Monday, 27 April 2020

खबर कैसे बनाई जाती है ? ------ श्याम मीरा सिंह

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Kailash Prakash Singh
२७-०४-२०२० 
आप जो अखबारों में पढ़ते हैं वह खबर कैसे बनाई जाती है।
बड़े पत्रकार हों या छोटे पत्रकार वे किसके दबाव में काम करते हैं ? इसे जानने के लिए श्याम मीरा सिंह की यह पोस्ट पढ़ी जानी चाहिए।———

भारतीय अखबारों की दुनिया का अंडरवर्ल्ड कौन है?
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कल अमर उजाला में फ्रंट पेज पर एक लीड स्टोरी थी "लॉकडाउन न होता तो एक लाख से ऊपर होते कोरोना मामले"। अमर उजाला की ये पहली पॉजिटिव न्यूज नहीं है लॉकडाउन के बाद से ही लगभग हर अखबार में "Positive News" की फ्लड आ रक्खी हैं। ये किस कदर की भ्रामक खबर है आप इस आंकड़े से ही जान लेंगे, 24 मार्च के दिन तक पूरे देश में कुल 1100 के करीब मामले थे, जबकि आज प्रतिदिन के हिसाब से 1300 से अधिक मामले बढ़ रहे हैं। लेकिन अखबार का कहना है कि लॉकडाउन न होता तो हर तीसरे दिन कोरोना मामलों की संख्या दोगुनी होती। ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है न ही किसी संस्थान से ऐसा कोई अध्ययन पब्लिश हुआ है, अखबार असली आंकड़ों पर बात न करके, आपको अपने अनुमान बता रहा है। एकदम निजी अनुमान। वह भी अपनी लीड स्टोरी में पहले पेज पर। एक तरह से ऐसी खबरें आपके मन में ये डालने के लिए हैं कि लॉकडाउन सफल हुआ है। आप सरकार से सवाल मत करिए कि इतने दिन में क्या कुछ किया। अमर उजाला ऐसा अकेला अखबार नहीं है, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, उड़िया पोस्ट, पंजाब केसरी से लेकर अंग्रेजी के वामपंथी अखबार कहे जाने वाले अखबार "द हिन्दू और द इंडियन एक्सप्रेस" और हिंदुस्तान टाइम्स में भी अब केवल कथित पॉजिटिव खबरें ही आ रही हैं। ये कोई आम पैटर्न नहीं है। आपको पता भी नहीं इस गेम के पीछे कौन से अदृश्य हाथ काम कर रहे हैं। मोदी मीडिया पहले से ही यही कर रही है लेकिन 24 मार्च के बाद से ही ये पैटर्न और अधिक बढ़ गया है। इसके पीछे के कारण को जानना चाहते हैं तो अपने पूर्वाग्रहों को एक बगल में रखिए, और ध्यान से पढ़िए।
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24 मार्च के दिन रात 8 बजे देशभर में लॉकडाउन घोषित किया गया था, इससे ठीक 6 घण्टे पहले प्रधानमंत्री ने देशभर के बड़े-बड़े अखबारों और रीजनल अखबारों के मालिकों और सम्पादकों के साथ एक मीटिंग की। इस मीटिंग का उद्देश्य घोषित किया कि कोरोना एक बड़ी बीमारी है। अफवाहों का बाजार गर्म है। अखबारों से निवेदन की भाषा में कहा गया कि अफवाहों को खत्म करने के लिए और लोगों को पैनिक होने से रोकने के लिए आप लोग सरकार और जनता के बीच एक पूल का काम करें। इस पूरी खबर की जानकारी आपको नरेंद्र मोदी की खुद की वेबसाइट Narendramodi. in पर मिल जाएगी। जिसकी विस्तृत विवेचना की है द Caravan Magazine ने।

मीटिंग का पर्पज दिखाया गया कि अफवाहें रोकनी हैं, लोगों को पैनिक होने से रोकना है, लेकिन आपके लिए असल उद्देश्य समझना उतना भी मुश्किल नहीं है, यदि आप निस्पक्ष होकर इसे डीकोड करेंगे तो आराम से समझ सकेंगे कि प्रधानमंत्री ने इसी बहाने अखबारों और मालिकों को हिदायत दे दी कि कोरोना मसले पर किस तरह की खबरें करनी हैं और खबरों की प्रकृति को नाम दिया गया "पॉजिटिव न्यूज"।

पॉजिटिव न्यूज क्या होती हैं? पॉजिटिव न्यूज अखबारों की दुनिया में "सोने की ईंट" हैं। जैसे असल दुनिया में ठग पीतल की ईंट दिखाकर सोने की ईंट बताता है और भोले भाले लोगों को ठग ले जाते हैं ऐसे ही अखबारों की दुनिया में "पॉजिटिव न्यूज" से भोली-भाली जनता को ठगा जाता है।

ये मीटिंग एक तरह से सभी अखबारों के लिए एक निर्देश भी थी और एक तरह की चेतावनी भी थी। इस मीटिंग का स्वरूप प्रेस कॉन्फ्रेंस की तरह नहीं था जिसमें आमतौर पर अखबार प्रश्न पूछते हैं, प्रधानमंत्री जबाव देते हैं। बल्कि ये मीटिंग सिर्फ सजेशंस देने के लिए थी। कुल मिलाकर "सुझावों" के भेष में ये मीटिंग अखबारों पर एक दबाव क्रिएट करने के लिए थी।

इसके लिए एक उदाहरण समझिए। 28 मार्च के दिन दिल्ली के आंनद विहार बस टर्मिनल पर प्रवासी मजदूरों की भीड़ इकट्ठा हुई। इसकी एक वीडियो एक टीवी चैनल ने ऑन एयर चला दी। इसके तुरंत बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से उस टीवी चैनल को ईमेल आ गया। ईमेल में लिखा था "Please avoid, be cautious,’”

यहां "Be cautious" का अर्थ क्या था? आप सोचिए यदि समाचार चैनल और सोशल मीडिया मजदूरों की खबर न चलाती तो क्या सरकार इतनी सक्रियता के साथ काम करती? क्या समाचार चैनलों का काम सरकार और प्रधानमंत्री की स्तुति भर करना रह गया है? क्या आपको नहीं लगता इस ईमेल के बाद उस टीवी चैनल पर दबाव नहीं बना होगा? Obviously ऐसे एक ही ईमेल से खबर चलाने वाले को पशीने आ गए होंगे। ये ईमेल ही उसके लिए एक सरकारी निर्देश बन गया होगा। इस ईमेल का अर्थ कोई सुझाव या निवेदन नहीं था बल्कि वह आदेश ही था जिसके न माने जाने पर टीवी चैनल को सजा भुगतने के लिए तैयार रहना था।

सूचना प्रसारण मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) इस समय मीडिया का अंडरवर्ल्ड बन चुका है।

-लॉक डाउन के 1 दिन पहले यानी 23 मार्च के दिन प्रधानमंत्री ने अखबारों की तरह ही टीवी चैनलों के साथ भी मीटिंग की थी। जिसमें इंडिया टीवी एडिटर इन चीफ रजत शर्मा जैसे पत्रकार भी शामिल रहे।

-लॉकडाउन की घोषणा से 6 घण्टे अखबारों के साथ मीटिंग की ही थी और

-लॉकडाउन के अगले दिन प्रधानमंत्री ने देशभर के रेडियो जॉकी के साथ मीटिंग की थी।

इन सबमें एक ही प्रकार के इंस्ट्रक्शंस दिए गए थे कि "पॉजिटिव न्यूज" ही करनी है।

इसके परिणाम भी अगले दिन से ही आने शुरू हो गए। अगली सुबह ही पंजाब केसरी अखबार ने अपने फ़्रंट पेज पर क्या हेडलाइन लगाई देखिए- "आपको बचाने के लिए बार बार हाथ जोड़ते दिखे प्रधानमंत्री".

ये स्तर है आपके हिंदी अखबारों का, इसी पंजाब केसरी के मालिक हैं अविनाश चोपड़ा। अविनाश चौपड़ा भी प्रधानमंत्री की मीटिंग में शामिल थे। Caravan Magazine ने अविनाश चौपड़ा से इस मीटिंग के बारे में पूछा कि क्या प्रधानमंत्री की मीटिंग के बाद आपको सरकार की किसी पॉलिसी पर कोई क्रिटिक लिखना पड़े तो क्या आप लिखेंगे? अविनाश का जबाव था "नहीं"। अविनाश का मानना है कि प्रधानमंत्री जबर तरीके से लगे हुए हैं इसलिए केवल पॉजिटिव न्यूज ही छपेंगी।

अविनाश ही नहीं, Caravan Magazine ने ऐसे अलग-अलग अखबारों के 9 मालिकों, सम्पादकों से बात की थी जो मीटिंग में शामिल हुए थे। मैगज़ीन उनसे पूछा कि यदि आवश्यकता पड़ी तो क्या वे सरकार के किसी काम की आलोचना भी करेंगे? केवल 2 अखबारों ने ही "हामी" भरी। बाकी सब या तो जबाव देना ही टाल गए। या कोई क्लियर जबाव नहीं दिया। तीन अखबारों ने तो ये भी कहा कि वे किसी भी हाल में सरकार की आलोचना नहीं करेंगे।

ये पूरा वाकया आपको Caravan Magazine के एक आर्टिकल "Speaking Positivity to power" में मिल जाएगा।

प्रधानमंत्री की मीटिंग के बाद केवल हिंदी अखबारों को ही "पॉजिटिव न्यूज सिंड्रोम" नहीं हुआ है बल्कि अंग्रेजी के अखबारों भी उस रोग से पीड़ित हो गए। आप बीते दिनों में कोरोना मामलों को लेकर हिंदुस्तान टाइम्स की कवरेज पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि किस तरह से ये अखबार अपने पाठकों को मूर्ख बना रहे हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की एडिटर शोभना भारतीय भी प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में शामिल थीं। 24 मार्च के बाद से इस अखबार की रिपोर्टिंग देखिए-

1. 86 people in India beat Covid-19, nearly 10% of all coronavirus patients recover”

2.Govt forms empowered groups, task force to deal with Covid-19 outbreak”

3.India’s relief package vs the world’s

4.what more can Modi government do?

आपको इस अखबार की किसी भी खबर में सरकार के प्रति क्रिटिकल नजरिया नहीं मिलेगा।

आपातकाल के समय पत्रकारिता का झंडा बुलंद रखने वाले अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की टोन भी इस मीटिंग के बाद ढीली-ढीली सी हो चुकी है। हालांकि बाकी अखबारों, मीडिया के मुकाबले इंडियन एक्सप्रेस ने अभी भी काफी स्पेस बचाकर रखा हुआ है। लेकिन उसकी भी खबरों में "कोरोना से सम्बंधित समस्याएं तो बताई गईं हैं लेकिन ये नहीं बताया गया कि उपरोक्त समस्याओं के लिए जिम्मेदार कौन है।

जैसे 28 मार्च के दिन प्रवासी मजदूरों का संकट सामने आने के बाद एक्सप्रेस ने एक खबर की-- "Moving migrant crisis deepens at multiple points, worried states scramble to get a grip"।

इस खबर में समस्या तो बताई गई, लेकिन इस समस्या को लॉकडाउन का अपरिहार्य परिणाम ही मान लिया गया है। जैसे कि इसमें किसी की गलती है ही नहीं। अखबार ने समस्या तो बताई लेकिन इस समस्या के लिए सरकार के प्रबंधन पर, उसकी तैयारियों पर कोई प्रश्न नहीं किया। इंडियन एक्सप्रेस के मैनेजिंग डायरेक्टर विवेक गोइन्का भी प्रधानमंत्री के साथ हुई मीटिंग में शामिल हुए थे।

-Caravan Magazine ने इंडियन एक्सप्रेस के गोइन्का से इस मसले पर सवाल पूछा तो गोइन्का ने इस मीटिंग को अभूतपूर्व घटना बताते हुए प्रधानमंत्री को सराहा।

-पंजाब केसरी के मालिक अविनाश चौपड़ा ने तो प्रधानमंत्री को अलग से फोन कर के लॉकडाउन के लिए बधाई भी दी।

-राजस्थान पत्रिका के एडिटर इन चीफ गुलाब कोठारी ने प्रधानमंत्री की प्रशंसा में एक ब्लॉग भी लिखा।

-इनाडु ग्रुप (ईटीवी भारत) के मालिक रामोजी राव प्रधानमंत्री के उद्बोधन से ही गदगद हुए पड़े हैं

- महाराष्ट्र के लोकमत अखबार के जॉइंट मीडिया डायरेक्टर ऋषि डारदा ने प्रधानमंत्री के साथ की बैठक के अलग अलग पिक्चर्स के साथ ट्वीट किए।

हद्द तो तब हो गई जब द हिन्दू जैसे अखबार की को-चेयरपर्सन मालिनी पार्थसारथी ने भी ट्विटर पर प्रधानमंत्री के साथ बैठक पर गदगद होते हुए ट्वीट किया। प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक के बाद से ही मालिनी पार्थसारथी के ट्विटर हैंडल को जाकर देखेंगे तो लगभग सभी खबरें "पॉजिटिव" खबरों से भरी हुई ही मिलेंगीं।

ये हाल आपके हिंदी-अंग्रेजी अखबारों का हो चुका है। रीजनल अखबारों की तो आप बात ही छोड़ दीजिए।

सबको इस सरकार से डर है, ये सरकार बेहद निचले स्तर पर मीडिया को कंट्रोल किए हुए है। गिने-चुने संस्थान भी आखिर कब तक लड़ेंगे।

पॉजिटिव न्यूज अखबारों की दुनिया का ऐसा षड्यंत्र है जिसपर आप प्रश्न भी नहीं कर सकते। मीडिया, सरकार पर प्रश्न करने का एकमात्र माध्यम है। पॉजिटिव न्यूज फैलाने के लिए सरकार के पास एक पूरी मशीनरी है, आईटी सेल है, मंत्रालय है, गोदी मीडिया है, पार्टी है, सरकारी टीवी चैनल्स हैं। यदि बाकी बची मीडिया भी केवल पॉजिटिव न्यूज देने के काम में लग जाएगी तो प्रवासी मजदूरों, किसानों, हेल्थ वर्करों, आदिवासियों, अस्पतालों, वेन्टीलेटरों की बात कौन करेगा?

Syam meera Singh
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