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Tuesday, 7 August 2018

इस "कांवर-यात्रा" का रहस्य क्या है ? ------ सुरेश प्रताप




Suresh Pratap Singh
07-08-2018 
#बनारस_जिन्दगी_आस्था_और_महिलाएं !!
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#बनारस : जिन्दगी की जद्दोजहद से जूझती ग्रमीण अंचल की ये महिलाएं अपने दु:ख-दर्द के समाधान के लिए बाबा विश्वनाथ का दर्शन व जलाभिषेक करने के लिए कंधे पर कांवर लेकर जा रही हैं. जीवन इतना आसान नहीं है. और उसे ही सुखमय बनाने के लिए "आस्था" के वशीभूत होकर पूरे मनोयोग से ये कंधे पर कांवर उठाई हैं.

कांवर को ये सलीके से सजाई हैं. और उसके आगे-पीछे प्लास्टिक की लुटिया लटकाई हैं. जिसमें जल लेकर ये बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करेंगी ! जिससे बाबा खुश होकर करेंगे इनकी समस्याओं का समाधान ! अद्भुत है आस्था के प्रति इनका समर्पण !!

इनके आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि का अध्ययन और विश्लेषण करने से ही उनकी इस आस्था का रहस्य समझा जा सकता है. आखिर शहरी परिवेश की पढ़ी-लिखी महिलाएं अपने कंधे पर कांवर क्यों नहीं उठाती हैं ? कांवेंट स्कूल में पढ़ी महिलाएं और बच्चियां भी कांवर अपने कंधे पर नहीं उठाती हैं. यही स्थिति पुरुषों के साथ भी है.

तो क्या इस "आस्था" का सवाल शिक्षा और आदमी के आर्थिक परिवेश से भी जुड़ा है ? शिक्षित होने या आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त होने के साथ ही आस्था का स्वरूप भी बदल जाता है. हम अपने किसी पढ़े-लिखे दोस्त या फिर आर्थिक व सामाजिक स्तर पर सशक्त व्यक्ति को कंधे पर कांवर लेकर बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने जाते हुए नहीं देखे हैं. राजनेता और राजनीतिक दल के पदाधिकारी भी कांवर काफिले में नहीं दिखाई पड़ते हैं. तो आखिर इस "कांवर-यात्रा" का रहस्य क्या है ?

राजनेता कांवर लेकर बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करने क्यों नहीं जाते हैं ? उनकी आस्था का स्वरूप अलग क्यों है ? क्या यह सब कुछ किसी प्रायोजित साजिश का हिस्सा है ? ताकी गरीब तबके के स्त्री-पुरुष "आस्था" के मकड़जाल में फंसे रहें और राजसत्ता से उसके द्वारा किए गए वादे के संदर्भ में कोई सवाल न पूछें ? इसके पीछे कुछ तो कारण है ? इस परिप्रेक्ष्य में व्यापक शोध की जरूरत है ताकि इस "रहस्य" को समझा जा सके.
#सुरेश प्रताप

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