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गांधी की मूर्ति पर फूल और विचारों पर धूल
तमाशा
सिटी
नवीन जोशी
जमाना हुआ, गांधी-स्मरण एक रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं रह गया। सच्चाई, सादगी, क्षमा, अहिंसा और प्रेम को जीवन में उतार लेने वाले महात्मा की स्मृति का भव्य तमाशा करने वालों का आचरण सर्वथा उनके मूल्यों के विपरीत है। उनके वास्तविक अनुयायी तो अब शायद ही कहीं हों। प्रत्येक राजनैतिक दल उनका असली वारिस होने का दावा कर रहा है, लेकिन सभी ने गांधी के मूल्य और विचार बिल्कुल ही त्याग दिए।
गांधी कहते थे, विशेष रूप से सत्ता में बैठे लोगों के लिए कि जब कभी यह असमंजस हो कि क्या फैसला लें तो सबसे पिछड़े और गरीब इंसान का ध्यान करो और उसके हित के लिए फैसला करो। होता इसके ठीक विपरीत है। यहां नाम गरीब और असहाय का लिया जाता है, लेकिन अधिसंख्य फैसले उन्हें लाभ पहुंचाते हैं, जो कतार में काफी आगे पहुंच चुके हैं। गरीब और असहाय को न्याय मिलने की उम्मीद दिन पर दिन कम होती जा रही है।
देश के गरीबों को देखकर गांधी ने अपने आधे वस्त्र त्याग दिए थे। आज गांधी के तथाकथित भक्त गरीबों-असहायों का रहा-बचा भी लूट ले रहे हैं। गांधी दूसरे की गलती से व्यथित होकर और दंगा शांत करवाने के लिए अपने को सजा देते थे।
आज अपने तमाम दोषों को छुपाकर, पीड़ित को ही दोषी साबित करने और सजा दिलवाने की साजिश होती है।
अन्याय करने वाला जितना बड़ा है, कानून के हाथ उस तक पहुंचने में उतनी ही टालमटोल करते हैं या पहुंचते ही नहीं। चिन्मयानंद पर संगीन आरोप होने के बावजूद उसकी गिरफ्तारी बहुत देर और बड़ी मुश्किल में हुई। पीड़िता फौरन जेल भेज दी गई। हो सकता है कि लड़की के खिलाफ कुछ मामला बनता हो, लेकिन क्या चिन्मयानंद के खिलाफ उससे कहीं अधिक गंभीर मामला शुरू से ही नहीं बनता था/ गिरफ्तार करने के बाद भी उन्हें कई दिन अस्पताल की सुविधाओं में रखा गया। लड़की तुरंत जेल की कोठरी में बंद कर दी गई।
कितने ही मामले हैं, जिनमें कमजोर और उत्पीड़ित का पक्ष सुना नहीं जाता या इतनी देर कर दी जाती है कि ताकतवर अभियुक्त के खिलाफ प्रमाण ही न मिल पाएं। विधायक कुलदीप सेंगर का
मामला देख लीजिए। शिकायत दर्ज करवाने के बाद पीड़ित लड़की और उसके परिवार पर कितने अत्याचार होते रहे। विधायक की गिरफ्तारी में यथासंभव देर की गई। वह लड़की, उसके परिवार और गवाहों को तोड़ने व रास्ते से हटाने की साजिश रचता रहा। जो उत्पीड़क है, प्रभावशाली अपराधी है, वह निश्चिंत है। भय ही नहीं उसे। भागा-भागा वह फिर रहा है, जो सताया गया है। यह अपवाद नहीं, आम है।
झाड़ू लगाकर और शौचालय बनवाकर गांधी का अनुयायी बना जा सकता है क्या ? गांधी भौतिक नहीं, आत्मिक शुचिता को जीवन में उतारने की बात करते थे। सत्य की दृढ़ता से गांधी ने जग जीत लिया। आज कोई नेता सच का सामना करना ही नहीं चाहता। निर्दोषों की मॉब लिंचिंग जैसे भयानक अपराध को सत्तापक्ष सुनने-समझने को तैयार नहीं है। एक चौरी-चौरा कांड के कारण गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया था। यहां मॉब लिंचिंग के साथ-साथ गांधी की मूर्ति के चरणों में शीश नवाया जा रहा है।
गांधी से बड़ा हिंदू और राम-भक्त कौन है ? हिंदू गांधी गाय से भी प्रेम करते थे और राम से भी, लेकिन गाय या राम के नाम पर किसी की हत्या उन्हें हरगिज मंजूर न थी। उनके लिए हिंदू होने का अर्थ उतना ही मुसलमान, सिख और ईसाई होना भी था।
अजब विडंबना है कि गांधी को पूजने वाले जान-बूझकर गांधी को समझना नहीं चाहते। 30 जनवरी 1948 के बाद से लगातार गांधी की हत्या जारी है।
http://epaper.navbharattimes.com/details/64429-79591-1.html
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
गांधी की मूर्ति पर फूल और विचारों पर धूल
तमाशा
सिटी
नवीन जोशी
जमाना हुआ, गांधी-स्मरण एक रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं रह गया। सच्चाई, सादगी, क्षमा, अहिंसा और प्रेम को जीवन में उतार लेने वाले महात्मा की स्मृति का भव्य तमाशा करने वालों का आचरण सर्वथा उनके मूल्यों के विपरीत है। उनके वास्तविक अनुयायी तो अब शायद ही कहीं हों। प्रत्येक राजनैतिक दल उनका असली वारिस होने का दावा कर रहा है, लेकिन सभी ने गांधी के मूल्य और विचार बिल्कुल ही त्याग दिए।
गांधी कहते थे, विशेष रूप से सत्ता में बैठे लोगों के लिए कि जब कभी यह असमंजस हो कि क्या फैसला लें तो सबसे पिछड़े और गरीब इंसान का ध्यान करो और उसके हित के लिए फैसला करो। होता इसके ठीक विपरीत है। यहां नाम गरीब और असहाय का लिया जाता है, लेकिन अधिसंख्य फैसले उन्हें लाभ पहुंचाते हैं, जो कतार में काफी आगे पहुंच चुके हैं। गरीब और असहाय को न्याय मिलने की उम्मीद दिन पर दिन कम होती जा रही है।
देश के गरीबों को देखकर गांधी ने अपने आधे वस्त्र त्याग दिए थे। आज गांधी के तथाकथित भक्त गरीबों-असहायों का रहा-बचा भी लूट ले रहे हैं। गांधी दूसरे की गलती से व्यथित होकर और दंगा शांत करवाने के लिए अपने को सजा देते थे।
आज अपने तमाम दोषों को छुपाकर, पीड़ित को ही दोषी साबित करने और सजा दिलवाने की साजिश होती है।
अन्याय करने वाला जितना बड़ा है, कानून के हाथ उस तक पहुंचने में उतनी ही टालमटोल करते हैं या पहुंचते ही नहीं। चिन्मयानंद पर संगीन आरोप होने के बावजूद उसकी गिरफ्तारी बहुत देर और बड़ी मुश्किल में हुई। पीड़िता फौरन जेल भेज दी गई। हो सकता है कि लड़की के खिलाफ कुछ मामला बनता हो, लेकिन क्या चिन्मयानंद के खिलाफ उससे कहीं अधिक गंभीर मामला शुरू से ही नहीं बनता था/ गिरफ्तार करने के बाद भी उन्हें कई दिन अस्पताल की सुविधाओं में रखा गया। लड़की तुरंत जेल की कोठरी में बंद कर दी गई।
कितने ही मामले हैं, जिनमें कमजोर और उत्पीड़ित का पक्ष सुना नहीं जाता या इतनी देर कर दी जाती है कि ताकतवर अभियुक्त के खिलाफ प्रमाण ही न मिल पाएं। विधायक कुलदीप सेंगर का
मामला देख लीजिए। शिकायत दर्ज करवाने के बाद पीड़ित लड़की और उसके परिवार पर कितने अत्याचार होते रहे। विधायक की गिरफ्तारी में यथासंभव देर की गई। वह लड़की, उसके परिवार और गवाहों को तोड़ने व रास्ते से हटाने की साजिश रचता रहा। जो उत्पीड़क है, प्रभावशाली अपराधी है, वह निश्चिंत है। भय ही नहीं उसे। भागा-भागा वह फिर रहा है, जो सताया गया है। यह अपवाद नहीं, आम है।
झाड़ू लगाकर और शौचालय बनवाकर गांधी का अनुयायी बना जा सकता है क्या ? गांधी भौतिक नहीं, आत्मिक शुचिता को जीवन में उतारने की बात करते थे। सत्य की दृढ़ता से गांधी ने जग जीत लिया। आज कोई नेता सच का सामना करना ही नहीं चाहता। निर्दोषों की मॉब लिंचिंग जैसे भयानक अपराध को सत्तापक्ष सुनने-समझने को तैयार नहीं है। एक चौरी-चौरा कांड के कारण गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया था। यहां मॉब लिंचिंग के साथ-साथ गांधी की मूर्ति के चरणों में शीश नवाया जा रहा है।
गांधी से बड़ा हिंदू और राम-भक्त कौन है ? हिंदू गांधी गाय से भी प्रेम करते थे और राम से भी, लेकिन गाय या राम के नाम पर किसी की हत्या उन्हें हरगिज मंजूर न थी। उनके लिए हिंदू होने का अर्थ उतना ही मुसलमान, सिख और ईसाई होना भी था।
अजब विडंबना है कि गांधी को पूजने वाले जान-बूझकर गांधी को समझना नहीं चाहते। 30 जनवरी 1948 के बाद से लगातार गांधी की हत्या जारी है।
http://epaper.navbharattimes.com/details/64429-79591-1.html
मरने वाले को भी श्रद्धांजलि और मारने वाले को भी |
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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