Monday 26 August 2019

महामंदी की दस्तक? यानी आजादी के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक संकट ! ------ रजनीश कुमार श्रीवास्तव


Rajanish Kumar Srivastava 
2 6-08-2019 
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#महामंदी की दस्तक? यानी आजादी के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक संकट! : एक पड़ताल#

पैर में कुल्हाड़ी मारने वाली नोटबंदी तथा अधूरी तैयारियों वाली अनिश्चित संशोधनों से युक्त जटिल जी०एस०टी० की पृष्ठभूमि में आजादी के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक संकट(महामंदी) भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आसन्न है और सरकार पूरी तरह से कनफ्यूज़ड है।कभी मानती है कि अर्थव्यवस्था मंदी के गिरफ्त में है तो कभी इसे अल्पकालिक चक्रीय परिवर्तन बता कर सच्चाई से मुँह चुराती नज़र आ रही है।कई तरह के विरोधाभासी स्वर सरकार में एक साथ नज़र आ रहे हैं:-
(1)जहाँ भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के वी सुब्रमण्यम कहते हैं कि,"निजी औद्योगिक क्षेत्र अब जवान हो चुके हैं,उसे पापा बचाओ की मानसिकता से निकलना होगा और उन पर निजी लाभ के लिए जनता का पैसा क्यों लुटाया जाए?"
(2) वहीं भारत सरकार के नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं कि,"यह 70 वर्षों का सबसे बड़ा आर्थिक संकट है,जहाँ अर्थव्यवस्था तरलता तथा साख के भारी संकट से गुजर रही है।अतः सरकार को निजी उद्योगों को संकट से उबारना होगा।" बाद में अपने बयान से पलटकर कहते हैं कि अल्पकालिक चक्रीय संकट है, घबराने की जरूरत नहीं है।
(3)इधर अंतरराष्ट्रीय संस्था मूडीज ने भारत के जी०डी०पी० का अनुमान 6.8% से घटाकर 6.2% कर दिया है। वर्ष 2018-19 की अंतिम तिमाही में जी०डी०पी० गिरकर 5.8% पर आ गयी है।बेरोजगारी 50 वर्षों में सर्वाधिक है ,डॉलर के मुकाबले रूपया 72 का आँकड़ा पार कर वेंटिलेटर पर आ चुका है तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह से दम तोड़ रही है।
(4)इधर मंदी की वास्तविकता से आँख मिचौली खेलने वाली सरकार की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आधा सच मानते हुए निजी उद्योगों के पुनर्थान के लिए 34 बिन्दु की घोषणा की है जिसमें बैंकों को 70 हजार करोड़ रू० की आर्थिक सहायता के साथ साथ कम्पनी एक्ट के तहत अपराध के 1400 मामले वापस लेते हुए कई बजटीय प्रावधानों पर रोलबैक कर लिया है।
अगर भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार सही कह रहे थे तो उसके विपरीत जाकर वित्तमंत्री ने ये रोलबैक वाली घोषणाएँ क्यों की? यानी सरकार कनफ्यूज़ड है।दूसरा बिन्दू यह है कि यह चक्रीय मंदी के बजाए संरचनात्मक मंदी है जबकि इलाज चक्रीय मंदी का किया जा रहा है।तीसरा बिन्दु यह है कि यह संकट पूर्ति पक्ष का नहीं है न ही निवेश हेतु पूँजी का अभाव है बल्कि अभाव माँग पक्ष का है यानी स्वतंत्र भारत की सबसे ज्यादा बेरोजगारी तथा बदहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वजह से क्रयशक्ति की कमी हो गयी है जिससे औद्योगिक उत्पादन बिना बिके स्टॉक में पड़ा है और औद्योगिक उत्पादन के लिए माँग न्यूनतम स्तर पर आ गयी है।अतः यदि जनता की क्रयशक्ति बढ़ानी है और औद्योगिक उत्पादों के लिए माँग बढ़ानी है तो सार्वजनिक क्षेत्र में छटनी बंद कीजिए ,सरकारी क्षेत्र का निजीकरण भी बंद कीजिए,आटो सेक्टर की माँग बढ़ाने के लिए सरकारी क्षेत्र को पुरानी कार हटाकर नयी कार खरीदने का हुक्म देने के बजाए उन्हें खाली पदों को तत्काल भरने का हुक्म दीजिए।ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषकों की दशा सुधारने,उन्हें लाभकारी मूल्य दिलवाने और खाद्यान्न संरक्षण की व्यवस्था कीजिए।सांठगाँठ वाले पूँजीवाद का जहर अर्थव्यवस्था में फैलकर उसे खत्म कर दे उससे पहले सरकारी क्षेत्र, किसान तथा रोजगार को बचा लीजिए।वरना बर्बादी तय है।
सरकार वर्ष 2016 से ही लगातार बेरोजगारी के आँकड़े छिपा रही है और भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रह्मण्यम बताते हैं कि भारत की जी०डी०पी० कम से कम दो से ढाई प्रतिशत बढ़ाकर दिखाई जा रही है।यही नहीं धीरे धीरे सभी अच्छे अर्थशास्त्री मोदी सरकार का साथ छोड़ते जा रहे हैं।पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन फिर उर्जित पटेल।इसके बाद भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रह्मण्यम ने तो फिर आर्थिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष विवेक देबराय तक सरकार के मनमानेपन के कारण बीच में ही सरकार का साथ छोड़ चुके हैं।अर्थव्यवस्था के लिए यह भयानक संकट की घड़ी है।मर्ज बढ़ता जा रहा है,डॉक्टर साथ छोड़ रहे हैं और सरकार बीमारी का इलाज करने के बजाए थर्मामीटर तोड़ने पर आमादा है।यानी देश भयानक संकट में जाने के लिए अभिशप्त है।
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