Showing posts with label वेलनेस कंसल्टेंट. Show all posts
Showing posts with label वेलनेस कंसल्टेंट. Show all posts

Wednesday, 4 September 2019

ऐसा कुछ क्यों नहीं किया जाता, जिससे लोग बीमार ही न पड़ें : समीक्षा ------योगेश मिश्र

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )


http://epaper.navbharattimes.com/details/57321-77518-2.html




घर जैसा ही लगा लखनऊ : समीक्षा


टीवी की ऑडियंस फिल्मों से अलग है : 


जब मेरे करियर की शुरुआत हुई तो मुझे साउथ इंडस्ट्री की फिल्में मिलीं। इस पर मेरे घरवालों से लोग पूछते कि आपकी बेटी इतने दिनों से काम कर रही है पर अभी तक टीवी में दिखी नहीं। मैं भी टीवी सीरियल्स में काम करना चाहती थी। दरअसल, टॉलिवुड, बॉलिवुड और टीवी की ऑडियंस अलग-अलग होती है। मैं सभी ऑडियंस से जुड़ी रहना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि अपने काम को बेहतर तरीके से करूं। इसके लिए मैंने एक फिल्म करने के बाद दूसरी का इंतजार नहीं किया बल्कि टीवी में चली गई। मैंने टीवी को कभी छोटा नहीं माना।



वेलनेस कंसल्टेंट बनना चाहती थी :


मैं बचपन में वेलनेस कंसल्टेंट बनना चाहती थी। मेरी तब सोच थी कि लोगों के बीमार पड़ने के बाद ही डॉक्टर दवा क्यों देते हैं। ऐसा कुछ क्यों नहीं किया जाता, जिससे लोग बीमार ही न पड़ें। मैं सोचती थी कि बड़ी होकर इसी की पढ़ाई करूंगी। पर जब बड़ी हुई तो पता चला कि इसकी कोई पढ़ाई नहीं होती है। अगर स्वस्थ रहना है तो अच्छा खाना, अच्छा सोचना, रोजाना योग और एक्सरसाइज करनी पड़ेगी। 



साउथ की फिल्मों में डायलॉग्स


रटने पड़ते हैं   :


मेरे ऐक्टिंग करियर की शुरुआत साउथ की फिल्मों से हुई थी। वहां के हीरो के साथ नार्थ इंडिया की हिरोइनों को ही तवज्जो दी जाती है। यही वजह रही कि मुझे टॉलिवुड में खूब काम मिला और मिल भी रहा है। हालांकि, तमिल और कन्नड़ फिल्मों के डायलॉग्स में मुझे काफी मेहनत करनी पड़ती है। तमिल शब्दों का मतलब पता नहीं होता इसलिए ध्यान देना पड़ता है कि बोलते समय हाव-भाव सही हों। ऐसा न हो कि हम बात खुशी की कर रहे हों और हमारा चेहरा उदास लग रहा हो। डायलॉग रटने पड़ते हैं। बाकी सारी चीजें डब की जाती हैं।

क्रिएटिविटी से कोई समझौता नहीं

मैंने शो ‘जारा’ किया। यह करीबन दो साल का शो था। इसके बाद टीवी शो ‘यहां मैं घर घर खेली’ में काम किया। बाद में पता चला कि वह एक डेली सोप शो था। मुझे लगने लगा था कि वहां मेरी क्रिएटिविटी खत्म हो रही थी। वह डेली रूटीन वाली जॉब जैसा था। जीवन निरंतर चलने वाली यात्रा है। मैं एक जगह रुक नहीं सकती। इसलिए उस शो को मैंने एक महीने बाद छोड़ दिया। सोप शो में एक टारगेट मिल जाता है कि इतना आपको करना ही है। उसमें आप खुद से कोई क्रिएटिव ऐक्ट नहीं कर सकते।



विज्ञापन करने के बाद किस्मत ने ली करवट: 


मैं जब इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग कर रही थी, तभी एक ऐड के लिए ऑडिशन हो रहा था। ऑडिशन दिया और मुझे वो ऐड मिल गया। उसके होर्डिंग्स जगह-जगह लगाए गए। मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उस ऐड से मुझे फिल्मों में काम मिलने वाला था। एक दिन मुझसे तेलुगू फिल्म डायरेक्टर पुरी जगन्नाधजी ने संपर्क किया। उन्होंने फिल्म 143 में मुझसे लीड रोल के लिए कहा। मैं तमिलनाडु गई। वहां ऑडिशन के तौर पर केवल लुक टेस्ट होता है। डायरेक्टर के मन में उनकी कहानी के अनुसार, अगर आपका लुक है और प्लॉट के हिसाब से आप ऐक्टिंग कर लेते हैं, तो आपकी आधी परेशानी खत्म। इसी तरह संजीव जी को फिल्म प्रणाम के लिए मेरे भीतर ‘मंजरी’ दिखी। इसमें मंजरी आईएएस की तैयारी करती है। ऐसी लड़की चुलबुली नहीं हो सकती। संजीव जी को मेरे अंदर वो गंभीरता दिखी, जिसकी उन्हें जरूरत थी। बस इसी तरह मुझे फिल्म में लीड हिरोइन का किरदार मिल गया। 



‘प्रणाम’ में दिख रहा है


रियल इंडिया : 


आज के दौर में हर कोई मसाला फिल्में बना रहा है या कर रहा है। उनमें कहानियां चलती हैं और आखिर में हीरो गे निकलता है या हिरोइन लेस्बियन निकल जाती है। फिल्मों में ढेर सारी सेक्सुआलिटी और रोमांस परोसा जा रहा है। सबने अलग कहानी देने के चक्कर में रियल इंडिया को भुला दिया है। फिल्में मसालेदार, तड़केदार सब्जी की तरह हो गई हैं। वहीं, फिल्म प्रणाम साधारण दाल-चावल है। जब आदमी तरह-तरह के व्यंजन खाकर ऊब जाता है तो उसे दाल-चावल भी अच्छा लगता है। इस फिल्म में कोई वीएफएक्स इस्तेमाल नहीं हुआ। सारे सीन्स लखनऊ की रियल लोकेशंस पर शूट हुए हैं। इसकी कहानी मध्यम वर्गीय परिवार की है। इसमें रियल इंडिया है।


पढ़ाई में नहीं लगा मन : 


मेरी साइंस और मैथ्स अच्छी है तो इस वजह से घरवालों ने मुझे बीटेक में एडमिशन दिलवा दिया था। उसी दौरान मुझे एक ऐड मिला फिर साउथ की मूवी भी मिल गई। उसके बाद ऐक्टिंग का सफर शुरू हो गया। मुझे क्रिएटिविटी पसंद है। मेरे पास सभी सेमेस्टर के रिजल्ट हैं पर आखिर में मैंने घरवालों को बोल दिया था कि आगे मुझे टीवी और फिल्मों में ही करियर बनाना है। इसलिए अब पढ़ाई नहीं कर पाऊंगी। उसके बाद से कॉलेज वाली पढ़ाई नहीं की लेकिन खाली समय में किताबें जरूर पढ़ती हूं। आज मैं अपने सपनों को जी रही हूं।



योगेश मिश्र, लखनऊ



http://epaper.navbharattimes.com/details/57321-77518-2.html
 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश