Wednesday 30 October 2019

आंतरिक मामले में विदेशी सांसदों का दख़ल क्यों? ------ रवीश कुमार




इंटरनेशनल बिज़नेस ब्रोकर का कश्मीर से क्या लेना देना? भारत सरकार को कश्मीर के मामले में इंटरनेशनल ब्रोकर की ज़रूरत क्यों पड़ी? भारत आए यूरोपियन संघ के सांसदों को कश्मीर ले जाने की योजना जिस अज्ञात एनजीओ के ज़रिए तैयार हुई उसका नाम पता सब बाहर आ गया है. यह समझ से बाहर की बात है कि सांसदों को बुलाकर कश्मीर ले जाने के लिए भारत ने अनौपचारिक चैनल क्यों चुना? क्या इसलिए कि कश्मीर के मसले में तीसरे पक्ष को न्यौतने की औपचारिक शुरूआत हो जाएगी? लेकिन इंटरनेशनल बिज़नेस ब्रोकर कहने वाली मादी(मधु) शर्मा के ज़रिए सांसदों का दौरा कराकर क्या भारत ने कश्मीर के मसले में तीसरे पक्ष की अनौपचारिक भूमिका स्वीकार नहीं की ?
ब्रिटेन के लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद क्रिस डेवीज़ को मादी शर्मा ने ईमेल किया है. सात अक्तूबर को भेजे गए ईमेल में मादी शर्मा कहती हैं कि वे यूरोप भर के दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ले जाने का आयोजन का संचालन कर रही हैं. इस वीआईपी प्रतिनिधिमंडल की प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात कराई जाएगी और अगले दिन कश्मीर का दौरा होगा. ईमेल में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात की तारीख़ 28 अक्तूबर है और कश्मीर जाने की तारीख़ 29 अक्तूबर है. ज़ाहिर है ईमेल भेजने से पहले भारत के प्रधानमंत्री मोदी की सहमति ली गई होगी. तभी तो कोई तारीख़ और मुलाक़ात का वादा कर सकता है. बग़ैर सरकार के किसी अज्ञात पक्ष की सक्रियता के यह काम हो ही नहीं सकता.
यह ईमेल कभी बाहर नहीं आता, अगर सांसद क्रिस डेवीज़ ने अपनी तरफ से शर्त न रखी होती. डेवीज़ ने मादी शर्मा को सहमति देते हुए लिखा कि वे कश्मीर में बग़ैर सुरक्षा घेरे के लोगों से बात करना चाहेंगे. बस दस अक्तूबर को मादी शर्मा ने डेविस को लिखा कि बग़ैर सुरक्षा के संभव नहीं होगा क्योंकि वहाँ हथियारबंद दस्ता घूमता रहता है. यही नहीं अब और सांसदों को ले जाना मुमकिन नहीं. इस तरह डेविस का पत्ता कट जाता है. क्रिस डेवीज़ नार्थ वेस्ट ब्रिटेन से यूरोपियन संघ में सांसद हैं. उन्होंने कहा कि उनके क्षेत्र में कश्मीर के लोग रहते हैं जो अपने परिजनों से बात नहीं कर पा रहे. डेवीज़ ने मीडिया से कहा है कि वे मोदी सरकार के जनसंपर्क का हिस्सा नहीं होना चाहते कि कश्मीर में सब ठीक है.


मादी शर्मा का ट्विटर अकाउंट है, उन्हें तीन हज़ार लोग भी फोलो नहीं करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी तस्वीरें हैं. उनकी स्वतंत्र हैसियत भी है. उनकी प्रोफ़ाइल बताती है कि वे म्यानमार में रोहिंग्या से लेकर चीन में उघूर मुसलमानों के साथ हो रही नाइंसाफ़ी से चिन्तित हैं और ग़लत मानती हैं. ऐसी सोच रखने वाली मादी शर्मा ऐसे सांसदों को क्यों बुलाती हैं जो इस्लाम से नफ़रत करते हैं और कट्टर ईसाई हैं? जो माइग्रेंट को कोई अधिकार न दिए जाने की वकालत करते हैं. मादी शर्मा खुद को गांधीवादी बताती हैं. उनकी साइट पर गांधी के वचन हैं.
मादी शर्मा का एक एनजीओ है. WESTT women's economic and social Think Tank. इस एनजीओ की तरफ से वे सांसदों को ईमेल करती हैं और लिखती हैं कि आने जाने का किराया और ठहरने का प्रबंध कोई और संस्था करेगा जिसका नाम है International Institute for Non-Aligned Studies. इस संस्था का दफ्तर दिल्ली के सफ़दरजंग में है. 1980 में बनी यह संस्था निर्गुट देशों के आंदोलन को लेकर सभा-सेमिनार कराना है. दौर में आपने कब निर्गुट देशों के बारे में सुना है? निर्गुट आंदोलन के लिए बनी यह संस्था यूरोपियन संघ के 27 सांसदों का किराया क्यों देगी? इसकी वेबसाइट से पता नहीं चलता कि इसका अध्यक्ष कौन है?
अब सवाल है भारत ने मादी शर्मा का सहारा क्यों लिया? कई दफ़ा राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि अगर भारत पाकिस्तान चाहें तो वे बीच-बचाव के लिए तैयार हैं. भारत ने ठुकरा दिया. संयुक्त राष्ट्र संघ में इमरान खान के भाषण से भारत प्रभावित नहीं हुआ. कश्मीर पर टर्की और मलेशिया की आलोचना से भारत ने ऐसे जताया जैसे फ़र्क़ न पड़ा हो.जब अमरीकी कांग्रेस के विदेश मामलों की समिति में कश्मीर को लेकर सवाल उठे तब भी भारत ने ऐसे जताया कि उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. भारत की तरफ से जताया जाता रहा कि कई देशों को ब्रीफ़ किया गया है और वे भारत के साथ हैं. ऊपर ज़्यादातर देशों ने भारत से कुछ ख़ास ऐसा नहीं कहा जिससे ज़्यादा परेशानी हो. बल्कि जब पाकिस्तान ने विदेशी राजनयिकों और पत्रकारों को अपने अधिकृत कश्मीर का दौरा कराया तो भारत में मज़ाक़ उड़ाया गया. इतना सब होने के बाद भारत को क्या पड़ी कि एक इंटरनेशनल बिज़नेस ब्रोकर के ज़रिए विदेशी सांसदों को कश्मीर आने की भूमिका तैयार की गई ?
जो सांसद बुलाए गए हैं वो धुर दक्षिणपंथी दलों के हैं. इनमें कोई ऐसी पार्टी नहीं है जिनकी सरकार हो या प्रमुख आवाज़ रखते हों. यूरोपियन संघ के 751 सीटों में से ऐसे सांसदों की संख्या 73 से अधिक नहीं है. तो भारत ने कश्मीर पर एक कमजोर पक्ष को क्यों चुना? क्या प्रमुख दलों से मन मुताबिक़ साथ नहीं मिला? अमरीकी सिनेटर को कश्मीर जाने की अनुमति न देकर भारत ने इस मामले में अमरीकी दबाव को ख़ारिज कर दिया. फिर भारत को इन सांसदों को बुलाने की भूमिका क्यों तैयार करनी पड़ी?
क्या डेवीज़ ने मादी शर्मा के ईमेल को सार्वजनिक कर भारत के पक्ष को कमजोर नहीं कर दिया? क्या यह सब करने से कश्मीर के मसले का अंतर्राष्ट्रीयकरण नहीं होता है ? क्या कश्मीर का पहले से अधिक अंतर्राष्ट्रीयकरण नहीं हो गया है? आज ही संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति ने ट्विट किया है कि कश्मीर में मानवाधिकार का हनन हो रहा है. भारत के लिए कश्मीर अभिन्न अंग है. आंतरिक मामला है तो फिर भारत विदेशी सांसदों को बुलाने के मामले में पिछले दरवाज़े से क्यों तैयारी करता है?

इसका सही जवाब तभी मिलेगा तब प्रेस कांफ्रेंस होगी. अभी तक कोई बयान भी नहीं आया है. चिन्ता की बात है कि इन सब सूचनाओं को करोड़ों हिन्दी पाठकों से दूर रखा जा रहा है. उन्हें कश्मीर पर अंधेरे में रखा जा रहा है. ऐसा क्यों ? आप कश्मीर को लेकर हिन्दी अख़बारों की रिपोर्टिंग पर नज़र रखें. बुधवार के अख़बार में यूरोपियन संघ के सांसदों के दौरे की ख़बर को ग़ौर से पढ़ें और देखें कि क्या ये सब जानकारी दी गई है? कश्मीर पर राजनीतिक सफलता तभी मिलेगी जब यूपी बिहार को अंधेरे में रखा जाएगा.

जो चैनल कल तक कश्मीर पर लिखे लेख के किसी दूसरे मुल्क में री-ट्विट हो जाने पर लेखक या नेता को देशद्रोही बता रहे थे, जो चैनल दूसरे देश में कश्मीर पर बोलने को देशद्रोही बता रहे थे आज वही इन विदेशी सांसदों के श्रीनगर दौरे का स्वागत कर रहे हैं. क्यों?
साभार :

https://khabar.ndtv.com/news/blogs/ravish-kumar-blog-over-european-union-mps-kashmir-visit-and-chris-davies-mail-2124308

Sunday 27 October 2019

पर्व - त्योहारों पर हम एक दूसरे को किस बात की बधाई देते हैं ? ------ नवीन जोशी

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )









 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday 18 October 2019

जन के नाम पर जन को छलने का काम ------ चंद्रेश्वर

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )



 










 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday 5 October 2019

गांधी की मूर्ति पर फूल और विचारों पर धूल ------ नवीन जोशी

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) 


गांधी की मूर्ति पर फूल और विचारों पर धूल


तमाशा
सिटी
नवीन जोशी
जमाना हुआ, गांधी-स्मरण एक रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं रह गया। सच्चाई, सादगी, क्षमा, अहिंसा और प्रेम को जीवन में उतार लेने वाले महात्मा की स्मृति का भव्य तमाशा करने वालों का आचरण सर्वथा उनके मूल्यों के विपरीत है। उनके वास्तविक अनुयायी तो अब शायद ही कहीं हों। प्रत्येक राजनैतिक दल उनका असली वारिस होने का दावा कर रहा है, लेकिन सभी ने गांधी के मूल्य और विचार बिल्कुल ही त्याग दिए।

गांधी कहते थे, विशेष रूप से सत्ता में बैठे लोगों के लिए कि जब कभी यह असमंजस हो कि क्या फैसला लें तो सबसे पिछड़े और गरीब इंसान का ध्यान करो और उसके हित के लिए फैसला करो। होता इसके ठीक विपरीत है। यहां नाम गरीब और असहाय का लिया जाता है, लेकिन अधिसंख्य फैसले उन्हें लाभ पहुंचाते हैं, जो कतार में काफी आगे पहुंच चुके हैं। गरीब और असहाय को न्याय मिलने की उम्मीद दिन पर दिन कम होती जा रही है। 

देश के गरीबों को देखकर गांधी ने अपने आधे वस्त्र त्याग दिए थे। आज गांधी के तथाकथित भक्त गरीबों-असहायों का रहा-बचा भी लूट ले रहे हैं। गांधी दूसरे की गलती से व्यथित होकर और दंगा शांत करवाने के लिए अपने को सजा देते थे। 

आज अपने तमाम दोषों को छुपाकर, पीड़ित को ही दोषी साबित करने और सजा दिलवाने की साजिश होती है।

अन्याय करने वाला जितना बड़ा है, कानून के हाथ उस तक पहुंचने में उतनी ही टालमटोल करते हैं या पहुंचते ही नहीं। चिन्मयानंद पर संगीन आरोप होने के बावजूद उसकी गिरफ्तारी बहुत देर और बड़ी मुश्किल में हुई। पीड़िता फौरन जेल भेज दी गई। हो सकता है कि लड़की के खिलाफ कुछ मामला बनता हो, लेकिन क्या चिन्मयानंद के खिलाफ उससे कहीं अधिक गंभीर मामला शुरू से ही नहीं बनता था/ गिरफ्तार करने के बाद भी उन्हें कई दिन अस्पताल की सुविधाओं में रखा गया। लड़की तुरंत जेल की कोठरी में बंद कर दी गई।

कितने ही मामले हैं, जिनमें कमजोर और उत्पीड़ित का पक्ष सुना नहीं जाता या इतनी देर कर दी जाती है कि ताकतवर अभियुक्त के खिलाफ प्रमाण ही न मिल पाएं। विधायक कुलदीप सेंगर का 

मामला देख लीजिए। शिकायत दर्ज करवाने के बाद पीड़ित लड़की और उसके परिवार पर कितने अत्याचार होते रहे। विधायक की गिरफ्तारी में यथासंभव देर की गई। वह लड़की, उसके परिवार और गवाहों को तोड़ने व रास्ते से हटाने की साजिश रचता रहा। जो उत्पीड़क है, प्रभावशाली अपराधी है, वह निश्चिंत है। भय ही नहीं उसे। भागा-भागा वह फिर रहा है, जो सताया गया है। यह अपवाद नहीं, आम है।

झाड़ू लगाकर और शौचालय बनवाकर गांधी का अनुयायी बना जा सकता है क्या ? गांधी भौतिक नहीं, आत्मिक शुचिता को जीवन में उतारने की बात करते थे। सत्य की दृढ़ता से गांधी ने जग जीत लिया। आज कोई नेता सच का सामना करना ही नहीं चाहता। निर्दोषों की मॉब लिंचिंग जैसे भयानक अपराध को सत्तापक्ष सुनने-समझने को तैयार नहीं है। एक चौरी-चौरा कांड के कारण गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया था। यहां मॉब लिंचिंग के साथ-साथ गांधी की मूर्ति के चरणों में शीश नवाया जा रहा है।

गांधी से बड़ा हिंदू और राम-भक्त कौन है ?  हिंदू गांधी गाय से भी प्रेम करते थे और राम से भी, लेकिन गाय या राम के नाम पर किसी की हत्या उन्हें हरगिज मंजूर न थी। उनके लिए हिंदू होने का अर्थ उतना ही मुसलमान, सिख और ईसाई होना भी था।


अजब विडंबना है कि गांधी को पूजने वाले जान-बूझकर गांधी को समझना नहीं चाहते। 30 जनवरी 1948 के बाद से लगातार गांधी की हत्या जारी है।



http://epaper.navbharattimes.com/details/64429-79591-1.html
मरने वाले को भी श्रद्धांजलि और मारने वाले को भी 


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Wednesday 2 October 2019

गांधी जी की 150 वीं जयंती

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )














 

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश