Friday 27 April 2018
Wednesday 25 April 2018
कश्मीर का कठुआ कांड और वकील दीपिका सिंह राजावत
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कठुआ कांड की मासूम पीड़िता का केस हालांकि, मानवीय आधार पर एडवोकेट दीपिका थुस्सू ( दीपिका सिंह राजावत ) ने तमाम धमकियों के बाद भी अपने हाथ में लिया है किन्तु यह राष्ट्रीय एकता के मार्ग में भी मील का पत्थर सिद्ध होगा। एडवोकेट दीपिका का विरोध सिर्फ कट्टर सांप्रदायिक तत्वों का विरोध नहीं है बल्कि इसके पीछे वहाँ के आदिवासियों की खुशहाली छीनने वाली उस लाबी का हाथ है जो अपने नाजायज आर्थिक लाभ के लिए जम्मू वन क्षेत्र से बंजारा समुदाय को खदेड़ देना चाहता है और नन्ही मासूम के साथ जघन्य अपराध इसी उद्देश्य से किया गया है। जब दीपिका जी उस मासूम को न्याय दिलाने के लिए कोर्ट में केस लड़ेंगी तो स्व्भाविक रूप से समानता और सामाजिक न्याय की लड़ाई को भी बल मिलेगा। भारत की एकता व अखंडता में विश्वास रखने वाले प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि, वह एडवोकेट दीपिका के सद्प्रयासों का समर्थन करके अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र को विफल करे।
संकलन-विजय माथुर,
फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Tuesday 24 April 2018
Friday 20 April 2018
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता और सत्तारूढ़ दल को लाभ
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पूर्व पी एम मनमोहन सिंह साहब जब मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग चलाने की मुहिम का विरोध करते हैं तब यह सुस्पष्ट समझना चाहिए कि, वह व्यक्तिगत आधार पर ऐसा कर रहे हैं लेकिन उनके द्वारा कांग्रेस - संस्कृति का हवाला दिया गया है। उनको क्या याद नहीं है कि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्भीक न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा साहब द्वारा 12 जून 1975 को जब तत्कालीन कांग्रेसी पी एम इन्दिरा गांधी के विरुद्ध निर्णय देने पर सर्वोच्च न्यायालय के छह जजों को सुपरसीड करके ए एन रे साहब को इसलिए प्रधान न्यायाधीश बनाया गया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटा जाये। तब क्या वह न्यायपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं था ?
वस्तुतः मनमोहन सिंह साहब ही मोदी सरकार के गठन के लिए उत्तरदाई हैं इसलिए उनके द्वारा उठाया हर कदम मोदी सरकार का रक्षा कवच सिद्ध होता है।
------ (विजय राजबली माथुर )
पूर्व पी एम मनमोहन सिंह साहब जब मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग चलाने की मुहिम का विरोध करते हैं तब यह सुस्पष्ट समझना चाहिए कि, वह व्यक्तिगत आधार पर ऐसा कर रहे हैं लेकिन उनके द्वारा कांग्रेस - संस्कृति का हवाला दिया गया है। उनको क्या याद नहीं है कि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्भीक न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा साहब द्वारा 12 जून 1975 को जब तत्कालीन कांग्रेसी पी एम इन्दिरा गांधी के विरुद्ध निर्णय देने पर सर्वोच्च न्यायालय के छह जजों को सुपरसीड करके ए एन रे साहब को इसलिए प्रधान न्यायाधीश बनाया गया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटा जाये। तब क्या वह न्यायपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं था ?
वस्तुतः मनमोहन सिंह साहब ही मोदी सरकार के गठन के लिए उत्तरदाई हैं इसलिए उनके द्वारा उठाया हर कदम मोदी सरकार का रक्षा कवच सिद्ध होता है।
------ (विजय राजबली माथुर )
Saturday 14 April 2018
Friday 13 April 2018
Thursday 12 April 2018
Friday 6 April 2018
सुचित्रा सेन : मधुबाला और मीना कुमारी का संगम ------ इकबाल रिजवी
अपने वक्त की बेहद खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्री सुचित्रा सेन अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रूपहले पर्दे पर निभाए अपने किरदारों की बदौलत वो हमेशा जिंदा रहेंगी। उनका जीवन का ज्यादातर हिस्सा रहस्य के साए में घिरा रहा। उनकी अभिनेत्री बेटी मुनमुन सेन और अभिनेत्री नातिन राईमा सेन को भी उस रहस्य और एकांत का दायरा तोड़ने की इजाजत नहीं थी।बिमल रॉय की फिल्म देवदास के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजी गईं रोमा उर्फ सुचित्रा का जन्म 6 अप्रैल 1931 को पाबना (बांग्लादेश) में हुआ था। उनके पिता करूणामोय दास गुप्ता अध्यापक थे। तीन भाइयों और पांच बहनो के बीच सुचित्रा पांचवें नंबर की संतान थीं। 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी कोलकाता के जाने माने वकील आदिनाथ सेन के बेटे दिबानाथ सेन के साथ हुई। सुचित्रा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वो फिल्मों में काम करेंगी लेकिन निर्देशक असित सेन जो उनके पारिवारिक मित्र थे, शिद्दत के साथ महसूस करते थे कि सुचित्रा में बेमिसाल अभिनेत्री के गुण हैं।
बाद में सुचित्रा के पति ने ही उन्हें फिल्मों में काम करने के लिये प्रोत्साहित किया। 21 साल की उम्र में जब उन्होंने रूपहले पर्दे पर कदम रखे उस समय सात माह की मुनमुन सेन उनकी गोद में थी। उनकी पहली फिल्म थी “शेष कोथाय“ लेकिन ये फिल्म 20 साल बाद “श्राबोन संध्या” के नाम से रिलीज हो सकी। उनकी पहली रिलीज फिल्म थी “सात नम्बर कैदी (1953)”। अपनी तीसरी फिल्म “शरे चौत्तर” में उन्हें बांग्ला फिल्म के सुपर स्टार उत्तम कुमार के साथ काम करने का मौका मिला। फिल्म जबरदस्त हिट साबित हुई और इसी फिल्म से बांग्ला सिनेमा को सुचित्रा सेन और उत्तम कुमार की अद्भुत जोड़ी मिली। अगले 25 साल तक 30 फिल्मे एक साथ कर ये जोड़ी बांग्ला सिनेमा पर राज करती रही। साल 1963 में सुचित्रा सेन के करियर की सबसे शानदार बांग्ला फिल्म आई। ”सात पाके बांधा,” सुचित्रा सेन के शानदार अभिनय के लिए उन्हें मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब मिला। किसी भारतीय अभिनेत्री को वहां पहली बार ये सम्मान मिला था।
साभार :
https://www.navjivanindia.com/people/suchitra-sen-an-international-indian-actress?utm_source=one-signal&utm_medium=push-notification
Tuesday 3 April 2018
Monday 2 April 2018
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