Thursday 28 February 2013

स्वतन्त्रता सेनानी-गीतकार इंदीवर का पुण्य तिथि पर स्मरण

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 उपरोक्त स्कैन साप्ताहिक 'विश्व विधायक',13 फरवरी,2013 अंक के पृष्ठ-5 का है । इस लेख के रचयिता श्री महेंद्र भीष्म निवासी:डी-5,बटलर पैलेस आफ़ीसर्स कालोनी,लखनऊ-226001 हैं।

लेखक ने बताया है कि,15 अगस्त ,1924 को जन्मे इंदीवर जी का मूल नाम 'श्याम लाल बाबू राय' है और वह स्वाधीनता संघर्ष मे कई बार जेल भी गए थे। वह तब 'श्याम लाल आज़ाद' के नाम से कवि सम्मेलनों मे भाग लेते थे। 'ओ किराएदारों कर दो मकान खाली' कविता के वाचन पर भी उनको जेल यात्रा करनी पड़ी थी। देश की स्वतन्त्रता के 20 वर्ष बाद उनको 'स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी' का दर्जा दिया गया था।
इस लेख मे बताया गया है कि,इंदीवर जी ने अनेक लोकप्रिय गीतों की रचना की है जिनमे प्रमुख ये हैं-
'कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे','मेरे देश की धरती सोना उगले','दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा','दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है','रूप सुहाना लगता है' आदि।

महेंद्र भीष्म जी एवं 'विश्व विधायक' साप्ताहिक समाचार पत्र का आभार है जो आप तक 'इंदीवर जी की पुण्य तिथि' पर उनका स्मरण पहुंचाया जा सका। 








 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Thursday 21 February 2013

हाय रे पैसे ---मोहम्मद ख़ालिक़

हाय रे पैसे,हाय रे पैसे 
कहें तो क्या कहें?किस से 
सभी हैं एक ही के हिस्से 
कोई है नहीं जुदा हमसे
क्या कार वाले क्या जहाज वाले 
क्या जो चलाते हैं रिक्शे 
सभी की आँखों मे हैं,एक ही नक्शे 
हाय रे पैसे,हाय रे पैसे 
जीवन मे पैसे,पैसे हैं 
फिर भी हैं कम,पैसे 
दौलत भरी हो खान मे फिर भी कम हैं पैसे 
पैसे से चिपक जाएंगी जब ज़िंदगी ऐसे 
होगा मनुष्य का कल्याण फिर कैसे?
हाय रे पैसे,हाय रे पैसे । ।  

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कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़

(कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ इस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , लखनऊ के ज़िला मंत्री हैं। उन्होने एक साक्षात्कार मेअपने उपरोक्त उद्गारों को व्यक्त करते हुये बताया कि जब वह छ्ठवी /सातवी कक्षा मे पढ़ते थे तब एक गरीब सहपाठी की उपेक्षा देख कर उनके मन मे ये विचार आए थे जिनको अक्सर वह लोगों से साझा करते रहते हैं।) उन्होने पार्टी को एक यह नारा भी दिया है-

निशान हो हँसिया बाली 

और झण्डा हो लाल 

खुशहाली से हम भी जिये 

जिये हमारे लाल । ।


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Wednesday 20 February 2013

खाड़ी युद्ध के भारत पर घातक परिणाम---विजय राजबली माथुर

20 फरवरी ईराक पर द्वितीय आक्रमण की वर्षगांठ पर विशेष-
दुर्भाग्य से 17 जनवरी 1991 की प्रातः खाड़ी मे अमेरिका नेपहली बार युद्ध छेड़  दिया था । दोषी ईराक था अथवा अमेरिका इस विषय मे मतभेद हो सकते हैं। परन्तु अमेरिकी कारवाई न्यायसंगत न होकर निजी स्वार्थ से प्रेरित थी यह हकीकत है। जार्ज बुश (जो तेल कंपनियों मे नौकरी कर चुके थे ) अनेकों बार ईराकी सेना को नष्ट करने की धम्की दे चुके थे। उनके पूर्ववर्ती रोनाल्ड रीगन लीबिया के कर्नल गद्दाफ़ी को नष्ट करने का असफल प्रयास कर चुके थे और जिसे बाराक ओबामा ने पूरा किया। बुश पनामा के राष्ट्रपति का अपहरण करने मे कामयाब रहे थे। ईराक पर अमेरिकी आक्रमण का उद्देश्य कुवैत को मुक्त  कराना नहीं अमेरिकी साम्राज्यवाद को पुख्ता कराना था।

जब खाड़ी समस्या प्रारम्भ हुई तो वी पी सरकार के कुशल कदम से ईराक और कुवैत मे फंसे भारतीयों को स्वदेश ले आया गया। परन्तु जब युद्ध के बादल मंडराने लगे तो राजीव गांधी-समर्थित चंद्रशेखर सरकार ने खाड़ी क्षेत्र मे फंसे 12-13 लाख भारतीयों को स्वदेश लाने का कोई प्रयत्न नहीं किया। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सफाई देते रहे थे कि वे प्रवासी भारतीय लौटना नहीं चाहते थे और  युद्ध काल मे उन्हें बुलाया नहीं जा सकता था ।

युद्ध का लाभ-

एक ओर जहां लाखों भारतीयों का जीवन दांव पर लगा था । हमारे देश के जमाखोर व्यापारी खाड़ी संकट की आड़ मे खाद्यान ,खाद्य-तेल और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ा कर अपना काला व्यापार बढ़ा कर लाभ उठाने मे लगे हुये थे । प्रधानमंत्री कोरी धमकियाँ दाग कर जनता को दिलासा दे रहे थे । बाज़ार मे कीमतें आसमान छू रही थीं और आज तो और भी भीषण अवस्था हो गई है । राशन की दुकानों मे चीनी और गेंहू चिराग लेकर ढूँढने से भी नहीं मिल रहा था।

गरीब जनता विशेष कर रोज़ कमाने-खाने वाले भुखमरी के कगार पर पहुँच थे । सरकार एय्याशी मे व्यस्त थी । उप-प्रधानमंत्री और किसानों के तथाकथित ताऊ चौ. देवीलाल कहते थे  मंहगाई बढ़ाना उनकी सरकार का लक्ष्य है जिससे किसानों को लाभ हो। वह सोने के मुकुट और चांदी की छड़ियाँ लेकर अट्हास कर रहे थे और आज उनके बेटा व पोता जेलों मे हैं।

लुटेरा कौन?

लेकिन निश्चित रूप से बढ़ती हुई कीमतों का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा था और न आज ही मिल रहा है। किसान कम दाम पर फसल उगते ही व्यापारियों को बेच देता था/ है। जमाखोर व्यापारी कृत्रिम आभाव पैदा कर जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहे थे/ हैं और उन्हें सरकारी संरक्षण मिला हुआ था/ है।

गाँव के कृषि मजदूर को राशन मे उपलब्ध गेंहू नहीं मिल रहा ,अधिक दाम देकर वह खरीद नहीं सकता। खेतिहर  मजदूर भूखा रह कर मौत के निकट पहुँच रहा था/है। प्रदेश और केंद्र की सरकारें अपना अस्तित्व बचाने के लिए पूँजीपतियों के आगे घुटने टेके हुये तब भी थीं और आज भी हैं। पूंजीपति वर्ग और व्यापारी वर्ग मिल कर जनता का शोषण कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं और गरीब जनता को भूखा मारने की तैयारी कर रहे हैं और वह भी सरकारी संरक्षण मे।

भूखे भजन होही न गोपाला- 

मध्यम वर्गीय जमाखोर व्यापारियों की पार्टी भाजपा हिन्दुत्व की ठेकेदार बन कर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम का दुरुपयोग कर जनता को बेवकूफ बनाने मे लगी हुई तब भी थी और आज फिर 2014 के चुनावों मे वही तीर छोड़ रही है उसका उद्देश्य जनता को गुमराह कर व्यापारियों की सत्ता कायम करना है। उधर पूँजीपतियों की पार्टी इंका अवसरवादी सरकारों को टिका कर शोषक वर्ग की सेवा कर रही है। ये दोनों पार्टियां मण्डल आयोग द्वारा घोषित पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की विरोधी हैं इसलिए मंदिर-मस्जिद के थोथे  झगड़े खड़े करके भूखी,त्रस्त जनता को आपस मे लड़ा कर मार देना चाहती हैं।

क्रान्ति होगी-

इन हालात के चलते तो निश्चय ही शोषित ,दमित,पीड़ित और भूखी जनता  को एक न एक दिन (चाहे वह जब भी आए)भारत मे भी वैसी ही 'क्रान्ति'कर देनी होगी  जैसी 1917 मे रूस मे और 1949 मे चीन की भूखी जनता ने की थी उसे तलाश है किसी 'लेनिन' अथवा 'माओ' की जिसे भारत -भू पर अवतरित होना ही होगा।

                                 
परंतु एक तो हमारे देश के शोषक वर्ग ने 'पुरोहितवाद'की आड़ मे 'फूट' फैलाकर जनता के एकीकरण मे बाधा खड़ी कर रखी है दूसरे शासक वर्ग असंतोष की चिंगारी देखते ही अपने लोगों को बीच मे घुसा कर जन-असंतोष को दूसरी ओर कामयाबी से मोड देता है जैसा कि 2011 मे 'अन्ना' के माध्यम से किया गया है। अफसोस यह कि साम्यवादी और प्रगतिशील लोग शोषकों द्वारा परिभाषित 'पुरोहितवाद' को ही 'धर्म' मान कर "धर्म" का विरोध कर डालते हैं। "धर्म" का अर्थ है -'धारण'करना जो वह नहीं है जैसा पोंगा-पंथी बताते हैं। भारत के लेनिन और माओ को 'धर्म'(वास्तविक =वेदिक/वैज्ञानिक)का सहारा लेकर पोंगा-पंथी 'पुरोहितवाद पर प्रहार करना होगा तभी भारत मे 'क्रान्ति'सफल हो सकेगी अन्यथा 1857 की भांति ही कुचल दी जाएगी।


भारत के राष्ट्रीय हित और खाड़ी युद्ध-1991

 खाड़ी युद्ध दिनों दिन गहराने के साथ   इसके दुष्परिणाम तभी से हमारे देश पर पड़ने लगे थे जो अब विकराल रूप मे सामने हैं। इस युद्ध की आड़ मे खाद्यानों की भी काला बाजारी हो रही थी  और डीजल की सप्लाई का तो बुरा हाल था।तत्कालीन  पेट्रोलियम मंत्री द्वारा दिल्ली-भ्रमण की दूरदर्शन रिपोर्ट मे भले ही पेट्रोलियम सप्लाई सही दर्शा दी गई हो किन्तु  आगरा  आदि अन्य स्थानों के ग्रामीण क्षेत्रों मे किसान सिंचाई के लिए डीजल न मिलने से बुरी तरह से कराह उठे थे अब फिर वही स्थिति बनने जा रही है। इसी संबंध मे आगरा के तत्कालीन  पुलिस उपाधीक्षक का सिर भी फट चुका है।

विदेश नीति की  विफलता- 

पूर्व विदेश सचिव वेंकटेश्वरन ने तो भारत द्वारा ईराक का समर्थन करने का केवल  एहसास दिलाने की बात कही थी और उन्होने अमेरिका का पक्ष लेने की  ही  हिमायत की थी। परन्तु वास्तविकता यह है कि,भारत अपनी विदेश नीति मे पूरी तरह कूटनीतिक तौर पर  इसलिए विफल हुआ है कि,युद्ध शुरू होने से रोकने के लिए राष्ट्रसंघ अथवा निर्गुट आंदोलन मे भारत ने कोई पहल ही नहीं की थी।

 पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की जार्डन के शाह हुसैन और ईराकी राष्ट्रपति श्री सद्दाम हुसैन से फोन वार्ता के बाद उनके निवास पर विपक्षी बाम-मोर्चा आदि के दलों और विदेशमंत्री श्री विद्या चरण शुक्ल की उपस्थिती मे हुई बैठक मे भारत की विदेश नीति की समीक्षा की गई थी । बैठक के बाद इंका महासचिव श्री भगत ने सरकार की विदेश नीति की भर्तस्ना खुल कर की थी । इसी के बाद विदेश मंत्रियों के दौरे शुरू हुये थे । अमेरिका ने भारत के शांति प्रस्ताव को ठुकरा दिया था  और सुरक्षा परिषद ने युद्ध विराम की अपील रद्द कर दी थी जो भारतीय विदेश नीति की विफलता के अकाट्य प्रमाण हैं।

अमेरिका की जीत से  भारत का अहित हुआ  है-

खाड़ी युद्ध से पर्यावरण प्रदूषण और औद्योगिक संकट के साथ बेरोजगारी और बढ्ने तथा भुखमरी और बीमारियों के फैलने का  ही खतरा नहीं था बल्कि  सबसे बड़ा खतरा अमेरिका की जीत और ईराक की पराजय के बाद आया है। इस  स्थिति मे पश्चिम एशिया के तेल पर अमेरिकी साम्राज्यवाद का शिकंजा कस गया है  वहाँ साम्राज्यवादी सेनाएँ मजबूत किलेबंदी करके जम गई हैं। भारत आदि निर्गुट देशों को तेल प्राप्त करने के लिए साम्राज्यवादियों की शर्तों के आगे झुकना पड़ रहा है हम ईरान से सस्ता तेल नहीं आयात कर पा रहे हैं। हमारी अर्थनीति और उद्योग नीति पश्चिम के हितों के अनुरूप ढालने के बाद ही  हमे तेल प्राप्त हो पा रहा है। अब  भारत का 'स्वाभिमान' दांव पर लगा हुआ है हमारी केंद्र सरकार अमेरिका की जी-हुज़ूरी मे लगी हुई है।

एशिया का गौरव सद्दाम -

यह विडम्बना ही रही कि न तो भारत और न ही सोवियत रूस ने  ईराक का साथ दिया  जबकि दोनों देशों की आर्थिक और राजनीतिक ज़रूरत ईराक और सद्दाम को बचाने से ही पूरी हो सकती थी। पश्चिम के साम्राज्यवादी -शोषणवादी हमले को ईराक अकेला ही झेलता  रहा।  ईराक के  पराजित होने से   न केवल पश्चिम एशिया औपनिवेशिक जाल मे फंस गया वरन एशिया और अफ्रीका के देशों को पश्चिम का प्रभुत्व स्वीकार करना ही पड़ रहा है।

अतः आज ज़रूरत नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा प्रस्तुत नारे-"एशिया एशियाईओ के लिए" पर अमल करने की है । भारत को एशिया के अन्य महान देशों -चीन और रूस को एकताबद्ध करके अमेरिकी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए और अब ईरान को बचाने के लिए उसको नैतिक समर्थन प्रदान करना चाहिए। भारत के स्वाभिमान ,आर्थिक और राजनीतिक हितों का तक़ाज़ा है कि,अब ईरान का भी पतन न हो जाये ऐसी व्यवस्था करने वाली सरकार  केंद्र मे आ सके।

आज तो भारत के भावी प्रधानमंत्री हेतु भी अमेरिका नाम का  सुझाव देने लगा है-कौन सा दल किसे अपना नेता चुने यह भी अमेरिका मे तय हो रहा है। भारत मे किस विषय पर आंदोलन चले यह भी अमेरिका तय कर रहा है-अन्ना आंदोलन इसका ताजा तरीन उदाहरण है। अतीत की गलतियों का खामियाजा आज मिल रहा है और आज जो गलतियाँ की जा रही हैं-अन्ना जैसों का समर्थन उसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को निश्चित रूप से भुगतना ही होगा।

Tuesday 19 February 2013

होली मनाएँ-पौधे न जलायेँ---विजय राजबली माथुर

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हिंदुस्तान,लखनऊ,19 फरवरी 2013,पृष्ठ-07




स्वामी स्वरूपानन्द जी  आयुर्वेद मे MD  थे ,प्रेक्टिस करके खूब धन कमा सकते  थे लेकिन जन-कल्याण हेतु सन्यास ले लिया था और पोंगा-पंथ के दोहरे आचरण से घबराकर आर्यसमाजी बन गए थे। उन्होने 20 वर्ष तक पोंगा-पंथ के महंत की भूमिका मे खुद को अनुपयुक्त पा कर आर्यसमाज की शरण ली थी और जब हम उन्हें सुन रहे थे उस वक्त वह 30 वर्ष से आर्यसमाजी प्रचारक थे। स्वामी स्वरूपानन्द जी स्पष्ट कहते थे जिन लोगों की आत्मा 'तामसिक' और हिंसक प्रवृति की होती है उन्हें दूसरों को पीड़ा पहुंचाने मे आनंद आता है और ऐसा वे धमाका करके उजागर करते हैं। यही बात होली पर 'टेसू' के फूलों के स्थान पर सिंथेटिक रंगों,नाली की कीचड़,गोबर,बिजली के लट्ठों का पेंट,कोलतार आदि का प्रयोग करने वालों के लिए भी वह बताते थे। उनका स्पष्ट कहना था जब प्रवृतियाँ 'सात्विक' थीं और लोग शुद्ध विचारों के थे तब यह गंदगी और खुराफात (पटाखे /बदरंग)समाज मे दूर-दूर तक नहीं थे। गिरते चरित्र और विदेशियों के प्रभाव से पटाखे दीपावली पर और बदरंग होली पर स्तेमाल होने लगे।

दीपावली/होली क्या हैं?

हमारा देश भारत एक कृषि-प्रधान देश है और प्रमुख दो फसलों के तैयार होने पर ये दो प्रमुख पर्व मनाए जाते हैं। खरीफ की फसल आने पर धान से बने पदार्थों का प्रयोग दीपावली -हवन मे करते थे और रबी की फसल आने पर गेंहूँ,जौ,चने की बालियों (जिन्हें संस्कृत मे 'होला'कहते हैं)को हवन की अग्नि मे अर्द्ध - पका कर खाने का प्राविधान  था।  होली पर अर्द्ध-पका 'होला' खाने से आगे आने वाले 'लू'के मौसम से स्वास्थ्य रक्षा होती थी एवं दीपावली पर 'खील और बताशे तथा खांड के खिलौने'खाने से आगे शीत  मे 'कफ'-सर्दी के रोगों से बचाव होता था। इन पर्वों को मनाने का उद्देश्य मानव-कल्याण था। नई फसलों से हवन मे आहुतियाँ भी इसी उद्देश्य से दी जाती थीं।

लेकिन आज वेद-सम्मत प्रविधानों को तिलांजली देकर पौराणिकों ने ढोंग-पाखंड को इस कदर बढ़ा दिया है जिस कारण मनुष्य-मनुष्य के खून का प्यासा बना हुआ है। आज यदि कोई चीज सबसे सस्ती है तो वह है -मनुष्य की जिंदगी। छोटी-छोटी बातों पर व्यक्ति को जान से मार देना इन पौराणिकों की शिक्षा का ही दुष्परिणाम है। गाली देना,अभद्रता करना ,नीचा दिखाना और खुद को खुदा समझना इन पोंगा-पंथियों की शिक्षा के मूल तत्व हैं। इसी कारण हमारे तीज-त्योहार विकृत हो गए हैं उनमे आडंबर-दिखावा-स्टंट भर  गया है जो बाजारवाद की सफलता के लिए आवश्यक है। पर्वों की वैज्ञानिकता को जान-बूझ कर उनसे हटा लिया गया है ।


संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Wednesday 13 February 2013

कांग्रेस -कौन सी कांग्रेस?---विजय राजबली माथुर

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 hindustaan,lakhnau ,28 janvaree 2013
उपरोक्त  समाचार मे 'राहुल गांधी' को 'कांग्रेस उपाध्यक्ष' बताया गया है। परंतु प्रश्न यह है कि,यह कांग्रेस कौन सी कांग्रेस है?निश्चय ही राहुल जी की कांग्रेस वह कांग्रेस नहीं है जिसने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व किया था।राहुल जी की कांग्रेस मात्र 44 वर्ष की पार्टी है जिसका जन्म उनकी दादी साहिबा द्वारा स्वतन्त्रता आंदोलन की कांग्रेस के प्रति बगावत का नतीजा है।

सन 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम या 'क्रान्ति' के विफल हो जाने के 18 वर्षों बाद स्वामी दयानन्द सरस्वती (जिनहोने उस संग्राम मे सक्रिय भाग लिया था) सन 1875 ई .मे चैत्र प्रतिपदा (प्रथम नवरात्र ) के दिन 'आर्यसमाज' की स्थापना की थी जिसका मूल उद्देश्य जनता को 'ढोंग-पाखंड-आडंबर'के विरुद्ध जाग्रत करके भारत को स्वाधीन करना था। जहां-जहां ब्रिटिश छावनियाँ थीं वहाँ-वहाँ इसकी शाखाओं का गठन प्राथमिकता के आधार पर किया गया । ब्रिटिश हुकूमत ने स्वामी दयानन्द को क्रांतिकारी संत (Revolutionary Saint) की संज्ञा दी थी। भयभीत अङ्ग्रेज़ी सरकार ने लार्ड डफरिन के इशारे पर अवकाश प्राप्त ICS एलेन आकटावियन हयूम के सहयोग से वोमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता मे सन 1885 ई मे इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना करवाई जिसका उद्देश्य 'औपनिवेशिक राज्य'-Dominiyan State की स्थापना था। अतः स्वामी दयानन्द की प्रेरणा से आर्यसमाजी अधिकांश संख्या मे कांग्रेस मे शामिल हो गए और उसका उद्देश्य 'पूर्ण स्वाधीनता' करवाने मे कामयाब रहे। 'कांग्रेस का इतिहास' के लेखक डॉ पट्टाभि सीता रमेय्या ने लिखा है कि,'स्वाधीनता आंदोलन मे जेल जाने वाले कांग्रेसियों मे 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे'।

अतः स्वाधीनता आंदोलन को छीण करने हेतु ब्रिटिश सरकार ने ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन को प्रेरित करके 'मुस्लिम लीग' की स्थापना 1906 मे तथा पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा 1920 मे 'हिन्दू महासभा' की स्थापना करवाई। भारतीयों को 'हिन्दू' और 'मुस्लिम' मे विभाजित करके परस्पर विरोध मे ब्रिटिश सरकार द्वारा खड़ा किया गया किन्तु हिन्दू महासभा ज़्यादा कामयाब न हो सकी । अतः पूर्व कांग्रेसी डॉ हेडगेवार एवं पूर्व क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर को माध्यम बना कर  ब्रिटिश सरकार ने RSS की स्थापना 1925 ई मे करवाई। मुस्लिम लीग और RSS ने देश को 'दंगों' की आग मे झोंक दिया जिसकी अंतिम परिणति 'देश-विभाजन' के रूप मे सामने आई।

1925 ई मे देश-भक्त कांग्रेसियों ने 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना की जिसका मूल उद्देश्य देश के स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करना तथा साम्राज्यवादी विदेशी सरकार की विभाजनकारी नीतियों को विफल करना था। 'गेंदा लाल दीक्षित','स्वामी सहजानन्द सरस्वती' सरीखे कट्टर आर्यसमाजी 'क्रांतिकारी कम्युनिस्ट' बने। 'सत्यार्थ प्रकाश' पढ़ कर ही सरदार भगत सिंह जिनके चाचा कट्टर आर्यसमाजी थे 'क्रांतिकारी कम्युनिस्ट' बने।

क्रांतिकारी कम्युनिस्टों के प्रभाव को छीण करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी के अहिंसक सत्याग्रह के साथ समझौते करने शुरू किए जिसका जनता पर यह प्रभाव पड़ा कि,जनता ने गांधी जी के पीछे खुद को लामबंद कर लिया और इस प्रकार देश की स्वाधीनता का श्रेय गांधीजी और उनकी कांग्रेस को दे दिया जबकि क्रांतिकारी कम्युनिस्टों तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की INA-आज़ाद हिन्द फौज,एयर फोर्स व नेवी के विद्रोहों का बड़ा योगदान 15 अगस्त 1947 की आज़ादी के पीछे है।

आज़ादी दिलाने का श्रेय मिलना ही कांग्रेस की 'पूंजी' बना और वह सत्ता प्राप्त  कर सकी। शनैः शनैः कांग्रेस सरकार जनता से कटती गई और 'पूंजीपतियों' को समृद्ध करती गई। 1967 मे सम्पूर्ण उत्तर भारत से कांग्रेस की सत्ता का सफाया हो गया। सत्ता पर अपनी पकड़ को बनाए रखने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी जी (राहुल साहब की दादी )ने जनता को ठगने हेतु 'समाजवाद' का नारा लगा कर 1969 मे राष्ट्रपति चुनावों मे कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार के विरुद्ध निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा करके मूल कांग्रेस से बगावत कर दी और 'इन्दिरा कांग्रेस' की स्थापना की। यह उपाध्यक्ष राहुल साहब इसी बागी कांग्रेस-इन्दिरा कांग्रेस के नेता हैं जिसका उद्देश्य शोषक/उत्पीड़क 'पूँजीपतियों' व 'उद्योगपतियों' का हितसाधन है और इंनका देश के स्वाधीनता आंदोलन से किसी प्रकार का कोई सरोकार कभी भी नहीं रहा है न ही देश की जनता से । न ही इनको कोई अधिकार है कि वह स्वाधीनता आंदोलन की विरासत का खुद को वारिस बताएं। ऐसा करना सिर्फ गलत बयानी ही होगा।

1971 मे बांग्लादेश के स्वाधीनता आंदोलन को सफल समर्थन देकर इंदिराजी की लोकप्रियता बढ़ गई थी और उसी को भुनाते हुये मध्यावधी चुनाव करा दिये थे। प्रचंड बहुमत का दुरुपयोग करते हुये संविधान मे संशोधन करके लोकसभा का कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया था और खुद इन्दिरा जी का राय बरेली का चुनाव हाई कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने पर देश मे 'आपात काल' थोप कर प्रभावशाली नेताओं को जेलों मे ठूंस दिया था जिनमे 'लोकनायक जय प्रकाश नारायण''भी शामिल थे। जनता के साथ-साथ सरकारी कर्मचारी/अधिकारी बहुत त्रस्त थे और खुफिया विभाग ने गुमराह करके 1977 मे उनसे मध्यवधी चुनाव करवा दिये जिसमे इन्दिरा जी खुद भी और जहां का प्रतिनिधितित्व राहुल कर रहे हैं वहाँ से संजय गांधी भी चुनाव हार गए थे।

1980 के मध्यवधी चुनावों मे राहुल की दादी साहिबा ने RSS से 'गुप्त समझौता ' करके सांप्रदायिक आधार पर बहुमत हासिल कर लिया था और पूर्व 'जनता सरकार' को परेशान करने हेतु अपने द्वारा खड़े किए गए और 'भस्मासुर' बने भिंडरा वाले का सैन्य कारवाई मे खात्मा करा दिया था। परिणाम स्वरूप अपने ही अंग रक्षकों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी जिसकी सहानुभूति प्राप्त कर उनके उत्तराधिकारी -राहुल के पिता राजीव गांधी ने तीन  चौथाई बहुमत हासिल कर लिया था और पहले 'शाहबानों'को न्याय से वंचित करने हेतु 'मुस्लिम सांप्रदायिकता 'फिर राम मंदिर की आड़ मे 'हिन्दू सांप्रदायिकता' से समझौता करके विद्वेष भड़का कर ब्रिटिश साम्राज्यवाद की पुरानी नीतियों को लागू कर दिया था । उनके कार्यकाल मे सरकार को कारपोरेट लाबी मे तब्दील कर दिया गया जो उनकी हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर मे प्रधानमंत्री बने पी वी नरसिंघा राव के वित्त मंत्री जो अब पी एम हैं के द्वारा और परिपुष्ट किया गया।

आज की राहुल कांग्रेस घोर जन-विरोधी एवं शोषक/उत्पीड़क शक्तियों का संरक्षक दल बन गई है। 

 वे कम्युनिस्ट जो प्रथम आम चुनावों के जरिये संसद मे 'मुख्य विपक्षी'दल थे और  जिन्हों ने केरल मे विश्व की प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार का गठन किया था जनता की नब्ज़ न पकड़ने के कारण पिछड़ गए हैं और अब राहुल जी उनको ही देश से उखाड़ फेंकने की दहाड़ लगा रहे हैं। मैं ढाई वर्षों से अपने ब्लाग के माध्यम ('क्रांतिस्वर'---http://krantiswar.blogspot.in)

से अपने विचारों मे जनता की नब्ज़ पर ध्यान रख कर चलने का निवेदन करता रहा हूँ जिसका संकीर्ण साम्यवादी लगातार विरोध करते रहे हैं। खुशी की बात है कि कभी साम्यवादी दल के प्रशिक्षक  रहे डॉ मोहन श्रोत्रिय साहब ने भी आज ऐसे ही विचारों का समर्थन किया है।
Vijai RajBali Mathur shared Mohan Shrotriya's status.13 फरवरी,2013 
किन्तु 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या और 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' के विरुद्ध मेरे 'क्रांतिस्वर' मे अभियान को बामपंथी साथी पुराणपंथियो के स्वर मे स्वर मिला कर विरोध करके उसी पाखंड को मजबूत कर रहे हैं,क्यों?
***इस ओर भी ध्यान दें***

"विकलांग श्रद्धा" के दौर से उबरे बिना बुनियादी समस्याओं पर लोक की लामबंदी एकदम नामुमकिन है. पौराणिक आख्यानों का लोक-चेतना पर कितना गहरा असर है यह बात इस तथ्य से ही स्पष्ट और सिद्ध हो जाती है कि रोज़मर्रा के जीने-मरने के सवालों पर संगठित होने को अनिच्छुक लोग, कितनी बड़ी संख्या में अपने खर्चे पर "परलोक सुधारने" के अनुष्ठानों से जा जुड़ते हैं. भीषण सर्दी और यात्रा की तमाम असुविधाओं को धता बताते हुए.

इस लोक-मनोविज्ञान का अध्ययन करने के साथ-इसे बदलने के समानांतर कार्यक्रमों को हाथ में लिए बगैर किसी अर्थवान सामाजिक बदलाव की बात बेमानी होगी. वामपंथियों को अपने एजेंडे पर इसे रखना होगा अन्यथा किसी भी सामाजिक बदलाव की लड़ाई के ये स्वाभाविक सहभागी अनंत काल तक ऐसी लड़ाइयों से अपनी दूरी बनाए रखेंगे. यह जूनून जो जान चली जाने की आंखों-देखी घटनाओं से भी कम नहीं होता, मनःस्थितियां बदल जाने पर एक बड़े सामाजिक प्रयोजन की पूर्ति में अपनी सकारात्मक भूमिका अदा कर सकता है. चाहें तो इसे महज़ क़यास कहकर ख़ारिज भी कर सकते हैं, पर ध्यान रहे कि इह-लोक को सुधारने के किसी भी अभियान से इस विशाल जनशक्ति का बाहर रहना भी चिंताजनक तो है ही. करोड़ों लोगों के कुछ मायने तो होते ही हैं. नहीं?

-मोश्रो
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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Thursday 7 February 2013

विवेक प्रयोग करने की आवश्यकता

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द्वापर युग नस्ल की गायों को रुग्ण पशुओं के साथ स्थानांतरित करना 'क्रूरता' और अदूरदर्शिता'है ,इसे तत्काल रद्द किया जाये और इन गायों को लखनऊ मे ही रखा जाये।
क्रांतिकारी की पत्नी और खुद भी क्रांतिकारी रही 'दुर्गा भाभी' के विद्यालय के स्थापना दिवस की शुभकामनायें।






हिंदुस्तान,लखनऊ,दिनांक 07 फरवरी,2013-पृष्ठ:1 एवं 6
 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Sunday 3 February 2013

अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए पहल ---विजय राजबली माथुर

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ऊपर की पंक्ति मे बाएँ से दायें-एक युवा,अखिलेश सक्सेना,सिन्हा साहब,राम किशोर जी,विजय राजबली माथुर नीचे की पंक्ति मे-सुरेश लहरी,लता राय,कल्पना,वंदना मिश्रा,प्रिया ,महेश देवा 
               

डाक्टर राही मासूम रज़ा साहित्य एकेडमी के तत्वावधान में कल दिनांक 02/फरवरी/2013 को प्रदेश के रचनाकारों, लोक कलाकारों,संस्कृति कर्मियों एवं बुद्धिजीवियों ने जी पी ओ पार्क,गांधी प्रतिमा पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थन में धरना दिया। प्रदर्शनकारी हाथों में तख्तियाँ लिए हुए थे;जिन पर लिखा था “अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है”, “देश किधर जा रहा है-आपातकाल की ओर”,हम हर कीमत पर अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा करेंगे,स्वतंत्र भारत में यह कैसी पाबंदी,सरकारों शर्म करो-शर्म करो इत्यादि।

धरने को संबोधित करते हुए डाक्टर राही मासूम रज़ा साहित्य एकेडमी के महामंत्री श्री राम किशोर ने कहा कि राही मासूम रज़ा ने लिखा है कि जहां भी और जब भी किसी भी प्रकार की सांप्रदायिकता सर उठाए उसका सर हमें कुचल देना चाहिए,बदले में चाहे हम दस चुनाव हार जाएँ परंतु आज राजनैतिक दल सत्ता के लालच में सांप्रदायिकता के आगे घुटने ही नहीं टेक रहे हैं बल्कि उसे आगे बढ़ा रहे हैं। एकेडमी की अध्यक्ष सुश्री वंदना मिश्र ने कहा कि सरकारें कानून व्यवस्था को बनाए रखने की आड़ में जनता की विशेषकर रचनाकारों,संस्कृति कर्मियों एवं बुद्धिजीवियों की आवाज़ को दबाने का निरंतर प्रयास कर रही हैं । जन कलाकार परिषद के साथी महेश चंद देवा ने कहा कि रचनाकारों,कलाकारों और संस्कृति कर्मियों पर जिस प्रकार बन्दिशें लगाई जा रही हैं तथा उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर थानेदारी की जा रही है उसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। जन संस्कृति मंच के प्रांतीय उपाध्यक्ष भगवान स्वरूप कटियार ने कहा कि अगर बन्दिशें इसी प्रकार लगती रहीं तो हम लोगों को विप्लवी रुख अख़्तियार करना पड़ेगा। इस अवसर पर जन कलाकार परिषद के श्री सुरेश लहरी ने ‘रुके न जो,झुके न जो,हम वो इंकलाब हैं --------‘, ‘नफस नफस कदम कदम----‘ , ‘अपने हक के खातिर दुनिया से हम को टकराना है ----‘ , ‘आज़ादी ही आज़ादी,बस आज़ादी ही आज़ादी---‘ इत्यादि गीतों से पूरे माहौल को क्रांतिकारी,जुझारू एवं विप्लवी बना दिया। जन संस्कृति मंच के प्रांतीय उपाध्यक्ष भगवान स्वरूप कटियार ने कहा कि अगर बन्दिशें इसी प्रकार लगती रहीं तो हम लोगों को विप्लवी रुख अख़्तियार करना पड़ेगा।

एकेडमी के महामंत्री श्री राम किशोर ने बताया कि बिहार के साहित्यकारों,रचना कर्मियों ने संदेश भेज कर इस धरने के प्रति समर्थन व्यक्त किया है।

धरने मे अन्य लोगों के अलावा नेताजी सुभाष चंद बोस फाउंडेशन के सचिव विजय राज बली माथुर ,ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल के अध्यक्ष ओ पी सिन्हा, IPTA,उ प्र के मंत्री राकेश,नाट्य कर्मी राजेश कुमार, के के वत्स,महिला परिषद की महामंत्री सुश्री लता राय ,रचनाकर्मी विपिन त्रिपाठी इत्यादि प्रमुख थे।

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धरने के दौरान सिन्हा साहब ने प्रस्ताव रखा कि लखनऊ के स्तर पर हम सब विभिन्न संगठनों को एक सामूहिक मंच बना कर सतत अभियान चलाना चाहिए जिसका इप्टा के राकेश जी ने भी समर्थन कियाऔर उन्होने यह भी कहा कि हमें जन-साधारण तक जा कर उसे यह भी समझाना चाहिए कि ये प्रायास आम जन के ही हितमे हैं। वंदना मिश्रा जी के सुझाव पर इसे मूर्त रूप देने हेतु प्रयास करने के लिए राम किशोर जी को अधिकृत किया गया।  

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर