Wednesday 20 September 2017

धोखेबाज़ी का बड़ा चेहरा : नीतीश कुमार ------ रहीम खान

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यह समाचार NDA के पास ६० प्रतिशत वोट होने की सूचना देता है. मूलतः NDA के पास बहुमत हेतु लगभग १७ हज़ार से अधिक वोट कम हैं. यह ६० प्रतिशत का आंकडा विरोध पछ में फूट का द्योतक है. लकड़ी को काटने के लिए लोहे की हथौड़ी में लकड़ी का ही हत्था डाला जाता है ठीक इसी प्रकार विरोधी दलों में फूट डाल कर सिर्फ विरोधी दलों ही नहीं देश के संविधान व् लोकतंत्र को काटने का उपक्रम किया गया है. नीतीश कुमार, नवीन पटनायक सरीखे मुख्यमंत्री जो इस अभियान का हत्था बने हैं वे निजी हितों की खातिर देश के संविधान को नष्ट कर लोकतंत्र के खात्मे व् आर एस एस की असैनिक तानाशाही स्थापित करने की कोशिश को सहयोग कर रहे हैं. N.T.रामाराव ने तेलगू गौरव के नाम पर P.V.नरसिंघा राव का समर्थन किया था उसी तर्ज़ पर नितीश कुमार को भी बिहार गौरव के नाम पर मीरा कुमार का ही समर्थन करना चाहिए था. कभी बिहार का ही हिस्सा रहे उड़ीसा के नवीन पटनायक को भी अपने अतीत के गौरव की खातिर मीरा कुमार का ही समर्थन करना चाहिए था. इतिहास के काले अध्याय में अपना नाम न लिखवाने के लिए इन जैसे लोगों को पुनर्विचार करके NDA प्रत्याशी को हराने के लिए आगे आना चाहिए. https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1475997325795572&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=3

Navendu Kumar
बिहारी अस्मिता का पाठ पढ़ाते रहे आप।...और खुद ही चल दिये महफ़िल छोड़ कर। बिहार की बेटी बुला रही- लौट आइए!...
ऐसे कैसे होगा 'संघ मुक्त भारत'? आपका ही दिया हुआ नारा है न यह? लोगों ने तो सोच लिया था कि आप खुद ही बनेंगे देश के समेकित विकास और मिल्लत-ओ-भाईचारे की राजनीति के केंद्र। आपने राष्ट्रीय राजनीति में बिहार की अस्मिता और बिहारीपन की बखान की। देश को बिहार मॉडल से विकास के नये मानदण्ड खड़े किये। उस बिहार और विकास की बिहारी शैली जो नीतीश शैली और प्रारूप के तौर पर जानी गयी, उसका ढोल भी बजाया-बजवाया। 
गुजरात मॉडल और एक क्षेत्रीय अस्मिता के काट में 12 करोड़ बिहारियों की अस्मिता और गौरव-गुमान को काट में आपने देश के सामने ला खड़ा किया। जब हमारे ही सूबे के मुखिया के 'डीएनए में ही गड़बड़ी है' की बात एक गैर बिहारी ने उठायी तो भले ही वह देश का प्रधान ही क्यों न हो, बिहार ने इसे अपनी अस्मिता पर हमला के तौर पर लिया और आपकी ललकार के साथ खड़ा हो कर उसे प्रचंड रूप से पटखनी दे दी। रुक गया उसके देश दिग्विजय का राजनीतिक रथ। आपके साथ जब बिहार का बिहारीपना है तो फिर आप क्यों किसी पराई सोच और उसकी राजनीति-रणनीति के आसरे रहेंगें। आप तो खुद ही नीतीश हैं। दूसरों की नीति-नहान में क्यों डुबकी लगा रहे या गोते खाने जायेंगें?
एक चुनाव 2015 में हुआ जिसमें आपको खांटी बिहारी और बिहारीपन के बनवारी के रूप में लोगों ने देखा। एक ये चुनाव है राष्ट्रपति का चुनाव, जिसमें एक बिहारन खड़ी है। उसके ज़रिए देश की शतरंजी सियासत पर बिहारी माटी और बेटी की प्रतिष्ठा दांव पर पड़ी है। आपको खुद के व्यक्तिगत राजनीति से अलग हो सामूहिक सदभावी राजनीति के लिए सोचना तो पड़ेगा। एक बिहारन को कैसे अकेला छोड़ सकते हैं आप? 
देश आजाद होने के बाद 70 सालों में ये कोई दूसरा मौका आया है जब किसी बिहारी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया है। वरना बिहार के साथ राष्ट्रीय राजनीति में भी औपनिवेशिक व्यवहार ही होता आया है। आप ये ज़्यादा जानते और इसकी समझ रखते हैं। वर्ना बिहार भी देश को कई प्रधानमंत्री देने की क़ूवत रखता रहा है। आप खुद ही पीएम मटेरियल हैं, ये आपके राजनीतिक विरोधियों तक ने कहा है।...पीएम मटेरियल का मतलब यह भी होता है कि जो दूसरों का गेम न खेले बल्कि खुद अपना गेम खेल दूसरों की गेम बजा दे। गुजरात चुनाव के बिछे मोहरों को आप क्यों खेलें? पटेलों की नाराजगी के विकल्प में कोली जाति के 18-24 प्रतिशत कमल छाप वोट के लिए आपका तीर किसी के धनुष पर क्यों चढ़े?
चुनाव सीधे यानि प्रत्यक्ष तौर पर हार या जीत तो होता है। पर परोक्ष रूप से चुनाव जीत कर हारने और हार में जीत की इबारत भी गढ़ जाते हैं। याद होगा सबको कि प्रतिभा ताई पाटिल के राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के कट्टर विरोधी होने के बावजूद शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे ने इस आधार पर प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को वोट और समर्थन दिया था कि वह महाराष्ट्र की बेटी है। किसी और के बारे में वे भला सोच भी कैसे सकते हैं! तो फिर बिहार के नीतीश कुमार बिहार की बेटी के बारे में ऐसा क्यों और कैसे नहीं कर सकते! जेडीयू के बड़े नेता केसी त्यागी जब कोविद जी को बिहार के अच्छे राज्यपाल होने के नाते समर्थन देने की बात करते हैं तो फिर अब जबकि बिहार की ही बेटी मीरा कुमार मैदान में विपक्ष के साझा प्रत्याशी के तौर पर सामने आ चुकीं हैं तो फिर क्या सोचना! 
वोट संख्या बल के आधार पर भले रामनाथ कोविद जीत जाएं और विपक्ष हार जाए तो भी हारेंगे नीतीश। इस लड़ाई में अगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मीरा कुमार और विपक्ष का साथ दिया तो विपक्ष भले हारे, जीतेंगे नीतीश। तब ये सिद्ध हो जायेगा कि ज़ुबानी जमा खर्च ही नहीं, बिहारी अस्मिता के नायक हैं नीतीश! इतना ही नहीं विपक्ष के नायक और धुरी भी हैं नीतीश। पहले भी में लिख चुका हूं कि अभी भारतीय राजनीति में सबकी आस हैं नीतीश कुमार। सत्ता पक्ष की भी ज़रूरत और साझा विपक्ष की उम्मीद भी। कहाँ कोई है ऐसा राजनेता जिसकी मनुहार मोदी-शाह की जोड़ी भी करे और जिससे गुहार सोनिया-लालू भी करें।
देश के चौदहवें राष्ट्रपति के चुनाव की अभी भी ये स्थिति है कि नीतीश कुमार अगर मीरा कुमार के साथ खड़े हो गये तो विपक्ष की हार भी जीत के आनंद में बदल जा सकता है और सत्ता पक्ष की जीत, जान निकलने के हाल में पहुंच जाए। क्योंकि राजनीतिक गोलबंदी और पोलिटिकल इंजीनियरिंग के भी मास्टरमैन हैं नीतीश कुमार। फिर तो वी वी गिरी और संजीवा रेड्डी के प्रेसिडेंशल इलेक्शन की तरह लोकतंत्र और राजनीति में याद किया जाएगा 2017 का प्रेसिडेंशल इलेक्शन भी। इससे आगे की बात ये कि 2019 का संसदीय चुनाव हो या 2020 का बिहार चुनाव, सवाल तो ये रहेगा ही कि किस नीतीश को तब याद किया जाएगा!£

राष्ट्रपति चुनाव की राजनीति पर एक बिहारी की टिप्पणी ]]
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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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