Friday, 31 October 2014

केरल में महिलाओं का ऐतिहासिक विद्रोह---यह देश हमारा है

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 हर जगह मंदिरों का यही हाल है और पुजारियों का भी। चाहे जैसे हो आगंतुकों को लूटना और उल्टे उस्तरे से मूढ़ना ही पुजारियों का एकमात्र लक्ष्य होता है। इसीलिए तो कबीर दास जी ने कहा था-


* दुनिया ऐसी बावरी कि पत्थर पूजन जाये।

 घर की चकिया कोई न पूजे जेही का पीसा खाये। ।
* कंकर-पत्थर जोड़ कर लई मस्जिद बनाए।

 ता पर चढ़ी मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाए। ।

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मंदिर में उन्हें ऊपरी वस्त्र खोलकर ही जाना होता था।
स्तन ढकने का अधिकार पाने के लिए केरल में महिलाओं का ऐतिहासिक विद्रोह
केरल के त्रावणकोर इलाके, खास तौर पर वहां की महिलाओं के लिए 26 जुलाई का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। इसी दिन 1859 में वहां के महाराजा ने अवर्ण औरतों को शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़े पहनने की इजाजत दी। अजीब लग सकता है, पर केरल जैसे प्रगतिशील माने जाने वाले राज्य में भी महिलाओं को अंगवस्त्र या ब्लाउज पहनने का हक पाने के लिए 50 साल से ज्यादा सघन संघर्ष करना पड़ा।
इस कुरूप परंपरा की चर्चा में खास तौर पर निचली जाति नादर की स्त्रियों का जिक्र होता है क्योंकि अपने वस्त्र पहनने के हक के लिए उन्होंने ही सबसे पहले विरोध जताया। नादर की ही एक उपजाति नादन पर ये बंदिशें उतनी नहीं थीं। उस समय न सिर्फ अवर्ण बल्कि नंबूदिरी ब्राहमण और क्षत्रिय नायर जैसी जातियों की औरतों पर भी शरीर का ऊपरी हिस्सा ढकने से रोकने के कई नियम थे। नंबूदिरी औरतों को घर के भीतर ऊपरी शरीर को खुला रखना पड़ता था। वे घर से बाहर निकलते समय ही अपना सीना ढक सकती थीं। लेकिन मंदिर में उन्हें ऊपरी वस्त्र खोलकर ही जाना होता था।
नायर औरतों को ब्राह्मण पुरुषों के सामने अपना वक्ष खुला रखना होता था। सबसे बुरी स्थिति दलित औरतों की थी जिन्हें कहीं भी अंगवस्त्र पहनने की मनाही थी। पहनने पर उन्हें सजा भी हो जाती थी। एक घटना बताई जाती है जिसमें एक निम्न जाति की महिला अपना सीना ढक कर महल में आई तो रानी अत्तिंगल ने उसके स्तन कटवा देने का आदेश दे डाला।
इस अपमानजनक रिवाज के खिलाफ 19 वीं सदी के शुरू में आवाजें उठनी शुरू हुईं। 18 वीं सदी के अंत और 19 वीं सदी के शुरू में केरल से कई मजदूर, खासकर नादन जाति के लोग, चाय बागानों में काम करने के लिए श्रीलंका चले गए। बेहतर आर्थिक स्थिति, धर्म बदल कर ईसाई बन जाने औऱ यूरपीय असर की वजह से इनमें जागरूकता ज्यादा थी और ये औरतें अपने शरीर को पूरा ढकने लगी थीं। धर्म-परिवर्तन करके ईसाई बन जाने वाली नादर महिलाओं ने भी इस प्रगतिशील कदम को अपनाया। इस तरह महिलाएं अक्सर इस सामाजिक प्रतिबंध को अनदेखा कर सम्मानजनक जीवन पाने की कशिश करती रहीं।
यह कुलीन मर्दों को बर्दाश्त नहीं हुआ। ऐसी महिलाओं पर हिंसक हमले होने लगे। जो भी इस नियम की अहेलना करती उसे सरे बाजार अपने ऊपरी वस्त्र उतारने को मजबूर किया जाता। अवर्ण औरतों को छूना न पड़े इसके लिए सवर्ण पुरुष लंबे डंडे के सिरे पर छुरी बांध लेते और किसी महिला को ब्लाउज या कंचुकी पहना देखते तो उसे दूर से ही छुरी से फाड़ देते। यहां तक कि वे औरतों को इस हाल में रस्सी से बांध कर सरे आम पेड़ पर लटका देते ताकि दूसरी औरतें ऐसा करते डरें।
लेकिन उस समय अंग्रेजों का राजकाज में भी असर बढ़ रहा था। 1814 में त्रावणकोर के दीवान कर्नल मुनरो ने आदेश निकलवाया कि ईसाई नादन और नादर महिलाएं ब्लाउज पहन सकती हैं। लेकिन इसका कोई फायदा न हुआ। उच्च वर्ण के पुरुष इस आदेश के बावजूद लगातार महिलाओं को अपनी ताकत और असर के सहारे इस शर्मनाक अवस्था की ओर धकेलते रहे।
आठ साल बाद फिर ऐसा ही आदेश निकाला गया। एक तरफ शर्मनाक स्थिति से उबरने की चेतना का जागना और दूसरी तरफ समर्थन में अंग्रेजी सरकार का आदेश। और ज्यादा महिलाओं ने शालीन कपड़े पहनने शुरू कर दिए। इधर उच्च वर्ण के पुरुषों का प्रतिरोध भी उतना ही तीखा हो गया। एक घटना बताई जाती है कि नादर ईसाई महिलाओं का एक दल निचली अदालत में ऐसे ही एक मामले में गवाही देने पहुंचा। उन्हें दीवान मुनरो की आंखों के सामने अदालत के दरवाजे पर अपने अंग वस्त्र उतार कर रख देने पड़े। तभी वे भीतर जा पाईं। संघर्ष लगातार बढ़ रहा था और उसका हिंसक प्रतिरोध भी।
सवर्णों के अलावा राजा खुद भी परंपरा निभाने के पक्ष में था। क्यों न होता। आदेश था कि महल से मंदिर तक राजा की सवारी निकले तो रास्ते पर दोनों ओर नीची जातियों की अर्धनग्न कुंवारी महिलाएं फूल बरसाती हुई खड़ी रहें। उस रास्ते के घरों के छज्जों पर भी राजा के स्वागत में औरतों को ख़ड़ा रखा जाता था। राजा और उसके काफिले के सभी पुरुष इन दृष्यों का भरपूर आनंद लेते थे।
आखिर 1829 में इस मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया।
कुलीन पुरुषों की लगातार नाराजगी के कारण राजा ने आदेश निकलवा दिया कि किसी भी अवर्ण जाति की औरत अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा ढक नहीं सकती। अब तक ईसाई औरतों को जो थोड़ा समर्थन दीवान के आदेशों से मिल रहा था, वह भी खत्म हो गया। अब हिंदू-ईसाई सभी वंचित महिलाएं एक हो गईं और उनके विरोध की ताकत बढ़ गई। सभी जगह महिलाएं पूरे कपड़ों में बाहर निकलने लगीं।
इस पूरे आंदोलन का सीधा संबंध भारत की आजादी की लड़ाई के इतिहास से भी है। विरोधियों ने ऊंची जातियों के लोगों दुकानों और सामान को लूटना शुरू कर दिया। राज्य में शांति पूरी तरह भंग हो गई। दूसरी तरफ नारायण गुरु और अन्य सामाजिक, धार्मिक गुरुओं ने भी इस सामाजिक रूढ़ि का विरोध किया।
मद्रास के कमिश्नर ने त्रावणकोर के राजा को खबर भिजवाई कि महिलाओं को कपड़े न पहनने देने और राज्य में हिंसा और अशांति को न रोक पाने के कारण उसकी बदनामी हो रही है। अंग्रेजों के और नादर आदि अवर्ण जातियों के दबाव में आखिर त्रावणकोर के राजा को घोषणा करनी पड़ी कि सभी महिलाएं शरीर का ऊपरी हिस्सा वस्त्र से ढंक सकती हैं। 26 जुलाई 1859 को राजा के एक आदेश के जरिए महिलाओं के ऊपरी वस्त्र न पहनने के कानून को बदल दिया गया। कई स्तरों पर विरोध के बावजूद आखिर त्रावणकोर की महिलाओं ने अपने वक्ष ढकने जैसा बुनियादी हक छीन कर लिया। नादर , नायर और नंबुदरी जाती की औरतें और दरबार !!!!!!!!!!!!!!!

Tuesday, 28 October 2014

ऎसे बचाएं अपने आपको "झूठी एफआईआर" और पुलिस कार्यवाही से ---Igzone Lucknow

9 mins ·
ऎसे बचाएं अपने आपको "झूठी एफआईआर" और पुलिस कार्यवाही से:
कुछ लोग आपसी मतभेद में एक दूसरे के खिलाफ पुलिस में झूठी एफआईआर लिखवा देते हैं। अक्सर ऎसे मामलों में जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है, वे पुलिस और कोर्ट के कानूनी झंझटों में फंस जाते हैं और उनका धन, समय और जीवन बर्बादी की कगार पर चल पड़ता है। परन्तु क्या आप जानते हैं कि ऎसी झूठी शिक ायतों के खिलाफ आप कार्यवाही कर अपने आपको बचा सकते हैं। भारतीय संविधान में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 482 ऎसा ही एक कानून है जिसके उपयोग से आप फिजूल की परेशानियों से बच सकते हैं।
क्या है धारा 482
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 482 के तहत आप अपने खिलाफ लिखाई गई एफआईआर को चैलेन्ज करते हुए हाईकोर्ट से निष्पक्ष न्याय की मांग कर सकते हैं। इसके लिए आपको अपने वकील के माध्यम से हाई कोर्ट में एक प्रार्थनापत्र देना होता है जिसमें आप पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते हैं। यदि आपके पास अपनी बेगुनाही के सबूत जैसे कि ऑडियो रिकॉर्डिग, वीडियो रिकॉर्डिग, फोटोग्राफ्स, डॉक्यूमेन्टस हो तो आप उनको अपने प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न करें। ऎसा करने से हाई कोर्ट में आपका केस मजबूत हो बन जाता है और आपके खिलाफ दर्ज एफआईआर कैंसिल होने के आसार मजबूत हो जाते हैं।
कैसे करें धारा 482 का प्रयोग :
धारा 482 का प्रयोग दो तरह से किया जाता है।
 पहला प्रयोग अधिकतया दहेज तथा तलाक के मामलों में किया जाता है। इन मामलों में दोनों पार्टियां आपसी रजामंदी से सुलह कर लेती है जिसके बाद वधू पक्ष हाईकोर्ट में वर पक्ष के खिलाफ एफआईआर कैंसिल करने की एप्लीकेशन देता है, जिसके बाद वर पक्ष के खिलाफ दायर 498, 406 तथा अन्य धाराओं में दर्ज मामले हाई कोर्ट के आदेश पर बन्द कर दिए जाते हैं।
दूसरा प्रयोग आपराधिक मामलों में किया जाता है। मान लीजिए किसी ने आपके खिलाफ मारपीट , चोरी, बलात्कार अथवा अन्य किसी प्रकार का षडयंत्र रच कर आपके खिलाफ पुलिस में झूठी एफआईआर लिखा दी है। आप हाई कोर्ट में धारा 482 के तहत प्रार्थना पत्र दायर कर अपने खिलाफ हो रही पुलिस कार्यवाही को तुरंत रूकवा सकते हैं। यही नहीं हाई कोर्ट आपकी एप्लीकेशन देख कर संबंधित जांच अधिकारी जांच करने हेतु आवश्यक निर्देश दे सकता है। इस तरह के मामलों में जब तक हाई क ोर्ट में धारा 482 के तहत मामला चलता रहेगा, पुलिस आप के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकेगी। यही नहीं यदि आपके खिलाफ गिरफ्तारी का वारन्ट जारी है तो वह भी तुरंत प्रभाव से हाई कोर्ट के आदेश आने तक के लिए रूक जाएगा।
ध्यान रखें इन बातों का
इन कानून के तहत आप को एक फाइल तैयार करनी होती है जिसमें एफआईआर की कॉपी तथा आपके प्रार्थना पत्र के साथ साथ आपको जरूरी एविडेन्स भी लगाने होते हैं। यदि एविडेन्स नहीं है तो आप अपने वकील से सलाह मशविरा कर पुलिस में दर्ज शिकायत के लूपहोल्स को ध्यान से देख कर उनका उल्लेख करें। इसके अतिरिक्त आप यदि आपके पक्ष में कोई गवाह है तो उसका भी उल्लेख करें। -

Friday, 24 October 2014

ईमानदार राजनीज्ञ: रफ़ी अहमद किदवई ----- संजोग वाल्टर

Rafi Ahmed Kidwai was a politician, an Indian independence activist and a socialist, sometimes described as an Islamic socialist.He hailed from Barabanki District of United Provinces, now Uttar Pradesh.He was born on 18 February 1894 in the village of Masauli, in Barabanki district, United Provinces, India, the eldest of four sons of Imtiaz Ali Kidwai, a middle-class zamindar (or landowner) and government servant, and his wife, Rashid ul-Nisa, who died during his early childhood. He received his early education from a tutor at the home of his uncle, Wilayat Ali, a politically active lawyer, and in the village school. He attended the Government High School, Barabanki, until 1913. He then attended the Mohammadan Anglo-Oriental College, Aligarh, where he graduated BA in 1918. He began work towards the degree of LLB, but, swept up by the khilafat and non-co-operation movements in 1920–21 (the first of Mahatma Gandhi's major all-India satyagraha, or non-violent civil resistance, movements) and jailed for his participation, he never completed it. He married Majid ul-Nisa in 1919. They had one child, a son, who died at seven years of age. Late Rafi Sahab had five brothers, he himself was the eldest. other brothers were Late Shafi Ahmad Kidwai, Late Mehfooz Ahmad Kidwai, Late Ali Kamil Kidwai and Late Hussain kamil Kidwai.Now Fareed Kidwai s/o late Mehfooz Ahmad Kidwai is a MOS in UP govt. Other surviving nephews are Rishad Kamil Kidwai s/o Late Mehfooz Ahmed Kidwai, Mumtaz Kamil Kidwai s/o Late Ali Kamil Kidwai and Hasan Javed Kidwai s/o Husain kamil Kidwai.Kidwai suffered heart failure, precipitated by an attack of asthma, in the midst of a speech at a public meeting in Delhi and died shortly thereafter, on 24 October 1954. He was buried in his home village, Masauli, where a Mughal-style mausoleum was built over his grave. *A formidable fund-raiser for Congress movements and elections, he distributed his largesse to all and sundry, but died in debt, leaving behind only a decaying house in his home village.
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* 1965 में जब मैं सिलीगुड़ी में नवी कक्षा का छात्र था तब अपने हेड मास्टर साहब( डॉ कैलाशनाथ ओझा ) से भारत-पाक संघर्ष के दौरान रफ़ी अहमद किदवई साहब का ज़िक्र सुना था। डॉ ओझा साहब ने उनकी ईमानदारी की कई बातों का ज़िक्र किया था और बताया था कि नेहरू जी ने उनके मकबरे के लिए अनुमानित लागत से दुगुनी रकम मंजूर कराई थी। पूछे जाने पर नेहरू जी का जवाब था कि एक ईमानदार नेता का जैसा भव्य मकबरा वह चाहते हैं तभी बन सकेगा वरना अफसर-ठेकेदार कमीशन काट कर उसकी गुणवत्ता गिरा देंगे। 
*आज़ादी के तुरंत बाद काश्मीर को  महाराजा हरी सिंह (डॉ कर्ण सिंह के पिता श्री ) द्वारा स्वतंत्र घोषित करते ही पाकिस्तान ने कबाइलियों को आगे करके आक्रमण कर दिया था। सरदार पटेल ने रफ़ी साहब के परामर्श से उनके  गृह मंत्रालय में अधिकारी भाई साहब को साथ लेकर श्रीनगर प्रस्थान किया था तब उनके साथ बीजू पटनायक भी थे जिन्होने विमान चलाया था। हरी सिंह को भारत विलय का प्रस्ताव पास कराना पड़ा था। 
*आज़ादी के तुरंत बाद ही कलकत्ता के मारवाड़ी व्यापारी गल्ला तस्करी के जरिये बाहर भेज रहे थे और भारत में तंगी व मंहगाई की मार पड़ रही थी। रफ़ी साहब केंद्रीय खाद्य व कृषि मंत्री थे। उन्होने मारवाड़ी व्यापारी का वेश बना कर कलकत्ता के मारवाड़ी व्यापारियों से बात की और छिपे राशन का पता चलते ही उन पर छापा डलवा कर सारा राशन सस्ते गल्ले की दुकानों से जनता को वितरित करवा दिया था। 

मेरे लिए यह गर्व का विषय है कि मेरा संबंध रफ़ी साहब के ज़िला बाराबंकी (दरियाबाद ) से है और मैं भी अपने बाबा जी, बाबू जी व नाना जी की भांति ही आज भी ईमानदारी के मार्ग पर चल कर पग-पग पर काँटों का सामना कर रहा हूँ। 24 अक्तूबर रफ़ी अहमद किदवई साहब का स्मृति दिवस है तो  हमारे पिता जी स्व.ताजराज बली माथुर साहब का जन्मदिन है ।

"गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

बाबूजी का स्मृति चित्रण"

http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/10/blog-post_24.html 

--- विजय राजबली माथुर