Sunday 27 September 2015

भगत सिंह जयंती पर साझा संघर्ष साझी विरासत की रूप रेखा तय

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आज साँय तीन बजे क़ैसर बाग स्थित उमानाथ बली प्रेक्षागृह के 'जयशंकर प्रसाद सभागार'  में साझा संघर्ष साझी विरासत :सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और जंतान्त्रिक मूल्यों के पक्ष में सांस्कृतिक अभियान चलाने के 22-23 अगस्त 2015 को जबलपुर में हुये निर्णयों की अगली कड़ी के रूप में एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई 
जिसमें प्रलेस, इप्टा, जलेस, जसम के अलावा यहां की स्थानीय सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं ने भाग लिया। गोष्ठी की अध्यक्षता वी के सिंह जी ने की तथा संचालन राकेश जी ने। 

प्रारम्भ में राकेश जी ने बताया कि, आज दो खतरे बड़े ज़बरदस्त रूप से हमारे सामने खड़े हैं। एक तो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला । नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसारे और प्रोफेसर कालबुरगी की हत्या के बाद दूसरे अनेकों लेखकों की ज़िंदगी पर खतरा फासिस्ट शक्तियों के ऐलान से मंडरा रहा है। दूसरे संगठित मजदूरों को छिन्न-भिन्न करने के लिए एपरेनटिसशिप प्रणाली को अपनाया जा रहा है। 

राकेश जी ने प्रस्ताव दिया कि नवंबर के महीने में लगभग दस दिन की एक साझी कार्यशाला आयोजित करके शहर में आगामी कार्यक्रमों के लिए साथियों को प्रशिक्षित किया जाये। 
06 दिसंबर  2015 को प्रथम चरण में प्रातः 9 बजे से दिन के एक बजे तक विभिन्न कालोनियों में प्रचार किया जाये और उन सब को लेकर भोजनोपरांत अपरान्ह तीन बजे जी पी ओ स्थित शहीद पार्क में एकत्र होकर संयुक्त अभियान चलाया जाये। 

14 अप्रैल 2016 से ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों व आदिवासियों से संपर्क स्थापित किया जाये और उनकी समस्याओं का उनके नज़रिये से अध्यन किया जाये। 

शिव गोपाल मिश्र जी जो रेल कर्मचारियों के राष्ट्रीय नेता हैं ने प्रस्तावित कार्यक्रम पर पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया और आह्वान किया कि हमें 'चलो गांवों की ओर' नारे के साथ अपना अभियान चलाना चाहिए। 
नलिन रंजन सिंह जी ने आज के 'जनसत्ता' में प्रकाशित समाचार को इंगित करते हुये कहा कि सनातन संस्था के हौसले खतरनाक रूप से बढ़े हुये हैं। इनका मुक़ाबला तो करना ही है लेकिन सामाजिक अवधारणा को नष्ट करने के लिए जो निजीकरण की मुहिम चलाई जा रही है उसका भी कर्मचारियों का सहयोग लेकर डट कर मुक़ाबला करना होगा। प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत के हिसाब से नौकरियाँ समाप्त किए जाने की प्रक्रिया चल रही है उसका मुक़ाबला करने के लिए विभिन्न यूनियनों को अपने आपसी मतभेदों को समाप्त कर 'एकता' बनानी होगी। समान धर्मा लोगों के साथ गाँव व शहर के लोगों से संपर्क करने के दौरान जो बुलेटिन जारी किया जाना है उसकी रचना इस प्रकार होनी चाहिए कि वह आगे भी काम आए। 

प्रेमनाथ राय जी ने कहा कि जबलपुर में तय कार्यक्रम को और आगे बढ़ाया जाये उसमें वह व उनका संगठन पूरा सहयोग देगा। 

कात्यायनी जी ने कहा कि यह साझा प्रयास सामयिक है। मतभेदों को रेखांकित करते हुये साझा संघर्ष चलाना चाहिए। 1990 से ही निजीकरण शुरू हो चुका था उसके परिणाम स्वरूप जो आर्थिक संकट चल रहा था उसकी अभिव्यक्ति वीभत्स रूप में अब हुई है। मुजफ्फर नगर,बरेली आदि में जो सांप्रदायिक संघर्ष हुये हैं उनसे समाज में बिखराव आया है और इसका पूरा पूरा लाभ सांप्रदायिक शक्तियों ने उठाया है। दिल्ली में RSS की गुप्त बैठकों का जो ब्यौरा गुप्त रूप से हासिल किया गया है उसमें बताया गया है कि वहाँ शाखाओं में तलवार चलाने की शिक्षा व तलवारें बांटने का कार्य चल रहा है। आने वाले समय में हम यदि छिन्न-भिन्न संघर्ष करेंगे तो सब मिटेंगे। उनका कहना था कि फासिस्टों का मुक़ाबला संस्कृति कर्मी,साहित्यकार और लेखक स्वम्य अपने आधार पर नहीं कर सकते जब तक कि जनता को जोड़ा नहीं जाएगा हमें कामयाबी नहीं मिलेगी। 1992 का बाबरी कांड,2002 का गुजरात कांड जैसी घटनाएँ अब आगे सड़कों पर होंगी। हमें भी मुक़ाबले के लिए स्वम्य सेवी दस्ते बनाने होंगे। हमें मेहनतकश मजदूर और नौजवानों को अपने साथ लाना होगा साथ ही उनके संघर्षों में हमें योग देना होगा तभी फासिस्टों का मुक़ाबला संभव है। अब तक साझा संघर्ष शुरू करने में काफी विलंब हो चुका है लेकिन अब भी आगे न बढ़े तो आगे और मुश्किल है। हमें अपनी-अपनी सांगठनिक  संकीर्णताओं व निहित स्वार्थों को छोडना होगा तभी हम सफल हो सकेंगे। 

शकील सिद्दीकी साहब ने कहा कि पहली बात तो यह है कि भगत सिंह का स्वप्न एक विचार धारा है जिसे उन्होने अपनी शहादत से ओज प्रदान किया  व प्रमाणित किया है।दूसरी बात उनका बौद्धिक पक्ष बहुत महत्वपूर्ण है। उनके लेख व साहित्य पढ़ना चाहिए। कार्यक्रमों में 'निरंतरता' होनी चाहिए। शहर में ज़्यादा शक्ति लगाने से ज़्यादा लाभ मिलेगा। 

हरीश चंद्र , अवकाश प्राप्त IAS  ने पूछा कि भगत सिंह के अप्रतिम क्रांतिकारी स्वप्न का क्या हुआ? तब से आज सौ वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका है और जीवन मूल्य शीर्षासन कर गए हैं। वह समानता के पक्षधर थे आज सत्ता का दुरुपयोग हो रहा है। सत्ता आज जनता को लूटने का माध्यम बन गई है। सम्पूर्ण प्रगतिशील आंदोलन , किसान आंदोलन छितर बितर हो गए हैं। फिर से उनको संगठित करना होगा। आज ट्रेड यूनियन आंदोलन केवल वेतन,अपनी सुविधा बढ़ाने तक ही सीमित है, मजदूर-किसान समस्याओं से उनको कुछ लेना-देना नहीं है। ट्रेड यूनियनों को किसान ,मजदूर व दलितों के दुख से जोड़ना होगा । वैचारिक मतभेदों के बावजूद सामान्य कार्यक्रम पर दूसरी आज़ादी की लड़ाई लड़ी जाये। 

बी एन गौड़ साहब का अभिमत था कि हमारे मुख्य दुश्मन की पहुँच घर से अमेरिका तक है। फिर भी हम खुद को कमजोर न समझें। 2008 में दक्षिण बिहार के माओवादी गांवों के 70 आदमियों ने पूरा इलाका घेर लिया था। निराश होने की ज़रूरत नहीं है -' मत कहो आकाश में कोहरा घना है'। प्रस्तुत प्रस्ताव के अतिरिक्त लखनऊ में 15 मिनट की मानव श्रंखला बनाएँ। 

कान्ति मिश्रा, जिलाध्यक्ष महिला फेडरेशन ने कहा कि उनका संगठन पूरा सहयोग देगा । सहयोग की प्रक्रिया के बारे में वह अपनी आशा दीदी से वार्ता के बाद बता सकेंगी। 

ताहिरा हसन जी ने कहा भगत सिंह तो अप्रैल 1929 में ही मजदूरों की लड़ाई लड़ रहे थे। ट्रेड डिसप्यूट एक्ट के विरोध में ही तो एसेम्बली में बम फेंका था। आज के हालात तब से बहुत ज़्यादा खराब हैं। सामूहिक संघर्ष में उनका संगठन पूरा साथ देगा ऐसा उन्होने आश्वासन दिया। 

कौशल किशोर जी ने कहा कि भगत सिंह का जन्मदिन 'संघर्ष के संकल्प' का दिन होता है। 7 साल के अध्यन के द्वारा भगत सिंह ने स्वाधीनता   आंदोलन की मीमांसा कर डाली थी।  16 मई 2014 के बाद अब यह निर्णायक दौर है। औपचारिकता को तोड़ कर वास्तविकता की समझ कर बस्तियों,कारखानों से पुनः संबंध जोड़ना होगा। पहले का इनसे पलायन  का ही परिणाम संघ की मजबूती है। 

अंत में अध्यक्षीय भाषण में वी के सिंह जी ने सभी को धन्यवाद देते हुये परिवर्तन चौक पर मानव श्रंखला में भाग लेने को कहा। 










 संगोष्ठी के बाद परिवर्तन चौक पर पुणे फिल्म संस्थान के भगवाकरण के खिलाफ वहां के छात्रों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन के समर्थन में मानव श्रृंखला बनाई गयी। गजेन्द्र सिंह को  एफ टी आई  आई से हटाये जाने हेतु तथा भगवाकरण की संस्कृति के खिलाफ नारे लगाये गये। इन कार्यक्रमों में रूपरेखा वर्मा, सुभाष राय,राकेश, प्रदीप घोष,  शकील सिद्दीकी, मुख्तार, डॉ संजय सक्सेना,विजय राज बली  माथुर, कान्ति मिश्रा, बबीता सिंह एवं महिला फेडरेशन की अन्य सदस्याएं, कौशल किशोर,  हरीश चंद्र- सेवा निवृत IAS, राम किशोर,ताहिरा हसन, नसीम साकेती, के के वत्स, आर एस बाजपेई, प्रदीप शर्मा, उमेश चन्द्र, अनीता श्रीवास्तव, प्रज्ञा पाण्डेय, सुभाष बाजपेई,   ऋषि श्रीवास्तव, सीमा चंद्रा , वीना राना, घर्मेन्द्र, आदियोग, अजय शर्मा सहित बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की।

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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Friday 25 September 2015

सपा और भाजपा के बीच गुप्त गठजोड़ --- रिहाई मंच

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RIHAI MANCH
For Resistance Against Repression
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मोदी और अमित शाह से गुप्त बैठक के बाद महागठबंधन से अलग हुए मुलायम-रिहाई मंच :
मोदी और अमित शाह से मुलायम और राम गोपाल की मुलाकात पर क्यों चुप हैं आजम खान रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव और बहू रिचा यादव को यादव सिंह ने पहुंचाया लाभ जेल जाने के डर से मुलायम का कुनबा भाजपा  को बिहार में कर रहा है मदद। 
लखनऊ 13 सितम्बर 2015 : रिहाई मंच ने मीडिया में आई इन रिपोर्टाें को सपाका भाजपा के साथ गुप्त तालमेल साबित करने वाला बताया है जिसमें तथ्यों केसाथ यह बताया गया है कि बिहार चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होने का निर्णय मुलायम सिंह ने मोदी और अमित शाह सेगुप्त मुलाकात के बाद लिया है।
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने जारी प्रेस रिलीज में कहा है किजिस तरह मीडिया में आई रिर्पोटें यह बता रही हैं कि 27 अगस्त को मुलायमसिंह यादव और उनके भाई रामगोपाल यादव ने नरेंद्र मोदी से एक घंटे तक बंदकमरे में बैठक की और उसके बाद ही बिहार चुनाव के लिए महागठबंधन की तरफ से30 अगस्त को होने वाली स्वाभिमान रैली में खुद शामिल न होने सम्बंधित बयान दिया और रैली में शिवपाल यादव के शामिल होने के ठीक दूसरे दिन 31अगस्त को फिर रामगोपाल यादव और अमित शाह के बीच एक घंटे तक मुलाकात केबाद, 2 सितम्बर को जिस तरह सपा ने महागठबंधन से अपने को अलग कर लिया वहसपा और भाजपा के रिश्ते को उजागर करने के लिए पर्याप्त है।
रिहाई मंच नेता ने कहा कि जिस तरह रिपोर्ट में यह बताया गया है कि अमितशाह और रामगोपाल यादव के बीच 31 अगस्त को हुयी बैठक अमित शाह और बिहारचुनाव में उसके गठबंधन के दूसरे सहयोगी दलों लोजपा, हिंदुस्तान अवाममोर्चा, आरएलसपी के नेताओं के साथ दोपहर के भोजन से ठीक पहले खत्म हुयीवह यह भी साबित करता है कि भाजपा और उसके घटक दल सीटों के बंटवारे में सपा की अपने पक्ष मंे भूमिका निभा पाने की क्षमता को भी ध्यान में रख रहेहैं। रिहाई मंच नेता ने कहा कि मुलायम और भाजपा के बीच गुप्त गठजोड़ पर सपा के मुस्लिम चेहरे आजम खान को अपना पक्ष रखना चाहिए और यह बताना चाहिएकि बहुत ज्यादा बोलने वाली उनकी जबान इस मसले पर खुद अपनी मर्जी से खामोशहै या फिर मुलायम परिवार के दबाव मंे खामोश है।
रिहाई मंच नेता राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि महागठबंधन से अलगहोने की वजह सपा के नेता यह बता रहे हैं कि उन्हें गठबंधन में उनकीहैसियत से कम सीटें दी जा रही थीं। जबिक वे यह नहीं बता रहे हैं कि उनकीवहां कोई हैसियत ही नहीं है और 2010 के चुनाव में सपा ने जिन 146 सीटांेपर चुनाव लड़ा था उन सबमंे उसकी जमानत जब्त हो गई थी। रिहाई मंच नेताओंने कहा कि गुजरात में भी मुलायम सिंह सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारकरभाजपा को इसी तरह मदद पहंुचाते रहे हैं। रिहाई मंच नेताओं ने कहा किबिहार चुनाव में चाहे जीत जिसकी हो यूपी में मुलायम और उनके परिवार कीमुस्लिम के प्रति भीतरघात वाली राजनीति का खात्मा अब तय है क्योंकि अबमुसलमान उनके असली भगवा चेहरे को पहचान चुका है और वह अब सपा के लिएमुस्लिम वोटों का जुगाड़ करने वाले उसके मुस्लिम चेहरों की भी सच्चाई जानचुका है जो विधानसभा में भारी तादाद में होने के बावजूद आज तक मुसलमानोंसे किये गये चुनावी वादों पर एक शब्द तक नहीं बोलते हैं।
रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि मीडिया में आया यह रहस्य उद्घाटन कि रामगोपाल यादव के बेटे और फिरोजाबाद से सांसद अक्षय यादव और उनकी पत्नी रिचा यादवको यादव सिंह के करीबी राजेश कुमार मनोचा की कम्पनी एनएम बिल्डवेल और मैक्काॅन इंफ्रा के मालिक जिसकी डायरेक्टर यादव सिंह की पत्नी कुसुमलताभी रह चुकी हैं में रजिस्ट्रार आॅफ कम्पनीज (आरओसी) के मुताबिक दस हजारशेयर हैं और जिसकी जांच आयकर विभाग कर रहा है, साफ करता है कि मुलायमसिंह यादव का पूरा कुनबा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है और इसीलिए यादवसिंह मामले की सीबीआई जांच के अदालती आदेश के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट तकमें जाती है। यादव परिवार जेल जाने की डर से भाजपा को चुनावी लाभपहंुचाने के लिये बिहार में प्रत्याशी खड़े कर रही है। रिहाई मंच नेताओंने कहा कि संगठन जल्द ही सपा और भाजपा के बीच पिछले दो दशकांे से चल रहे गुप्त गठजोड़ और उसके द्वारा संघ परिवार के मुस्लिम विरोधी एजंेडे को आगे बढ़ाने की कोशिशों पर दस्तावेज जारी करेगा।




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Sunday 20 September 2015

’सरकारी आतंकवाद और वंचित समाज’ विषय पर सेमिनार में प्रोफेसर शमसुल इस्लाम का वक्तव्य

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प्रोफेसर शमसुल इस्लाम साहब बोलते हुये 

श्रोता गण (लाल गोल घेरे में- विजय राजबली माथुर )


Rihai Manch
Lucknow
‪#‎Inquilab‬ राज्य प्रायोजित आतंकवाद का जघन्य रूप है बटला हाउस मुठभेड़- शमसुल इस्लाम
संघ देश के हिदुओं के खिलाफ है- शमसुल इस्लाम
बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की सातवीं बरसी पर रिहाई मंच ने यूपी प्र्रेस क्लब में ’सरकारी आतंकवाद और वंचित समाज’ विषय पर आयोजित किया सेमिनार
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की सातवीं बरसी पर रिहाई मंच द्वारा शनिवार को यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में ’सरकारी आतंकवाद और वंचित समाज’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, प्रख्यात इतिहासकार व रंगकर्मी शमसुल इस्लाम ने संबोधित किया।
बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ कांड का जिक्र करते हुए शमसुल इस्लाम ने कहा कि आज राज्य सत्ता द्वारा अपने आतंक को जस्टिफाई करने के लिए ’राष्ट्रीय सुरक्षा’ जैसे एक जुमले का प्रयोग करने लगी है। वह अन्याय के सारे सवाल को राष्ट्रीय सुरक्षा के के नाम पर दफन करना चाहती है। वह किसी को भी मार डालने, आतंकित करने, उत्पीडि़त करने का एक अघोषित हक रखने लगी है और यह सब काम राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर किया जाने लगा है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह से दिल्ली सरकार ने बिजली की प्राइवेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए जन विरोधी फैसले किए। इन फैसलों द्वारा आम जनता पर कई गुना ज्यादा बिजली बिल वसूला जाना था। बिजली के इस प्राइवेटाइजेशन पर कोई हंगामा न मचे इसलिए इस समझौते को राष्ट्रीय सुरक्षा की श्रेणी में डाल दिया गया। अब आम नागरिक आरटीआई जैसे कानून से भी इस फैसले के बारे में सरकार की प्राइवेट कंपनियों से क्या डील हुई है, जान नहीं सकता। यही नहीं प्राइवेट बिजली कंपनियों ने जिन मीटरों का इस्तेमाल किया था वे अपनी सामान्य गति से तीन गुना तेजी से चलते थे। इस तरह से जहां राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आम जनता को लूटने का खेल चलता है वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उत्पीड़न के खिलाफ आवाम का मुंह बंद किया जाता है।
प्रो. शमसुल इस्लाम ने कहा कि आज के वर्तमान राज्य की बुनियाद पूंजीवाद के आरंभ के युग में 18वीं सदी में ही पड़ गई थी। पूंजीपति वर्ग यह जानता था कि जब तक आम जनता के दिमाग को गुलाम नहीं बनाया जाएगा तब तक पूंजीवाद और उसके लूट को जस्टीफाई नहीं किया जा सकेगा। पहले यह माना जाता था कि राज्य बदमाश लोगों के चंगुल में है, उससे पूरी दुनिया में आम जनता के भीषण टकराव होते थे। लेकिन फिर पूंजीपति वर्ग ने यह भ्रम फैलाया कि राज्य सत्ता सबकी है। उसमें सबकी हिस्सेदारी है। उसके फैसले सबकी सहमति से लिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह शब्द दरअसल दिमाग को गुलाम बनाने के लिए था। आज मोदी के समर्थक भी इसी की बात करते हैं लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि देश की केवल 31 फीसदी आवाम ने ही उन्हें वोट किया है। यह बात मोदी के जन विरोधी फैसलों को जस्टीफाई करने के लिए की जाती है। जो इस भ्रम को बेनकाब कर रहे हैं उन्हें मारा जा रहा है दाभोलकर, पनसरे और कालुबर्गी की हत्या इसी का नतीजा थी। लेकिन इन सबके बावजूद आज भी वे इस दिशा में व्यापक सहमति बनाने में असफल है।
उन्होंने कहा कि देश का सत्ता हस्तांतरण भले ही 1947 में हुआ था, लेकिन यह सरकार जो कि आजादी के बाद सत्ता में आयी, ने अपने कृत्यों से यह साबित किया कि वह आवाम की जनआंकांक्षा पूरी नहीं करती थी। इसके लिए उन्होंने दो उदाहरण दिए। पहला सन् 1857 की आजादी की जंग हम इसलिए हारे थे क्योंकि मराठा और हैदराबाद के निजाम की सेना ने सिंधिया परिवार के खात्मे के लिए निकली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ लड़ाई की थी। इसी वजह से उन्हे ग्वालियर में शहादत देनी पड़ी। सन् 1945 में तेलंगाना के इलाके में निजाम द्वारा आम जनता के उत्पीड़न के खिलाफ कम्यूनिस्टों ने बहादुराना संघर्ष किया था। लेकिन सरकार ने आजादी के बाद उन्हीं जैसी जन विरोधी ताकतों को सबसे पहले उपकृत किया। आजादी के बाद भारत ने सबसे पहला एक्शन हैदराबाद और तेलंगाना में लिया था। इसमें भारतीय सेना ने निजाम के विरोधियों को, जिन्होंने उसके अत्याचार के खिलाफ संघर्ष किया था बड़े पैमाने पर मारा। यहां यह भी तथ्य है कि सेना ने अपने आॅपरेशन में केवल मुसलमानों को मारा था। जबकि निजाम के खिलाफ हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर संयुक्त लड़ाइयां लड़ी थीं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हमारे देश में निजाम को हैदराबाद का गर्वनर बनाया गया। हरी सिंह को भी कश्मीर का गर्वनर बनाया गया। उस दौर में दोनों अपनी आवाम के खिलाफ दमन के सबसे बड़े चेहरे माने जाते थे। इससे यह साबित होता है कि राज्य सत्ता आम जन की विरोधी और भारत के अपने संदर्भें में मूलतः सांप्रदायिक थी।
दूसरा उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जिस पुलिस अफसर ने भगत सिंह को फांसी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, आजादी के बाद उसे पंजाब के पुलिस का मुखिया बनाया गया। कहने का मतलब यह है कि सब कुछ आजाद भारत में वेसा ही चल रहा था जैसा कि गुलामी के दौर में चलता था। राजसत्ता में आम जन की भागीदारी का सवाल धोखा से ज्यादा कुछ नहीं था। आज भी राज्य सत्ता अपने चरित्र में जनविरोधी है। वह इंसाफ देने की कुव्वत नहीं रखती है।
प्रो. शमसुल इस्लाम ने बाबरी विध्वंस प्रकरण के पूरे संदर्भ पर अपनी राय रखते हुए कहा कि मुंबई बम धमाकों के आरोप में याकूब मेमन को फांसी दी गई। लेकिन सवाल यह भी तो है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस, और उसके बाद उपजी हिंसा के बाद मुंबई में नौ सौ से अधिक लोग मारे गए थे जिसमें सात सौ मुसलमान थे। इनके गुनहगारों के लिए क्या किया गया। श्री कृष्णा आयोग ने साफ बताया है कि इन दंगों में भाजपा के लोग और बाल ठाकरे शामिल था। यह बात डाॅकुमेंट में दर्ज है लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई। उन्होंने कहा कि आसाम के नेल्ली में 1983 में उल्फा ने सरकार के हिसाब से 1800 लोगों का, जिनमें सब मुसलमान थे, की हत्या की थी। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बडा जनसंहार था। लेकिन राष्ट्रवाद की रक्षा के नाम पर राजीव गांधी से समझौते के तहत कुछ नहीं किया गया। अन्याय की और भी कहानियां हैं। मेरठ के हाशिमपुरा में सब छूट गए। किसी को भी सजा नहीं हुई। सन् 1984 में सिख जनसंहार में क्या हुआ? हजारों सिखों को उठाकर मार दिया गया। किसी को इंसाफ नहीं मिल सकता और हमें इस सत्ता से इंसाफ की उम्मीद नहीं करना चाहिए। अभी कुछ दिन पहले सीबीआई ने कहा कोर्ट से कहा है कि है कि क्या हम टाइटलर को जबरजस्ती सिख विरोधी दंगों में फंसा दें? जब जानते हैं कि जगदीश टाइटलर का इन दंगों में क्या रोल था। यहीं नहीं 1996 में बथानी टोला का जनसंहार हुआ जिसमें सब बच गए। लक्षमणपुर बाथे में भी सब छूट गए। मारे गए लोग गरीब, वंचित, और अल्पसंख्यक थे। क्या राज्य की प्रतिबद्धता इन तबकों को इंसाफ दिलाने की थी। इन सबके बाद भारतीय राज्य अपने मूल चरित्र में जन विरोधी साबित हो चुका है।
उन्होंने हाल ही में जारी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इस मुल्क में दलित महिलाओं के खिलाफ रेप और उत्पीड़न के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते। गुजरात में दलित महिलाओं के रेप पांच सौ प्रतिशत बढ़े हैं। दलितों और वंचितों के खिलाफ हिंसा कोई चिंता की बात नहीं है। हां अगर दलित कभी हिंसा करेंगे तो उन्हें फास्ट ट्रेक अदालत में घसीटा जाता है। वास्तव में यह गरीबों और वंचितों को आतंकित करने की राज्य सत्ता की एक रणनीति है। और एक पाॅलिसी के तहत ऐसा किया जाता है।
प्रो. शमसुल इस्लाम ने कहा कि आज राज्य सत्ता जिसे आरएसएस संचालित कर रही है, आम हिंदुओं के खिलाफ है। आरएसएस का आम हिंदुओं से, उसकी समस्याओं से कुछ भी लेना देना नहीं है। यही बात मुसलमानों के हित संवर्धन का दावा करने वालों से भी है। उन्हें आम मुसलमान की समस्याओं और उसकी बेहतरी के सवाल से कुछ भी लेना देना नहीं है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि मुकेश अंबानी जो दुनिया के तीसरे खरबपति ह,ै का घर यतीमखाने की जमीन पर बना है। लेकिन इसे लेकर कोई सवाल किसी भी नुमाइंदे की ओर से कभी नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि सवाल और भी हैं जिनमें कई मायनों में हमने शर्म भरे कीर्तिमान भी बनाए हैं। जैसे भारत में सबसे ज्यादा बेघर लोग रहते हैं। भारत दुनिया का वो देश है जहां किसान सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं। इस देश में दुनिया का सबसे ज्यादा खाना खराब किया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार यह खुद मानती है कि हम दुनिया की भूखों की राजधानी हैं। भारत विश्व दासता सूचकांक में भी सबसे आगे है। लेकिन राज्य सत्ता और सरकार को इससे फर्क नहीं पड़ता। आरएसएस के लोग मुसलमानों से तिरंगा लगाने की बात करते हैं लेकिन सच यह है कि आरएसएस तिरंगे से कितना प्यार करता है इसकी बानगी यह है कि वह तीन का रंग ही अशुभ मानता है।
सेमिनार को संबोधित करते हुए प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि देश के 55 फीसद हिंदू भाजपा को अपनी पार्टी नहीं मानते हैं। इनके चरित्र में पूंजीवाद की सेवा है और ये आम आदमी के पक्के शत्रु हैं। चाहे वह कांगेेस हो या फिर भाजपा, पूंजीवाद की दलाली इनके चरित्र में बसी है। उन्होंने कहा कि अंबानी ग्रुप को आगे बढ़ाने में प्रणव मुखर्जी और नारायण दत्त तिवारी सबसे आगे थे। आज राजसत्ता का खुला चरित्र सबकेे सामने है और वह विश्व पूंजीवाद की दलाली कर रही है। हिंदुस्तान की राजसत्ता का चरित्र गरीब विरोधी और सांप्रदायिक है। यहीं नहीं, मीडिया ने आतंकवाद का मीडिया ट्रायल किया। उन्होंने कहा कि हम संजरपुर गए थे और उन परिवारों के लोगों की इलाके में बड़ी इज्जत है। रमेश दीक्षित ने कहा कि आज हिंदुस्तान के सारे इलाकों को पूंजीपतियों ने बांट लिया है। इसे रोकने के लिए सबसे पहले लोकतंत्र को बचाना होगा। तभी यह देश और उसके संसाधान बच पाएंगे।
सेमिनार को संबोधित करते हुए एपवा की ताहिरा हसन ने कहा कि यह याद करने का दिन है। यह इसलिए कि हम इस लड़ाई को आगे केसे बढ़ाएं? बटला की जांच जांच होनी चाहिए। इसलिए इस प्रकरण की पूरी जांच होनी चाहिए। गिरफ्तारी दिखाने में खेल क्यों होता है? यह भी एक सवाल है। राजसत्ता असली आतंकवादी को बचाती है क्योंकि इसकी एक राजनीति है। दरअसल सारा खेल जनता को आतंकित करके उनके संसाधनों को लूटने का है। बिना पूंजीवाद के खात्मे के आतंकवाद के खात्मे की कोई उम्मीद नहीं करना चाहिए क्योंकि यह राज्य सत्ता द्वारा पोषित है। बेगुनाह केवल शिकार होते हैं।
काॅर्ड के अतहर हुसैन ने कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ जितने भी जनसंहार आयोजित हुए उनमें केवल गुजरात जनसंहार के दोषियों को कुछ स्तर पर सजा मिल पायी। यह इसलिए हुआ कि इस जनसंहार में न्याय के लिए व्यापक स्तर पर जन समुदाय सड़क पर उतर कर कानूनी लड़ाई भी लड़ा। इस लड़ाई को और भी आगे ले जाने की जरूरत है। डा. इमरान, अलग दुनिया के केके वत्स, आफाक उल्ला ने भी अपने विचार रखे।
कार्यक्रम का आरंभ दाभोलकर, पानसरे और कालबुर्गी की शहादत का स्मरण करते हुए दो मिनट का मौन धारण कर उन्हे श्रद्धांजलि देते हुए शुरू किया गया।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने किया। विषय प्रवर्तन अनिल यादव तथा सेमिनार का संचालन मसीहुद्दीन संजरी द्वारा किया गया। इस अवसर पर शरद जायसवाल, सत्यम वर्मा, कात्यायनी, संजय, अबुल कैंश, कारी हसनैन, कारी मो. इस्लाम खान, बाबर नकवी, मो. मसूद, प्रबुद्ध गौतम, संघलता, हाजी फहीम सिद्दीकी, फरीद खान, संयोग बाल्कर, महेश चन्द्र देवा, जाहिद, इनायत उल्ला खान, अभय सिंह, मो. उमर, इमत्यिाज अहमद, रिफत फातिमा, राहुल, जैद अफहम फारूकी, आदियोग, राम किशोर, लवलेश चैधरी, आदित्य विक्रम सिंह, वर्तिका शिवहरे, मनन, उत्कर्ष, के के वत्स, ओंकार सिंह, लक्ष्मी शर्मा, ओपी सिन्हा, आफाक, गुफरान, अतहर हुसैन, कमर सीतापुरी, जुबैर जौनपुरी, मोईद अहमद, सुनील, ज्योति राय, अखिलेश सक्सेना, अमित मिश्रा, मो. आसिफ, मो. वसी, ओंकार सिंह, डा. अली अहमद कासमी, अजीजुल हसन, कमर, मुशीर खान, मो. शमीम, सरफराज कमर अंसारी समेत कई लोग मौजूद रहे।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday 15 September 2015

हिन्दी, हिन्दी दिवस, हिन्दी सेवियों का सम्मान ------ विजय राजबली माथुर

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14-09-2015 :

आज दिन के प्रारम्भ से ही 'हिन्दी' विषयक विभिन्न टिप्पणियों का अवलोकन करने का अवसर मिलता रहा है। विभिन्न लोग विभिन्न मत व्यक्त कर रहे हैं। कुछ 'हर्ष' व्यक्त कर रहे हैं तो कुछ 'लांच्छन' लगा रहे व तंज़ कस रहे हैं। कुछ को शिकायत है कि हिन्दी राष्ट्र भाषा घोषित होने के बावजूद अभी तक 'न्याय' व 'विज्ञान' की भाषा नहीं बन पाई है। 
हिन्दी के विकास और उद्भव के इतिहास का अध्यन किए बगैर ही विभिन्न टिप्पणियाँ अपनी-अपनी सोच व इच्छा के अनुसार लोगों ने की हैं। भारत देश में हर ज़िले के बाद बोलियों में अंतर आ जाता है जो कि हिन्दी भाषी प्रदेशों में भी है और वे सब बोलियाँ हिन्दी का अंग हैं। हालांकि अब कुछ विभाजन कारी शक्तियाँ इनमें से कुछ बोलियों को अलग भाषा के रूप में संविधान में दर्ज कराना चाहती हैं। हिन्दी जिस रूप में आज है 'भारतेंदू बाबू हरिश्चंद्र' जी के युग में वैसी न थी किन्तु उनकी भाषा भी हिन्दी ही है। हिन्दी निरंतर विकसित व समृद्ध होती जा रही है जब इसमें अन्य भाषाओं के शब्द भी समाहित होते जाते हैं। कुछ लोग सरकार संचालकों को गुमराह करके 'रेल' के स्थान पर 'लौह पथ गामिनी' इत्यादि -इत्यादि जैसे शब्द हिन्दी में प्रयोग करने के सुझाव देते हैं। लेकिन जनता के लिए अब 'रेल','यूनिवर्सिटी','बैंक' सरीखे शब्द हिन्दी के ही हैं। 
विज्ञान व कानून के लिए शब्दों को या तो अङ्ग्रेज़ी या फिर संस्कृत में अपनाना होगा तभी हिन्दी में सार्थकता आएगी। अन्यथा जटिल व क्लिष्ट शब्द गढ़ने पर हिन्दी का नुकसान ही होगा भला नहीं। 
' हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा ' लिखने वाले इकबाल साहब की भाषा भी हिन्दी ही समझी जानी चाहिए। 
हिन्दी दिवस की अनंत शुभकामनायें।

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/942085149186795?pnref=story













जगदीश्वर चतुर्वेदी जी और कंवल भारती जी अलग-अलग शब्दों के जरिये एक ही बात कह रहे हैं और उन दोनों के निष्कर्ष 'सत्य ' भी हैं। लेकिन क्या कोई भी शासक अपने आलोचक को सम्मानित करेगा? और क्यों? क्यों 'तुलसी दास जी ' को बनारस के पंडों  ने उनकी पांडुलिपियाँ जला कर 'मस्जिद' में  छिपते हुये  जान बचा कर भागने पर मजबूर किया था ? क्यों अब उनके साहित्य की क्रांतिकारिता को नष्ट करने के लिए इन पंडों ने 'रामचरितमानस' को धार्मिक ग्रंथ घोषित करके अपनी उदर पूरती का साधन बना कर जनता को ठगा हुआ है? पोंगापंथी  ब्राह्मण वादियों ने 'प्रक्षेपकों' के जरिये तुलसीदास जी को जनता के एक वर्ग के बीच 'हेय ' क्यों बना दिया है? ज़ाहिर है तुलसी की जन पक्षधरता ने पहले उनको तिरस्कृत करके व बाद में उनके 'विद्रोहात्मक' व 'क्रांतिकारी' साहित्य जिसके जरिये साम्राज्यवाद का कडा प्रतिवाद किया गया था को लक्ष्य से च्युत कर दिया है। आज न तो विद्वान न ही चिंतक  तुलसी को क्रांतिकारी जन चेतना का पक्षधर मानने को तैयार हैं बल्कि ब्राह्मण जाति में जन्में लोग ही ज़ोर-शोर से तुलसीदास को 'पथ -भ्रष्टक' सिद्ध करने में तल्लीन हैं। 

सब शासक देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी जैसे 'उदार' या 'दूरदर्शी' नहीं हो सकते हैं। जैसा कि, स्वम्य ए बी वाजपेयी साहब ने उल्लेख किया है कि एक दिन 'लोकसभा' में उन्होने नेहरूजी  जी की 'कटु आलोचना' की थी और उसी शाम राष्ट्रपति भवन में  भोजन के समय नेहरू जी खुद चल कर वाजपेयी साहब के पास आए और उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा -शाबाश नौजवान ऐसे ही डटे रहो एक दिन तुम भारत के प्रधानमंत्री ज़रूर बनोगे। और सच में ही नेहरू जी के आशीर्वाद ने वाजपेयी साहब को  पी एम बनवा भी दिया। 

खुद नेहरू जी की पुत्री अपनी आलोचना नहीं सह सकती थीं। अब तो फ़ासिस्टी प्रवृति के शासक हैं फिर भला वे कैसे नेहरू जी का अनुसरण कर सकते हैं? शासकों से पहुँच 'पुरस्कार' प्राप्ति में सहायक तो हो सकती है परंतु यह कहना कि जिनको पुरस्कार मिला वे इसके योग्य नहीं थे सरासर 'अन्याय' होगा। जिनको भी पुरस्कार मिला वे सब बधाई व शुभकामना के पात्र हैं।(संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश)
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फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणियाँ :

Monday 14 September 2015

हिन्दी में पंडागिरी समाप्त करना चाहते हैं हिंदुस्तान के संपादक

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday 4 September 2015

कन्नड लेखक प्रो कालबुर्गी की हत्या के विरोध में लखनऊ में प्रतिरोध मार्च --- विजय राजबली माथुर

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आज साँय 5.30 बजे परिवर्तन चौक पर एकत्रित साहित्यकार, बुद्धिजीवी,राजनेता,महिला नेता, मजदूर नेता आदि वहाँ से एक जुलूस के रूप में  गांधी प्रतिमा, जी पी ओ , हज़रत गंज पहुंचे। मार्ग में जोशीले गीत गाते व नारे लगाते युवा कार्यकर्ता इस प्रतिरोध मार्च के औचित्य को बताते चल रहे थे। 
30 अगस्त 2015 को कर्नाटक के धारवाड़ शहर में कन्नड लेखक, शिक्षाविद, पूर्व वाईस चांसलर प्रो .एम एम कालबुर्गी की नृशंस हत्या के विरोध में इस मार्च का आयोजन संयुक्त रूप से इप्टा,प्रगतिशील लेखक संघ,जनवादी लेखक संघ,जन संस्कृति मंच,साझी दुनिया,एपवा,कलम विचार मंच,अलग दुनिया,नीपा रंग मंडली ,दस्तक,ए आई पी एफ, पी यू सी एल, राहुल फाउंडेशन, आल इंडिया वर्कर्स काउंसिल,कलम सांस्कृतिक मंच,महिला फ़ेडरेशन, कार्ड, जनवादी महिला समिति,एस एफ आई,जनवादी नौजवान सभा,सी आई टी यू  ने किया था। 

कार्यक्रम का संचालन राकेश जी व अध्यक्षता पूर्व उप कुलपति रूपरेखा वर्मा जी ने की। प्रारम्भ में कुलदीप और उनके साथियों ने एक क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किया। उसके बाद राकेश जी ने अपने उद्बोद्धन में बताया कि कट्टरता व असहिष्णुता की आज की हत्यारी संस्कृति हमारे रहन-सहन,संग-साथ,बोलने को भी 'धर्म और संस्कृति' की आड़ में नियंत्रित करना चाहती है। इन बेखौफ कट्टरपंथियों ने प्रो काल्बुर्गी की हत्या के  फौरन बाद एक और कन्नड लेखक और विद्वान प्रो के एस भगवान को अपना अगला शिकार घोषित कर दिया है। उनके प्रस्ताव पर सभा ने मांग की कि प्रो भगवान सहित अन्य संस्कृति कर्मियों व बौद्धिको की अभिव्यक्ति की आज़ादी और जानमाल की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित की जाये। 
राकेश जी ने घोषणा की कि 27 सितंबर, रविवार को शहीद भगत सिंह की जयंती पर विभिन्न संगठन एकत्रित होकर आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करेंगे। रूपरेखा वर्मा जी के अध्यक्षीय संबोद्धन के उपरांत सभा समाप्ति से पूर्व एक और क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत करके उपस्थित लोगों से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और जंतान्त्रिक अधिकारों की रक्षा का आह्वान किया गया। 

प्रदर्शन व सभा में भाग लेने वाले लोगों में प्रमुख रूप से रूपरेखा वर्मा,ताहिरा हसन,मधु गर्ग,किरण सिंह,सीमा चंद्रा, सुशीला पुरी,आशा मिश्रा,कान्ति मिश्रा,कल्पना पांडे,शिव मूर्ति, वीरेंद्र यादव ,राकेश जी,प्रदीप घोष,जुगल किशोर,सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ,शकील अहमद सिद्दिकी,शोएब मोहम्मद, जन संदेश टाईम्स के प्रधान संपादक सुभाष राय,कौशल किशोर,कौशलेंन्द्र किशोर चतुर्वेदी,के के शुक्ला,वीर विनोद छाबड़ा,ओ पी सिन्हा,राजीव यादव,फूल चंद यादव, एस आर दारा पुरी,दिनकर कपूर,आदियोग,प्रदीप शर्मा , विजय राजबली माथुर के नाम उल्लेखनीय हैं। 

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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कवि असद जैदी साहब को 'राही मासूम रजा सम्मान' --- विजय राजबली माथुर / कौशल किशोर

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असद जैदी साहब 


  दिनांक 01 सितंबर 2015 को क़ैसर बाग स्थित राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह के जयशंकर प्रसाद सभागार में 'राही मासूम रज़ा साहित्य एकेडमी' के तत्वावधान में कवि-शायर असद जैदी साहब का सम्मान समारोह राही साहब की 88 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कथाकार शेखर जोशी जी व प्रोफेसर उदय प्रताप सिंह जी (कार्यकारी अध्यक्ष,उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान) ने संयुक्त रूप से की व संचालन ऊषा राय जी ने किया।
महामंत्री राम किशोर जी की ओर से एकेडमी के उद्देश्यों का वाचन प्रज्ञा पांडे जी ने किया। बाद में राम किशोर जी ने अब तक की गतिविधियों पर व्यापक प्रकाश डाला। अध्यक्ष मण्डल व मंचस्थ विद्वानों ने असद जैदी साहब को प्रशस्ति पत्र भेंट किया। साबिया सिद्दीकी व पूनम तिवारी ने शाल आदि भेंट किए। एकेडमी की वार्षिकी का विमोचन भी मंचस्थ विद्वानों के कर कमलों से सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में  शायर जाफरी साहब व श्रीमती अनिला प्रभाकर  जी (सुपुत्री श्री के के शुक्ला जो वहाँ कार्यक्रम में उपस्थित थे  )  ने राही साहब की गज़लों का प्रस्तुतीकरण  सुमधुर गायन शैली में  किया।
विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने असद जैदी साहब का माल्यार्पण कर अभिनंदन किया। IPTA की ओर से जैदी  साहब को माल्यार्पण प्रदीप घोष साहब ने किया। IPTA की ओर से राकेश जी व प्रलेस की ओर से शकील सिद्दीकी साहब, जसम के कौशल किशोर व जन संदेश टाईम्स के प्रधान संपादक सुभाष राय साहब भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।
अखिलेश चमन साहब ने जैदी साहब का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया । राजस्थान के करौली में 1954 में जन्में असद जैदी साहब की शिक्षा आगरा व दिल्ली में भी हुई । 1970 से आप साहित्य साधना में सक्रिय हैं। 1993 में उनकी कविता " यह ऐसा समय है " को काफी सराहना मिली। उनके तीन काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं।
असद जैदी साहब ने अपने संदेश में चिंता व्यक्त की कि आज राही साहब के समय से ज़्यादा बड़ा संकट उपस्थित हो गया है। साहित्यकार के समक्ष यह विकट समस्या है कि वह क्रांति के वाहक 'मध्यम वर्ग' के बाज़ार के हाथों बिक जाने  के कारण उदासीन हो जाने की अवस्था को पुनः जाग्रत करे। इसके लिए उसे इस मध्यम वर्ग के सरोकारों के साथ खुद को जोड़ना होगा।  उन्होने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि लखनऊ के लोगों ने राही साहब को एक शायर के रूप मान्यता दी व सराहा है जबकि अन्य जगहों पर उनको एक उपन्यासकार के रूप में ही जाना जाता है। उन्होने खास ज़ोर देकर कहा कि जो जातिवादी है वह सांप्रदायिकता विरोधी हो ही नहीं सकता। उनकी चिंता थी कि पहले साम्राज्यवाद के प्रतिरोध की बात होती थी फिर पूंजीवाद के प्रतिरोध की अब तो ग्लोबलाईज़ेशन होगया है जिसमें समन्वय की बात होती है और बाजारवाद ने प्रतिरोध की क्षमता को ही कुंद  कर दिया है। यह सब मनमोहन सिंह के 25 वर्ष के शासन का परिणाम है। उन्होने इसे स्पष्ट करते हुये बताया कि बाजरवाद 1991 से मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत उदारीकरण का स्वभाविक परिणाम है।
उदय प्रताप सिंह जी ने असद साहब की इस बात का कि जातिवादी सांप्रदायिकता का विरोधी नहीं हो सकता पूर्ण समर्थन करते हुये बताया कि 'समाजवाद,धर्म निरपेक्षता और लोकतन्त्र' तीनों ही समानता पर आधारित हैं। एक क्षेत्र में समानता को मानने व अन्य क्षेत्रों में न मानने से समानता नहीं स्थापित हो सकती है।
शेखर जोशी जी ने राही साहब की नीतियों पर असद साहब को पुरुसकार प्राप्ति का सुयोग्य पात्र बताया। उन्होने एकेडमी की स्थापना में के पी सिंह जी व उनकी पत्नी नमिता जी के योगदान की विशेष चर्चा की। वंदना मिश्रा जी ने सभी अतिथियों व आगंतुकों का धनवाद ज्ञापन किया।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/934751226586854?pnref=story






संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday 3 September 2015

मेरे मासूम रज़ा !.... आज भी समय के साथ हैं!!------Navendu Kumar

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मेरे मासूम रज़ा !.... (जयंती पर खास) :
तो क्या हुआ, जो मेरा नाम मुसलमानों जैसा है !
डॉ राही मासूम रज़ा का व्यक्तित्व-कृतित्व बेहद सरोकारी था। मैं एक नवलेखक, बिहार के आरा शहर का 1978 में मुम्बई (तब बॉम्बे) गया तो राही साहब को फोन किया। उन्होंने फोन पर न सिर्फ बात की, बल्कि मुझे घर भी बुला लिया। तब मेरी तो कोई साहित्य में वैसी कोई पहचान भी नहीं थी और उनका तो साहित्य के अलावा तब फ़िल्म राइटर के बतौर भी ज़बरदस्त क्रेज़ था।
तब कमलेश्वर जी 'सारिका' छोड़ चुके थे और कथायात्रा' के प्रकाशन की प्लानिंग कर रहे थे। मैं कमलेश्वर जी का स्नेही था। उन्होंने मुझे अपनी गाड़ी से राही जी के घर के पास छोड़ दिया। जब इस पहली मुलाक़ात में उनसे मिला तो डॉ राही की सहज-सरल जीवन शैली और व्यवस्था बदलाव के प्रति उनके जज़्बाती व प्रतिबद्ध इरादों से बेहद प्रभावित हुआ। तब वे अत्यन्त जिज्ञासु होकर मुझसे पूछने लगे, कहा- आप तो पत्रकार और कथाकार भी हो, भोजपुर की लड़ाई का क्या हाल है?...मुझसे भोजपुर के सशस्त्र किसान आंदोलन के बारे में वे देर तक जानते सुनते रहे। लंबी सीटिंग चली।
'आधा गांव' रचने वाले डॉ राही गांव जीते थे~पूरा गांव! सही अर्थों में गंगा-जमुनी मिज़ाज़ और व्यवहार को जीने, उसके लिए लड़ने वाले इंसान और रचनाकार थे राही। यूँ कहें तो " मैं तुलसी तेरे आँगन की!"
"मैं समय हूँ!"...
उन्हीं के इस संवाद का मर्म ये कि राही आज भी समय के साथ हैं!!


Navendu Kumar दोस्तों, Diwendu Sinha ने डॉ राही से उस खास मुलाक़ात का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग याद दिलाया। तब अमिताभ बच्चन जी अभिनीत फ़िल्म आयी थी- आलाप' जिसके संवाद लिखे थे राही साहब ने। फ़िल्म में एक तांगे वाले(अभिनेता असरानी) का बोला वह संवाद फ़िल्म देखने के दौरान मेरे ज़ेहन में उतर गया था। गाजीपुर स्टेशन पर अमिताभ उतरते हैं। टैक्सी नहीं लेते, तांगा करते हैं तो पता चलता है कि तांगा ज़्यादा महंगा है। 
असरानी से अमिताभ पूछते है~टैक्सी के मुक़ाबले तांगे का भाड़ा ज़्यादा क्यों भाई?तांगेवाला बने असरानी कहते हैं~ टैक्सी में पेट्रोल जलता है साहब और तांगे में घोड़े का खून जलता है!...
मानवीय संवेदना और व्यवस्था की विषमता को उकेरती इस लाइन के बारे में डॉ राही ने बड़ा ही दिलचस्प वाकया सुनाया। उन्होंने बताया कि एक बार जब वे लंबे अरसे बाद अपने गांव जाने को गाजीपुर उतरे तो खुद एक तांगे वाले ने ये अल्फ़ाज़ उनको बोला था, जो तभी उनके ज़ेहन में पैबस्त हो गया था।...उस डायलाग में कोई क्रिएशन नहीं, बिलकुल रीयलिस्टिक था हर शब्द!...सचमुच राही का पूरा रचना संसार सामाजिक सरोकार और यथार्थ के धरातल पर खड़ा है...


आज (१ सितम्बर ) राही मासूम रजा की जयंती है. रज़ा गाजीपुर में पैदा हुए थे और उन्होंने तालीम AMU में पाई. उन्होंने साम्प्रदायिकता के विरुद्ध और हिंदुस्तानियत के पक्ष में आजीवन संघर्ष किया . उनका उपयास "आधा गांव " विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखे गए उपन्यासों में श्रेष्ठतम है . टीवी सीरियल महाभारत और नीम का पेड़ की पटकथा भी उन्होंने ही लिखी थी ---
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
मेरे उस कमरे को लूटो जिसमें मेरी बयाने जाग रही हैं
और मैं जिसमें तुलसी की रामायण से सरगोशी करके
कालीदास के मेघदूत से यह कहता हूँ
मेरा भी एक संदेश है।
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
लेकिन मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है
मेरे लहू से चुल्लू भर महादेव के मुँह पर फेंको
और उस योगी से कह दो-महादेव
अब इस गंगा को वापस ले लो
यह जलील तुर्कों के बदन में गढा गया
लहू बनकर दौड़ रही है।





 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday 1 September 2015

नेहरू : एक प्रतिमा --- राही मासूम रजा



राही मासूम रजा  साहब की जयंती पर  :
 'धर्मयुग', 13 नवंबर 1977, पृष्ठ -17 पर प्रकाशित उनका एक महत्वपूर्ण लेख ।इस लेख का महत्व आज 38 वर्ष बाद और अधिक बढ़ गया है क्योंकि आज नेहरू और उनकी 'धर्म निरपेक्ष अवधारणा' पर व्यापक और तीव्र प्रहार किए जा रहे हैं।  राही मासूम रजा  साहब ने तब भविष्य के लिए नेहरू पर भरोसा किया था जो आज भी प्रासांगिक है। 
(विजय राजबली माथुर )

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धर्मयुग के 29 अक्तूबर 1978 के अंक में प्रकाशित उनकी चार गज़लें :


 कच्चा आँगन बिस्तर खोले, दरवाजा विश्राम करे 
   राही जी कुछ दिन को अपने घर हो आयें राम करे 

   दिल की मौत पे पुरसा देने तो नहीं आया कोई हमें 
   और हमीं से जोड़ के नाता, बस्ती अपना नाम करे 

   मेरी  घायल आँखों ने तो जोड़ लिए हैं हाथ अपने 
   बंजारे सपनों की टोली किन आँखों में शाम करे 

   शहर में इज़्ज़तदार बहुत हैं पुरखों की पगड़ीवाले 
   कोई चाक गरीबांबाला भी तो अपना नाम करे 

   आँखों में कुछ वहशत पाले, तलवों में कांटे बोये 
   दीवाना क्यों घर बैठे, बाहर निकले, कुछ काम करे 
                                                                        *
** 
  वक्त से पूछ लो सूरज का पता रात गये 
   वक्त इस शहर में रुकता है, ज़रा रात गये

   दिल के रस्ते में जो ज़ख़्मों की गली पड़ती है 
   उस गली में कोई देता है सदा रात गये 

   मेरे घर की कोई आवाज़, मेरे शहर का शोर 
   कुछ-न-कुछ लाती है सौगात हवा रात गये 

   ख्वाब लहराते हैं,याद आते हैं बिछड़े हुए लोग 
   आँख बन जाता है हर ज़ख्मे-वफा रात गये 

   देखे हर पेड़ से परछाईं उतर सकती      है 
  मत जलाना कभी यादों का दिया रात गये  

                                                       **

*** 
      डूबता सूरज देख कर लगी वह दिल को ठेस 
       साँझ भये   परदेस में,  हम  गाते हैं     देस 

      यह काली पगडंडियाँ, भटक न जाये   चाँद 
      दिन से कहिए  संवार दे,   घनी रात के केस 

      ओढ़े कमली ख्वाब की,  लिये चाँद  का चंग
      राही जी बतलाइए,   क्यों  बदला  यह  भेस 

                                                         ***

**** 
        ओस की बूंदें हंसी उड़ायेँ, आए न दरिया पास 
        मेरे होठों की किस्मत में लिखी है कैसी प्यास 

        कब तक यह बेमंज़र दिन, कब तक यह खाली रात 
        कब तक आख़िर और चलेगा  आँखों का   उपवास 

        हम तन्हा घर में बैठे हैं,   चाँद  गया  है देस 
        कोई नहीं है आज हमारी काली रात के पास 

        बरगद के साये में बैठी  सिर निहुड़ाये  धूप 
        सूरज जी बेचारे भी लगते हैं    आज  उदास 

        सूरज डूबा, सब घरवाले लौट रहे हैं, हम भी 
        पूंछें किसी से घर का रस्ता, ख़त्म करें वनवास 

                                                               ****
        
   

       
     

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश