पढ़े लिखे को फारसी क्या ...
मुगल काल में फारसी का बोल बाला था . फारसी पढ़ने वाला कभी बेकार नहीं रहता था . यही कारण था कि हिन्दुओं की कायस्थ बिरादरी ने फारसी को तरजीह दी . फारसी पढ़े लिखे होने के कारण कायस्थ लोग मुगल काल में बादशाहों व नवाबों के यहां मुनीम लग गये . उन्हें तनख्वाह के अतिरिक्त मनसबदारी व जागीरें भी मिलीं. तभी मुहावरा बना -पढ़े फारसी ,बेचें तेल.मतलब कि फारसी पढ़ा लिखा व्यक्ति तेल बेचने जैसा निकृष्ट काम कर हीं नहीं सकता . फारसी पढ़े लिखों की भाषा बन गयी .इसलिए एक और मुहावरा गढ़ा गया - पढ़े लिखे को फारसी क्या ? अर्थात् आदमी पढ़ा लिखा है तो फारसी जरूर जानता होगा .
आम तौर पर फारसी के साथ अरबी का नाम लिया जाता है , परंतु अरबी का फारसी से दूर का रिश्ता भी नहीं है . फारसी हिंद ईरानी भाषा है , इसलिए यह संस्कृत के निकट है. फारसी में संस्कृत के कुछ शब्द मूल रूप से मिलते हैं तो कुछ अपभ्रंश के रुप में -
मूल रुप
संस्कृत फारसी हिंदी
कपि कपि बानर
नर नर पुरूष
दूर दूर दूर
दन्त. दन्त दांत
गौ गौ (गऊ) गाय
नव नव. नया
अपभ्रंश रुप
संस्कृत फारसी हिंदी
हस्त दस्त हाथ
शत सद सौ
अस्ति अस्त है
मद मय शराब
मातृ मादर मां
भ्रातृ बिरादर भाई
दुहितृ दुख्तर बेटी
फारसी पारस से बना है . ईरान के पारस का राजनीतिक उन्नयन सबसे पहले हुआ , इसलिए यूनानियों ने पूरे क्षेत्र को हीं पर्सिया कहना शुरू किया . पर्सिया से पारस बना. सातवीं सदी के अंत तक पारस पर अरबों का अधिकार हो गया था . अरबी भाषा के वर्णमाला में 'प' अक्षर नहीं है . वे प को फ कहते हैं . इसलिए अरबों ने पारस को फारस कहना शुरू किया . वहां बोली जाने वाली भाषा को फारसी नाम दिया गया . बाद में इस पूरे क्षेत्र को आर्यों के नाम पर आर्याना या ईरान कहा जाने लगा . वस्तुत: यहां के लोग आर्यन मूल के हैं . कभी हिमालय से उतर कर ये लोग पारस के मैदानों में विखर गये थे . इनके अवेस्ता धर्म ग्रंथ की कई छंद वेदों से मिलते जुलते हैं . कई तो वेदों के महज अनुवाद है . पहले ईरानियों की जेंद लिपि थी .बाद में इन्होंने अरबी लिपि को अपनाया .
फारसी आज विश्व के तकरीबन दस करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है . यह उजबेकिस्तान , अफगानिस्तान , ईरान , बहरीन व तजाकिस्तान के अतिरिक्त समस्त विश्व में बसे ईरानियों की भाषा है . यह अफगानिस्तान , ईरान व तजाकिस्तान की राज भाषा है . फारसी व हिंदी की कई कहावतें भी सांझी हैं. कुछ कहावतें यहां दी जा रहीं है , जिन्हें देखकर आपको लगेगा कि ये तो भारत की कहावतें हैं -
1) खरबूजा को देख खरबूजा रंग बदलता है .
2) जो ऊपर जाता है , वह नीचे गिरता है.
3) खूश्बू को इत्र बेचने वाले की सिफारिश नहीं चाहिए.
4) जो आज अण्डा चोरी करता है ,कल वह ऊंट भी चोरी करेगा .
5) नकल के लिए भी अकल की जरूरत होती है .
6) झूठे की याददाश्त बहुत कमजोर होती है .
7) तलवार का जख्म भर जाता है , पर जुबान का जख्म नहीं भरता .
8) मौन के वृक्ष पर शांति के फल लगते हैं .
9) एक झूठ हजार सच का नाश कर देता है .
10) बांटने से सुख दूना व दु:ख आधा हो जाता है.
आज दो तरह की फारसी प्रचलन में है . एक को "जुबान - ए - कूचा " और दूसरी को " जुबान - ए - अदबी " कहा जाता है . जुबान-ए-कूचा आम जन की भाषा है , जबकि जुबान-ए - अदबी साहित्य की भाषा है , जिसमें अब अरबी के शब्द जबरदस्ती घुसेड़े जाने लगे हैं . आश्चर्य की बात यह कि जिस फारसी भाषा का परचम कभी पूरे एशिया पर लहराया था , वही भाषा अब अरबी की बैशाखी मांग रही है . खैर, दिन रात बदलते हैं , हालात बदलते हैं . शायर एम ए कदीर के शब्दों में -
आस जो नीली पीली होती रहती है ,
मौसम में तब्दीली होती रहती है .
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देश 125 करोड़ भारतीयों का है।यहाँ के 30 करोड़ लोग मोदी जी से ज्यादा शिक्षित और गुणी हैं।इनमें से कोई भी मोदी जी से कहीं बेहतर भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है।..................मोदी जी बिन बुलाए पाकिस्तान जाकर भारतीय सैनिकों के खून से सना नवाज शरीफ के जन्मदिन का केक खाने वाले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री निकले।यही नहीं जब नवाज शरीफ ने आई एस आई की मदद से रिटर्न गिफ्ट के रूप में भारत को पठानकोट आतंकी हमला दिया तो भारत की कातिल पाकिस्तान की इसी आई एस आई को पठानकोट बुला कर कातिल से जाँच कराने वाले भी देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने।......................भाजपा में लगभग दो सौ से ज्यादा सांसद ऐसे होंगे जो मोदी जी से ज्यादा पढ़ेलिखे और काबिल हैं और मौका मिले तो मोदी जी से कहीं बेहतर प्रधानमंत्री साबित होंगे।.....कल कोई और होगा और यकीन मानिए मोदी जी से कहीं बेहतर होगा------------------
२२-०६-२०१७
#क्या देश नरेन्द्र मोदी के अलावा सक्षम प्रधानमंत्री पाने के मामले में विकल्पहीन हो गया है?#
एक सधी हुई रणनीति के तहत अक्सर भाजपा भक्त यही प्रश्न करते हैं कि माना मोदी जी बहुत सारे वादे पूरा नहीं कर पा रहे हैं व शासन में कुछ कमियाँ हैं तो आप ही बताईये कि वर्तमान में मोदी का क्या विकल्प है।प्रायोजित ढ़ंग से वही स्थिति बनाने की कोशिश की जा रही है कि जैसे "मोदी इज़ इंडिया एण्ड़ इंडिया इज़ मोदी"। जैसा कभी स्व० इन्दिरा गाँधी के लिए कहा जाता था कि,"इन्दिरा इज़ इंडिया एण्ड़ इंडिया इज़ इन्दिरा"।
आइए आज इतिहास के आईने से वर्तमान का जवाब तलाशते हैं।
ये देश 125 करोड़ भारतीयों का है।यहाँ के 30 करोड़ लोग मोदी जी से ज्यादा शिक्षित और गुणी हैं।इनमें से कोई भी मोदी जी से कहीं बेहतर भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है।केवल लोकलुभाना भाषण देने से सक्षम प्रधानमंत्री नही हो जाता।मोदी जी जब विपक्ष में थे तो ऐसा ललकारते थे कि लगता था कि उनके सत्ता में आते ही पाकिस्तान विश्व के नक्शे से गायब हो जाएगा और चीन चूहे की तरह बिल में दुबक जाएगा।हुआ बिल्कुल उल्टा मोदी जी बिन बुलाए पाकिस्तान जाकर भारतीय सैनिकों के खून से सना नवाज शरीफ के जन्मदिन का केक खाने वाले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री निकले।यही नहीं जब नवाज शरीफ ने आई एस आई की मदद से रिटर्न गिफ्ट के रूप में भारत को पठानकोट आतंकी हमला दिया तो भारत की कातिल पाकिस्तान की इसी आई एस आई को पठानकोट बुला कर कातिल से जाँच कराने वाले भी देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने।इसके विपरीत जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे तो विद्वानों को यह चिन्ता सताती थी कि नेहरू के बाद कौन? और फिर नेहरू जी की मृत्यु के बाद लाईम लॉईट से दूर रहने वाले अत्यन्त साधारण ,सौम्य और मितभाषी आदरणीय लाल बहादुर शास्त्री जी देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने और ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल बने।इसी तरह जब अचानक असमय ही लाल बहादुर शास्त्री जी कालकवलित हो गये तो यह समझ में नहीं आ रहा था कि चुनौती की इस घड़ी में देश को कौन सम्हालेगा।उस समय तक यद्यपि इन्दिरा गाँधी जी सांसद और कैबिनेट मंत्री का अनुभव रखती थीं लेकिन उनको बोलते हुए बहुधा नहीं पाया जाता था
वो मौन रहना पसन्द करती थीं।मोरारजी देसाई और श्री जयप्रकाश नारायण जी उन्हें #गूँगी गुड़िया# कहा करते थे।यही गूँगी गुड़िया इन्दिरा गाँधी जी जब भारत की प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने पाकिस्तान का इतिहास और भूगोल दोनों एक साथ बदल दिया और एक नये देश बांग्लादेश को जन्म दे दिया।इसी तरह अनिच्छा से राजनीति में आए मितभाषी और भद्र युवा प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने देश को कम्प्यूटर,संचार और डिजिटल क्रांति के माध्यम से 21 वी सदी में प्रवेशित करा दिया।इसी तरह एक अर्थशास्त्री और मौन रहने वाले मनमोहन सिंह जिनमें नेतागिरी का कोई गुण नहीं था ने राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी दो बार लगातार प्रधानमंत्री बनने का कारनामा कर दिखाया और मौन रहकर देश को आर्थिक प्रगति और उदारीकरण की राह दिखाई।आज मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं कल कोई और होगा और यकीन मानिए मोदी जी से कहीं बेहतर होगा।भाजपा में लगभग दो सौ से ज्यादा सांसद ऐसे होंगे जो मोदी जी से ज्यादा पढ़ेलिखे और काबिल हैं और मौका मिले तो मोदी जी से कहीं बेहतर प्रधानमंत्री साबित होंगे।यह टैलेंट से भरा देश है और यहाँ प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है।ऐसा कहना कि वर्तमान में मोदी का कोई विकल्प नहीं है देश के 125 करोड़ टैलेन्टेड भारतीयों का अपमान हैं।जो देश विश्व गुरू बनने की क्षमता रखता है जिसके वैज्ञानिक नासा में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हों, जिस देश का इसरो अपने योग्यतम वैज्ञानिकों के दम पर विश्व कीर्तिमान रच रहा हो।जो देश योग्यतम वैज्ञानिकों,शिक्षाविदों, प्रशासकों आदि से भरापुरा हो वह प्रधानमंत्री के सन्दर्भ में कभी भी विकल्पहीन नहीं हो सकता है।ऐसा कहने वाले कि वर्तमान में मोदी का कोई विकल्प नहीं है, प्रतिभाओं से भरे देश का अपमान करते हैं।कृपया निराशावादी ना बने।ये महान देश ना कभी रूका है ना कभी रूकेगा।
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सुधांशु रंजन जी का यह लेख नौकरशाही की अंदरूनी असलियत को उजागर करता है। दोषी नौकरशाह को बचाने के लिए वर्तमान और निवर्तमान नौकरशाह एकमत हैं। लेकिन जिस ईमानदार महिला IAS को हत्या की धमकियाँ माफिया खुलेआम दे रहा है उसके पक्ष में नौकरशाही मौन है उसके लिए क्यों आवाज़ नहीं उठ रही ?
(विजय राजबली माथुर )
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01-06-2017
1996 में जब तालिबान की सरकार अफगानिस्तान में बनी तब इस्लाम के मानने वालों को लगा कि अब तो मानो अबु बकर सिद्दीक की खिलाफत आ चुकी है, हर तरफ इंसाफ ही इंसाफ होगा... धर्म के नाम पे चलने वाला मूवमेंट सत्ता में आ गया था। किसी का हक नही मारा जाएगा, किसी के साथ अन्याय नही होगा। इसी विश्वाश के साथ सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने तालिबानी आंदोलन को समर्थन दे दिया, पाकिस्तान तो पहले से समर्थन में था।
किन्तु हुआ इसका उल्टा.. तालिबान को हर तरफ शिर्क बिदअत कुफ्र बेपर्दगी अश्लीलता अधर्म नजर आने लगा। चरमपंथ उस स्तर पे जा पंहुचा था कि किसी औरत को बिना बुर्खे के देख लेते तो भीड़ उसपे दुराचार का आरोप लगाकर सरेआम कत्ल कर देती। शक के आधार पे किसी का भी कत्ल कर देना आम बात थी।
तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर में कोई योग्यता नही थी, ना ही उसके चेलों में देश चलाने लायक कुछ था। अफगानिस्तान की जनता ने सिर्फ धर्म की ठेकेदारी का लेबल देखकर इन्हें शीर्ष पे बैठाया.. इन्होंने उसी जनता को डसना शुरू कर दिया।
तालिबान का उदय कोई अचानक से नही हुआ, बल्कि ये अफगानिस्तान के गर्भाशय में कई वर्षो से पल रहा था। इसकी सरंचना कट्टरपंथी इस्लाम की बुनियाद पे थी। तालिबान ने पूरी दुनिया में इस्लाम की छवि को बुरी तरह धूमिल किया।
अंतः कुछ ही वर्षो बाद 2001 में इसका सर कुचलने शुरुआत हुई। सर कुचलने में नाटो सेना का सहयोग इस्लामिक मुल्कों ने किया मगर नाटो भी खून के प्यासे निकले, उनके दिलों दिमाग में मौत का इतना खौफ था कि उन्होंने अफगानिस्तान के आम नागरिकों को मारना शुरू कर दिया। ये तालिबानियों से बड़े विध्वंशकारी बनकर उभरे।
अब आप तालिबान की कहानी को भारत में ढूंढिये...
* तालिबानी शाशन में भीड़ इंसाफ करती थी,सजा देती थी.. भारत में भी आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है
* तालीबानी व्यवस्था में हर व्यक्ति जो तालिबान का समर्थक था उसे ये अधिकार था कि वो लोगो को अपने हिसाब से हांक सके.. यहां भी एंटी रोमियो, गौ रक्षक जैसे दर्जन भर संघटन "पुलिस और आर्मी" का काम करते है। जो काम प्रसाशन का होता है वो ड्यूटी ये करते है।
*तालिबान में उन्मादी भीड़ को प्रसाशन का समर्थन हुआ करता था। यहां भी उपद्रवी भीड़ के साथ पुलिस मूकदर्शक बनी देखी गयी है। पुलिस की मौजूदगी में कत्ल होते है यहां.. पत्थरबाजी, दंगे फसाद आगज़नी होती है।
*मुल्ला उमर के संघटन तालिबान का समर्थन बहुसंख्यक धर्मांध लोगो ने सिर्फ इसलिए किया क्योकि उन्हें लगा की अब शुद्ध 24 कैरेट खलीफा राज आएगा दुनिया में.. यहां भी बहुसंख्यको को हिन्दुराष्ट्र का सब्जबाज़ दिखाया गया है और वे मन मग्न होकर देख भी रहे है।
* तालिबान अपनी धार्मिक मान्यताएं लोगो पे थोपता था, ऐसा ही कुछ यहां भी हो रहा है। आपकी हांड़ी में क्या पका है इसका जायज़ा सरकार और उसकी छाँव में पल रहे संघटन लेते फिर रहे है। वहां बुर्खे टोपी पाजामे में धार्मिक भावनाएं हुआ करती थी और यहां लोगो की हांडियों में धार्मिक भावनाएं होती है।
* तालिबानी मोमिन का प्रमाणपत्र जेब में रखते थे, इस्लाम प्रमाणित ना होने पे कत्ल कर देते थे.. यहां देशभक्ति के प्रमाणपत्र जेब में रखे जाते है और प्रमाणित ना होने पे कत्ल कर दिया जाता है। ये देशभक्त कभी भी घूसखोरों के घर जाकर नही जलाते, इनका निशाना हमेशा पिछड़े कुचले लोग होते है जिन्हें पता भी नही की भारत की सीमा शुरू कहाँ से होती है और खत्म कहाँ..
* तालिबान ने शीर्ष पदों पे उन्हें बैठाया जो अपने धर्म के सबसे बड़े कट्टर थे।
*तालिबान का अंतिम लक्ष्य पुरे में विश्व में अपने धर्म को श्रेष्ठ बताकर सभी पे थोपना था। उनके कट्टरपंथी इस्लाम ने उन्हें महज 5 साल बाद धूल फांकने पे मजबूर कर दिया।
*अफगानिस्तान तो बच गया 5 साल बाद,क्योँ की वहां EVM से चुनाव नही हुआ था,बाकी भारत का देखते है।
#डॉक्टर_रिजी_रिज़वान
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साभार :
नवभारत टाईम्स, लखनऊ, 31-05-2017, पृष्ठ --- 12