Monday, 22 October 2018

रावण - दहन प्रथा खत्म करें राष्ट्रपति ------ स्वामी अधोक्षजानन्द देव,पुरी शंकराचार्य

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 राष्ट्रपति महोदय से  स्वामी अधोक्षजानन्द देव,पुरी शंकराचार्य द्वारा रावण - दहन प्रथा खत्म करने की मांग सर्वथा उचित , सराहनीय व समर्थनीय है। 
रावण प्रकांड विद्वान और प्रवासी आर्य शासक था। उसे दसों दिशाओं यथा --- पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण,ईशान ( उत्तर - पूर्व ),आग्नेय (दक्षिण -पूर्व ),वावव्य ( उत्तर -पश्चिम ),नैऋत्य (दक्षिण - पश्चिम ),आकाश (अन्तरिक्ष )और पाताल (भू- गर्भ ) का विस्तृत ज्ञान रखने के कारण दशानन कहा गया था । रावण का पुतला दहन करने वाले दस सिर लगा कर अपने अज्ञान का ही प्रदर्शन करते हैं , हाँ ऐसे मेले - तमाशों द्वारा व्यापारियों और ढ़ोंगी पुजारियों का अर्थ - लाभ जरूर हो जाता है। 
रावण ने प्रवासी आर्यों ऐरावण और कुंभकरण के सहयोग से मूल आर्य देश भारत को घेरने का जो प्रयास किया था उसे ध्वस्त करने हेतु राम को वनवास के माध्यम लंका के शासक रावण से युद्ध करना पड़ा था। कूटनीति के द्वारा सीता को लंका में पहले ही प्रविष्ट करा दिया था जो रिंग ट्रांस मीटर के जरिये वहाँ की सूचनाएँ राम के पास भेजती रहती थीं। एयर मार्शल ( वायु - नर  जिसका अपभ्रंश वानर हो गया ) हनुमान लंका की फौज और खजाना उन सूचनाओं के आधार पर ही अग्नि बमों द्वारा नष्ट करके लौटते मे  वह रिंग ट्रांसमीटर  सीता से लेते आए थे। 
राम - रावण युद्ध साम्राज्यवाद के विरुद्ध जन - संघर्ष था लेकिन आज राम के नाम का दुरुपयोग साम्राज्यवाद को शक्तिशाली बनाने के लिए किया जा रहा है। 
दशहरा पर्व राम द्वारा पंपापुर की राजधानी किष्किंधा से लंका की ओर प्रस्थान करने की यादगार के रूप में था इस दिन रावण - दहन की प्रथा ही अप्रासांगिक है। अतः स्वामी अधोक्षजानन्द देव जी द्वारा रावण - दहन बंद करने की मांग बिलकुल जायज है। 




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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