Friday 21 August 2015

विद्रोहिणी सत्याग्रही मीरा की संघर्ष गाथा : रंग राची --- डॉ सुधाकर अदीब

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विगत 27 जूलाई 2015 को दिल्ली में  सम्पन्न  एक भव्य  समारोह में हिन्दी साहित्य  में आलोचक  डॉ नामवर सिंह जी द्वारा अपने जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक डॉ सुधाकर अदीब  साहब के छ्ठे उपन्यास - ' रंग  राची ' का विमोचन किया गया । समारोह की अध्यक्षता नामवर सिंह जी ने की और संचालन अनुज जी ने। डॉ अदीब साहब व उनकी श्रीमती जी द्वारा नामवर सिंह जी को पुष्प गुच्छ  भेंट कर  उनका आशीर्वाद  प्राप्त किया गया । 

अपने लेखकीय उद्बोद्धन में डॉ अदीब ने बताया कि  किंवदंतियों एवं मिथकों का जिनका कि कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं था उन्होने लेखन में परित्याग किया है। उनका उद्देश्य अतीत की उन अचर्चित बातों पर प्रकाश डालना था जिनसे भविष्य में हम प्रेरणा ले सकते हैं। चित्तौड़, भीलवाडा, मेड़ता, वृन्दावन, द्वारिका  आदि मीरा बाई से सम्बद्ध स्थानों  का परिभ्रमण करके और वहाँ के विद्वानों से संपर्क करके अधिकाधिक प्रामाणिक तथ्यों का उन्होने संग्रह व उनका गहन अध्ययन करके ही  इस उपन्यास को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया है। 

इस कथात्मक उपन्यास द्वारा बताया गया है कि उपलब्ध जानकारी के अनुसार मीरा बाई का जन्म 1504 ई .में तथा देहावसान 1547 ई .में हुआ था। यद्यपि उनका जन्म व विवाह राजकुल में हुआ था। उन्होने सामंती व्यवस्था का वैभव देखा और उसके प्रति उनके मन में तिरस्कार भाव जाग्रत हुआ। दीन, दलितों, स्त्रियों  की दुर्दशा देख कर उनको जो वेदना हुई उसी का परिणाम था कि उन्होने सामंती व्यवस्था का विरोध व दमितों के पक्ष में संघर्ष किया जो उनके द्वारा रचित पदों में प्रस्फुटित हुआ है। स्त्री अस्मिता के लिए उनका प्रतिरोध जितना कंटकाकीर्ण तब था आज भी नारी अस्मिता का संघर्ष उससे कुछ कम नहीं है। इसलिए आज भी मीरा बाई उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी अपने काल में थीं। मीरा बाई के भजनों व उपदेशों से दमित वर्ग में जिस चेतना का संचार हो रहा था और वह एक जुट होने लगा था उससे भयभीत होकर शासक सामंती वर्ग ने षड्यंत्र पूर्वक मीरा बाई की हत्या करवा दी । उनके पार्थिव शरीर व अंतिम संस्कार के बारे में गोपनीयता बनाए रखी गई व जनता में भ्रामक तथा  अविश्वसनीय  बातों को दुष्प्राचारित कर दिया गया। (... मीराँबाई की हत्या करवा दी ... 

कुछ लोगों का ऐसा मानना है। वस्तुतः मीराँ का अंत स्वयं में एक रहस्य 

है। इसका एक समाधान उपन्यास के अंत में लेखक ने प्रस्तुत किया है।)

डॉ अदीब ने बताया कि महीयसि महादेवी वर्मा ने मीरा बाई को मध्य युगीन नारी के विद्रोह की नायिका बताया है । उन्होने यह भी बताया कि नामवर सिंह जी ने अपने एक लेख में लिखा है कि गांधी जी ने मीरा बाई को 'प्रथम सत्याग्रही ' कहा था। मीरा बाई ने जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया उन पर स्वम्य वह ही सर्व प्रथम चलीं जिसके परिणामस्वरूप उनको अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। 

'रंग  राची ' के माध्यम से डॉ सुधाकर अदीब साहब ने जन-जागरण का जो प्रयास किया है वह इसलिए विशेष सराहनीय है कि स्वम्य डॉ साहब प्रशासनिक सेवा से सम्बद्ध होने के कारण  जन समस्याओं से जितना निकट से परिचित हैं  उनका समाधान पूर्व की भांति ही इस उपन्यास द्वारा भी सहज  व सरल भाव  से किया है। पाठकों व जनता को अपने ज्ञान का जो प्रसाद अपने उपन्यासों के माध्यम से वह देते आए हैं  'रंग  राची ' भी उसका अपवाद नहीं है। 

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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