Tuesday 31 March 2015

'ट्रेजेडी क्वीन':मीना कुमारी --- ध्रुव गुप्त/ संजोग वाल्टर

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 मीना कुमारी जी की 44 वीं पुण्य तिथि पर उनका लिखा और उनका ही गाया यह गीत सुनें :

 




 अज़ीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खत्म !:
 'ट्रेजेडी क्वीन' के नाम से मशहूर हिंदी / उर्दू सिनेमा की भावप्रवण अभिनेत्री और उर्दू की संवेदनशील शायरा मीना कुमारी उर्फ़ माहज़बीं परदे पर अपने लाज़वाब अभिनय के अलावा अपनी बिखरी और बेतरतीब निज़ी ज़िन्दगी के लिए भी जानी जाती है। भारतीय स्त्री के जीवन के दर्द को रूपहले परदे पर साकार करते-करते कब वह ख़ुद दर्द की मुकम्मल तस्वीर बन गई, इसका पता शायद उन्हें भी न चला होगा। भूमिकाओं में विविधता के अभाव के बावज़ूद उनकी खास अभिनय-शैली और मोहक आवाज़ का जादू भारतीय दर्शकों पर हमेशा छाया रहा।1939 में बाल कलाकार के रूप में उन्होंने बेबी मीना के नाम से अपना फिल्मी सफ़र शुरू किया था। नायिका के रूप में 1949 में बनी 'वीर घटोत्कच' उनकी पहली फिल्म थी, लेकिन उन्हें मक़बूलियत हासिल हुई विमल राय की फिल्म 'परिणीता से।1972 की 'गोमती के किनारे' उनकी आखिरी फिल्म थी। 33 साल लम्बे फिल्म कैरियर में उनकी कुछ कालजयी फ़िल्में हैं - परिणीता, दो बीघा ज़मीन, फुटपाथ, एक ही रास्ता, शारदा, बैजू बावरा, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहिनूर, आज़ाद, चार दिल चार राहें, प्यार का सागर, बहू बेगम, मैं चुप रहूंगी, दिल एक मंदिर, आरती, चित्रलेखा, साहब बीवी गुलाम, सांझ और सवेरा, मंझली दीदी, भींगी रात, नूरज़हां, काजल, फूल और पत्थर, पाकीज़ा और मेरे अपने। मीना कुमारी मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही के साथ अपने असफल दाम्पत्य और तब के संघर्षशील अभिनेता धर्मेन्द्र के साथ अपने अधूरे प्रेम संबंध की वज़ह से भी चर्चा में रहीं। उनकी बेपनाह भावुकता ने उन्हें नशे की दुनिया में भटकाया, लेकिन उनकी शायरी ने उन्हें मुक्ति भी दी।
 मीना कुमारी की पुण्यतिथि पर उन्हें खिराज़े अकीदत उन्ही की एक नायाब नज़्म के साथ ! 
 सुबह से शाम तलक दूसरों के लिए कुछ करना है
 जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
 रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
 ज़िन्दगी क्या है कभी सोचने लगता है 
यह ज़हन और फिर रूह पे छा जाते हैं 
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
 दिल में रह रहके ख़्याल आता है 
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?
 प्यार इक ख़्वाब था इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ !
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Meena Kumari ( 1 August 1932 – 31 March 1972), born Mahjabeen Bano was an movie actress and poet. She is regarded as one of the most prominent actresses to have appeared on the screens of Hindi Cinema. During a career spanning 30 years from her childhood to her death, she starred in more than ninety films, many of which have achieved classic and cult status today. With her contemporaries Nargis and Madhubala she is regarded as one of the most influential Hindi movie actresses of all time.
Kumari gained a reputation for playing grief-stricken and tragic roles, and her performances have been praised and reminisced throughout the years. Like one of her best-known roles, Chhoti Bahu, in Sahib Bibi Aur Ghulam (1962), Kumari became addicted to alcohol. Her life and prosperous career were marred by heavy drinking, troubled relationships, an ensuing deteriorating health, and her death from liver cirrhosis in 1972.
Kumari is often cited by media and literary sources as "The Tragedy Queen", both for her frequent portrayal of sorrowful and dramatic roles in her films and her real-life story.

Friday 27 March 2015

इस ऑडिटोरियम के बिना अधूरी रहेगी थिएटर की कहानी....रंगमंच हमारी जिद है

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Monday 23 March 2015

भगत सिंह: एक संक्षिप्त परिचय --- K K Bora Comrade

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 भगत सिंह: एक संक्षिप्त परिचय :
 भगत सिंह पर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बहुत असर पड़ा था भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में चक नंबर 105(अब पाकिस्तान में) नामक जगह पर हुआ था. हालांकि उनका पैतृक निवास आज भी भारतीय पंजाब के नवांशहर ज़िले के खट्करकलाँ गाँव में स्थित है. उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था. यह एक सिख परिवार था . दादा गदरी आन्दोलन से जुड़े थे चाचा निर्वासित हो के आजादी आन्दोलन में रहे पिता समेत सभी लोग आजादी की लड़ाई में कई मर्तबा जेल काट चुके थे . अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था. लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम के एक क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए थे. रूस की मजदूर वर्ग क्रांति से प्रभावित हो भगत सिंह ने शोषण विहीन समाज के रूप में भारतीय आजादी की लड़ाई का लक्ष्य रखा. 1930 में उन्होंने अपने संघटन का एक प्रतिनिधि सोवियत संघ में भेजा और क्रांति के लिए लेनिन के विचारो को जरुरी बताया भगत सिंह के लेख नोजवानो के नाम सन्देश में भगत सिंह ने नोजवानो से कम्युनिस्ट पार्टी को तैयार करने को कहा भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी. इस संगठन का उद्देश्य ‘सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले’ नवयुवक तैयार करना था. भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा था. इस कार्रवाई में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद ने भी उनकी सहायता की थी.   भगत सिंह ने नई दिल्ली की केंद्रीय एसेंबली में बम फेंका था. क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने नई दिल्ली की सेंट्रल एसेंबली के सभागार में 8 अप्रैल, 1929 को 'अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिए' बम और पर्चे फेंके थे. बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी. भगत सिंह पर ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने का आरोप लगा और उन पर लाहौर षड़यंत्र के तहत मामला बनाया गया. लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी की सज़ा सुनाई गई जबकि बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया. भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे फाँसी पर लटका दिया गया. इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था. भगत सिंह ने क्रांतिकारी आंदोलन को ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा दिया था.
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Madhuvandutt Chaturvedi :·
  "भगत सिंह से यह मेरी पहली मुलाकात थी। मैं जतीन्द्र नाथ दास बगैरहा से भी मिला । भगत सिंह का चेहरा आकर्षक था और उससे बुद्धिमत्ता टपकती थी । वह निहायत शांत और गंभीर था । उसमें गुस्सा नहीं दिखाई देता था । उसकी दृष्टि और बातचीत में बड़ी सुजनता थी ।" - जवाहर लाल नेहरू ( लाहौर सडयंत्र केस के कैदियों की भूख हड़ताल के एक महीने पूरे होने पर लाहौर जेल में नेहरू उनसे मिले थे । उल्लेखनीय है कि भूख हड़ताल के 61 वे दिन जतिन्द्र नाथ दास शहीद हो गए थे जिनकी शहादत पर नेहरू ने लिखा,'मृत्यु से सारे देश में सनसनी फ़ैल गयी थी ।' )



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday 17 March 2015

पूंजी के बनावटी रिश्ते को अमान्य करना जायज ---सत्य नारायण त्रिपाठी

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Tuesday 10 March 2015

गांधी जी पर लांछन क्यों? --- विजय राजबली माथुर

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http://vijai-vidrohi.blogspot.in/2015/03/gandhi-british-agent-markandey-katju.html 

https://www.facebook.com/justicekatju/posts/933487810025099 
 हालांकि जस्टिस काटजू का यह कहना कि गांधी जी ने 'क्रांतिकारी आंदोलन' की धार कुन्द कर दी और अधिकांश क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई तो सही है परंतु 'भारत-विभाजन' के लिए उनको उत्तरदाई ठहराना उनके साथ अन्याय होगा एवं अप्रत्यक्ष रूप से RSS/भाजपा के गलत विचारों को प्रोत्साहन देना भी  । 1857 की प्रथम क्रान्ति का हश्र गांधी जी के समक्ष था कि किस प्रकार पारस्परिक फूट से उसे विफल किया गया था अतः 'अहिंसा और सत्याग्रह' का मार्ग अपनाना उनकी एक रणनीतिक सफलता थी । विभाजन तो अमेरिकी राष्ट्रपति आईजेन हावर की दुर्नीति के कारण सामने आया था जिसे कमजोर होते जा रहे ब्रिटिश साम्राज्य को भी मानना ज़रूरी हो गया था। 
 यह एक सुनिश्चित ब्राह्मणवादी विचार धारा है कि भारत के प्रतीक महा पुरुषों को बुरी तरह बदनाम कर के जनता को दिग्भ्रमित किया जाये। इसी कारण पौराणिक ग्रन्थों के जरिये 'राम' और 'कृष्ण' के चरित्रों पर लांछन लगाए गए दूसरी ओर उनको अलौकिक घोषित करके उनकी पूजा शुरू करा दी गई जिसके जरिये ब्राह्मणों को रोजगार मिल गया। शेष जनता उनके क्रांतिकारी विचारों से अनभिज्ञ होने के कारण लाभ न उठा सकी। आधुनिक युग में एक बार फिर गैर ब्राह्मण महा पुरुषों पर लांछन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है जिससे उन लोगों को लाभ पहुंचाया जा सके जो साम्राज्यवाद के पिट्ठू रहे हैं और इसी लिए त्याग,बलिदान करने वाले महा पुरुषों पर ये कीचड़ उछाले जा रहे हैं।

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जस्टिस काटजू जातिवाद पर चल कर गैर ब्राह्मण महा पुरुषों पर लांछन लगा रहे हैं। अब नेहरू जी को भी गांधी जी के विरुद्ध घसीट लिया है। महात्मा गांधी जी के साथ-साथ नेताजी सुभाष बोस को भी विदेशी एजेंट घोषित करके जस्टिस काटजू RSS के इतिहास पुनरलेखन का कार्य संपादित कर रहे हैं।

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