Wednesday 22 January 2014

जनतंत्र में जिद की हदें---जगदीश्वर चतुर्वेदी

   जनतंत्र में हदें नहीं होतीं ,विवेक होता है:  
   जनतंत्र में हदें नहीं होतीं ,विवेक होता है।जनतंत्र का सारा ताना-बाना हदों के पार जाने के रेशों से बुना हुआ है। कलाओं से लेकर राजनीति तक,साधारणमनुष्य से लेकर नेता तक सभी आए दिन हद तोड़ते हैं। लोकतंत्र के सवाल हमेशा हदों सेटकराते हैं और हदों से लोकतंत्र बाहर निकलकर फैलता है।
लोकतंत्र की हदों के विस्तार का प्रश्न लोकतांत्रिक विवेक से जुड़ा है। इसकी उपेक्षा किसी भी नेता को, जो लोकतंत्र की आंधी पर सवार हो या भीड़ के समर्थन या जनसमर्थन पर सवार हो, अराजक या लोकतंत्रविरोधी बना सकती है।लोकतंत्र के विवेक का संबंध संविधान के विवेक और संवैधानिक संस्थाओं की परंपराओं से है।
   फिलहाल उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में रेलभवन पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्दकेजरीवाल के अनिश्चितकालीन धरने और उससे जुड़े सवालों पर गंभीरता से विचार करें।
   दिल्लीमें पुलिस प्रशासन बेहद खराब अवस्था में है। पुलिस का हर स्तर पर भ्रष्टाचार,मनमानापन और अकर्मण्यता नजर आते हैं। इसके कारण पुलिस के खिलाफ व्यापक असंतोष है।केजरीवाल इस असंतोष को राजनीतिक जामा पहनाकर अपने कानूनमंत्री या कार्यकर्ताओं केअ-लोकतांत्रिक आचरण पर से आम लोगों का ध्यान हटाना चाहते हैं ।
    केजरीवालकी मांग है दोषी 3 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया जाय।दिल्ली को राज्य का दर्जा दिया जाय और पुलिस को दिल्ली प्रशासन के मातहत किया। उनकी यह मांग वैध रुप में असर दिखाए इसके लिए वैध कदम उठाने जरुरी हैं । नया प्रशासन दिल्ली विधानसभा से पूर्णराज्य का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव पास कराकर केन्द्र के पास भेजे और बाकी दलोंको संसद में संविधान संशोधन करने के लिए राजी करे। जाहिर है यह प्रक्रिया लंबी और थकानेवाली है । साथ ही उपराज्यपाल द्वारा बनायी जांच  कमेटी के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो।
     आमआदमी पार्टी के सभी नेताओं को कल मैंने दिनभर टीवी से लेकर रेलभवन के अहाते मेंटीवी के जरिए सुना।अनेक मित्रों का फेसबुक पर लिखा भी देखा।
     सबसेपहले मुझे जेएनयूएसयू के पूर्व महामंत्री और अपने जमाने के धाकड़ एसएफआई नेता औरइन दिनों एनजीओ आंदोलन के अग्रणी कतारों में काम करने वाले सबसे सुलझे हुए मित्रअनिल चौधरी की आलोचना याद आ रही है। अनिल चौधरी ने फेसबुक पर लिखा 'yavestha ke charmerane se itna ghabrate kyuonho yaar! itna yatasthitivadi hone ki umeed nahi thi. ' यह सचहै  व्यवस्था चरमरा रही है, यह भी सचहै  मध्यवर्ग के हमारे जैसे लोग घबडाए हुएहैं, लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि इस सवाल को उठाने के पीछे व्यवस्था परिवर्तनका लक्ष्य काम नहीं कर रहा ।
     अरविंद केजरीवाल ने बार बार कहा है हमने कांग्रेस से समर्थन नहीं मांगा, वे चाहें तो समर्थन वापस ले लें। इस पर टाइम्स नाउटीवी चैनल में एनसीपी के महासचिव और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष देवीप्रसाद त्रिपाठी ने कहा  केजरीवाल राजनैतिकतौर पर अनैतिक बयान दे रहे हैं । केजरीवाल में यदि नैतिक साहस है तो कहें हमें कांग्रेस का समर्थन नहीं चाहिए। हम इतना जोड़ना चाहेंगे कि केजरीवाल को ऐसी सरकार नहीं बनानी चाहिए जिसको कांग्रेस या भाजपा का समर्थन हो। वे तुरंत इस्तीफा देकर जनता में आ सकते हैं। उनकी 18मांगों का कांग्रेस ने समर्थन किया है, कांग्रेस का समर्थन उन तमाम हरकतों के लिए नहीं है जो कानून और संविधान के दायरे के बाहर हैं। 
 असल मामला क्या है?:
 असल मामला क्या है जिससे यह आग भड़की है।'नवभारतटाइम्स'(20जनवरी2014) के अनुसार ' पूर्व डीजीपी और दिल्ली पुलिस में डीसीपी रह चुके आमोद कंठ ने दावा किया है कि उन्होंने पीड़ितों से मुलाकात कर उनकी शिकायत रेकॉर्ड की है। आरोप है कि मुताबिक कंपाला स्टेलर मोंटगानो (36) और शीलाएमनबोबाजी (30) के साथ कानून मंत्री और उनके समर्थकों ने मारपीट की। उन्हें धक्कादेकर हाथ ऊपर उठाने को कहा। ऐसा न करने की सूरत में गोली मारने की धमकी दी। आमोदकंठ का आरोप है कि एक महिला को खुद कानून मंत्री ने मारा। आमोद कंठ कहते हैं कि यह गैरकानूनी कार्रवाई है। कंपाला की स्टेलर शादीशुदा हैं और उनके तीन बच्चे भी हैं।दिल्ली में रहकर वह टेक्सटाइल का कारोबार करती हैं।
आमोद कंठका दावा है कि उन्होंने ने युगांडा की चार महिलाओं की शिकायतें रिकॉर्ड की हैं।उनका आरोप है कि इन महिलाओं को तकरीबन दो घंटे बंधक बनाए रखा गया। एम्स में जांचके लिए पुलिसवालों पर दबाव बनाया गया। जबरन उनका यूरीन सैंपल लिया गया और कैविटी सर्च भी हुआ। आमोद के मुताबिक बिना किसी इजाजत के ये सारी कार्रवाई गैरकानूनी हैं।यह तालिबानी राज का ही एक रूप है।
आमोद कंठ 'प्रयास' नाम की एक सामाजिक संस्था चलाते हैं और उन्होंने साउथ दिल्ली के आला पुलिसअफसरों से भी मुलाकात की। उनका दावा है कि डीसीपी वी. एस. जायसवाल ने उन्हें बताया कि उन्होंने हादसे की एक रात पहले खुद जाकर इलाके का मुआयना किया था लेकिन कुछ नहीं मिला। आमोद बताते हैं कि बिना वारंट के किसी के घर में रेड सिर्फ स्पेशलपुलिस ऑफिसर और ट्रैफिकिंग पुलिस अफसर ही कर सकते हैं लेकिन कानून मंत्री कीअगुवाई में भीड़ ने जिस तरह रेड डाली, वह गैरकानूनी है।' इस पर अदालत में मामला गया और अदालतके तुरंत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
   'नभाटा' (19जनवरी 2014) के अनुसार विदेशी महिलाओं के साथ कथित बदतमीजी के मामले में कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है।'गौरतलब है कि कानून मंत्री भारती और उनके समर्थकों पर कुछ नाइजीरियाई और युगांडाईमहिलाओं ने जबरन रोक कर रखने, बदतमीजी करने और प्रताड़ित करने के आरोप लगाए थे। भारतीऔर समर्थक इन महिलाओं पर वेश्यावृत्ति और ड्रग्स स्मगलिंग के आरोप लगा रहे थे। इसकथित छापे के दौरान दिल्ली पुलिस और सोमनाथ भारती के बीच जमकर तू-तू, मैं-मैं भी हुई थी।
इससे पहले कोर्ट ने इस मामले में मालवीयनगर थाने में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। विदेशी महिलाओं ने सोमनाथभारती और उनके समर्थकों के खिलाफ मालवीय नगर थाने में पहले ही कंप्लेंट दी है।पुलिस के मुताबिक,इन आरोपों में आईपीसी की धारा 342, 509 औरअन्य कई धाराओं के तहत जबरन बंद करने और महिला की मर्यादा भंग करने का मामला बनताहै।
गौरतलब है सोमनाथ भारती अपने कुछ समर्थकों के साथ 15 जनवरी की आधी रात दिल्ली स्थित खिड़की गांव गए थे, जहां एक घर पर छापा मारने से इनकार करने के बाद दिल्ली पुलिस के एसीपी से उनकी बहस हो गई। सोमनाथभारती का आरोप था कि उस इमारत से वेश्यावृत्ति और ड्रग्स की तस्करी का रैकेट चलताहै। इसके बाद भारती अपने समर्थकों के साथ उस महिला के घर में जबरन घुस गए। मंत्रीपुलिस के साथ चारों महिलाओं को एम्स भी ले गए थे, जहां उनका मेडिकल चेकअप कराया गया था। सूत्रों से जानकारी मिली है कि मेडिकल चेकअप मेंड्रग्स के सेवन की पुष्टि नहीं हुई। इसके बाद लड़कियों ने मंत्री के खिलाफ पुलिसकंप्लेंट दी। महिलाओं ने आरोप लगाया है कि मंत्री और उनके साथ मौजूद लोगों ने नसिर्फ उनके साथ मारपीट की बल्कि उन्हें जबरदस्ती गाड़ी में घुमाते रहे।'
    आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और मंत्रियों की इस तरह की हरकतें किसी तर्क से स्वीकार्य नहीं हैं । विदेशी महिलाओं ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की अपनेराजदूतों से शिकायत की और संबंधित दूतावासों ने भारत के विदेश मंत्रालय को भी शिकायती पत्र लिखकर तुरंत कार्रवाई की मांग की है।
   आम आदमी पार्टी का मानना है 'खिचड़ी' इलाके में नशीले पदार्थों औरजिस्मफरोशी का धंधा बडे पैमाने पर लंबे समय से चल रहा है और स्थानीय लोग  इससे परेशान होकर कई बार शिकायतें हर स्तर पर करचुके हैं लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके कारण मंत्री को मजबूरी में हस्तक्षेप करना पड़ा ।
    इस प्रसंग में मंत्री का हस्तक्षेप समझ में आता है,स्थानीय लोगों का गुस्साभी समझ में आता है लेकिन यह भी तो संभव है कि जिसे ड्रग और जिस्मफरोशी कहा जा रहाहो, वहां पर कोई ऐसी चीज ही न हो और महज शंका के आधार पर आरोप लगाए जा रहे हों ।इस समूची समस्या  का समाधान यह नहीं है किसभी कानूनों को धता बताकर तालिबानी न्याय कर दिया जाय ।
  उल्लेखनीय है  'खिचडी' इलाके से मंत्री द्वारा जबरिया पकड़कर एम्स अस्पताल ड्रग टेस्ट के लिए ले जायी गयी लड़कियों के टेस्टमें कोई गड़बड़ी नहीं मिली और नहीं किसी ड्रग के संकेत मिले। ऐसे में 'खिचडी'इलाके के लोगों के संबंधित विदेशी महिलाओं के बारे में लगाए आरोप बेबुनियाद साबितहुए हैं। ऐसी स्थिति में आम आदमी पार्टी और 'खिचडी' इलाके की जनता के ड्रग औरजिस्मफरोशी के बारे में लगाए आरोपों पर सहज ही विश्वास नहीं किया जा सकता।
    रेल भवन पर मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके मंत्रियों का धरना कई मायनों में अ-लोकतांत्रिक और संविधान केप्रावधानों का उल्लंघन है । आम आदमी पार्टी के आंदोलन के प्रसंग में सबसे  बड़ी समस्या है इनके आंदोलन स्थल का फैसला ।
    समूची दिल्ली में कहीं पर भी आंदोलन किया जासकता था लेकिन ये  लोग अन्ना आंदोलन से लेकरआज तक जान बूझ कर बार बार केन्द्रीय मंत्रालय,राजपथ,वोट क्लब,संसद केअहाते,राष्ट्रपति भवन के आसपास के इलाकों को ही आंदोलन स्थली के रुप में चुनते रहे हैं । इससे सरकारी कामकाज,मेट्रो यातायात,राजकीय अतिथियों के आवागमन और राजकीय समारोह प्रभावितहोते रहे हैं। यह विवेक का निषेध है। इस समस्या का दूसरा पहलू संवैधानिक है जिसकीओर संविधान विशेषज्ञों ने ध्यान खींचा है। 
 संवैधानिक पहलू:
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहनाहै  सीएम और मिनिस्टरों ने पद और गोपनीयताकी शपथ ली है। इसके तहत संविधान के दायरे में काम करने की बात है। संविधान के तहतदिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है और पुलिस केंद्र सरकार के पास है। ऐसे में इसको लेकर सड़कों पर इस तरह से टकराव नहीं हो सकता। पुलिस को निर्देश देना राज्य सरकार का काम नहीं है। मंत्री अगर पुलिस को निर्देश दे रहे थे तो यह भी पुलिस के कामकाज में दखल है और यह नियम के खिलाफ है। राज्य सरकार को संविधान के तहत जो दायित्व दिया गया है , उन्हें उसका निर्वाह करना चाहिए। पुलिस के कामकाज में वह दखल नहीं दे सकते।
   सुप्रीम कोर्ट के सीनियर ऐडवोकेट एम . एल . लाहोटी बताते हैं कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। इसी कारण यहां की पुलिस राज्य सरकार के भीतर नहीं है। पुलिस को राज्य सरकार के अधीन लाने और दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग पहले भी उठती रही है। इस बार दिल्ली के कानून मंत्री व एक और मंत्री ने पुलिस को कार्रवाई का आदेश दिया और उसे पुलिस ने नहीं माना। इसके बाद उन पुलिस कर्मियों कोसस्पेंड कराने के लिए यह धरना हो रहा है। देखा जाए तो दिल्ली के सीएम अपनी लाचारी भी दिखा रहे हैं कि आखिर सरकार करे तो क्या करे , जब पुलिस उसके कहे के अनुसार काम नहीं करती।
सीनियर ऐडवोकेट के . टी . एस . तुलसी बताते हैं कि यह अनोखा मामला है , जब राज्य के सीएम इस तरह धरना दे रहे हैं। पुलिस को पूरी तरह स्वतंत्र होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस रिफॉर्म के लिए कई डायरेक्शन भीदिए हैं। पुलिस डिपार्टमेंट के महत्वपूर्ण पदों पर लोगों की पोस्टिंग के लिए बोर्डके गठन की बात कही गई है। कई राज्यों ने इसे लागू भी किया है। पुलिस के खिलाफ कार्रवाई या उसे अपने अधीन लाने की कवायद समझ से परे है।
   आम आदमी पार्टी का दिल्ली में सत्ता में आने के बाद से समूचा नजरिया मीडिया इवेंट निर्मित करने का है। केजरीवाल सरकार की धुरी भीअन्ना आंदोलन की तरह ही ''मैं सही और सब गलत'' की धारणा है । वे इस नजरिए से सबकोदबाव में लाकर काम करना चाहते हैं। ये लोग अन्ना आंदोलन के दौरान भी अहंकार कीभाषा बोल रहे थे, सरकार में आने के बाद भी अहंकार की भाषा बोल रहे हैं । वे लोकतंत्र को 'मैं' के आधार पर चलाना चाहते हैं जबकि लोकतंत्र 'हम' के आधार पर चलताहै । वे लोकतंत्र में विवेक की कम भीड़ की अविवेकपूर्ण भाषा का ज्यादा इस्तेमाल कररहे हैं । केजरीवाल की प्रशासनिक पद्धति 'पेंडुलम इफेक्ट' के दृष्टिकोण से संचालित है।  यह मूलतः अधिनायकवादी नजरिया है। इसपद्धति का लक्ष्य है 'चट मंगनी पट ब्याह।'
 अरविंद केजरीवाल के नए कारनामों पर 'मीर' का एक शेर याद आ रहा है- ''खुदाजाने क्या होगा अंजाम इसका। मैं वेसब्र इतना हूँ,वोह तुन्दखू है।'' (तुन्दखू यानीउग्र स्वभावी)

Sunday 12 January 2014

मातृ भाषा में काम करने से बेहतर से बेहतर ख्याल अपने दिमाग में आएंगे---सुजेन टालहक

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Saturday 4 January 2014

"आप" और पूंजीपति वर्ग:अजय सिन्हा


 
भारत और पूरे विश्व में जो अंतहीन आर्थिक मंदी फैली है, उसने सभी देशों के पूंजीपति वर्ग को शासन के नए-नए रूपों और नए-नए मुखौटों की बेतहाशा से खोज करने के लिए प्रेरित और बाध्य किया है। पूरी दुनिया के पूंजीवादियों और साम्राज्यवादियों को भावी क्रांति के पदचाप सुनाई देने लगे हैं। वे रातों की नींद और दिन का चैन खो चुके हैं। वे किसी भी तरह से अपनी कब्र खोदने वाले मज़दूर वर्ग को जगने और उसकी विराट क्रांतिकारी ताकत के जाग उठने को रोकना चाहते है। लेकिन हाय रे भाग्य ! उनकी कोई भी कोशिश कामयाब होती नहीं दिख रही है।

भारत में आर्थिक मंदी के दिनों-दिन गहराते जाने की परिस्थिति ने जहां एक तरफ मज़दूरों के श्रम की भयंकर लूट को जन्म दिया और निम्नपूंजीवादी व मंझोले तबकों के भारी पैमाने पर सम्पतिहरण व स्वत्वहरण को जन्म दिया, वहीँ दूसरी तरफ इसने भारत के पूंजीपति वर्ग को नरेंद्र मोदी जैसे फासीवादी को भारत के भाग्यविधाता के रूप में पेश करने के लिए बाध्य किया है जो जनता को धर्म और छदम देशभक्ति के आधार पर बांटने का काम करने के साथ-साथ पूंजीपति वर्ग की भारी लूट को भी बदस्तूर जारी  रख सके …लेकिन इस choice में क्रांति के फूट पड़ने के अपने भारी खतरें हैं, जिससे पूंजीपति वर्ग वाकिफ है। दरअसल पूंजीपति वर्ग के बीच इस बात को लेकर भारी मतभेद दिखाई दे रहा हैं कि मोदी जैसे फासीवादी नेता को आगे बढ़ाकर किसी भी तरह से श्रम की भारी लूट के आधार पर सुपर मुनाफा को बनाए रखा जाए या फिर किसी moderate व्यक्ति, जिसकी छवि ठीक-ठाक हो, को आगे बढ़ाकर बीच का कोई रास्ता निकाला जाए। लेकिन दूसरे option की कल तक दिक्कत यह थी कि भारत में कल तक ऐसी कोई पार्टी और व्यक्ति नहीं था। कांग्रेस, सपा, बसपा, राजद, जद, टीएमसी … सभी जनता की नज़रों में पहले ही गिर चुकी थीं। इस मोड़ पर पूंजीपति वर्ग की सबसे बड़ी आफियत या सुविधा यह थी कि इस बीच मज़दूर वर्ग की ताकतें अत्यंत कमजोर ही बनी रहीं। 


"आप" पार्टी बड़े पूंजीपति वर्ग की सबसे चहेती पार्टी बनकर उभर रही है.…

इस घटनाक्रम के ठीक इसी मोड़ पर सुनियोजित या अप्रत्याशित तौर से "आप" पार्टी और क्षमतावान, आदर्शवादी और वैचारिक तौर पर सबसे कम खतरनाक तथा सुघड़ नेता श्री अरविन्द केजरीवाल के उदय ने पूंजीपति वर्ग के लिए दूसरे options को आज़माना आसान बना दिया है। अरविन्द केजरीवाल और मोदी भारत के बड़े पूंजीपति वर्ग के दो खेमों के प्रतिनिधि हैं, जिसमें अरविन्द केजरीवाल के आदर्शवादी चेहरे व कुछ नया प्रयोग करने वाले व्यक्तित्व और दिल्ली में मिली अपार सफलता से निखरी "आप" पार्टी बड़े पूंजीपति वर्ग की सबसे चहेती पार्टी बनकर उभर रही है.…… यह महज़ कोई संयोग नहीं है कि प्रायः सभी कॉर्पोरेट मीडिया घरानों में "आप" और केजरीवाल की धूम मची है और वे खुलकर "आप" को केंद्रीय सत्ता की असली हकदार बता रहे हैं

इस मोड़ पर मज़दूर वर्ग की ताकतों को सही मूल्यांकन और सही कार्यनीति अपनाने की सख्त जरूरत है...... आप सभी दोस्तों से हार्दिक अपील है कि इस बहस को गम्भीरता के साथ आगे बढ़ाया जाए …… .


  ‘आप’ में शामिल होने के लिए ‘खास’ में मची होड़:

 Ajay Sinha ‘आप’ में शामिल होने के लिए ‘खास’ में मची होड़
आईबीएन-7 | 03-Jan 10:26 AM

कॉरपोरेट जगत से जुड़े कई बड़े नाम पार्टी से जुड़े हैं। रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड की पूर्व अध्यक्ष मीरा सान्याल लंबे अरसे से आम आदमी पार्टी से जुड़ी हैं। मीरा ने दक्षिण मुंबई से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए आवेदन भी किया है। आदर्श, दुनिया की नाम कंपनियों में शुमार एप्पल के पश्चिमी भारत के सेल्स प्रमुख थे। आईटी कंपनी इन्फोसिस के बोर्ड मेंबर वी बालाकृष्णन भी बुधवार को आम आदमी पार्टी के सदस्य बन गए। बालाकृष्णन को इन्फोसिस के संभावित सीईओ के तौर पर देखा जा रहा था।
कॉरपोरेट जगत के अलावा दूसरी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं में आप ज्वाइन करने की होड़ मची है। दिल्ली विश्वविद्यालय की अध्यक्ष रह चुकी अलका लांबा ने कांग्रेस से 20 साल पुराना नाता तोड़ आप का दामन थाम लिया है। लंबे अरसे तक समाजवादी पार्टी की लाल टोपी पहनने वाले कमाल फारुकी को भी आम आदमी की टोपी में नया सबक नजर आ रहा है। बीजेपी के पूर्व एमएलए कानू कलसारिया ने आम आदमी पार्टी का हाथ थाम लिया है।

https://www.facebook.com/ajay.sinha.9699/posts/762252950470960 


मज़दूर वर्ग के सापेक्ष "आप", कांग्रेस और भाजपा तीनों के बीच कहाँ कोई फर्क है ?

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Wednesday 1 January 2014

भारत वह स्थान नहीं,जो उसके सभी संस्थापकों ने सोचा था---गोपाल कृष्ण गांधी

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विद्वान चिंतक और पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी जी भी दिल्ली में केजरीवाल/आप के उभार को शुभ लक्षण नहीं मानते हैं।
दिल्ली की आप सरकार द्वारा  जिनको पानी का कन्सेशन मिलेगा वे सभी समृद्ध लोग होंगे क्योंकि झुग्गी-झोपड़ियों तक तो पानी की पाईप लाईनेन ही नहीं बिछी हैं और बिजली कनेकशन  भी नहीं हैं वह लाभ भी मीटर वाले लोगों को ही मिलेगा गरीबों की बस्तियों में नहीं। 1947 में देश को सांप्रदायिक/साम्राज्यवादी आधार पर विभाजित करके पाकिस्तान की संरचना ब्रिटिश सरकार ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के इशारे पर की थी। अमेरिका हमेशा पाकिस्तान की समप्रभुत्ता का उल्लंघन करता रहा है और अब हमारी बानिज्य राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को गिरफ्तार व अपमानित करके भारत की सम्प्रभुत्ता को भी चुनौती दे रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिकापरस्ती बेनकाब होने के बाद पहले मोदी को आगे किया गया था किन्तु उन पर सांप्रदायिक नर-संहार का ठप्पा लगा होने के कारण 'आप' व केजरीवाल को अमेरिकी साम्राज्यवाद की रक्षा के लिए आगे लाया गया है। अतः कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं एवं नेताओं का यह नैतिक दायित्व था कि इस खतरे से जनता को आगाह करते जिससे आसन्न लोकसभा चुनावों में जनता गुमराह न होती। किन्तु दुखद स्थिति यह है कि बड़े से बड़े कम्युनिस्ट नेता भी 'केजरीवाल/आप' के भ्रमजाल में बुरी तरह उलझ गायें हैं फिर जनता को कौन जाग्रत करेगा?ध्यान रखने की बात थी कि इन्दिरा कांग्रेस का मनमोहन गुट,भाजपा और आप तीनों ही RSS से प्रभावित हैं। अतः सभी कम्युनिस्टों को मिल कर इन शक्तियों का मुक़ाबला करना चाहिए था बजाए 'आप'/केजरीवाल के गुण गाँन करने के। यदि आज आप/केजरीवाल को आगे बढ़ाया गया तो निश्चय ही अर्द्ध-सैनिक तानाशाही स्थापित करने में RSS को सहयोग मिलेगा। 1980 के बाद से RSS के लोग अनेक दलों में घुस चुके हैं। जबकि कम्युनिस्ट बिखरे हुये हैं। उस स्थिति में 'हिंसक' आंदोलन की ही गुंजाईश बचेगी जो कि लोकतन्त्र के लिए कैसे शुभ रहेगा?



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर