यह सभी जगह की हालत है हां लखनऊ अभी भी तहज़ीब का शहर माना जाता है वहां पर यह माहौल देखकर दुख होता है...रांची में दो महीने पहले गुलाम अली साहब आए थे कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। लोगों को इस बात का तो एहसास ही नहीं था कि ग़ज़ल सुनने आए हैं गोया कहीं टाइम पास के लिए आए हैं...लोग बीच में उठकर जाने लगे...यहां तक की सबसे आगे ही लड़ाई भी हो गई और उनको गायन रोकना पड़ा...
यही बे- शऊरी बे -सलीका लोग हमने इंडिया हेबीटाट सेंटर,इंडिया इंटर नॅशनल सेंटर के कार्यक्रमों में भी अकसर देखी है प्रस्तुति चाहे सोनल मान सिंह की रही हो या शोभना नारायण की मोबाइल अप -संस्कृति खीसे निपोड़े रहती है .
यह सभी जगह की हालत है हां लखनऊ अभी भी तहज़ीब का शहर माना जाता है वहां पर यह माहौल देखकर दुख होता है...रांची में दो महीने पहले गुलाम अली साहब आए थे कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। लोगों को इस बात का तो एहसास ही नहीं था कि ग़ज़ल सुनने आए हैं गोया कहीं टाइम पास के लिए आए हैं...लोग बीच में उठकर जाने लगे...यहां तक की सबसे आगे ही लड़ाई भी हो गई और उनको गायन रोकना पड़ा...
ReplyDeleteयही बे- शऊरी बे -सलीका लोग हमने इंडिया हेबीटाट सेंटर,इंडिया इंटर नॅशनल सेंटर के कार्यक्रमों में भी अकसर देखी है प्रस्तुति चाहे सोनल मान सिंह की रही हो या शोभना नारायण की मोबाइल अप -संस्कृति खीसे निपोड़े रहती है .
ReplyDeleteसमय बदल गया है.जो जितना बेशऊर है वो उतना ही बाशऊर माना जा रहा है आजकल.
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