी संलिप्तता को पुख्ता किया है। उन्होंने सवाल किया कि यह कैसे सम्भव हो जाता है कि किसी बेगुनाह दाढ़ी-टोपी वाले मुस्लिम को आईएस और लश्कर ए तैयबा से उसका लिंक बता करके पकड़वाने वाली खुफिया एजेंसियां यह पता नहीं कर पाईं कि जवाहर बाग में हथियारों और विस्फोटकों का इतना बड़ा जखीरा कैसे इकठ्ठा हो गया। उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह गाजियाबाद के डासना में हिंदू स्वाभिमान संगठन के लोग पिस्तौल, राइफल, बंदूक जैसे हथियारों की ट्रेनिंग आठ-आठ साल के हिंदू बच्चों को दे रहे थे उस पर आज तक खुफिया-सुरक्षा एजेंसियां और सरकार चुप है। जिस तरह से मथुरा हिंसा में रामवृक्ष यादव को सत्ता द्वारा संरक्षण दिया जाना कहा जा रहा है ठीक इसी तरह हिंदू स्वाभिमान संगठन के स्वामी जी उर्फ दीपक त्यागी कभी सपा के यूथ विंग के प्रमुख सदस्य रह चुके हैं इसलिए उनके खिलाफ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। ठीक इसी तरह पश्चिमी यूपी में मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा में सक्रिय संघ शक्ति हो या फिर संगीत सोम जिन्होंने फर्जी वीडियो वायरल कर मुसलमानों का जनसंहार कराया उसपर खुफिया एजेंसियों को कोई जानकारी नहीं रहती है। पर वहीं खुफिया बिना किसी सबूत के ही राहत शिविरों में जेहादी आतंकियों की सक्रियता के झूठे दावे करके बेगुनाहों को फंसाने में लग जाते हैं।
लखनऊ रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने कहा कि मई माह में आजमगढ़ के खुदादादपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा में हिंदू महिलाओं द्वारा राहगीर मुस्लिम महिलाओं पर न सिर्फ हमला किया गया बल्कि उनके जेवरात छीने गए तो वहीं मथुरा में महिलाओं द्वारा फायरिंग व वाराणसी में दुर्गा वाहिनी द्वारा महिलाओं को हथियारों की ट्रेनिंग यह घटनाएं अलग-अलग हो सकती हैं पर इनका मकसद हिंसा है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से मथुरा में कब्जा हटाने के मामले में सेना तक की मदद लेने की बात सामने आ रही है उससे साफ है कि स्थिति भयावह थी और सरकार में या तो निपटने की क्षमता नहीं थी या फिर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का राजनीतिक साहस नहीं दिखा पाई।
रिहाई मंच ने कहा है कि मथुरा काफी संवेदनशील जगह है ऐसे में इस पूरे मामले में खुफिया विभाग की भूमिका की जांच होनी चाहिए। वहीं जातिवादी व सांप्रदायिक वोटों की खातिर जिन देशद्रोहियों को सरकार पाल रही है वह देश के नागरिकों के हित में नहीं है। ऐसे में मथुरा से सबक लेते हुए प्रदेश में बजरंगदल समेत अनेकों संगठनों द्वारा जो संचालित प्रशिक्षण केन्द्र हैं उन पर तत्काल कार्रवाई करते हुए इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम
(प्रवक्ता, रिहाई मंच)
09415254919
Wednesday, 2 December 2015
'आयौ -आयौ ' से 'आई- आई ' तक ------ डॉ अचला नगर
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अचला नागर ( Achala Nagar) प्रसिद्ध फ़िल्म पटकथा एवं संवाद लेखिका हैं। डॉ. अचला नागर का जन्म 2 दिसंबर, 1939 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ। ये प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर की पुत्री हैं।
जन्मदिन 02 दिसंबर के अवसर पर डॉ अचला नागर की एक राजनीतिक व्यंग्य रचना :
22 जून, 1980 के 'धर्मयुग' में प्रकाशित डॉ अचला नागर जी की यह रचना व्यंग्यात्मक पुट लिए उस समय की राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण करती है। यह वह समय था जब जनता पार्टी के दोनों गुट अपनी-अपनी सरकारें गंवा चुके थे और मध्यावधि चुनावों से इंदिरा कांग्रेस जो उस समय 'कांग्रेस आई' के नाम से जानी जाती थी प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौट आई थी।
डॉ अचला जी ने मंदिर के बंदर से शुरू करके केंद्र व राज्यों में पुनः कांग्रेस आई की सरकारों के गठन का बड़ा ही रोचक वर्णन प्रस्तुत किया है। जनता पार्टी की बंदर-बाट को लेखिका ने बंदर की घटना से जोड़ कर बेजोड़ बना दिया है।
(विजय राजबली माथुर )
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
अचला नागर ( Achala Nagar) प्रसिद्ध फ़िल्म पटकथा एवं संवाद लेखिका हैं। डॉ. अचला नागर का जन्म 2 दिसंबर, 1939 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ। ये प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर की पुत्री हैं।
जन्मदिन 02 दिसंबर के अवसर पर डॉ अचला नागर की एक राजनीतिक व्यंग्य रचना :
22 जून, 1980 के 'धर्मयुग' में प्रकाशित डॉ अचला नागर जी की यह रचना व्यंग्यात्मक पुट लिए उस समय की राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण करती है। यह वह समय था जब जनता पार्टी के दोनों गुट अपनी-अपनी सरकारें गंवा चुके थे और मध्यावधि चुनावों से इंदिरा कांग्रेस जो उस समय 'कांग्रेस आई' के नाम से जानी जाती थी प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौट आई थी।
डॉ अचला जी ने मंदिर के बंदर से शुरू करके केंद्र व राज्यों में पुनः कांग्रेस आई की सरकारों के गठन का बड़ा ही रोचक वर्णन प्रस्तुत किया है। जनता पार्टी की बंदर-बाट को लेखिका ने बंदर की घटना से जोड़ कर बेजोड़ बना दिया है।
(विजय राजबली माथुर )
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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