चुनाव और फिक्स व्यवस्थाएँ :-
देश में लोक सभा चुनाव की घोषणा हो गयी , और कल चुनाव आयोग ने "फिक्स घोषणा" करके "फिक्स चरणों" के साथ चुनाव के "फिक्स दिन और तारीख" का ऐलान कर दिया।
चुनाव अयोग की यह फिक्सिंग केन्द्र की मोदी और भाजपा के साथ है और उसी को चुनाव में लाभ पहुचाने के लिए उनके ही सलाह या निर्देश पर हर प्रदेश में कम या अधिक चरण निर्धारित किए गये।
दरअसल मोदी और भाजपा , देश की व्यवस्था का अपने पक्ष में प्रयोग करने के स्पेशलिस्ट हैं , और चुनाव आयोग की चुनाव कराने के लिए सुरक्षा बलों की नियुक्ति के कारण गृहमंत्रालय पर निर्भरता ही इस चुनाव फिक्सिंग का मुख्य आधार है जिस पर कोई सवाल भी नहीं उठा सकता और भाजपा को इसका सीधा लाभ भी पहुँच जाएगा।
बाकी मुख्य चुनाव आयुक्त हैं ही , कल उनकी प्रेस काँफ्रेन्स देख रहा था , हकीकत में उनको 1•5 घंटे देख कर मैं स्पष्ट रूप से कह सकता हूँ कि मैं उनको अपने आफिस में क्लर्क भी ना रखूँ , पर वह दुर्भाग्य से देश के मुख्य चुनाव आयुक्त हैं।
दरअसल ऐसे ही मेमने चुनाव आयोग की चुनाव की घोषणा , प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकारी पैसे से 100 वीं रैली के खत्म होने के 24 घंटे बाद की गयी , पहले हो जाती तो मोदी यह शतक ना बना पाते , हो सकता है कि यह संयोग हो , पयन्तु यह भी गज़ब का संयोग है कि हर संयोग मोदी और भाजपा के पक्ष में ही होता है।
यह संयोग नहीं "फिक्सिंग" है। देखिए उसके साक्ष्य :
जिन प्रदेशों में भाजपा की स्पष्ट बढ़त है वहाँ चुनाव 1 चरण में ही निबटाए जाएँगे , जैसे गुजरात। परन्तु जिन प्रदेशों में विपक्षी गठबंधन के सामने भाजपा और मोदी के रथ का पहिया फस चुका है वहाँ 5-6 चरण में चुनाव होंगे जिससे भाजपा और मोदी को अपने पूरे संसाधनों को झोंकने का अवसर मिले और एक चरण में यदि भाजपा के विरुद्ध वोटिंग हुई तो दूसरे या आगे के चरण में कोई नया जुमला फेंक कर इससे बढ़त ली जा सके।
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य इसके स्पष्ट उदाहरण हैं , और मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा यह सब मोदी , मोदी सरकार और भाजपा के साथ साँठ गाँठ करके कर रहे हैं।
एक खेल मीडिया भी चुनाव की घोषणा होते ही करने लगी , कल एबीपी न्यूज़ पर सर्वे के नाम से भ्रम फैलाने और भाजपा को स्ट्रेटजिक लाभ पहुँचाने वाले आँकड़े प्रसारित होने लगे। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा काँग्रेस के साथ ना आए इसलिए यहाँ गठबंधन को बढ़त दिखा दी गयी तो बिहार में तेजस्वी और राजद , काँग्रेस से दूर हो जाएँ इसलिए वहाँ काँग्रेस को शून्य सीट देकर निस्प्रभावी बना दिया।
विरोधी नेता मीडिया और चुनाव आयोग से सतर्क रहें क्युँकि अगले दो महीने यह दोनों खुला खेल खेलने वाले हैं।
एबीपी न्युज़ से निकाले जाने वाले पुण्य प्रसून बाजपेयी ने कई मंचों से कहा कि अमित शाह द्वारा फोन करके उनको धमकाया गया कि "तुम राजनीति में क्युँ नहीं आ जाते"
और फिर पुण्य प्रसून बाजपेयी , अभिसार शर्मा और मिलिंद खांडेकर का एबीपी न्यूज़ से इस्तीफा लेकर पैदल कर दिया और एबीवीपी मोदी भक्ति में लग गया। इनका सिस्टम को अपने पक्ष में करने का यही तरीका है , और फिर जस्टिस लोया सबके सामने उदाहरण तो हैं ही।
विपक्षी दल अब भी सावधान हो जाएँ और एक हो जाएँ क्युँकि रंगा बिल्ला कुछ भी कर सकते हैं।
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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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