Sunday 10 December 2017

बाबरी मस्जिद जैसा मुद्दा उछाला गया और खूब शोर मचाया गया जिसमें आर्थिक नीतियों कि गूंज छिप गयी ! ------ Archana Tabha

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आर्थिक नीतियों को तो अब लोकल और वैश्विक पूंजीपतियों के लिए ही बहना था पर अचानक कैसे ? तो इसके लिए बाबरी मस्जिद जैसा मुद्दा उछाला गया और खूब शोर मचाया गया जिसमें आर्थिक नीतियों कि गूंज छिप गयी ! यह दृष्टिकोण है Archana Tabha का जिनहोने  एक फेसबुक पोस्ट के जरिये इसे आर्थिक परिप्रेक्ष्य में बखूबी समझाया है : 
Archana Tabha
https://www.facebook.com/archana.gautam1/posts/1577436305636959



बाबरी विध्वंस के 25 साल बाद इस घटना के बारे में एबीवीपी से छात्र नेता सतिंदर अवाना, आइसा की कंवलप्रीत कौर और एनएसयूआई के अक्षय लाकड़ा से बातचीत.
इससे स्पष्ट होता है कि, भले ही संविधान की प्रस्तावना में धर्म निरपेक्षता पर ज़ोर दिया गया हो किन्तु आज़ादी के 70 वर्षों बाद आज देश में आर एस एस / भाजपा द्वारा सांप्रदायिकता का घृणित प्रचार युवा पीढ़ी को कुंठित कर चुका है। जो छात्र जनहितकारी विचार धारा वाले संगठनों से संबन्धित हैं वे तो देश के भविष्य के प्रति चिंतित हैं किन्तु आर एस एस / ए बी वी पी से संबन्धित छात्र कुछ भी सोचने - समझने की शक्ति से वंचित होने के कारण केवल कुतर्कों के बल पर मुद्दों से भटकाने का कार्य करते हैं।


संकलन-




विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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