Wednesday 19 February 2020

स्वाभिमान, संविधान और वतन की लड़ाई में सरदार डी एस बिन्दरा का योगदान ------ शैलेन्द्र सिंह ठाकुर





Shailendra Singh Thakur
 09-02-2020
आप पूछते हैं शाहीनबाग की फंडिंग कहाँ से आ रही है. कौन बिरयानी खिला रहा है, कौन पानी के पैसे दे रहा है. पहले इस आदमी को देखिए. इनका नाम D.S. बिंद्रा है..
ज़ूम करिए, इनके चेहरे को पढ़िए. एक सब्र जैसा कुछ तो दिख होगा!..अब ठहरिए, पता है आपको! इस इंसान ने शाहीनबाग के लिए चलने वाले लंगर के लिए अपना फ्लैट बेच दिया है. ताकि उस पैसे से लंगर चालू रख सके, जहां दोनों मजहबों के आदमी-औरतों के पेट तक रोटी-चावल पहुंच सकें.

बीस दिन पहले सिख भाई पंजाब से शाहीनबाग पहुंचें, अब तक 17 बसें शाहीनबाग में डेरा जमाए हुए हैं. एक खास जगह पर तो मुसलमानों से ज्यादा सिख दिखाई दे रहे हैं. बीस दिन पहले एक लंगर शुरू हुआ. करीब 50 हजार से अधिक लोगों का भोजन इंतजाम वहां होता था. सिख धर्म में परम्परा में है एकबार जो लंगर शुरू हुआ तो खत्म नहीं होता, रुकता नहीं है, उसकी कीमत चाहे जो हो. धीरे धीरे सब पैसे बीत गए, लंगर चलाने के लिए पैसों की जरूरत हुई, इस आदमी के पास 3 फ्लैट थे. तुरंत ही बिना ज्यादा सोचे बिचारे अपना एक फ्लैट बेच दिया. घर वालों ने शुरू में विरोध किया. लेकिन अब सब साथ आ गए हैं, बेटा कह रहा है पापा प्राउड ऑफ यु, आपने वो काम किया है जिसपर गर्व हो रहा है. आज बीबी साथ है, भाई-बेटा साथ हैं.

ये आदमी कह रहा है यदि जरूरत पड़ी तो बाकी दो फ्लैट भी बेच दूंगा, लेकिन लंगर नहीं रुकेगा. इस कहानी को जानने के बाद भामाशाह की याद आ रही है, जिन्होंने अपने पूरे जीवन की संपत्ति महाराणा प्रताप को सौंप दी थी, ताकि महाराणा वतन की रक्षा कर सकें, ताकि सम्मान की लड़ाई रुकने न पाए, स्वशासन की लड़ाई रुकने न पाए... यहां भी स्वाभिमान, संविधान और वतन की लड़ाई इस मुल्क की औरतें लड़ रही हैं. जिसे रुकने न देने की जिम्मेदारी कुछ लोगों ने अपने कंधों पर ले रखी है.

इसी मुल्क में कितने गुरुओं, बाबाओं के भंडारे चलते हैं, स्कूल, अस्पताल चलते हैं. कोई प्रश्न नहीं करता पैसे कहाँ से आते हैं. कोई प्रश्न नहीं पूछता कि आरएसएस द्वारा देशभर में महीनों चलने वाले ट्रेनिंग कैम्पों के लिए पैसे कहां से आते हैं? लेकिन जब भी मजदूर या किसान दिल्ली की सड़कों पर आते हैं, पत्रकार उनसे टोपी-पानी, झंडों के पैसे पूछने लगते हैं. ताकि लोगों को इनपर एक डाउट सा क्रिएट हो, ताकि लड़ाई जनसमर्थन थोड़ा कमजोर हो, इन पत्रकारों के सवाल नेताओं, मंत्रियों की होने वाली रैलियों से नहीं होते, लेकिन मजदूर, किसानों, आंदोलनकारियों से होते हैं.

लेकिन इन्हें खबर नहीं, आज भी भामाशाह जिंदा हैं, आज भी गुरुगोविंद जिंदा हैं। ये औरतें महाराणा की तरह ही लड़ने वाली वीर यौद्धाएं हैं, इनके स्वाभिमान को खरीद सकें इतनी औकात इस देश के प्रधानमंत्री या गृहमंत्री में नहीं है...

यदि अगली बार कोई आपसे शाहीनबाग की फंडिंग पर सवाल करे तो बताना एक सिख भाई ने अपना फ्लैट तक बेच दिया है, ऐसे ही अनगिनत ईमान रखने लोग शाहीनबाग के लिए खड़े हुए हैं. जो जितना सक्षम है उतनी मदद के लिए आगे बढ़ा हुआ है, कोई घी दे जा रहा है, कोई चावल, कोई गेहूं.... कोई गैस सिलेंडर.

कुछ तो बात है न है इस मुल्क में कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...

(सिख कौम अपने किए की गाती नहीं है, लंगर के लिए फ्लैट बेचने वाली बात सरदार जी के मुंह से बातचीत में अनायास ही निकल गई थी,)

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