Wednesday 27 November 2013

देशद्रोही आधार कार्ड योजना को तत्काल रद्द कराने हेतु व्यापक जनांदोलन चलाये जाने की आवश्यकता है---विजय राजबली माथुर

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हिंदुस्तान ,लखनऊ

Supply subsidised LPG without Aadhaar’

ANDHRA PRADESH NELLORE

The CPI city unit staged a protest at the district collectorate here on Monday demanding that the poor and lower middle class families be given subsidised LPG gas cylinders without insisting on Aadhaar cards and bank accounts. CPI city secretary Sk. Muneer said that most of the uneducated workers do not have bank accounts and Aadhaar cards.
Petroleum Ministry has created a confusion to deprive the poor people. They have made AADHAAR CARD mandatory for disbursement of subsidy on LPG cylinder purchase.

I am shocked with this decision.


Already, the common people are hard pressed by the restriction of subsidized LPG cylinders to nine per year. Now this AADHAAR CARD issue will be another cause of harassment to the common people.


It is the responsibility of the Central Government to prepare the AADHAAR CARD. Only 15% people of our State have got AADHAAR CARD. How will the rest of the people get their LPG subsidies if AADHAAR CARD is made mandatory?

It is also known that the Hon’ble Supreme Court has not favoured linking of AADHAAR CARD to disbursement of benefits under various government schemes.

We strongly protest this sort of arbitrary action on the part of the Petroleum Ministry to deprive the poor people of their legitimate right and demand immediate roll back of this anti-people decision.

For every matter, a new card is coming. Then how many cards will one have? Will one wear a “garland of cards” – Ration Card, Voter Identity Card, Health Card, BPL Card, PAN Card …?


I want one uniform card to cater to all provisions and meet all
requirements of the people.
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जबकि भाकपा संसदीय दल के नेता समेत सभी बड़े कामरेड्स 'आधार कार्ड'द्वारा जनता के शोषण-उत्पीड़न और देश की संप्रभुत्ता पर आघात की ओर ध्यान दिलाये जाने पर भी नज़रें फेर कर मनमोहन सरकार के संकट मोचक को उनके बाद पी एम बनवाने की कवायद में जुटे हुये हैं ; तब हम मुख्यमंत्री दीदी ममता बनर्जी का साधारण जनता के हक में लिए गए इस निर्णय और समर्थन का हार्दिक स्वागत करते हैं।  यही तो है असली कामरेशिप।नेल्लोर(आंध्र प्रदेश ),CPI के जिलमंत्री कामरेड एस के मुनीर साहब भी बधाई के पात्र हैं जो उन्होने जनता की पीड़ा को समझा। 
इस देशद्रोही  आधार कार्ड योजना को तत्काल रद्द कराने हेतु व्यापक जनांदोलन चलाये जाने की आवश्यकता है।

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Tuesday 19 November 2013

किसी को व्यक्तिगत नुकसान पहुंचाना न हमारा उद्देश्य है न ही लक्ष्य---विजय राजबली माथुर

आज ही एक सज्जन ने लिखा कि किसी का टैग हटाने या उसे अंफ्रेंड करने या ब्लाक करने व उसकी घोषणा करने की ज़रूरत नहीं होती है। आज ही एक दूसरे 'ज्जन ने पाखंडियों के फोटो टैग कर दिये तो क्यों न उनको हटाते?और क्यों न यह सबको बताया जाये कि पाखंडवाद के प्रबल विरोधी को इस प्रकार के फोटो टैग करने का औचित्य क्या हो सकता है?जबकि वह प्रोफेसर साहब CPM के बड़े नेता भी हैं।
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  • Madan Mohan Tiwari जी मैंने ही लिखा था कि कुछ लोग बार बार सार्वजनिक रूप से घोषणा करते हैं कि ऐसा करने पर अन्फ्रेंड कर दूंगा या ब्लाक कर दूंगा.हर व्यक्ति के अपने विचार हो सकते हैं.बार बार ऐसे पोस्ट्स पढ़ना कम से कम मुझे तो अच्छा नहीं लगता है.वैसे भी हर पोस्ट को हर व्यक्ति .. तो पढ़ नहीं पाता है.जिसने घोषणा पढ़ ली वह तो टैग नहीं करेगा,जिसने न पढ़ पाई वह घोषणा के बावजूद भी कर सकता है.ऎसी स्थिति में टेग्ड फोटो में ही अन टेग करने के,रिमूव करने के या रिपोर्ट करने के आप्शन होते हैं,उनका इस्तेमाल किया जा सकता है या जिस व्यक्ति ने टैग किया है उस को सीधे मेसेज भेज कर ऐसा न करने को कहा जा सकता है.वैसे मुझे आज तक यह समझ नहीं आ पाया है कि टैग करने का मतलब या उद्देश्य क्या होता है.बहुत पहले जब मैं फेसबुक से नया नया जुड़ा था मैंने एक दो पोस्ट डाल कर यह जानना भी चाहा था कि टैगिंग का मतलब क्या है,पर किसी ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया.

  • Deepak Kumar Vijay raj ji aap me bahut jyada ghamand hai. koi communist itna jyada ghmandi nahi hota.
  • Vijai RajBali Mathur दीपक कुमार एवं गिरिधारी गोस्वामी ने खुद ही फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे थे और खुद ही कुराफ़ात करने लगे अतः दोनों को ब्लाक करना अपरिहार्य हो गया। घोषणा करना इसलिए आवश्यक है कि ख्वंखाह पाखंडी ठग आशाराम का फोटो क्यों मुझे टैग किया था?किस आधार पर मुझमें घमंड होने ...See More
  • Madan Mohan Tiwari आपकी यह बात इसलिए ठीक लगी क्योंकि आपने जिसको ब्लाक किया उसका नाम भी लिया और ब्लाक करने का कारण भी बताया.अन्य लोग तो केवल माहौल बनाने व अपना महत्व बताने के लिए ही घोषनाएं करते हैं.
  • Vijai RajBali Mathur सम्मानीय मदन मोहन तिवारी जी किसी को भी ब्लाक करने का कारण तो सदा ही बताता रहा हूँ परंतु नाम सिर्फ यह सोच कर उजागर नहीं करता था कि उसका भविष्य इससे प्रभावित न हो। उदाहरणार्थ प्रस्तुत मामले में (जो आपको ठीक लगा)प्रोफेसर गिरिधारी गोस्वामी तो रांची विश्वविद्यालय में वरिष्ठ अध्यापक और धाकड़ CPM नेता हैं उनका भले ही कुछ प्रभावित न हो;परंतु दीपक कुमार जो नोयडा में इंजीनियर हैं एक नौजवान हैं और भविष्य में जाब परिवर्तन कर सकते हैं तब उनसे इनटरवीयू में सवाल उठ सकता है जो उनके करियर के लिए ठीक न होगा। मुझसे असहमति है इस कारण मैं उनको ब्लाक करके अलग हो जाता हूँ लेकिन मैंने पहले नाम उजागर नहीं किया था क्योंकि मैं किसी का भी भविष्य नहीं बिगाड़ना चाहता भले ही उसने मुझे व्यक्तिगत नुकसान भी पहुंचाया हो। आपके कमेन्ट के कारण दोनों नाम उजागर करने पड़े हैं इसलिए यदि किसी को भविष्य में कोई नुकसान होता है तो मैं नहीं आपका कमेन्ट उत्तरदाई होगा। मैं आपके द्वारा ब्लाक किए गए व्यक्ति का नाम हमेशा उजागर करने के सिद्धान्त से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ।एक और उदाहरण डॉ मोहन श्रोत्रिय साहब का दे सकता हूँ कि वह तो रिटायर्ड प्रोफेसर होने के कारण अप्रभावित रहेंगे। उनको झूठ बोलने व कम्युनिस्ट होते हुये भी पाखंडी -पोंगापंथी ब्रहमनवाद का समर्थक होने के कारण ब्लाक किया था। परंतु भाकपा संसदीय दल के नेता आदरणीय कामरेड गुरुदास दासगुप्ता जी के विरुद्ध अपशब्दों का प्रयोग करने वाले एआईएसए/माले कार्यकर्ता का नाम इसलिए नहीं उजागर करना चाहूँगा कि वह अभी छात्र है और उसके आगे लंबा भविष्य पड़ा है। फेसबुक पर ब्लाक करके अपने से अलग कर दिया इतना ही पर्याप्त है ,उसका नाम उजागर करके क्यों उसका भविष्य बिगाड़ा जाये ?भले ही आपके हिसाब से वह गलत बात मानी जाये परंतु मैं नैतिक दृष्टि से वैसा नहीं कर सकता।  हमारे विचार नहीं मिलते तो हम फेसबुक पर अलग हो जाते हैं लेकिन किसी को व्यक्तिगत नुकसान पहुंचाना न हमारा उद्देश्य है न ही लक्ष्य।
    a few seconds ago · Like

    Madan Mohan Tiwari Vijai RajBali Mathur jii:न तो मैंने कभी आपकी ब्लाक करने या अन्फ्रेंड करने जैसी पहले कोई पोस्ट पढी थी न ही मेरा आशय आपको लक्ष्य बना कर कुछ लिखने का था.वास्तव में मैंने कभी नहीं पढ़ा था.वैसे भी हर पोस्ट हर व्यक्ति पढ़ भी नही सकता है.होम में जो 10-15 पोस्ट शुरू की आती हैं उन्हें ही पढ़ पाना संभव है.या फिर किसी व्यक्ति विशेष की टाइम लाइन में जाकर पढ़ सकते हैं.मैंने यह कभी नहीं कहा कि ब्लाक करने वाले व्यक्ति का नाम सार्वजनिक किया जाए .मैंने तो यह लिखा था,आप पुरानी पोस्ट पढ़ लीजिये कि जिसे जो अन्फ्रेंड करना चाहे कर दे,ब्लॉक करना चाहे कर दे,पर उसका ढिंढोरा पीटने की आवश्यकता क्या है.वैसे भी कोई न तो किसी को समझा सकता है,न ही किसी को अपनी बातें मानने को बाध्य कर सकता है.लोग विचार प्रकट करते हैं,कुछ लोग पसंद करते हैं कुछ नहीं.
    जहां के लोग पढे-लिखे होने के बावजूद 'घोर पाखंडी'हों वहाँ ऐसी ही लूट होती है---

    पटना जंक्शन के बाहर ये महाशय स्टेशन आने-जाने वाले लोगों में विदेशी सैलानी या बेवकूफों की तलाश में रहते हैं. जैसे ही इनको इनका शिकार मिलता है ये प्रेम-पूर्वक उसके पास जाते हैं और बिना कोई सवाल जवाब किये उसके माथे पर तिलक लगा देते है, इसके बाद मंत्रोचारण करते हुए उसकी कलाई में लाल-पीले रंग का धागा बाँध देते हैं. उसके बाद इस काम के मेहनताने की बोली ₹101 (न्यूनतम) लगाते हैं. इसे मनमाफिक दक्षिणा मिले तो ठीक नहीं तो जितना प्यार से ये तिलक लगाकर धागा बांधते हैं उतने ही क्रोधित होकर श्राप देना भी शुरू कर देते हैं, इनके चुंगल में फंसे शिकार मजबूर होकर इनसे बार्गेनिंग कर इन्हें ₹51, 21, 11या ₹5 देकर पीछा छुड़ाते हैं

    • Giridhari Goswami पाखंडी ये नहीं,वे लोग हैं जो इनसे तिलक लगवाते. ये तो आरक्षण का मारा बेचारा गरीब ब्राम्हण दो जून के जुगाड़ में कोई हल्का फुल्क रास्ते में चल पड़ा है. मैं काशी विश्वनाथ,और जगन्नाथ पूरी जैसे मंदिरों में बिना टिका लगवाए और बिना पचास पैसे दान किये घूम आया. कहा गया है की 'मूर्खों के जेब में पैसे हों तो क्या अक्लमंद भूखा मरेगा?'
    • Vijai RajBali Mathur जी हाँ गांठ के पूरे और अक्ल के अधूरे ही लुटते हैं।

Friday 1 November 2013

पद्मश्री के॰पी॰ सक्सेना का महाप्रयाण हिन्दी भाषा एवं साहित्य की आपूरणीय क्षति है --- सुधाकर अदीब

हिन्दी गौरव, पद्मश्री के॰पी॰ सक्सेना ने आज 31 अक्टूबर 2013 को प्रातः 8.45 बजे इस सरायफ़ानी को आखिरकार अलविदा कहा। उनका महाप्रयाण हिन्दी भाषा एवं साहित्य की आपूरणीय क्षति है और मेरे लिए तो यह व्यक्तिगत क्षति भी है। एक बेहद गंभीर, भावुक, आस्थावान और स्नेहमय व्यक्तित्व का नाम के पी सक्सेना। हिन्दी व्यंग्य के अप्रतिम एवं स्वर्णिम हस्ताक्षर का नाम के पी सक्सेना। अपनी चटकीली अदायगी में व्यंग्य रचनाओं को पढ़कर बेतरह गुदगुदाने वाले केपी (ये उनके प्रशंसकों का दिया प्यार भरा नाम था) अपने निजी जीवन में उतने ही संजीदा व्यक्ति थे।... भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनन्य पुजारी ... रामकथा के मर्मज्ञ विद्वान ... दार्शनिक ... चिंतक ... वैज्ञानिक ... उन्हें नजदीक से जानने वाले उन्हें उनकी बहुत सी ख़ूबियों सहित जानते-बूझते थे।

वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हस्तलिपि फूलों से भी सुंदर। हिन्दी अंग्रेज़ी और उर्दू तीनों भाषाओं पर समान अधिकार रखने वाले केपी ने अभिव्यक्ति के जितने भी दृश्य और श्रव्य माध्यम हो सकते हैं सबमें उत्कृष्ट साहित्य की रचना की। पत्र-पत्रिकाएँ-काव्यमंच-आकाशवाणी-दूरदर्शन और हिन्दी फिल्म जगत सभी जगह उन्होने हिन्दी के इस तरह झंडे गाड़े जो किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं। लखनऊ का अदब तो केपी सक्सेना का लोहा मानता ही था उनकी कलम की मुरीद मुंबई फिल्म इंडस्ट्री भी हुई जब अपने जीवन के अंतिम दौर में उन्होने 'हलचल' 'लगान' 'स्वदेश' और 'जोधा अकबर' जैसी सफल फिल्मों के खूबसूरत और दमदार संवाद लिखे। उन्हें भारत सरकार ने 'पद्मश्री' सम्मान प्रदान किया और हाल ही में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उन्हें 'हिन्दी गौरव' देकर स्वयं गौरवान्वित हुआ। वास्तव में केपी सक्सेना का व्यक्तित्व और कृतित्व किसी भी सम्मान और पुरस्कार से बड़ा था।

... और उर्दू भाषा और अवध की तहज़ीब के तो वह ऐसे विशेषज्ञ कि ' बीवी नातियों वाली' से लेकर नई नवेली दोशीज़ाएँ भी केपी की शीरीं ज़ुबान पर फ़िदा हुए बिना रह ही नहीं सकतीं। तभी तो केपी के दोस्त 'मिर्ज़ा' उनसे यूं ही परेशान थोड़े ही रहते थे।

केपी सर से मेरा प्रथम संपर्क सन 2003 में मेरे तृतीय उपन्यास 'हमारा क्षितिज' के लोकार्पण से कुछ दिन पूर्व हुआ। वह मेरे अनुरोध पर फ़ैज़ाबाद में इस उपन्यास के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे। इस समारोह में ज़ाहिर है कि केपी हीरो थे और मैं था उनका साइड हीरो। लोकार्पण के बाद सभी दर्शकों ने उनसे उनका कोई व्यंग्य सुनाने कि फ़र्माइश की। केपी ने प्रारम्भ में काफी नानुकुर की और कहा कि वह 20 वर्षों से सार्वजनिक मंचों से व्यंग्य पाठ करना छोड़ चुके हैं। फिर भी हमारे भारी आग्रह पर उन्होने अपना " इन्कम टैक्स का छापा पड़ने वाला " सुप्रसिद्ध व्यंग्य सुनाया अपने चिर-परिचित अंदाज़ में । उनका एक-एक वाक्य और जनता लोट-पोट। क़हक़हों का वह दौर चला कि हँसते हँसते लोगों की आँखों में आँसू आ गए। ... अब क्या कहूँ ? उन्हीं महान व्यंग्यकार केपी सक्सेना को मैंने ज़ार ज़ार रोते हुए भी देखा है। मेरा चौथा उपन्यास 'मम अरण्य' गतवर्ष 2012 में आया। इस उपन्यास के 'सीता कि अग्नि परीक्षा' विषयक प्रसंग को मुझसे सुनकर केपी मेरे समक्ष फूट फूट कर रोये। तब मैंने कुछ-कुछ जाना उनके भीतर के उस अत्यंत भावुक और गंभीर इंसान को।

इसी वर्ष 2013 में प्रकाशित अपने पांचवें हिन्दी उपन्यास 'शाने तारीख़' कि पाण्डुलिपि भी लेकर उनके पास गया। अब वे बेहद बीमार थे। पर शेरशाह सूरी पर उपन्यास है, जानकार वह बेहद खुश हुए और उन्होने उसके कुछ अंश सुनकर मुझे ढेरों आशीर्वाद दिये। अब वही दुआएं मेरा सरमाया हैं । 81 वर्ष की उम्र में भी साहित्य जगत के सदाबहार 'देवानन्द' के॰पी॰ सक्सेना हमेशा अमर रहेंगे। उन्हें मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि।
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जहां एक ओर डॉ सुधाकर अदीब साहब का वर्णन के पी सक्सेना साहब के सकारात्मक एवं भावुक पक्ष पर प्रकाश डालता है वहीं हिंदुस्तान में प्रकाशित वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है की बाटनी जैसे साईन्स के विषय के ज्ञाता होकर भी सक्सेना साहब पोंगा-पंथ में विश्वास(हनुमान को इष्ट देव मानते थे) रखते थे।काफी सम्मान अर्जित करने के बाद भी उनको उत्तर प्रदेश द्वारा सम्मानित किए जाने की ख़्वाहिश थी। हो सकता है हिंदुस्तान का वर्णन सही हो।  हमारे लखनऊ का वह गौरव   थे अतः हम उन पर नाज़ कर सकते हैं। 
(विजय राजबली माथुर)