Tuesday 19 November 2013

किसी को व्यक्तिगत नुकसान पहुंचाना न हमारा उद्देश्य है न ही लक्ष्य---विजय राजबली माथुर

आज ही एक सज्जन ने लिखा कि किसी का टैग हटाने या उसे अंफ्रेंड करने या ब्लाक करने व उसकी घोषणा करने की ज़रूरत नहीं होती है। आज ही एक दूसरे 'ज्जन ने पाखंडियों के फोटो टैग कर दिये तो क्यों न उनको हटाते?और क्यों न यह सबको बताया जाये कि पाखंडवाद के प्रबल विरोधी को इस प्रकार के फोटो टैग करने का औचित्य क्या हो सकता है?जबकि वह प्रोफेसर साहब CPM के बड़े नेता भी हैं।
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  • Madan Mohan Tiwari जी मैंने ही लिखा था कि कुछ लोग बार बार सार्वजनिक रूप से घोषणा करते हैं कि ऐसा करने पर अन्फ्रेंड कर दूंगा या ब्लाक कर दूंगा.हर व्यक्ति के अपने विचार हो सकते हैं.बार बार ऐसे पोस्ट्स पढ़ना कम से कम मुझे तो अच्छा नहीं लगता है.वैसे भी हर पोस्ट को हर व्यक्ति .. तो पढ़ नहीं पाता है.जिसने घोषणा पढ़ ली वह तो टैग नहीं करेगा,जिसने न पढ़ पाई वह घोषणा के बावजूद भी कर सकता है.ऎसी स्थिति में टेग्ड फोटो में ही अन टेग करने के,रिमूव करने के या रिपोर्ट करने के आप्शन होते हैं,उनका इस्तेमाल किया जा सकता है या जिस व्यक्ति ने टैग किया है उस को सीधे मेसेज भेज कर ऐसा न करने को कहा जा सकता है.वैसे मुझे आज तक यह समझ नहीं आ पाया है कि टैग करने का मतलब या उद्देश्य क्या होता है.बहुत पहले जब मैं फेसबुक से नया नया जुड़ा था मैंने एक दो पोस्ट डाल कर यह जानना भी चाहा था कि टैगिंग का मतलब क्या है,पर किसी ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया.

  • Deepak Kumar Vijay raj ji aap me bahut jyada ghamand hai. koi communist itna jyada ghmandi nahi hota.
  • Vijai RajBali Mathur दीपक कुमार एवं गिरिधारी गोस्वामी ने खुद ही फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे थे और खुद ही कुराफ़ात करने लगे अतः दोनों को ब्लाक करना अपरिहार्य हो गया। घोषणा करना इसलिए आवश्यक है कि ख्वंखाह पाखंडी ठग आशाराम का फोटो क्यों मुझे टैग किया था?किस आधार पर मुझमें घमंड होने ...See More
  • Madan Mohan Tiwari आपकी यह बात इसलिए ठीक लगी क्योंकि आपने जिसको ब्लाक किया उसका नाम भी लिया और ब्लाक करने का कारण भी बताया.अन्य लोग तो केवल माहौल बनाने व अपना महत्व बताने के लिए ही घोषनाएं करते हैं.
  • Vijai RajBali Mathur सम्मानीय मदन मोहन तिवारी जी किसी को भी ब्लाक करने का कारण तो सदा ही बताता रहा हूँ परंतु नाम सिर्फ यह सोच कर उजागर नहीं करता था कि उसका भविष्य इससे प्रभावित न हो। उदाहरणार्थ प्रस्तुत मामले में (जो आपको ठीक लगा)प्रोफेसर गिरिधारी गोस्वामी तो रांची विश्वविद्यालय में वरिष्ठ अध्यापक और धाकड़ CPM नेता हैं उनका भले ही कुछ प्रभावित न हो;परंतु दीपक कुमार जो नोयडा में इंजीनियर हैं एक नौजवान हैं और भविष्य में जाब परिवर्तन कर सकते हैं तब उनसे इनटरवीयू में सवाल उठ सकता है जो उनके करियर के लिए ठीक न होगा। मुझसे असहमति है इस कारण मैं उनको ब्लाक करके अलग हो जाता हूँ लेकिन मैंने पहले नाम उजागर नहीं किया था क्योंकि मैं किसी का भी भविष्य नहीं बिगाड़ना चाहता भले ही उसने मुझे व्यक्तिगत नुकसान भी पहुंचाया हो। आपके कमेन्ट के कारण दोनों नाम उजागर करने पड़े हैं इसलिए यदि किसी को भविष्य में कोई नुकसान होता है तो मैं नहीं आपका कमेन्ट उत्तरदाई होगा। मैं आपके द्वारा ब्लाक किए गए व्यक्ति का नाम हमेशा उजागर करने के सिद्धान्त से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ।एक और उदाहरण डॉ मोहन श्रोत्रिय साहब का दे सकता हूँ कि वह तो रिटायर्ड प्रोफेसर होने के कारण अप्रभावित रहेंगे। उनको झूठ बोलने व कम्युनिस्ट होते हुये भी पाखंडी -पोंगापंथी ब्रहमनवाद का समर्थक होने के कारण ब्लाक किया था। परंतु भाकपा संसदीय दल के नेता आदरणीय कामरेड गुरुदास दासगुप्ता जी के विरुद्ध अपशब्दों का प्रयोग करने वाले एआईएसए/माले कार्यकर्ता का नाम इसलिए नहीं उजागर करना चाहूँगा कि वह अभी छात्र है और उसके आगे लंबा भविष्य पड़ा है। फेसबुक पर ब्लाक करके अपने से अलग कर दिया इतना ही पर्याप्त है ,उसका नाम उजागर करके क्यों उसका भविष्य बिगाड़ा जाये ?भले ही आपके हिसाब से वह गलत बात मानी जाये परंतु मैं नैतिक दृष्टि से वैसा नहीं कर सकता।  हमारे विचार नहीं मिलते तो हम फेसबुक पर अलग हो जाते हैं लेकिन किसी को व्यक्तिगत नुकसान पहुंचाना न हमारा उद्देश्य है न ही लक्ष्य।
    a few seconds ago · Like

    Madan Mohan Tiwari Vijai RajBali Mathur jii:न तो मैंने कभी आपकी ब्लाक करने या अन्फ्रेंड करने जैसी पहले कोई पोस्ट पढी थी न ही मेरा आशय आपको लक्ष्य बना कर कुछ लिखने का था.वास्तव में मैंने कभी नहीं पढ़ा था.वैसे भी हर पोस्ट हर व्यक्ति पढ़ भी नही सकता है.होम में जो 10-15 पोस्ट शुरू की आती हैं उन्हें ही पढ़ पाना संभव है.या फिर किसी व्यक्ति विशेष की टाइम लाइन में जाकर पढ़ सकते हैं.मैंने यह कभी नहीं कहा कि ब्लाक करने वाले व्यक्ति का नाम सार्वजनिक किया जाए .मैंने तो यह लिखा था,आप पुरानी पोस्ट पढ़ लीजिये कि जिसे जो अन्फ्रेंड करना चाहे कर दे,ब्लॉक करना चाहे कर दे,पर उसका ढिंढोरा पीटने की आवश्यकता क्या है.वैसे भी कोई न तो किसी को समझा सकता है,न ही किसी को अपनी बातें मानने को बाध्य कर सकता है.लोग विचार प्रकट करते हैं,कुछ लोग पसंद करते हैं कुछ नहीं.
    जहां के लोग पढे-लिखे होने के बावजूद 'घोर पाखंडी'हों वहाँ ऐसी ही लूट होती है---

    पटना जंक्शन के बाहर ये महाशय स्टेशन आने-जाने वाले लोगों में विदेशी सैलानी या बेवकूफों की तलाश में रहते हैं. जैसे ही इनको इनका शिकार मिलता है ये प्रेम-पूर्वक उसके पास जाते हैं और बिना कोई सवाल जवाब किये उसके माथे पर तिलक लगा देते है, इसके बाद मंत्रोचारण करते हुए उसकी कलाई में लाल-पीले रंग का धागा बाँध देते हैं. उसके बाद इस काम के मेहनताने की बोली ₹101 (न्यूनतम) लगाते हैं. इसे मनमाफिक दक्षिणा मिले तो ठीक नहीं तो जितना प्यार से ये तिलक लगाकर धागा बांधते हैं उतने ही क्रोधित होकर श्राप देना भी शुरू कर देते हैं, इनके चुंगल में फंसे शिकार मजबूर होकर इनसे बार्गेनिंग कर इन्हें ₹51, 21, 11या ₹5 देकर पीछा छुड़ाते हैं

    • Giridhari Goswami पाखंडी ये नहीं,वे लोग हैं जो इनसे तिलक लगवाते. ये तो आरक्षण का मारा बेचारा गरीब ब्राम्हण दो जून के जुगाड़ में कोई हल्का फुल्क रास्ते में चल पड़ा है. मैं काशी विश्वनाथ,और जगन्नाथ पूरी जैसे मंदिरों में बिना टिका लगवाए और बिना पचास पैसे दान किये घूम आया. कहा गया है की 'मूर्खों के जेब में पैसे हों तो क्या अक्लमंद भूखा मरेगा?'
    • Vijai RajBali Mathur जी हाँ गांठ के पूरे और अक्ल के अधूरे ही लुटते हैं।

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