Rashmi Tripathi
14-03-2020
एक वर्सेटाइल पर्सनैलिटी के धनी फारुख अब्दुल्ला साहब ने मुझे हमेशा बहुत आकर्षित किया, चाहे मंत्रमुग्ध होकर उनका रामधुन गाना हो या फिर मस्त होकर बॉलीवुड गानो पर नाचना या खुल कर अपनी बात को रखना ।पिछले सात महीने से जबसे धारा 370 समाप्त की गई उन पर पीसीए लगाकर उन्हें कैद में रखा गया था,कल उन्हें छोडा गया तो तमाम चर्चाएं शुरु हो गईं, बिना ये सोचे कि एक अस्सी बर्ष का इंसान जो कि सात महीनों की कैद में था उसकी मानसिक स्थिति इस समय क्या होगी ?
मैं इतना जानती हूं कि स्वतंत्रता के बाद कश्मीर को भारत में बने रहने के लिये सबसे ज्यादा प्रयत्न शायद इसी इंसान ने किये ।
और ये देशभक्ति उन्हें विरासत में मिली है।
मेडिकल साइंस के विद्यार्थी और इंग्लैंड में सफल पेशेवर चिकित्सक रह चुके आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी,डॉ फारूख अब्दुल्ला की ज़िंदगी बहुआयामी और दिलचस्प किरदारों को समेटे हुए है। फारुख के साथ विवाद भी कम नहीं जुड़ते हैं। पर हर स्थिति में ऊपर से बेफिक्र फारुख अब्दुल्ला अंदर से एक भावुक एवं गम्भीर इंसान हैं; और यदि तेवर में आ जाएं तो सामने सन्नाटा छा जाता है।
उनका एक चिकित्सक से लेकर जम्मू काश्मीर के 3 बार के मुख्यमंत्री तक का सफर; उनके परिवार का सप्रू ब्राह्मण(कौल) से लेकर इस्लाम अपनाने तक का सफर,इंगलैंड परस्ती के फैशन और क्रिकेट से लेकर आम कश्मीरी के जीवन मे घुल-मिल जाने का सफर, और कश्मीर में इस्लाम का परचम उठाने से लेकर माता के जयकारे तथा राम धुन गाने तक का सफर फारुख अब्दुल्ला के एक ऐसे विरोधाभासी किन्तु रोचक व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हैं जिससे आप सहमत न भी हों किन्तु उससे दूरी भी नहीं चाहेंगे।
सन 1890 तक अब्दुल्ला परिवार कश्मीरी ब्राह्मण था।इनका गोत्र सप्रू था और फारुख के परदादा का नाम पंडित राघवराम कौल था।इस्लाम स्वीकार करने के बाद इनके दादा का नाम शेख मुहम्मद इब्राहिम था।एक छोटे कारखाने के मालिक इस परिवार का पश्मीने का कारोबार था।ये लोग शाल-दुशाले के अच्छे व्यापारी थे।
कश्मीर की राजनीति में दखल रखने वाले फारुख के पिता शेख अब्दुल्ला जिनका पंडित नेहरू से अच्छा दोस्ताना था ने,1930 में "मुस्लिम कांफ्रेंस" के नाम से एक राजनीतिक दल की स्थापना की।बाद में देश के अन्य कट्टर मुस्लिम परस्तों से अपनी पृथक क्षवि बनाने के उद्देश्य से 1939 में इस दल का नाम बदल कर "नेशनल कांफ्रेंस" कर दिया गया।यह नाम अभी भी चल रहा है।आज़दी के दौर में नेहरू- गांधी का विश्वास शेख अब्दुल्ला पर था इसलिए उन्हें जम्मू कश्मीर रियासत का प्रधानमंत्री बनाया गया।इसी समय मे एक बार राजा हरिसिंह ने शेख अब्दुल्ला को जब गिरफ्तार करवा दिया तो नेहरु क्रोध में काश्मीर पहुंच गए थे।किन्तु,बाद में शेख अब्दुल्ला पर अंग्रेजों की शह पर पाकिस्तान के लिए जब जासूसी का आरोप लगा तो उन्हें कैद करके बख्शी गुलाम मोहम्मद को कश्मीर की कमान सौंपी गई।बख्शी गुलाम मो, शेख अब्दुल्ला सरकार में गृहमंत्री थे।
बाद में भी शेख अब्दुल्ला गिरफ्तार और रिहा होते रहे और अंत मे नेहरू की मृत्यु के पूर्व नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के बीच एक समझौता हो गया।कश्मीर के प्रधानमंत्री का पद मुख्यमंत्री में बदल दिया गया। 1983 में अपनी मृत्यु के पूर्व शेख अब्दुल्ला 3 बार कश्मीर के गृहमंत्री भी रहे। पिता शेख अब्दुल्ला की तरह फारुख अब्दुल्ला भी 3 बार कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे। बाद में उनका पुत्र उमर अब्दुल्ला भी जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बना और फारुख अब्दुल्ला कश्मीर का बन्द दायरा छोड़ कर सांसद बने और केंद्र की राहनीति में आ गए। कदाचित वे अपनी क्षवि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। समय-समय पर विवादों में घिरने वाले इस परिवार पर पाकिस्तान परस्ती के आरोप लगते रहे हैं जिसका कारण-कश्मीर के आंतरिक विशेष हालात अधिक रहे हैं,,,किन्तु यह भी सत्य है कि कश्मीरी अलगाववादी माहौल में फारूख और उनका परिवार भारत से जोड़े रखने की एक कड़ी के रूप में भी देखा और पहंचाना जाता है।
डॉ फारुख अब्दुल्ला को अपनी सेक्युलर छवि प्रदर्शित करने से विशेष लगाव है।उनकी पत्नी इंग्लैड से थींऔर पुत्र उमर अब्दुल्ला ने भी हिन्दू लडकी पायल से शादी की थी, फारुख अब्दुल्ला की बेटी सारा अब्दुल्ला राजस्थान के कद्दावर नेता रह चुके राजेश पायलट के पुत्र और कांग्रेसी सांसद सचिन पायलट की पत्नी है।जबकि उनकी मां भी स्कॉटलैंड मूल से थीं।
इस उम्र में भी युवाओं को मात देने का जज़्बा रखने वाले मस्तमौला फारुख अब्दुल्ला के अनेक वीडियो वायरल होते रहते हैं,जिनमे कभी शराब पीने के मंत्र का पाठ करते,कभी मंच से रामधुन गाते तो कभी तीर्थयात्रियों के साथ माता का जयकारा लगवाने वाले धार्मिक नेता के रूप में दिखाई पड़ जाते हैं। फारुख की गायन में पकड़ है और उम्र के हिसाब से वे डांस करने से भी परहेज नहीं करते हैं।
कुल मिला कर डॉ फारुख अब्दुल्ला एक ऐसे व्यक्तित्व के सियासतदान हैं जिनमे हर उम्र वर्ग के लोग रुचि रखते हैं।
साभार :
https://www.facebook.com/rashmi.tripathi.73113/posts/1548801625295373
Vibha Bharti with Dr Farooq Abdullah
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