Saturday 23 March 2013

स्मरणगोष्ठी - भगत सिंह की शहादत ---विजय राजबली माथुर

लखनऊ,23 मार्च,2013---आज साँय तीन बजे 22,क़ैसर बाग स्थित भाकपा कार्यालय पर ज़िला काउंसिल,लखनऊ की ओर से अमर शहीद भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव की शहादत पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमे मुख्य अतिथि के तौर पर राज्य सचिव डॉ गिरीश की उपस्थित विशेष उल्लेखनीय रही। मुख्य वक्ता के रूप मे कामरेड प्रदीप तिवारी ने विषय प्रवर्तन करते हुये भगत सिंह की आज भी प्रासंगिकता होने को रेखांकित किया। उन्होने इस संदर्भ मे वेनेजुएला के दिवंगत राष्ट्रपति कामरेड शावेज का उदाहरण दिया कि उन्होने अपने देश मे भगत सिंह की नीतियों पर चल कर ही कामयाबी हासिल की थी। उनके बाद जिलमंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़,  सर्व कामरेड सचान,कल्पना पांडे, सुधाकर,अकरम,महेंद्र रावत आदि ने भी अपनी श्रद्धांजली भगत सिंह आदि क्रांतिकारियों को दी। गोष्ठी के प्रारम्भ मे सभी कामरेड्स ने  कामरेड भगत सिंह एवं  कामरेड शावेज के चित्रों पर पुष्पांजली भी अर्पित की।

कामरेड डॉ गिरीश के निर्देश पर  कामरेड संचालक ने कामरेड  विजय राजबली  माथुर को बोलने को कहा। कामरेड विजय राजबली माथुर ने डॉ गिरीश,तिवारी जी,ख़ालिक़ साहब को धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कि उन्हे बोलने का अवसर प्रदान किया गया बताया कि,82 वर्ष पूर्व ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को आज ही के दिन फांसी दे दी थी। लेकिन भगत सिंह को असेंबली मे बम फेंक कर फांसी पर क्यों झूलना पड़ा  यह जानना और याद रखना भी ज़रूरी है। उन्होने साथियों को याद दिलाया कि ब्रिटिश  सरकार द्वारा  मिलों मे काम करने वाले मजदूरों के हकों को कुचलने के लिए आर्डिनेंस जारी किया गया था और असेंबली मे बैठे भारतीय  प्रतिनिधि मूक-दर्शक बने हुये थे। गांधी जी का सत्याग्रह इन मजदूरों के हक मे नहीं किया जा रहा था और ऐसा लग रहा था कि गांधी जी ब्रिटिश साम्राज्यवाद का हित साध रहे हैं। इसलिए क्रांतिकारियों ने देश की जनता को जाग्रत करने और असेंबली का ध्यान मजदूरों के अधिकारों की ओर खींचने के लिए असेंबली मे 'धूम्र बम'फेंकने का निश्चय किया था। वह बम आगरा के नूरी गेट (जो अब शहीद भगत सिंह द्वार कहलाता है और यहाँ बूरा मार्केट है )तैयार किया गया था। कानपुर और झांसी दोनों ओर के क्रांतिकारियों का आगरा पहुँचना सुगम था इसलिए क्रांतिकारियों का जमाव आगरा मे हुआ था। आगरा से दिल्ली-बंबई का भी रेल तथा सड़क मार्ग सुगम था। बटुकेश्वर दत्त (जिनकी एकमात्र पुत्री श्रीमती भारती बागची 13 वर्ष की आयु मे पिता का साया उठने के बाद कड़े संघर्ष द्वारा अब  पटना के मगध महिला महा विद्यालय मे कामर्स की विभागाध्यक्ष हैं)ने अदालत मे सिद्ध किया था कि उन लोगों ने वैज्ञानिक आधार पर 'बम' को इस प्रकार बनाया था कि वह केवल धमाका करे और धुआँ हो उससे जन-हानि की कोई संभावना नहीं थी फिर भी उन लोगों ने खाली स्थान पर ही उसका फिस्फोट किया था। सजा सुनाने वाले ब्रिटिश जज मिस्टर एस फोर्ड ने फैसले मे लिखा है कि भगत सिंह और उनके साथी बिलकुल ठीक कह रहे हैं कि इस समाज को तोड़े बगैर जन-कल्याण की उम्मीद नहीं की जा सकती। किन्तु इनको मृत्यु दंड देना उनकी मजबूरी थी। NCERT की सरकारी किताबों मे भगत सिंह को आतंकवादी बताए जाने की तथा नक्सलाईट्स द्वारा उनकी खुद से तुलना किए जाने को कामरेड माथुर ने गलत बताया। उन्होने 1967 मे हुये नक्सल बाड़ी आंदोलन का हवाला देते हुये बताया कि उस समय वह सिलीगुड़ी मे उस स्थान से 08 मील दूर थे और खुद देखा था कि इससे मारवाड़ियों/व्यापारियों को ही लाभ हुआ था जिनको नुकसान से ज़्यादा इंश्योरेंस क्लेम मिल गया था। स्थानीय बंगालियों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा था। कामरेड माथुर का विचार था कि हम लोगों को भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों का स्मरण एक सत्संग के रूप मे नहीं वरन जनता के बीच जा कर,स्कूलों और कालेजों मे करना चाहिए और लोगों को बताना चाहिए कि ये लोग क्यों शहीद हुये ,आम जनता के लिए वे क्या चाहते थे।

अपने सम्बोधन मे कामरेड डॉ गिरीश ने आशा व्यक्त की कि आगे से हम जनता के बीच मे इस प्रकार के कार्यक्रम कर सकेंगे और जनता को अपने हक समझा सकेंगे। उन्होने स्वीकार किया कि नकसलाईट्स तथा भाजपाई भी भगत सिंह को अपने रंग मे रंगने का प्रयास करते हैं। किन्तु भगत सिंह मात्र क्रांतिकारी ही नहीं महान दार्शनिक भी थे उन्होने अपने अध्यन  द्वारा निष्कर्ष निकाल कर ढाई पृष्ठीय पुस्तिका मे पहले ही सांप्रदायिक समस्या को देश के लिए घातक बता दिया था। उन्होने कहा था कि हिंसा करना उनका उद्देश्य नहीं है वे तो जनता को जाग्रत करना व आतताई ब्रिटिश हुकूमत को ही हटाना मात्र नहीं चाहते थे वरन भविष्य के लिए यह भी सुनिश्चित करना चाहते थे कि 'मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण' सदा के लिए समाप्त हो जाये। वह पक्के साम्यवादी थे। कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन-नौजवान सभा के मातृ संगठन 'भारत नौजवान सभा' का गठन भगत सिंह की प्रेरणा से ही हुआ था और इसका संविधान उन्होने ही लिखा था। उन्होने 'मैं नास्तिक क्यों'और 'हाँ मैं कम्युनिस्ट हूँ' पुस्तिकाएँ भी लिखी हैं। डॉ गिरीश ने स्पष्ट किया कि जब सोवियत रूस मे कम्यूनिज़्म का पतन हो चुका था तब 1998 मे सत्ता प्राप्ति बाद कामरेड शावेज ने अमेरिका को ज़बरदस्त चुनौती दी और अपने देश मे तेल के कुओं का राष्ट्रीयकरण करके अमेरिकी शोषण को बंद कर दिया। वहाँ आज जनता मे कोई भी अशिक्षित नहीं है और न ही कोई भूखा है। यह सब भगत सिंह द्वारा बताई नीतियों पर ही अमल करने का परिणाम है अतः भगत सिंह हमारे आज भी आदर्श हैं। उन्होने स्वीकार किया कि पहले हम लोगों ने भगत सिंह को आगे न रख कर जो गलती की उसे अब नहीं दोहराएंगे। उन्होने संकेत दिया कि भगत सिंह की नीतियों को सार्वजनिक रूप से जनता को समझाने के कार्यक्रम भाकपा द्वारा चलाये जाएँगे। आज जनता मे व्यवस्था के प्रति जो निराशा व हताशा है उसके लिए वह आशा भारी निगाहों से हमारी पार्टी की ओर ही देख रही है और हम उसे पूरा करेंगे। डॉ गिरीश ने बताया कि गांधी जी ने 'बम की पूजा' शीर्षक पर्चा लिख कर भगत सिंह का मखौल उड़ाया था जिसका जवाब भगत सिंह ने 'बम का दर्शन' नामक पर्चा लिख कर दिया था। हम लोगों को भगत सिंह का साहित्य लेकर जनता के बीच मे जाना होगा।

जिलमंत्री के आग्रह पर  बोलते हुये संचालक कामरेड ओ पी अवस्थी ने कहा कि आज जब साप्रदायिक शक्तियों का संकट गहरा गया है  हमे भगत सिंह के बताए मार्ग का अनुसरण करने पर ही उसका निदान मिल सकता है। कामरेड मुख्तार अहमद ने कहा कि गांधी जी भगत सिंह आदि की सजा माफ करा सकते थे,अंग्रेजों को भी ऐसा अंदाज़ा था लेकिन गांधी जी ने ऐसा नहीं किया जो इन क्रांतिकारियों के प्रति उनकी ना इंसाफ़ी थी। कामरेड जिलमंत्री द्वारा सभी साथियों विशेष कर कामरेड  डॉ गिरीश व प्रदीप तिवारी के प्रति आभार व्यक्त करते हुये धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी का समापन हुआ।

(रिपोर्ट प्रस्तोता-विजय राजबली माथुर )





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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Friday 22 March 2013

जल ही जीवन है ---विजय राजबली माथुर

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Hindustan-Lucknow-31/03/2012

वैज्ञानिक विकासक्रम मे जल की उत्पत्ति के बाद ही प्राणियों के अस्तित्व की बात आती है।करोडों  वर्ष पूर्व जब पृथ्वी की सतह ठंडी होने पर तमाम गैसों की वर्षा हुई उस दौरान ही हाईड्रोजन के दू भाग व आक्सीजन का एक भाग मिलने से 'जल' की उत्पत्ति हुई। उसके काफी बाद वनस्पती और फिर प्राणियों की उत्पत्ति हुई। दस लाख वर्ष पूर्व मानव का यह स्वरूप सामने आया था जो आज है। 'मनन' करने के कारण हम मनुष्य कहलाए थे किन्तु आज मनन का नितांत आभाव है और यही कारण मनुष्यता के ही संकट का नहीं समस्त प्राणियों व वनस्पतियों के भी संकट का हेतु है। जिस प्रकार एक प्रतिशत धनवानों द्वारा प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का 99 प्रतिशत दुरुपयोग किया जा रहा है उनमे 'जल' का प्रमुख स्थान है। आने वाला समय अगली पीढ़ियों के लिए जलाभाव के संकट का होगा। यदि अपनी मनुष्यता को 'मनन' के प्रयोग से बचना है तो अब अविलंब 'जल' के महत्व को समझना चाहिए। जल का अनावश्यक दुरुपयोग तत्काल रोका जाये तभी अंतर्राष्ट्रीय 'जल दिवस' मनाने का महत्व सार्थक हो सकता है।
 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Wednesday 20 March 2013

हिन्दू शब्द -फेसबुक पर

Vijai RajBali Mathur 'हिन्दू' शब्द 'हिंसा' से बना है अतः हिंदुओं मे 'हिंसा'=मनसा-वाचा-कर्मणा करने वालों को पूजा जाना आश्चर्य जनक नहीं है। 23 hours ago · Like · 1


Vijai RajBali Mathur सर्व प्रथम बौद्धों ने अपने मठों/विहारों/ग्रन्थों को जलाने/नष्ट करने वालों को यह संज्ञा दी थी फिर फारसियों ने एक गंदी और भद्दी गाली के रूप मे इस शब्द का प्रयोग इस देश के लोगों को निकृष्ट सिद्ध करने के लिए किया था और ब्रिटिश हुकूमत के हक मे पूर्व क्रांतिकारी सावरकर महोदय ने इसे प्रचारित करा दिया। क्यों नहीं 'श्रेष्ठ' ='आर्य'बनने की बात करते?गुलामी के प्रतीकोण से प्रेम क्यों?
23 hours ago · Like · 2

Vijai RajBali Mathur जनाब आप ही क्यों न पढे इसे-http://madhyabharat.net/archives.asp?NewsID=179

madhyabharat.net
Madan Sharma यह बात सही है कि विदेशी भाषा में हिंदू शब्द का अर्थ चोर डाकू व् लुटेरा है ...किन्तु हम अपने शब्दों के लिए विदेशी शब्दकोष क्यों देखते है ....हिंदी भाषा में बहुत से ऐसे शब्द है जिनका अर्थ विदेशी भाषा में कुछ और है ...यह भी बात सही है कि हिंदू शब्द का यदि व्याकरण द्वारा अर्थ किया जाय तो यह हिंसावाची शब्द सिद्ध होता है ... आज व्यवहारिक पक्ष यही है कि हिंदू शब्द का अर्थ है हिंद के निवासी ..यदि अन्य मत वाले अपने को हिंदू ना माने तो य अलग बात है ...ये उनकी समस्या है ....आज सरकारी रूप से वैदिक धर्म या सनातन धर्म का ही रूप हिंदू धर्म है ये अलग बहस कि बात है ....मुख्य रूप से देखा जाय तो हम वैदिक धर्मी अर्थात वेद के अनुसार आचरण करने वाले लोग हैं ....आज वेद व अन्य आर्ष गर्न्थों कि गलत व्याख्या व अवैज्ञानिक विचारों पर आधारित पुराणों कि वजह से हमें अन्य धर्मावलंबियो के सामने पराजय का सामना करना पड़ता है .....सिर्फ एक आर्य समाज ही है जो वेद के आधार पर अन्य मतावलंबियों को मुह तोड़ उत्तर दे सकती है ...
विश्वप्रिय वेदानुरागी हिन्दू संस्कृत का शब्द नहीं है , राम कृष्ण व्यास पतंजलि हनुमान हिन्दू नहीं थे , किसी शास्त्र में हिन्दू शब्द नहीं है

  • विश्वप्रिय वेदानुरागी हिन्दू का एक संक्षिप्तिकरण देखिये :- “हि” “न्” “दु”
    “हि” अर्थात् हित ना करे वह
    “न्” अर्थात् न्याय ना करे वह
    “दु” अर्थात् दुष्टता करे वह

    और इसका प्रमाण निम्न श्लोक है :-
    हिन्दू शब्द की एक और व्याख्या देखिये जिसमें हिन्दू शब्द का निन्दित अर्थ दिया गया है |
    हितम् न्यायम् न कुर्याद्यो
    दुष्टतामेव आचरेत्
    स पापात्मा स दुष्टात्मा
    हिन्दू इत्युच्यते बुधै:||३/२१||
    आत्मानम् यो वदेत् हिन्दू
    स याति अधमां गतिम् |
    दृष्ट्वा स्पृष्ट्वा तु त हिन्दुं
    सद्य: स्नानमुपाचरेत् ||७/४७||
    हिंकारेण परीहार्य:
    नकारेण निषेधयेत् |
    दुत्कारेण विलोप्तव्य:
    यस्स हिन्दू सदास्मरेत् ||९/१२||
    इति कात्थक्य: शिवस्मृतौ



    शिव स्मृति
    (जो हित और न्याय ना करे, दुष्टता का आचरण करे, वह पापी, वह दुष्टात्मा हिन्दू कहलाते हैं)
    (जो व्यक्ति अपने आप को हिन्दू कहता है वह अधम गति को प्राप्त होता है और ऐसे हिन्दू को देख कर स्पर्श कर शीघ्र ही स्नान करें)
    (हिं हिं करके जिसका परिहार करना चाहिए, न न करके जिसका निषेध करना चाहिए, दूत् दूत् करके जिसे दूर भगाना (नष्ट कर देना) चाहिए वही हिन्दू है इसे सदा याद रखें)

  • Madan Sharma धन्यवाद विश्वप्रिय वेदानुरागी जी इतनी सुन्दर जानकारी के लिए .....किन्तु यह विडंबना है कि हम चाह कर भी खुद को हिंदू शब्द से अलग नहीं रख सकते .....

  • ज्ञान चंद आर्य आदरनीय विश्वप्रिय वेदानुरागी जी ने बिल्कुल सही कहा है और जो प्रमाण उन्होने दीये हैं वो भी सराहनीय हैं इतना सब होते हुए भी अपने आप को हिंदू कहलवाना हमारी विवशता बन चुका है अभी पिछले दिनों जनगणना हुई थी उसमें या तो अपने धर्म का नाम हिंदू लिखवाओ या फिर अन्य उनके यहाँ यहाँ रजिस्टर में ऐसा कोई खाना नही है जिसमे अपने धर्म का नाम वैदिक लिखवाया जा सके 

    यहाँ भी स्पष्ट है---
     
    http://madhyabharat.net/archives.asp?NewsID=179

Monday 18 March 2013

जन-विरोधियों से सतर्क रहें---विजय राजबली माथुर

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हिंदुस्तान,लखनऊ,दिनांक-15 मार्च,2013 मे प्रकाशित समाचार---



11 मार्च,2013 को प्रकाशित समाचार मे मौसम विभाग की आशंका प्रकाशित हुई थी जो ज्योतिष के आंकलन के अनुरूप ही थी और 15 मार्च को प्रकाशित समाचार द्वारा उसके सही सिद्ध होने की पुष्टि भी हो गई। 'कोटा',राजस्थान के जिन महान ज्ञाता की टिप्पणी उस सूचना के विरुद्ध आई थी उनके राजस्थान मे भी तेज़ आंधी और बारिश होने की सूचना फेसबुक पर वहीं के लोगों ने दी थी और 'मोहाली' मे तो क्रिकेट मैच भी बारिश के कारण स्थगित करना पड़ा था। तथाकथित प्रगतिशील/वैज्ञानिक विद्वान वास्तव मे पोंगापंथियों/शोषकों के उत्पीड़न और शोषण पर पर्दा डालने हेतु ही जनता को वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं होने देना चाहते हैं तभी जागरूकता के प्रयासों की निंदा व विरोध करते हैं। इन जन-विरोधी लोगों से सदा ही सतर्क रहना चाहिए। 

(संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर)

Friday 15 March 2013

हमारी मांग व उसकी वजहों को देश के दूसरे हिस्सों में रखें।---ईरोम शर्मीला चानू

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 गांधीवादी आंदोलन कर्ता-ईरोम शर्मिला चानू को 40 वे जन्मदिन पर सरकार का तोहफा-पुनः गिरफ्तारी ---




 14 मार्च 2013 को लखनऊ मे विधानसभा पर 'धरना कार्यक्रम'मे बोलते हुये-वंदना मिश्रा(PUCL),सामने  बैठे हुए बाएँ से दायें-कान्ति मिश्रा (CPI),ताहिरा हसन (वरिष्ठ पत्रकार),सीमा चंद्रा (AISA)।



 (हिंदुस्तान,लखनऊ,15 मार्च 2013)
 Photo: मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा आज साँय चार बजे से छह बजे तक ईरोम शर्मिला जी की मांगों के समर्थन मे लखनऊ मे विधानसभा पर धरना  दिया जाएगा।
( हिंदुस्तान,लखनऊ,14 मार्च 2013 )


 
http://www.livehindustan.com/news/editorial/rubaru/article1-story-57-61-315354.html

 
 
जब तक जान है, तब तक संघर्ष करती रहूंगी
First Published:09-03-13 07:32 PM
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दुर्बल काया, चेहरे पर बार-बार आते घुंघराले बाल, निगाहें थकी हुईं, पर मानों किसी चीज को भेद रही हों, नाक पर मेडिकल टेप चिपकी हुई और ‘फोस्र्ड फीडिंग’ के लिए नाक के अंदर नली- इरोम शर्मिला चानू को देखने के बाद कोई भी उनके साहस, दृढ़-निश्चय और आत्म-विश्वास को नहीं भांप सकता। पर उनकी यही खूबियां उन्हें आयरन लेडी ऑफ मणिपुर बनाती हैं और दुनिया में सबसे अधिक दिनों तक भूख-हड़ताल पर बैठने वाली इंसान। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून, जिस पर पूर्वोत्तर में इंसानी जिंदगी को बदतर बनाने का आरोप है, के खिलाफ उनकी अहिंसात्मक लड़ाई आज भी जारी है। पिछले दिनों जब वह दिल्ली आईं, तो प्रवीण प्रभाकर ने उनसे बातचीत की। बातचीत के अंश-
चार नवंबर, 2000 से अब तक, कोई साढ़े 12 साल से आप भूख-हड़ताल पर बैठी हैं। क्या आपको अंदाजा था कि यह लड़ाई लंबी खिंचती ही जाएगी?
मैं मानती हूं कि ये साढ़े 12 साल और आगे न जाने कितने साल बस मेरे भूख-हड़ताल से ही नहीं जुड़े हैं। यह सत्याग्रह है। यह अहिंसात्मक संघर्ष है। यह शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन है। यह बापू के सिद्धांतों पर अमल है। यह सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून का विरोध है। समझिए तो यह सशस्त्र बलों की ज्यादतियों के खिलाफ जनता का आंदोलन है। यह मानवाधिकार को पाने की लड़ाई है। मैं जो मांग कर रही हूं, वही मणिपुर की मांग है। यह हमारे आत्म-सम्मान की मांग है। जब मैं फास्ट पर बैठी थी, तब यह विचार नहीं किया था कि लड़ाई कब तक चलेगी, तो फिर आज क्यों सोचूं? इसलिए कि आपके संघर्ष के गिने-चुने नतीजे ही सामने आए हैं। एक बड़ा फायदा यह जरूर हुआ कि इस मसले को राष्ट्रीय पहचान मिली। लेकिन इन एक-दो फायदों का क्या हासिल है?
आपके कहने का मतलब शायद यह है कि केंद्र सरकार ने अब तक सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को समाप्त नहीं किया है। ऐसा क्यों? यही तो मैं भी सवाल कर रही हूं और इसे कानून के इस्तेमाल के विरुद्ध ही मेरा संघर्ष है। जहां तक मैं समझती हूं, एक तरफ तो व्यवस्था गांधीजी के सिद्धांतों पर चलने की बात करती है, दूसरी तरफ, उसे हमारे अहिंसात्मक संघर्ष से विशेष फर्क नहीं पड़ता, नो रिस्पॉन्स। ऐसे में, आपका यह संघर्ष कब तक चलता रहेगा?
जब तक शरीर में सांस है। इस देह को एक-न-एक दिन मिट जाना है। अगर मैं अपनी माटी के लिए कुछ कर सकूं, तो मैं समझूंगी कि मेरी जिंदगी समाज के काम आई। हमारे देश में लोकतंत्र है। इसलिए जनता की जीत होगी। आज नहीं, तो कल होगी। लेकिन जब जीत होगी, तब समाज पर बहुत अच्छा असर पड़ेगा। मैंने अपनी जिंदगी एक महान उद्देश्य के लिए समर्पित कर दी है। एक सामान्य और खुशहाल जिंदगी जीने की मेरी तमन्ना है। मणिपुर के लोग चाहते हैं कि वे डर और आतंक के माहौल से छुटकारा पाएं। इसलिए मेरी लड़ाई जनता के लिए है, खासकर उन राज्यों की जनता के लिए, जो सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के इस्तेमाल से पीड़ित हैं। लेकिन आपने आमरण अनशन का ही फैसला क्यों किया? अपनी मांग मनवाने के लिए दूसरे अहिंसक रास्ते आप अपना सकती थीं?
मेरे पास यही एक रास्ता था। वैसे भी भूख-हड़ताल सबसे शुद्ध अहिंसक माध्यम है, यह आध्यात्मिकता पर आधारित है। मैं शांतिपूर्ण रैलियों में हिस्सा लेती थी। 2000 की बात है। मालोम में मैंने अखबारों के पहले पन्ने पर दिल दहला देने वाली तस्वीरें (मालोम नरसंहार की तस्वीरें) देखीं। जब भी वे तस्वीरें याद आती हैं, मुझे अपना फैसला सही लगता है।  आप जिस कानून को हटाने की बात करती हैं, उसी के बल पर मणिपुर जैसे राज्यों में कानून-व्यवस्था कायम है। फौज के लोग यही बताते हैं। सरकार भी यही कहती है।
और जो लोगों के बीच डर का माहौल है, उसका क्या? कितने बेगुनाह लोग मारे गए, उनका कोई हिसाब-किताब है? उनके परिजनों पर क्या गुजरी होगी? इस कानून के आड़ में लड़कियों के जीवन के साथ खिलवाड़ होता है। तमाम रिपोर्ट पलटिए, वहां की खबरों पर गौर कीजिए, मानवाधिकार के लिए काम कर रहे संगठनों से आंकड़े जुटाइए, सब साफ हो जाएगा। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस विशेषाधिकार कानून का क्या मतलब है? क्यों हमें दूसरों से अलग करके देखा जाता है? जबकि ईश्वर ने सबको बराबर बनाया है। भारतीय संविधान ने सबको बराबरी का हक दिया है। लेकिन जो भूमिगत संगठन वहां बगावत फैला रहे हैं, बम विस्फोट को अंजाम दे रहे हैं, उन्हें रोकना भी तो जरूरी है।
आप इन्सरजेंसी की ही बात कर रहे हैं न! मैं अहिंसा की पुजारी हूं। किसी भी तरह की हिंसा की मैं आलोचना करती हूं। जिन्हें जो करना है, वे अहिंसक तरीके से करें। आम इंसानों का खून बहाकर किसी को कुछ भी हासिल नहीं होगा। सरकार को लगता है कि आपका अनशन आत्महत्या की कोशिश है। हमें लगता है कि आप खुद को यातना दे रही हैं। आप क्या कहना चाहेंगी?
मुझे अपनी जिंदगी से प्यार है। मैं नहीं मरना चाहती। न ही मैंने आत्महत्या की कोशिश की। आपलोग भी यह मत सोचें कि मैं खुद को यातना दे रही हूं। यह कोई दंड नहीं है, बल्कि यह तो मेरा कर्तव्य है। आप लोग भी हमारी आवाज को बुलंद करें। हमारी मांग व उसकी वजहों को देश के दूसरे हिस्सों में रखें।


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Thursday 7 March 2013

जनता को सतत जागरूक रहना होगा ---विजय राजबली माथुर

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हिंदुस्तान,लखनऊ,दिनांक 07 मार्च,2013 मे प्रकाशित समाचार और इस आलेख से ज्ञात होता है कि,धन के पुजारी अर्थात पूंजीपति/व्यापारी अपने अवैध धंधे के संरक्षण हेतु ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को 'हत्या' तक करके रास्ते से हटा देते हैं तथा उनको सत्ता का भी सहयोग मिल जाता है-चाहे मध्य प्रदेश का भाजपा शासन हो चाहे उत्तर प्रदेश का सपा शासन। 

लेकिन यदि जनता मनसा-वाचा-कर्मणा संगठित हो जाये तो शासन और शोषक व्यापारियों के गठजोड़ को ध्वस्त कर सकती है। इसीलिए सत्ता/व्यापारी /पुजारी सभी मिल कर जनता को विभिन्न जतियों/संप्रदायों और अधर्मों के खांचों मे विभाजित करते रहते हैं जिससी उनका शोषण और लूट अबाध रूप से जारी रह सके। वास्तविक जन-हितैषियों का यह गुरुतर दायित्व है कि वे जनता को इसके प्रति सतत जागरूक करते रहें।

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Saturday 2 March 2013

गरीबों के हक पर सरकार का डाका

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Hindustan-lucknow-02/03/2013





2013-14 का जो बजट लोकसभा मे पेश हुआ है और उसके जो ब्यौरे हिंदुस्तान,लखनऊ के 02 मार्च के अंक मे छपे हैं उनके अनुसार सार्वजनिक चिकित्सा का खर्च कम हुआ है और जनता को दी जाने वाली सहायता मे कटौती हुई है। सोने और हीरों के आयात पर टैक्स मे छूट के चलते वर्ष 2012-13 मे सरकारी खजाने को 61035 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान है। यह कुल राजस्व हानि का 20 .5 प्रतिशत है जो सर्वाधिक है। पिछले वर्ष भी इस मद मे 65975 करोड़ रुपए की राजस्व हानि हुई थी।

सोने और हीरे के आयात पर होने वाली हानि पेट्रोलियम उत्पाद तथा कच्चे तेल चलते होने वाली राजस्व हानि से अधिक है। कच्चे तेल के आयात से वित्त वर्ष 2012-13 मे 57752 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान। 

 श्री ए के शिव कुमार,सदस्य-राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का कहना है कि,"अगर बढ़ती मंहगाई के हिसाब से आंकलन करें,तो इस बजट मे स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जो प्रावधान किया गया है,वह पिछले साल से भी कम है"। वह कहते हैं कि हमारी स्वास्थ्य सेवा की जितनी भी खामियान हैं,उनका मूल कारण यही है कि स्वास्थ्य क्षेत्र पर सार्वजनिक खर्च बहुत ही कम है। उनका कहना है कि,"हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वास्थ्य रक्षा सार्वजनिक हित से जुड़ा मसला है"। ......"प्राथमिक स्वास्थ्य की अनदेखी मंहगी पड़ सकती है"।   


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर