Thursday 11 May 2017

हर परिवार पर 10 हज़ार रुपए का बोझ पड़ेगा ------ गिरीश मालवीय


Girish Malviya
 11-05-2017
आप चाहे गरीब हो चाहे मध्यम वर्गीय आपके परिवार पर लगभग दस हजार रूपये देने का बोझ सरकार ने डाल दिया है ....कैसे ?............यह समझने के लिए यह पोस्ट पूरी पढ़े................
लोग अभी खुश हो रहे है कि शेयर बाजार उछल रहा है, और उन्हें लग रहा क़ि अब अच्छे दिन आने वाले है, शेयर बाजार उछलने की असली वजह यह है कि सरकार ने एक अध्यादेश निकाल दिया है बैंकिंग रेगूलेशन एक्ट’ में हुए ताजा बदलाव के जरिए अब खुद आरबीआई ही कंपनियों के ‘फंसे हुए लोन्स और संपत्तियों (बेड एसेट्स)‘ के बारे में फैसला ले सकेगा. ....................
आप को लग रहा होगा क़ि यह तो बहुत अच्छी बात है लेकिन इसे समझने के लिए हमे यह समझना होगा क़ि राजन क्यों रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से हटाए गए...............
दर असल राजन ने आते ही एक निर्णय लिया था कि अब सभी बैंको को बताना पढ़ेगा कि उन्होंने जो लोन उद्योगपतियों को बाटे है उनका स्टेटस क्या है याने कितने की रिकवरी संभव है, और कितने का लोन को वो मान चुके है कि यह पैसे तो गढ्ढे में गए, 2017 के आखिर तक सभी बैंको को अपने सारे बेड लोन को रिकग्नाएज़ करना था............
दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर सबसे खतरनाक बात यह है कि भारतीय बैंकिंग का एनपीए उनकी कुल पूंजी से अधिक हो गया है............
भारत की बैंकिंग की संस्कृति जो प्रभावशाली कर्ज़दारों को कर्ज़ चुकाने में चूकने के बावजूद बच निकलने देती है. इसकी ओर आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने ध्यान खींचा था.................
आरबीआई कर्मचारियों को लिखे एक ईमेल में उन्होंने लिखा, था"हम ग़लत करने वालों को तब तक सज़ा नहीं देते जब तक वह छोटा और कमज़ोर न हो. कोई भी अमीर और अच्छे संबंधों वाले, ग़लत काम करने वाले को नहीं पकड़ना चाहता, जिसकी वजह से वह और भी ज़्यादा का नुक़सान करते हैं. अगर हम टिकाऊ मज़बूत वृद्धि चाहते हैं तो दंडाभाव की इस संस्कृति को छोड़ना होगा.".................अपने कड़े रुख के कारण राजन को हटना पड़ा.................
उनके जाने और सरकार व्दारा अपना पपेट रिजर्व बैंक की गद्दी पर बैठाने के बाद बैंकों को अपना एनपीए घोषित करने की बात तो दूर रही अब सरकार ने इस अध्यादेश के जरिये बैंक से जुड़े बड़े अधिकारियो को अपने स्तर पर एनपीए निपटाने के आदेश दे दिए है...............
दंड देने की बात तो भूल ही जाइये,अब आपको यह भी मालूम नही पड़ेगा क़ि किस हिसाब से अधिकारियों ने सेटलमेंट किये है ........
इसे एक छोटे से उदाहरण से समझिये भारती एयरटेल वालो की कंपनी भारती शिपयार्ड का एनपीए लगभग 10 हजार करोड़ रूपये हो गया था नए अध्यादेश का सहारा लेते हुए अधिकारियो ने यह कर्ज 3 हज़ार करोड़ में एडेलवीस को बेच दिया गया जिसे शुरू में सिर्फ 450 करोड़ देने हैं, बाकी किश्तों में और अब कंपनी का नाम बदल दिया जायेगा .............
अब इसमें पूंजीपतियों को कितना फायदा हुआ यह देखिये ..............एक झटके मे उसका 7 हजार करोड़ देने का बोझ हट गया ..........अब कम्पनी की क़ीमत बढ़ेगी, दाँव लगाने वाले वित्तीय पूँजीपति तगड़ा मुनाफा कमायेंगे..........
और बैंक का 7 हज़ार करोड़ का बट्टे खाते में जाने वाला नुकसान 
उसे आप और हम मिलकर भरेंगे आखिर हमारी देश के प्रति कुछ तो जिम्मेदारी बनती है न............
इन्ही सब बातों को मद्दे नजर रखते हुए पिछले साल संपादक और स्तंभकार टीएन नैनन ने हाल ही में बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार में लिखा था कि बैंकों के बढ़ते एनपीए से नए व्यवसायों के लिए कर्ज़ देने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई है. इन फंसे हुए कर्ज़ों का बोझ अंततः भारतीय करदाता पर ही पड़ता है, जो सरकार के नियंत्रण वाले सरकारी बैंकों के अंतिम गारंटर हैं. .............
बैंक संकट पर वो लिखते हैं, "तो क्या किया जा सकता है? आसान विकल्प यह है कि आपके टैक्स का और पैसा लेकर इन्हीं बैंकों को तश्तरी में सजा कर दे दिया जाए. सरकार उन्हें 2.4 लाख करोड़ रुपए देने की बात कर रही है. इसका अर्थ यह हुआ कि हर परिवार पर, चाहे वह ग़रीब हो या अमीर, उस पर 10 हज़ार रुपए का बोझ पड़ेगा."..............

https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/1516298601735116

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