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मौसम वैज्ञानिक ने पक्षियों द्वारा मौसम के संकेत देने को वैज्ञानिक आधार नहीं माना है।
वस्तुतः तथाकथित और प्रगतिशील लोग उसे विज्ञान मानते हैं जिसका प्रयोग किसी प्रयोगशाला में बीकर आदि के उपयोग द्वारा होता है। परंतु;-
'विज्ञान' किसी भी विषय के 'क्रमबद्ध' एवं 'नियमबद्ध' अध्ययन को कहा जाता है।
इसलिए जब कौवों या बया के घोंसलों का क्रमिक अध्ययन नियमतः वर्षों करने के बाद जो निष्कर्ष निकाला गया वह भी वैज्ञानिक अध्ययन ही हुआ ।
'एथीस्टवादी' 'धर्म'=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य को नहीं मानते हैं उनके लिए शोषकों,लुटेरों,उतपीडकों द्वारा फैलाया गया 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' आदि-आदि 'अधर्म' ही धर्म है।
'मनुष्य' प्रजाति की उत्पति तो मात्र 10 लाख वर्ष पूर्व ही हुई है परंतु उससे पूर्व पशु-पक्षी,जन्तु-कीट आदि और उनसे भी पूर्व 'वनस्पतियों' की उत्पति परमात्मा और प्रकृति द्वारा की जा चुकी थी। स्व्भाविक है कि मौसमी परिवर्तनों का आभास इन पशुओं व पक्षियों को मनुष्यों से पूर्व से ही होता आया है ;यदि उनके द्वारा अपने बचाव के प्रबंध किए जाते रहे हों तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? क्या मनुष्यों को अन्य प्राणियों से शिक्षा नहीं ग्रहण करनी चाहिए?
यह संसार खुद ही एक प्रयोगशाला है और नित्य ही यहाँ नूतन प्रयोग होते रहते हैं परंतु पुराने अनुभवों को ठुकराने की बजाए उनसे भी लाभ उठाते रहना और अपना बचाव करते रहना ही बुद्धिमानी होगी न कि उनकी अवहेलना करके सम्पूर्ण मानव जाती ही नहीं सृष्टि के अन्य प्राणियों के अस्तित्व को भी संकट में डालना वैज्ञानिक बुद्धिमत्ता होगी?
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संकलन-विजय माथुर,
फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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ReplyDeleteVijai Bajpai----- Mathur saahab,
AAJ KA VAIGYAANIK BAHUT SI BAATEN
NAHIN MAANATAA. QUNKI VO SIRF ANALYSIS HI
KAR SAKTAA HAI. JIS DIN VO SYNTHESIS KARNAA
SEEKH JAAYGAA (Matter me) US DIN SHAAYAD VO
NATURE KO BHI SAMAZ SAKEGAA.
Comment on United Communist front Group:
ReplyDeleteHarsh Vardhan--- आज कल के वैज्ञानिक खुद को भगवान और विज्ञान को खेल मानते हैं