Friday 27 November 2015

राजा नहीं फ़क़ीर हैं, देश की तक़दीर हैं ------ कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'


पुण्यतिथि पर स्मरण :


कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'
27-11-2015
राजा नहीं फ़क़ीर हैं, देश की तक़दीर हैं/
शोषित, वंचित और पिछड़ों के नेता और पूर्वप्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी को उनकी पुण्यतिथी पर श्रद्धा सुमन समर्पित।
राज-परिवार में जन्म लेने वालें वीपी सिंह जी की छवि एक ईमानदार, राजनैतिक और सामाजिक दूरदर्शी, कुटिल राजनीतिज्ञ और निर्मल स्वाभाव की है। शाही परिवार में जन्म लेने के कारण छात्र जीवन से ही वे राजनीति में सक्रीय रहें। तथा उसमे सफलत भी रहें। शुरुवाती राजनीति में वे बनारस के उदय प्रताप महाविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष और इलाहाबाद विवि से छात्र संघ उपाधय्क्ष भी रहें। इसके बाद वह इलाहाबाद विवि के कार्यकारणी एवं उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहें। इसके बाद क्रमशः संसद के सदस्य, वाणिज्य उपमंत्री, वाणिज्य संघ राज्यमंत्री, संसद सदस्य, 9 जून 1980 से 28 जून 1982 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहें। इसके पश्चात वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य और उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहें।
इसके पश्चात वे केंद्रीय वाणिज्यमंत्री और 1 दिसम्बर 1984 को केंद्रीय वित्त मंत्री बने।
वित्तमंत्री के रूप में यह पूंजीपतियों के प्रति बेहद सख्त रहें, जिसके कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से इनके मतभेद होने लगे। वीपी सिंह जी के पास सुचना थी की कुछ भारतियों की अवैध संपत्ति विदेशी बैंकों में जमा है। इसके बाद वह उन भारतियों के नाम जानने के लिए अमेरिकी जासूसी कम्पनी 'फेयरफैक्स' को नियुक्त किया। इसी समय बोफोर्स तोपों की खरीददारी पर 60 करोड़ के कमीशन की जानकारी मिलने पर वह मिडिया में इसे लेकर काफी कुछ कहें। उनका इशारा राजीव गांधी के तरफ होने पर उन्हें कांग्रेस से निष्काषित कर दिया गया।
इसके बाद वीपी सिंह जी ने अपना एक अलग दल 'राष्ट्रीय मोर्चा' बनाकर भ्रस्टाचार के नाम पर चुनाव लड़ा और राजीव गांधी पर अप्रत्यक्ष लेकिन करारा प्रहार करते हुए जनता के बीच यह बात फैला दी की कालाधन और बोफोर्स कांड में राजीव गांधी समेत कांग्रेस का शीर्षक्रम इसमें लिप्त हैं।
1989 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को काफी क्षति पहुंचा लेकिन सबसे ज्यादा सीटें उसी के पास रही। लेकिन वीपी सिंह ने देश के इतिहास में पहली बार वामपंथी और दक्षिणपंथी दलों को एक मंच पर लाकर एक नाटकीय कार्यक्रम में जो पहले से ही तय था, उसमे अपने करीबी प्रतिद्वंदी चंद्रशेखर और देवीलाल पर राजनीतिक विजय प्राप्त करके प्रधानमंत्री की कुर्सी प्राप्त किये।
प्रधानमंत्री बनने के बाद वीपी सिंह जी ने देश के इतिहास के सबसे बड़े फैसलों में एक मण्डल कमीशन की सिफारिश को मंजूरी देकर पिछड़ों को आगे आने का अवसर प्रदान किया। जिसका परिणाम आज देखने को मिलता है। मण्डल को मंजूरी देने के साथ ही पुरे देश में व्यापक स्तर पर उग्र प्रदर्शन हुये। जिसको वीपी सिंह जी ने अपने एक साक्षात्कार में मिडिया के दिमागी उपज का हिस्सा बताया। मण्डल कमीशन की मंजूरी के बाद भारतीय जनता पार्टी और वीपी सिंह में मतभेद गहराया और वीपी सिंह की सरकार गिर गयी।
वरिष्ठ पत्रकार बहादुर राय जी ने वीपी सिंह जी के साक्षात्कार के आधार पर 'विश्वनाथ प्रताप सिंह : मंज़िल से ज्यादा सफ़र' नामक एक किताब लिखा है। जिससे वीपी सिंह को समझने में सहायता मिल सकती है।
भू-आंदोलन के दौरान अपनी काफी जमीन दान कर देने वालें वीपी सिंह जी एक अच्छे चित्रकार और कवि भी थे। उनकी एक कविता के साथ उनको श्रद्धा सुमन समर्पित _/\_.
'मुफ़लिस से
अब चोर बन रहा हूँ मैं
पर
इस भरे बाज़ार से
चुराऊँ क्या
यहाँ वही चीजें सजी हैं
जिन्हे लुटाकर
मैं मुफ़लिस बन चुका हूँ।'

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प्रस्तुत लेख से अतिरिक्त कुछ और बातों की जानकारी भी समीचीन रहेगी। यथा ------
 1 ) विश्वनाथ प्रताप जी आत्म-विश्वासी व स्वाभिमानी भी थे। 1969 में जब इन्दिरा कांग्रेस के पास टिकट मांगने वालों के आभाव में इन्दिरा जी ने उप-चुनाव में भाग न लेने का इरादा किया था तब  युवा वी पी सिंह जी ने इन्दिरा जी के विश्वस्त दिनेश सिंह जी से कहा था कि वह चुनाव न सिर्फ लड़ने के लिए तैयार हैं बल्कि जीतेंगे भी। दिनेश सिंह उनको हवाई जहाज से लेकर दिल्ली गए और इन्दिरा जी से मिलवाया तब इन्दिरा जी ने उनको यह सोच कर टिकट दे दिया कि  यह हार भी जाएँ तो उनको क्या फर्क पड़ेगा कोई तो चुनाव लड़ने वाला ही नहीं था। लेकिन वी पी सिंह जी ने वह चुनाव बड़ी शान से जीत कर इन्दिरा जी का विश्वास अर्जित कर लिया था। 
2 ) आपात काल की समाप्ती के बाद 1977 का चुनाव हारने के बाद जब इंदिराजी उदास थीं तब वी पी सिंह ब्रिटेन आदि का दौरा कर आपात काल के औचित्य को विदेशों में सही सिद्ध कर रहे थे और विदेशों में इन्दिरा जी के प्रति सहानुभूति जाग्रत करने में वह सफल रहे थे। 
3 ) 1989 में प्रधानमंत्री बनने पर उस IAS को अपना सचिव बनाया जिसने जनता पार्टी के शासन में इलाहाबाद का DM रहते हुये उनको गिरफ्तार करवाया था। 
4 ) अपने 11 माह के शासन में भाजपा के मुरली मनोहर जोशी व तथाकथित साधू-सन्यासियों को अनावश्यक महत्व देना भी वी पी सिंह जी  की सरकार के पतन का कारण रहा। 
5 ) पी एम रहते हुये उस धीरु  अंबानी को उन्होने मिलने का वक्त नहीं दिया था जिसने आठ वर्षों के अल्प समय में पेट्रोल में सालवेंट मिला कर बेचने से अनाप-शनाप मुनाफा अर्जित कर लिया था। नतीजतन उसने आर एस एस को धन देकर आडवाणी साहब के नेतृत्व में 'रथ-यात्रा' निकलवा कर देश को दंगों की भट्टी में झोंक दिया और 50 से अधिक सांसदों को खरीद कर वी पी सिंह सरकार के विरुद्ध अविश्वास व्यक्त करा दिया। वी पी सरकार के पतन पर चंद्रशेखर व आडवाणी लोकसभा में खुल कर गले मिले थे। 
6 )  डायलेसिस पर चल रहे पूर्व पी एम  वी पी सिंह जी ने फर्स्ट अप्रैल के दिन   घोषणा कर दी कि उनको ब्लड कैंसर हो गया है और इस कारण चंद्रशेखर जी उनके निवास पर जाकर उनसे मिले तब ज्ञात हो सका कि यह उनका 'फर्स्ट अप्रैल' मज़ाक था। 
(विजय राजबली माथुर )

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