Sunday 30 June 2019

देश में फ़ासीवाद के शुरुआती संकेत : महुआ मोइत्रा ------ दिव्या आर्य (बीबीसी )

 संसद में पहली बार चुनकर आईं तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने चिंता जताई है कि देश के मौजूदा हालात फ़ासीवाद के शुरुआती संकेत जैसे हैं.






26 जून 2019
संसद में पहली बार बोलते हुए उन्होंने सात संकेतों का ज़िक्र किया और अमरीका के 'होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम ' की मेन लॉबी में साल 2017 में प्रदर्शित एक पोस्टर का हवाला दिया.

जर्मनी में 1940 के दशक के दौरान नाज़ी हुकूमत के तहत यहूदियों की सामूहिक हत्या को याद करने के लिए बने मेमोरियल म्यूज़ियम में 2017 में लगाए गए पोस्टर में फ़ासीवाद के शुरुआती संकेतों की सूची छपी है.

बीबीसी से बातचीत में सासंद महुआ मोइत्रा ने कहा, "ये लिस्ट मैंने नहीं बनाई, ये पुरानी लिस्ट है और बाक़ि आपके सामने है. फ़ासीवाद, मेजोरिटेरियनिज़म (बहुसंख्यकों का प्रभुत्व) से जुड़ा है. जहां ये माना जाता है कि हम जो सोचते हैं वही सही है बाक़ि सब ग़लत और उसको अक्सर जन समर्थन मिलता है, जैसा कि अभी हुआ है."


वो पोस्टर अब भी होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम या उसकी गिफ़्ट शॉप में प्रदर्शित है या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है पर पोस्टर की एक तस्वीर साल 2017 में ट्विटर पर पोस्ट होने के बाद ये चर्चा में आया था.
महुआ के मुताबिक़ उनका इशारा बड़े स्तर के किसी जनसंहार की तरफ़ नहीं है पर इतने बड़े जनादेश को ध्यान में रखते हुए इन मुद्दों पर जानकारी फैलाना उनकी ज़िम्मेदारी है.

उन्होंने कहा, "फ़ासीवाद सिर्फ़ जर्मनी में ही नहीं था, अब कई जगह हैं, मेरी बात का ये मतलब नहीं कि साठ लाख यहूदियों को मार दिया जाएगा, लेकिन ये साफ़ है कि फ़ासीवाद के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं."

अपने चुनाव प्रचार में भी महुआ मोदी सरकार की आलोचना करती रही हैं. उन्होंने लोगों की जानकारी की निजता के हक़ की सुरक्षा के लिए याचिकाएं भी दायर की हैं.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "हमारे पास डेटा प्राइवेसी क़ानून नहीं है और सरकार अध्यादेश के ज़रिए प्राइवेट कंपनियों को लोगों की जानकारी देने के प्रावधान बना रही है, हमारे देश में लोगों में निजता के बारे में जागरूकता नहीं है और सस्ती चीज़ों, सेवाओं के लिए वो अपना डेटा देने से हिचकते नहीं हैं."


महुआ के मुताबिक़ ऐसे में सरकार की ज़िम्मेदारी है लोगों के हक़ में सही क़ानून लाना लेकिन वो कॉरपोरेट और राजनीतिक हित को देख रही है.
पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर लोकसभा क्षेत्र से जीतकर आईं महुआ मोइत्रा पहले लंदन में बहुराष्ट्रीय कंपनी जे पी मॉर्गन में इंवेस्टमेंट बैंकर थीं.

साल 2009 में ये नौकरी छोड़ वो भारत आईं और राजनीति में जुड़ गईं. साल 2016 में वो करीमपुर विधानसभा क्षेत्र से जीती.

1972 से वो सीट वाम दल ही जीतते आए थे. 2016 से महुआ मोइत्रा तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं.

2019 में उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता. मंगलवार को वो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में बोलीं. ये संसद में उनका पहला संबोधन था.


अपने भाषण में उन्होंने जिन सात संकेतों को रेखांकित किया वो सब उस पोस्टर में चिन्हित हैं.

पहला, देश में लोगों को अलग करने के लिए उन्मादी राष्ट्रवाद फैलाया जा रहा है. दशकों से देश में रह रहे लोगों को अपनी नागरिकता का सबूत देने को कहा जा रहा है.

उन्होंने प्रधानमंत्री और सरकार के कुछ मंत्रियों पर चुटकी लेते हुए कहा कि जहां सरकार के मंत्री ये तक नहीं दिखा पा रहे हैं कि उन्होंने किस कॉलेज या यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है वहां सरकार ग़रीब लोगों से नागरिकता के सबूत देने को कह रही है.

दूसरा, सरकार के हर स्तर में मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ घृणा पनपती जा रही है. दिन दहाड़े भीड़ के द्वारा की जा रही लिंचिंग पर चुप्पी है.

तीसरा, मीडिया पर नकेल कसी जा रही है. देश की सबसे बड़ी पांच मीडिया कंपनियों पर या तो सीधा या अप्रत्यक्ष तरीक़े से एक व्यक्ति का नियंत्रण है. फ़ेक न्यूज़ के ज़रिए लोगों को दिगभ्रमित किया जा रहा है.

चौथा, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दुशमन ढूंढे जा रहे हैं. जबकि पिछले पांच सालों में कश्मीर में सेना के जवानों की मौत में 106 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है.

पांचवा, सरकार और धर्म आपस में मिल गए हैं. 'नैश्नल रेजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स' और 'सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल' के ज़रिए ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि एक ही समुदाय को इस देश में रहने का हक़ रहे.


छठा, बुद्धीजीवियों और कला की उपेक्षा की जा रही है और असहमति की आवाज़ों को दबाया जा रहा है. 
और सातवां, चुनाव प्रक्रिया की स्वायत्ता कम हो रही है.


https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=7722108332076466490#editor/target=post;postID=5368392547571634011



संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश





Friday 28 June 2019

महुआ मोइत्रा का भाषण... उनके व्यक्तित्व, उनकी सोच और राजनीति का रिफ्लेक्शन ------



Jaya Singh

केरल की दलित मजदूर की बेटी राम्या हरिदास के बाद जिस महिला के संसद पहुँचने पर गर्व हो रहा है वे हैं कल चर्चा में आईं तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा।कल उन्होंने मोदी सरकार का संसद में खाल उधेड़कर रख दिया। उन्होंने जब बोलना शुरू किया तो बीजेपी के सैकड़ों सांसद सिर झुकाकर सुनते रहे जैसे एक जज अपराधी को सजा सुनाते हैं,और अपराधी कटघरे में चुप खड़ा रहता है।जेपी मॉर्गन में काम कर चुकीं बैंकर महुआ मोइत्रा न्यूयॉर्क में अपनी शान-ओ-शौकत भरी जिंदगी को छोड़कर राजनीति में आईं. पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से TMC के टिकट पर उन्होंने 2019 का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.उन्होंने देश में फांसीवाद का संकेत देते हुए 7 मुद्दों पर देश को झकझोर दिया।ये मुद्दे सभी को दिख रहे थे,लेकिन जिस नज़र से महुआ मोइत्रा ने देखा और अपने पहले ही संबोधन में अपनी बात रखी काबिलेतारीफ है।

पहला, देश में लोगों को अलग करने के लिए उन्मादी राष्ट्रवाद फैलाया जा रहा है. दशकों से देश में रह रहे लोगों को अपनी नागरिकता का सबूत देने को कहा जा रहा है.

उन्होंने प्रधानमंत्री और सरकार के कुछ मंत्रियों पर चुटकी लेते हुए कहा कि जहां सरकार के मंत्री ये तक नहीं दिखा पा रहे हैं कि उन्होंने किस कॉलेज या यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है वहां सरकार ग़रीब लोगों से नागरिकता के सबूत देने को कह रही है.

दूसरा, सरकार के हर स्तर में मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ घृणा पनपती जा रही है. दिन दहाड़े भीड़ के द्वारा की जा रही लिंचिंग पर चुप्पी है.

तीसरा, मीडिया पर नकेल कसी जा रही है. देश की सबसे बड़ी पांच मीडिया कंपनियों पर या तो सीधा या अप्रत्यक्ष तरीक़े से एक व्यक्ति का नियंत्रण है. फ़ेक न्यूज़ के ज़रिए लोगों को दिगभ्रमित किया जा रहा है.

चौथा, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दुशमन ढूंढे जा रहे हैं. जबकि पिछले पांच सालों में कश्मीर में सेना के जवानों की मौत में 106 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है.

पांचवा, सरकार और धर्म आपस में मिल गए हैं. 'नेशनल रेजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स' और 'सिटिज़नशिप अमेंडमेंट बिल' के ज़रिए ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि एक ही समुदाय को इस देश में रहने का हक़ रहे.

छठा, बुद्धीजीवियों और कला की उपेक्षा की जा रही है और असहमति की आवाज़ों को दबाया जा रहा है. और सातवां, चुनाव प्रक्रिया की स्वायत्ता कम हो रही है.

संसद में यदि आतंकी प्रज्ञा ठाकुर जैसे महिला पहुंची है तो महुआ मोइत्रा ,राम्या हरिदास,चंद्राणी मुर्मू जैसे भी महिला पहुंची है,जो अकेले विपक्ष की भूमिका निभाने में सक्षम है।हमें इन्हें साथ देना होगा।

(बीबीसी से कुछ अंश लिए गए हैं)

Vikram Singh Chauhan
https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=698595650579919&id=100012884707896

Dainik Jagran
Published on Jun 27, 2019
महुआ मोइत्रा को टीएमसी में 9 साल हो गए... 2019 के चुनाव में ममता बनर्जी ने उन्हें कृष्णानगर से चुनावी मैदान में उतारा. ये पहली बार था, जब वे लोकसभा का चुनाव लड़ रही थीं. उनके सामने बीजेपी की चुनौती थी. बंगाल में बीजेपी एक मजबूत राजनीतिक ताकत बनकर उभरी हैं. लेकिन महुआ मोइत्रा ने ममता बनर्जी के विश्वास को टूटने नहीं दिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कृष्णानगर सीट से बीजेपी के कल्याण चौबे को 63 हजार से ज्यादा वोटों से हराया और संसद पहुंचीं... 25 जून को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर महुआ का भाषण... उनके व्यक्तित्व, उनकी सोच और राजनीति का रिफ्लेक्शन है   : 





 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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कौन हैं MP महुआ मोइत्रा, जो संसद में 10 मिनट का भाषण देकर छा गईं  ? 
क्विंट हिंदी
तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर पहली बार सांसद चुनी गईं महुआ मोइत्रा ने मंगलवार को लोकसभा में धुआंधार भाषण दिया. महुआ ने अपने 10 मिनट के भाषण से लोगों के जेहन पर अपनी छाप छोड़ दी. वे जेपी मॉर्गन में काम कर चुकी हैं और बैंकिंग के क्षेत्र में उन्‍हें महारत हासिल है.

लोकसभा में महुआ मोइत्रा ने हिंदी के कवि रामधारी सिंह दिनकर, उर्दू के शायर राहत इंदौरी और आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानी मौलाना आजाद का जिक्र करते हुए जो भाषण दिया, बीजेपी को जिस तरह घेरा, उसकी खूब चर्चा हो रही है.

दिनकर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ‘मतभेद इस देश का राष्ट्रीय चरित्र है. इसे खत्म नहीं किया जा सकता’

एनआरसी, बेरोजगारी, फेक न्यूज, मीडिया की स्वतंत्रता, किसान, राष्ट्रवाद समेत तमाम मुद्दों पर उन्होंने अपने तथ्यों और तर्कों से बीजेपी सरकार की जमकर आलोचना की.

2019 लोकसभा चुनाव के बारे में महुआ मोइत्रा ने कहा कि ये पूरा चुनाव वॉट्सऐप और फेक न्यूज पर लड़ गया. उन्होंने 7 बिंदुओं के जरिए बताने की कोशिश की कि कैसे बीजेपी सरकार का रवैया 'तानाशाही' है.

1 ---मजबूत और कट्टर राष्ट्रवाद से देश के सामाजिक ताने-बाने को आधात पहुंचा है. इस तरह के राष्ट्रवाद का नजरिया काफी संकीर्ण और डराने वाला है.
2 --- देश में मानव अधिकारों के हनन की कई घटनाएं घट चुकी हैं. सरकार के हर स्तर पर मानव अधिकारों का हनन हो रहा है. देश में ऐसा माहौल बनाया गया है जिसमें नफरत के आधार पर हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं.
3 --- महुआ ने संसद में मीडिया के सरकारी नियंत्रण पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि मीडिया को उस हद तक नियंत्रित किए जाने की कोशिशें हो रही हैं जितना सोचा भी नहीं जा सकता.
4 --- देश में राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर शत्रु खड़ा करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. ‘हर कोई इस बेनामी ‘काले भूत’ से डर रहा है.
5 --- सरकार और धर्म के एक दूसरे से संबंधो पर भी उन्होंने सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि सिटिजन अमेंडमेंट बिल के जरिए एक खास समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है.
6 --- इस सरकार ने सभी बुद्धिजीवियों और कलाकारों का तिरस्कार किया है. मोदी सरकार ने विरोध को दबाने की सारी कोशिशें की हैं.

7 --- उन्होंने दावा किया 2019 के चुनावों में 60 हजार करोड़ खर्च हुए और सिर्फ एक पार्टी ने इसका 50% फीसदी खर्च किया.

कौन हैं महुआ मोइत्रा?
जेपी मॉर्गन में काम कर चुकीं बैंकर महुआ मोइत्रा न्यूयॉर्क में अपनी शान-ओ-शौकत भरी जिंदगी को छोड़कर राजनीति में आईं. पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से TMC के टिकट पर उन्होंने 2019 का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उन्होंने बीजेपी के कल्याण चौबे को करीब 63 हजार वोटों से हराया.


महुआ ने 2008 में पॉलिटिक्स में कदम रखा. उनकी शुरुआत तो कांग्रेस से हुई, लेकिन जल्द ही उनका कांग्रेस से मोह भंग हो गया. मोइत्रा ने 2010 में टीएमसी जॉइन की.
ममता की उम्मीदों पर खरी उतरीं महुआ
टीएमसी की सदस्य बनने के बाद ममता बजर्नी ने उन्हें पहली बार 2016 में करीमपुर से विधानसभा चुनाव लड़ाया और उन्होंने वहां जीत दर्ज की. उनके बैकग्राउंड और लाइफस्टाइल को देखते हुए टीएमसी के कुछ नेताओं का कहना था कि वो बंगाल की जमीनी पॉलिटिक्स के लिए फिट नहीं हैं. लेकिन करीमपुर की जीत ने ऐसे लोगों की बोलती बंद कर दी.

अपने चुनाव क्षेत्र को चमका कर बनाई जगह
करीमपुर से विधायक बनने के बाद महुआ मोइत्रा ने अपने बैंकिंग क्षेत्र से होने का फायदा उठाते हुए क्षेत्र में करीब 150 करोड़ रुपए का निवेश कराया. ममता बनर्जी ने महुआ का काम देखते हुए उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की कृष्‍णा नगर सीट से टिकट दिया.

कई बार बीजेपी ने उन्हें बंगाल में ‘बाहरी’ बताने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने अपने पैतृक संबंधों का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें बंगाल में काम करने में कोई दिक्कत नहीं है.


महुआ मोइत्रा सिर्फ पॉलिटिक्स तक सीमित नहीं है. उन्होंने इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सरकारी सर्विलांस के खिलाफ याचिका लगाई थी.

https://hindi.thequint.com/news/politics/who-is-mahua-moitra-newly-elected-tmc-mp-profile
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Rajesh Rajesh
June 27 at 6:49 AM · 
महिला सांसद ,महुआ मोइत्रा ,पहली बार चुनी गई सदस्य लोकसभा की ,तूणमूल कांग्रेस के सौजन्य से ,
और अपनी पहली भाषण में ही संसद और सत्ता को झकझोर दिया ..
उन्होंने जो सात सवाल दागे सत्ता से ,
उसका जबाब मोदी सरकार आने वाले पांच सालों में भी न दे पायेगी । यह मेरा दावा है ।
सबसे सटीक और 
बेहतरीन तात्कालिक सवाल और ज्वलंत और गंभीर मुद्दों को इस महिला सांसद ने उठाया ।
मित्र पढ़ें लिखे में और गवांर में बहुत अंतर होता हैं ,
इस तरह भी हम-सब गवांरो को ही
सुनने समझने के काबिल है ।
यानि भेड़ बनकर ही रहना चाहते हैं ।
अभी तक,नयी संसद चुनने के बाद ,सभी राजनीतिक दलों के सदस्यों में से किसी एक सदस्य ने भी ऐसा भाषण और आवाज नहीं दी है ,
खुद पीएम का भाषण भी धन्यवाद प्रस्ताव पे एक घिनौना भाषण ही था, जिसमें ,
अहम और कुंठा के साथ ,माखौलिया ,मजाक उपहास साफ झलकती थी ।
बंगाल से कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी की भाषण भी वाहवाही को छोड़कर और कुछ नहीं थी ।
लेकिन इस महिला सांसद ने संविधान,संसद,
लोकतंत्र का वाजिब आइना दिखा दिया ,संसद के पटल पर,
और ऐकला सत्ता की शासन शैली को रौंद डाला ।
बधाई हो 
महुआ मोइत्रा को ।


राजेश 
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=918008145214802&set=a.111828709166087&type=3

Wednesday 26 June 2019

सन् 75 से भी ज्यादा ख़राब अघोषित आपातकाल की स्थिति है ------ प्रोबीर पुरकायस्थ

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )

इमरजेंसी यानी आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास के काले दौर के तौर पर याद किया जाता है। 25 जून की आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। यह आपातकाल 26 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक रहा। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे और तमाम तरह के नागरिक अधिकारों को कुचल दिया गया था। ये दौर तो बुरा था ही लेकिन तमाम राजनीतिक दल और नागरिक समाज आज लोकतंत्र को लेकर पहले से भी ज़्यादा चिंतित है। कई लोगों का मानना है कि देश में पिछले करीब 5 साल से एक अघोषित आपातकाल की स्थिति है, जो सन् 75 से भी ज्यादा ख़राब है। और इसका पूरी मजबूती से सामना करने की ज़रूरत है।


* इंदिरा गांधी ने निलम्बित लोकतंत्र को सक्रिय करने का विकल्प चुनने का जो फैसला किया, वह आपातकाल थोपने से कहीं बड़ा फैसला था। शायद उसी फैसले के कारण जनता ने दंडित करने के बाद दोबारा उन्हें मौका दिया।
**गलत तरीके से चुनाव जीतकर आने की वजह से इंदिरा गांधी का चुनाव इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द किया था जिसके बाद की घटना है आपातकाल। सवाल ये है कि गलत तरीके से चुनाव जीतने की कोशिशें क्या बंद हो गयी हैं? उद्योगपतियों से राजनीतिक चंदे को अपने नाम कर लेने की कोशिशें, मीडिया पर कब्जा जमाए रखना, सूचना और तकनीक के दूसरे साधनों का दुरुपयोग, चुनाव जीतने में बड़े पैमाने पर धन का इस्तेमाल, ईवीएम की हैकिंग और ईवीएम की स्वैपिंग को लेकर आशंकाएं जैसी बातें बताती हैं कि गलत तरीके से चुनाव जीतने के हथकंडे बढ़े हैं। इनकी पुष्टि के लिए किसी अदालत का फैसला आना भर बाकी है। अगर ऐसा होता है तो हुक्मरान आपातकाल से कोई अलग प्रतिक्रिया देगा, यह भी देखने की बात होगी।
***उत्तराखण्ड में गलत तरीके से हरीश रावत की सरकार बर्खास्त की गयी, कर्नाटक में गलत तरीके से वीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गयी, गोवा में सबसे बड़ी पार्टी के बजाए जोड़-तोड़ करने वाली पार्टी को सरकार बनाने का मौका दे दिया गया, मणिपुर में भी लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली घटनाएं घटीं। यह सिलसिला अगर नहीं रुक रहा है तो समझिए कि आपातकाल की जड़ें देश में मजबूत हैं और मजबूत हो रही हैं। 

****संसद भवन में ‘जय़ श्रीराम’ और ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारों का लगना बताता है कि आपातकाल प्रेमी रूप बदलकर न सिर्फ पैदा हो चुके हैं बल्कि खुद को मजबूत कर चुके हैं। मॉब लिंचिंग पर देश की संसद और विधानसभाओं की खामोशी भी यही बात डंके की चोट पर कह रही है। गोरखपुर के बाद मुजफ्फरपुर में बच्चों की लगातार मौत को आपदा मान लेने वाली सोच लोकतांत्रिक नहीं हो सकती। एक ही समय में रांची में प्रधानमंत्री की योग क्रीड़ा और मुजफ्फरपुर में मौत का तांडव बताता है कि देश में लोकतंत्र की संवेदनशीलता सो रही है।
***** बहुत आसान है कि आपातकाल की बरसी पर सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया जाए, उसे लोकतंत्र विरोधी घोषित कर दिया जाए। मगर, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2014 से पहले जनता पार्टी की सरकार समेत जितनी भी सरकारें बनीं वह कांग्रेस की कोख से निकली हुई सरकारें थीं। यहां तक कि बीजेपी जिस श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपना आदर्श मानती है वह भी कांग्रेस की सरकार में मंत्री रह चुके थे। कहने का अर्थ ये है कि आपातकाल के बीज राजनीति पर वर्चस्व रखने वाली पार्टी में निहित होती है। वह कांग्रेस भी हो सकती है और कोई दूसरी पार्टी भी। 
(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार )
https://janchowk.com/zaruri-khabar/india-emergency-indira-modi-opposition-constitution/4772?#.XRH3RqAWPxU.facebook




  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Friday 14 June 2019

पानी पैसा है और पैसा पॉवर है ------ प्रीति कुसुम

प्रीति कुसुम
1 hr ( 14-06-2019 )


ये पोस्ट दो साल पहले लिखी थी अब तक हमारी सरकार इस ओर दुगुनी तेज़ी से क़दम बढ़ा चुकी है।

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मिडल क्लास से लेकर हाइअर क्लास को privatisation का समर्थन करते देखा है। ये लोग समझते हैं की इससे सरकारी ढिल-ढुल रवैये से निजात मिलेगी, सब कुछ पर्फ़ेक्ट होगा। ये मानसिकता स्वतः नही उपजी है बल्कि बनाई गई है, और अब आप ट्रैप में हैं।
अमेरिका के एक स्टेट California में लगातार पिछले कई सालों की रिपोर्ट ये बताती है की वहाँ "सूखे" की वजह से पानी की भारी क़िल्लत का सामना करना पड़ रहा। बहुत सी जगहों पर लोग पीने का पानी ख़रीदते हैं और नहाने के लिए उन्हें दूर टाउंज़ में जाना पड़ता है 5 डॉलर प्रति व्यक्ति। पानी टैंक में एकत्र करके उन्हें रेसायकल करते हैं जैसे हाथ धुले हुए पानी से बर्तन धोते हैं फिर उस बर्तन धुले पानी को पौधों में डालने के लिए इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी की उसी California में हर साल बादाम, ऑलिव्स,संतरे आदि की सफल खेती हर साल नए रेकर्ड बना रही है! आख़िर कैसे? खेती के लिए भी तो पानी चाहिए। मतलब सूखे वाली रिपोर्ट छलावा है।

Kern नदी से California के बेकर्ज़्फ़ील्ड सिटी में पानी वितरित करने के लिए एक डिपार्टमेंट है "बेकर्ज़्फ़ील्ड डिपार्टमेंट ऑफ़ वॉटर रीसोर्स", लेकिन ये डिपार्टमेंट "पैरमाउंट फ़ार्मिंग कम्पनी" के अधीन है, मतलब प्राइवट कम्पनी के हाथ में है जो फ़ार्मिंग का बिज़्नेस करते हैं। पैरमाउंट कम्पनी California के नामी बिज़्निस्मन स्टूअर्ट और उनकी पत्नी लिंडा रिस्निक की "द वंडर्फ़ुल कम्पनी" की एक इकाई है। इन्हें आप California के अम्बानी-अडानी कह सकते हैं। इनका बॉटल्ड वॉटर का भी बिज़्नेस है।अब आपको खेल थोड़ा समझ आ रहा होगा।उद्योगपतियों के संसाधन पर क़ब्ज़ा होने की वजह से यहाँ की जनता जोकि टैक्स पेअर है वो पानी ख़रीद के पी रही और नहाने के लिए भी पैसे चुका रही।
पानी पैसा है और पैसा पॉवर है।इसलिए बिज़्नेसमायंडेड लोगों ने पहले बंजर ज़मीन थोक के भाव ख़रीदी फिर सरकारी विभाग जो की California के अधीन होना चाहिए था को ख़रीदा, फिर जो पानी लोगों के घर जाना चाहिए था वो इनके फ़ार्मिंग कम्पनीज़ की खेती में उपयोग हो रहा है। अंडर ग्राउंड वॉटर को सक करके सिर्फ़ खेती के लिए उपयोग किया जा रहा जबकि लोगों के घर में लगे नलों में पीने लायक पानी नहीं।लगातार अंडर ग्राउंड वॉटर को भारी मात्रा में निकाले जाने की वजह से वहाँ की ज़मीन अब तेज़ी से धँसना शुरू हो गई है।एक बादाम उगाने में तक़रीबन 3 से 3.5 ली. पानी लगता है और ये धड़ल्ले से लगाया जा रहा California Almonds इक्स्पॉर्ट करने के लिए! क्या पीने के पानी से ज़्यादा ज़रूरी बादाम उगाना है वो भी बाहर भेजने के लिए!इसे ऐसे समझिए की आपके घर के नल में जो पानी आ रहा उसे कोई आकर रोक ले,1 लीटर बॉटल में भर ले और कहे की 25 रुपए निकालो!!
हमारी सरकारें अमेरिका से बहुत प्रभावित हैं वो तो विकसित होने के बाद ये सब कर रहा हम बिना विकसित हुए तेज़ी से उस ओर अग्रसर हैं। बिना प्राइवट हुए सरकार कहती है की हमारा ही पैसा बैंकों से निकालने के लिए हमें चार्ज देना पड़ेगा। कैश मत निकालो तो कार्ड से पे करने पर भी चार्ज देना पड़ेगा!! 
अगर रेल्वे आदि का जो निजीकरण तेज़ी से हो रहा उसे नहीं रोका गया तो बहुत जल्दी हम इससे भी बदतर हालत में होंगे।
साभार : 

Wednesday 12 June 2019

जनतांत्रिक मूल्यों की लड़ाई लड़ने वाले बुद्धिजीवी-कलाकार थे गिरीश कर्नाड ------ आशा जस्सल

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday 11 June 2019

भारत का पहला पत्रकार_हिक्की भी हुआ था गिरफ्तार !! ------ सुरेश प्रताप सिंह

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Suresh Pratap Singh

#इतिहास के #झरोखे से !!
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#भारत का पहला #पत्रकार_हिक्की
भी हुआ था #गिरफ्तार !!
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#हिक्की भारत का पहला पत्रकार था, जो ब्रिटिश नागरिक था. उसका अंत कैसे हुआ पता नहीं ! उसने ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोला था. गिरफ्तारी के बाद उस पर मुकदमा चला था. बाद में उसे हथकड़ी लगाकर पानी की जहाज से वापस भेज दिया गया इंग्लैंड ! वहां पहुंचा कि नहीं या उसका अंत कैसे हुआ ? यह पता नहीं. उसके द्वारा प्रकाशित की गई खबर व सूचनाओं को #हिक्की_गजट के रूप में जाना जाता है.

ब्रिटेन से सामान लेकर आने वाली जहाजों के बारे में वह प्रारम्भ में सूचनाएं देता था, जिससे यहां के व्यापारियों को जानकारी उपलब्ध हो जाती थी कि कौन सी जहाज क्या सामान लेकर कब आ रही है. वह अंग्रेजों के रात्रि क्लब में भी जाता था, जिससे अंग्रेज अफसरों की व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में उसे अनेक प्रकार की जानकारियां मिल जाती थीं.

बाद में हिक्की ने अंग्रेज अफसरों और उनकी बीबीयों की प्रेम प्रसंग की खबरें भी छापना शुरू कर दिया था, जिससे अधिकारियों के बीच उसकी खबरें चर्चा का विषय बन गईं. उसे कई बार चेतावनी मिली और ऐसा न करने को कहा गया. इसके बावजूद वो अपनी खबरें देता रहा. अंतत: उसे गिरफ्तार करके मुकदमा चला और उसे वापस इंग्लैंड भेज दिया गया लेकिन वहां पहुंचा की नहीं यह कोई नहीं जानता है.

हिक्की को "फाॅदर आॅफ द इंडियन जर्नलिज्म" भी कहा जाता है. 29 जनवरी, 1780 को उसने कोलकाता से अपना अखबार निकाला था, जिसे "हिक्कीज बंगाल गजट" के नाम से जाना जाता है. संक्षेप में इसे हिक्की गजट भी कहते हैं. अपनी विवादास्पद खबरों के कारण वह कई बार गिरफ्तार हुआ था. उस पर कोलकाता में मुकदमा भी चला था. 1782 में उसका अखबार बंद हो गया. आर्थिक संकट से भी वह जूझता रहा. बाद में पुन: उसने अखबार निकालने की कोशिश की लेकिन अपने प्रयास में सफल नहीं हो सका.

तत्कालीन गवर्नर जनरल के खिलाफ भी वो खबरें लिखता था. जिसके कारण अंग्रेज अफसर उससे नाराज हो गए थे, जिसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा था. मूलत: वह व्यापारी था और अपने व्यवसाय के सिलसिले में भारत आया था. व्यवसाय की दृष्टि से उसे कोई सफलता नहीं मिली लेकिन परिस्थितियों ने उसे पत्रकार जरूर बना दिया.

तमाम संकटों व दबाव के बावजूद वह कभी झुका नहीं और संघर्ष करता रहा. बाद में उसकी तबीयत भी खराब हो गई थी. उसके बारे हुए कुछ शोध के मुताबिक 1808 में उसका निधन हो गया. काशी हिंदू विश्वविद्यालय पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर अंजन कुमार बनर्जी कहते थे कि भारत के पहले पत्रकार को जिन संकटों का सामना करना पड़ा था, उससे यहां के पत्रकार आज भी जूझ रहे हैं. 

#सुरेश_प्रताप

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश