Friday, 24 October 2014

ईमानदार राजनीज्ञ: रफ़ी अहमद किदवई ----- संजोग वाल्टर

Rafi Ahmed Kidwai was a politician, an Indian independence activist and a socialist, sometimes described as an Islamic socialist.He hailed from Barabanki District of United Provinces, now Uttar Pradesh.He was born on 18 February 1894 in the village of Masauli, in Barabanki district, United Provinces, India, the eldest of four sons of Imtiaz Ali Kidwai, a middle-class zamindar (or landowner) and government servant, and his wife, Rashid ul-Nisa, who died during his early childhood. He received his early education from a tutor at the home of his uncle, Wilayat Ali, a politically active lawyer, and in the village school. He attended the Government High School, Barabanki, until 1913. He then attended the Mohammadan Anglo-Oriental College, Aligarh, where he graduated BA in 1918. He began work towards the degree of LLB, but, swept up by the khilafat and non-co-operation movements in 1920–21 (the first of Mahatma Gandhi's major all-India satyagraha, or non-violent civil resistance, movements) and jailed for his participation, he never completed it. He married Majid ul-Nisa in 1919. They had one child, a son, who died at seven years of age. Late Rafi Sahab had five brothers, he himself was the eldest. other brothers were Late Shafi Ahmad Kidwai, Late Mehfooz Ahmad Kidwai, Late Ali Kamil Kidwai and Late Hussain kamil Kidwai.Now Fareed Kidwai s/o late Mehfooz Ahmad Kidwai is a MOS in UP govt. Other surviving nephews are Rishad Kamil Kidwai s/o Late Mehfooz Ahmed Kidwai, Mumtaz Kamil Kidwai s/o Late Ali Kamil Kidwai and Hasan Javed Kidwai s/o Husain kamil Kidwai.Kidwai suffered heart failure, precipitated by an attack of asthma, in the midst of a speech at a public meeting in Delhi and died shortly thereafter, on 24 October 1954. He was buried in his home village, Masauli, where a Mughal-style mausoleum was built over his grave. *A formidable fund-raiser for Congress movements and elections, he distributed his largesse to all and sundry, but died in debt, leaving behind only a decaying house in his home village.
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* 1965 में जब मैं सिलीगुड़ी में नवी कक्षा का छात्र था तब अपने हेड मास्टर साहब( डॉ कैलाशनाथ ओझा ) से भारत-पाक संघर्ष के दौरान रफ़ी अहमद किदवई साहब का ज़िक्र सुना था। डॉ ओझा साहब ने उनकी ईमानदारी की कई बातों का ज़िक्र किया था और बताया था कि नेहरू जी ने उनके मकबरे के लिए अनुमानित लागत से दुगुनी रकम मंजूर कराई थी। पूछे जाने पर नेहरू जी का जवाब था कि एक ईमानदार नेता का जैसा भव्य मकबरा वह चाहते हैं तभी बन सकेगा वरना अफसर-ठेकेदार कमीशन काट कर उसकी गुणवत्ता गिरा देंगे। 
*आज़ादी के तुरंत बाद काश्मीर को  महाराजा हरी सिंह (डॉ कर्ण सिंह के पिता श्री ) द्वारा स्वतंत्र घोषित करते ही पाकिस्तान ने कबाइलियों को आगे करके आक्रमण कर दिया था। सरदार पटेल ने रफ़ी साहब के परामर्श से उनके  गृह मंत्रालय में अधिकारी भाई साहब को साथ लेकर श्रीनगर प्रस्थान किया था तब उनके साथ बीजू पटनायक भी थे जिन्होने विमान चलाया था। हरी सिंह को भारत विलय का प्रस्ताव पास कराना पड़ा था। 
*आज़ादी के तुरंत बाद ही कलकत्ता के मारवाड़ी व्यापारी गल्ला तस्करी के जरिये बाहर भेज रहे थे और भारत में तंगी व मंहगाई की मार पड़ रही थी। रफ़ी साहब केंद्रीय खाद्य व कृषि मंत्री थे। उन्होने मारवाड़ी व्यापारी का वेश बना कर कलकत्ता के मारवाड़ी व्यापारियों से बात की और छिपे राशन का पता चलते ही उन पर छापा डलवा कर सारा राशन सस्ते गल्ले की दुकानों से जनता को वितरित करवा दिया था। 

मेरे लिए यह गर्व का विषय है कि मेरा संबंध रफ़ी साहब के ज़िला बाराबंकी (दरियाबाद ) से है और मैं भी अपने बाबा जी, बाबू जी व नाना जी की भांति ही आज भी ईमानदारी के मार्ग पर चल कर पग-पग पर काँटों का सामना कर रहा हूँ। 24 अक्तूबर रफ़ी अहमद किदवई साहब का स्मृति दिवस है तो  हमारे पिता जी स्व.ताजराज बली माथुर साहब का जन्मदिन है ।

"गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

बाबूजी का स्मृति चित्रण"

http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/10/blog-post_24.html 

--- विजय राजबली माथुर

4 comments:

  1. बहुत प्रेरक और सारगर्भित प्रस्तुति...काश आज के राज नेता भी इनसे कुछ सीख पाते...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (26-10-2014) को "मेहरबानी की कहानी” चर्चा मंच:1778 पर भी होगी।
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    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    प्रकाशोत्सव के महान त्यौहार दीपावली से जुड़े
    पंच पर्वों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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