Friday 31 August 2012

अंगूर खट्टे क्यों हैं?

27 अगस्त और 30 अगस्त 2012 को लखनऊ मे दो कार्यक्रम ऐसे हुये जिनके संबंध मे विवाद और भ्रांतियाँ फैलाई गई हैं।
27 तारीख को क़ैसर बाग स्थित राय उमानाथ बली प्रेक्षाग्रह मे सम्पन्न 'अंतर राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन' मे कुछ जिन लोगों को पुरस्कार सम्मान नहीं मिले 'अंगूर खट्टे हैं' की तर्ज़ पर ब्लाग्स के माध्यम से आयोजन और आयोजकों की आलोचना मे मशगूल हो गए।
30 तारीख को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान,हज़रत गंज मे  आयोजित संस्थान के सरकारी कार्यक्रम मे सुप्रसिद्ध आलोचक सुभाष गुप्ता'मुद्रा राक्षस' जी ने सुप्रसिद्ध उपन्यासकार अमृत लाल नागर जी जिनको उनका गुरु भी बताया जा रहा है कि आलोचना कर दी। संस्थान ने भगवती चरण वर्मा,हजारी प्रसाद द्वेदी और अमृत लाल नागर सरीखे साहित्यकारों के जन्मदिवस के उपलक्ष्य मे गोष्ठी का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम मे मैं व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं था किन्तु अमृत लाल नागर जी की वजह से दिलचस्पी थी। नागर जी काली चरण हाई स्कूल की ओल्ड ब्वायाज़ एसोसिएशन की तरफ से टेनिस खेलने वहाँ जाते थे और मेरे पिताजी तब तत्कालीन छात्र के रूप मे उनके साथ खेलते थे। उसी स्कूल मे ठाकुर राम पाल सिंह जी भी पिताजी के खेल के साथी थे जो क्लास मे उनसे जूनियर थे। कामरेड भीका लाल जी पिताजी के सहपाठी और रूम मैट थे। ये तीनों लोग अपने-अपने क्षेत्र मे महान व्यक्ति बने। पिताजी फिर इन लोगों से इसलिए संपर्क न रख सके कि कहीं वे यह न सोचें कि कुछ मदद मांगना चाहते होंगे। इनमे से कामरेड भीका लाल जी से मैं व्यक्तिगत रूप से मिला था और उनको उस समय की सब बातें ज़बानी याद थीं तथा मुझसे बोले थे कि तुम ताज राज बली माथुर के बेटे हो मैं तुमको उनके बारे मे बताऊंगा। उन्होने पढ़ाई,खेल का ब्यौरा देते हुये पिताजी के सेना मे जाने और फिर लौटने के बाद उनके बुलावे पर भी उनसे न मिलने की शिकायत भी की।
तात्पर्य यह कि मैंने हमेशा पिताजी से उनके इन तीनों साथियों की तारीफ ही सुनी थी। अतः नागर जी पर कटाक्ष से वेदना ही हुई।
27 तारीख का ब्लागर सम्मेलन जिस भवन मे हुआ था उसका नामकरण हमारे ही खानदानी राय उमानाथ बली के नाम पर हुआ है। इसलिए उस स्थल से भावनात्मक लगाव तो था ही आयोजकों मे से एक कामरेड रणधीर सिंह सुमन हमारे ही ज़िले बाराबंकी मे हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। उनका व्यक्तिगत आग्रह मेरे वहाँ उपस्थित रहने के बारे मे था। उन्होने इप्टा के प्रदेश महासचिव कामरेड राकेश जी को मुझसे ही स्मृति चिन्ह व पुष्प गुच्छ भेंट कराये थे। अतः पुरस्कार न मिलने या सम्मान न  मिलने के नाम पर जिन लोगों ने ब्लाग के माध्यम से आलोचना की है वह भी वेदनाजनक ही लगा।
अफसोस है कि साहित्यकार हों या ब्लाग लेखक पुरस्कार /सम्मान को क्यों महत्व देते हैं। उन्होने अपना कर्म सृजन/लेखन द्वारा सम्पन्न किया और वह किसी के काम आया और सराहा गया मेरी समझ से वही बड़ा पुरस्कार है। नहीं तो पुरानी कहावत कि 'लोमड़ी को अंगूर न मिले तो उसने कहा कि अंगूर खट्टे हैं।

Tuesday 28 August 2012

हंगल साहब- श्रद्धा स्मरण

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http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-256345.html
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Saturday 18 August 2012

डॉ राही मासूम रज़ा का स्मरण

डॉ राही मासूम रज़ा का स्मरण

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ,लखनऊ मे डॉ रज़ा के चित्र का अनावरण-18-08-2012

आज दिनांक 18 अगस्त 2012 को अप्रान्ह तीन बजे हज़रत गंज ,लखनऊ स्थित  उत्तर प्रदेश  हिन्दी संस्थान मे  सुप्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ राही मासूम रज़ा के चित्र का अनावरण संस्थान के निदेशक डॉ सुधाकर अदीब द्वारा किया गया। इस अवसर पर एक अनौपचारिक गोष्ठी मे 'डॉ राही मासूम रज़ा साहित्य एकेडमी' की अध्यक्षा डॉ वंदना मिश्रा,महामंत्री कामरेड राम किशोर (प्रदेश अध्यक्ष ,फारवर्ड ब्लाक ),डॉ रमेश दीक्षित (पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एन सी पी ) ने डॉ राही मासूम रज़ा के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डालते हुये बताया कि सही अर्थों मे वही एकमात्र भारतीय या हिन्दुस्तानी साहित्यकार थे जो केवल मानव हित का ध्यान रख कर अपनी रचनाएँ करते थे। उनके महाकाव्य-'आधा गाव' का विशेष उल्लेख सभी वक्ताओं ने किया। 'महाभारत' सीरियल की पट -कथा लेखन के लिए भी उनकी सराहना की गई।

एकेडमी की अध्यक्षा और महामंत्री ने निदेशक अदीब साहब को विशेष धन्यवाद दिया कि,उनके पूर्व कार्यकाल मे डॉ रज़ा के चित्र लगाने का जो अभियान शुरू किया गया था वह उनके दूसरे कार्यकाल मे सम्पन्न हो गया। इस बीच इसके लिए काफी संघर्ष और भाग-दौड़ एकेडमी की समिति को करनी पड़ी ,राज्यपाल महोदय से भी हस्तक्षेप करवाना पड़ा तब जाकर आज डॉ रज़ा का चित्र हिन्दी संस्थान मे अनावृत हो सका। निदेशक अदीब साहब ने डॉ रज़ा का चित्र हिन्दी संस्थान मे लगने  पर खुशी ज़ाहिर की और समिति की अध्यक्षा और महामंत्री का आभार जताया।

दूसरे साहित्यकारों ने भी डॉ रज़ा के संबंध मे अपने विचार व्यक्त किए। डॉ रज़ा के भांजे साहब भी विशेष रूप से उपस्थित थे और उन्होने बहुत सी व्यतिगत जानकारिया भी डॉ रज़ा के साहित्य-लेखन के बारे मे दी। राम किशोर जी के आह्वान पर मुझे भी चित्र अनावरण तथा गोष्ठी मे भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ।










 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Friday 17 August 2012

स्वाधीनता पर प्रश्न चिन्ह

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    • Madan Tiwary ६५ साल गुजर गयें , और कितने साल ?
    • Vijai RajBali Mathur
      बेहद वाजिब सवाल है आपका मदन तिवारी जी कि,"६५ साल गुजर गयें , और कितने साल ?" मान्यवर इसका जवाब यह है कि तब तक जब तक कि,प्रगतिशील-बामपंथी 'वास्तविक धर्म'=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य-को स्वीकार करके अधार्मिक (घो
      र सांप्रदायिक-हिन्दू,मुस्लिम,सीख,ईसाई आदि-आदि )को बेनकाब नहीं करते और जनता को नहीं समझाते कि वह सब धर्म नहीं-ढोंग-पाखंड है। केवल धर्म की आलोचना का अभिप्राय है कि आप इन सद्गुणों से दूर रहना चाहते है तो रूस मे आपने साम्यवाद खो दिया और चीन मे साम्यवादी-पूंजीवाद ढल गया। हिंसा का सहारा लेकर अपने बुद्धिजीवी नौजवानों को गवाते रह कर उद्देश्य नहीं प्राप्त किया जा सकत। जब तक 'राम' की तुलना 'ओबामा' से करके गर्व किया जाएगा जनता से कटे रहना होगा ,बिना जनता के सहयोग के जन-कल्याण की बात करना भी 'ढोंग' ही है। 'स्टालिन' के विरुद्ध लिख कर 'डाकटरेट' हासिल करना और नेताजी सुभाष बोस को 'नेगेटिव सोच'वाला बताना जब तक प्रगतिशीलता का मान दंड रहेगा लक्ष्य भी आपसे दूर ही रहेगा।














 (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Tuesday 14 August 2012

सुंदर,सुखद,समृद्ध जीवन बनाएँ






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'बकवास' कहना और लिखना कितना आसदान है लेकिन क्या ग्रहों की चाल को रोका या टाला जा सकता है?यदि हाँ तो वित्त मंत्रालय,महाराष्ट्र के सी एम आफिस,नेल्लोर मे तामिल नाडू एक्स्प्रेस मे अग्निकांड क्यों नहीं रोके जा सके। ईरान की भूकंप त्रासदी को क्यों नहीं रोका जा सका। ईरान का घोर शत्रु भी आज ईरान को मानवीय मदद का प्रस्ताव दे रहा है पहले उसके वैज्ञानिकों ने चेतावनी देकर आबादी को क्यों नहीं हटवाया या भूकंप को रोक लिया।लेकिन विरोध के लिए विरोध करना फैशन है तो करते हैं जन-कल्याण बाधित करने के लिए।

राजनेताओं मे कैप्टन डॉ  लक्ष्मी सहगल,के बाद केंद्रीय मंत्री विलास राव देशमुख को भी क्यों नहीं बचाया जा सका?

यू पी सरकार के नेताओं मे मतभेदों के बारे मे भी आंकलन पहले ही दिया जा चुका है। 
http://krantiswar.blogspot.in/2012/03/blog-post_16.html?

हाँ बचाव हो सकता है यदि वैज्ञानिक विधि से 'हवन' का सहारा लिया जाये तो। चेतावनी देने का अभिप्राय बचाव के वैज्ञानिक उपाय अपनाने का अवसर प्रदान करना होता है। 'बकवास' नहीं जैसा कि विदेश स्थित प्रो साहब के अनुयाई कहते हैं। 












 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Monday 6 August 2012

हिरोशिमा पर बम साम्यवादी रूस को डराने हेतु गिराया था।

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आज के हिंदुस्तान के लखनऊ अंक मे प्रकाशित यह लेख ध्यान देने योग्य है कि लेखिका महोदया ने स्पष्ट लिखा है कि अमेरिकी बम जापान पर गिरा कर सोवियत रूस को धमकाने का प्रयास किया गया था। क्योंकि जापान जब आत्म समर्पण की घोषणा कर चुका था तो उस पर आक्रमण करने का कोई औचित्य नहीं था।






 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Wednesday 1 August 2012

गोपाल कृष्ण गांधी जी के विचार

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Hindustan-30/07/2012 

उपरोक्त लेख मे गांधी जी ने स्पष्ट कहा है कि निवेशकों के साथ सरकार के खड़े होने से मामला फ़ौजदारी हो गया है, अर्थात हिंसा और जनसंहार के लिए जिम्मेदार सरकार और निवेशक ही हैं ऐसा पूर्व राज्यपाल महोदय भी मान रहे हैं। ऐसे मे निवेशकों-विशेषकर विदेशी कारपोरेट के समर्थन मे अन्ना आंदोलन क्या हुआ ?हिंसा और प्रति हिंसा को बढ़ाने वाला ही तो। युवा शक्ति की ऊर्जा नष्ट करके उनका भविष्य चौपट करने वाले अन्ना गैंग की जितनी भर्तस्ना की जाए कम है। 

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर