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Thursday, 2 May 2019
Wednesday, 4 July 2018
Saturday, 14 April 2018
Wednesday, 27 December 2017
केंद्रीय मंत्री हेगड़े के बयान पर प्रो.अपूर्वानन्द के विचार द वायर के साथ
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वस्तुतः जैसा कि, प्रोफेसर अपूर्वानन्द ने विस्तृत रूप से स्पष्ट किया आर एस एस ने कभी भारतीय संविधान को स्वेच्छा से स्वीकार नहीं किया था उसने गांधी जी की हत्या के बाद अपने पर लगे प्रतिबंध को हटवाने हेतु दिखावे के लिए इसे माना था। संघ और इसके राजनीतिक मंच व अन्य आनुषांगिक संगठनों के माध्यम से निरंतर संविधान पर हमले होते रहे हैं। संविधान सभा की निर्मात्री समिति के चेयरमेन रहे डॉ भीमराव अंबेडकर के परिनिरवाण दिवस पर अयोध्या के विवादास्पद ढांचे को गिराते समय 06 दिसंबर 1992 दिये गए वक्तव्यों में साफ - साफ कहा गया था कि, यह ढांचा किसी बिल्डिंग का नहीं वरन संविधान का ढहाया गया है और शिलान्यास के समय उसे हिन्दू राष्ट्र की नींव रखना घोषित किया गया था।
पूर्वर्ती जनसंघ के नेता भारत में अमेरिकी राष्ट्रपति प्रणाली की तर्ज़ पर सीधे प्रधानमंत्री के चुनाव की मांग उठाते रहे थे। मधुकर दत्तात्रेय देवरस का दृष्टिकोण था कि जब ग्रामीण क्षेत्र का तीन प्रतिशत व शहरी क्षेत्र का दो प्रतिशत जनसमर्थन आर एस एस को मिल जाएगा तब वह देश में अपना अधिनायकत्व स्थापित कर सकेगा। 1975 में उन्होने एमर्जेंसी के दौरान इन्दिरा गांधी से कोई तथाकथित गुप्त समझौता भी किया था जिसके अंतर्गत 1980 में संघ के समर्थन से पूर्ण हिन्दू बहुमत से इन्दिरा कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई थी उसी के अंतर्गत 1985 के चुनाव में राजीव गांधी को भी संघ के समर्थन से पूर्ण हिन्दू बहुमत के आधार पर सफलता मिली थी। इसी का परिणाम था कि, अयोध्या के विवादास्पद भवन पर 1949 में लगाया गया ताला राजीव गांधी ने खुलवा दिया था। उनकी हत्या के बाद पूर्व संघी रहे कांग्रेसी पी एम पी वी नरसिंघा राव के शासन में वह विवादास्पद ढांचा ढहाया गया था। अतः केंद्रीय मंत्री हेगड़े का बयान आर एस एस की उसी नीति का प्रफुस्टन है जिसका उद्देश्य जनता की प्रतिक्रिया भाँप कर 2019 के चुनाव की दिशा तय करना है। यदि 2019 के चुनाव में पुनः भाजपा सत्तारूढ़ होती है तब फिर उसे चुनावों के जरिये नहीं हटाया जा सकेगा। जैसा कि, 1951 में संघ नेता लिमये से लिए साक्षात्कार को 1952 मे ' नया ज़माना ' , सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र ' प्रभाकर ' ने प्रकाशित कर खुलासा किया था कि शीघ्र ही दिल्ली की सड़कों पर संघियों और कम्युनिस्टों में सत्ता के लिए निर्णायक रक्त- रंजित संघर्ष होगा। वह समय अब आ गया लगता है जैसा कि हेगड़े साहब ने कहा भी है - संविधान बदलने का अब समय आ गया है। संविधान समर्थकों और संविधान विरोधियों के हिंसक संघर्ष को यदि टालना है तो 2019 के चुनावों में भाजपा को सत्ताच्युत करके ही ऐसा किया जा सकता है। ------(विजय राजबली माथुर )
वस्तुतः जैसा कि, प्रोफेसर अपूर्वानन्द ने विस्तृत रूप से स्पष्ट किया आर एस एस ने कभी भारतीय संविधान को स्वेच्छा से स्वीकार नहीं किया था उसने गांधी जी की हत्या के बाद अपने पर लगे प्रतिबंध को हटवाने हेतु दिखावे के लिए इसे माना था। संघ और इसके राजनीतिक मंच व अन्य आनुषांगिक संगठनों के माध्यम से निरंतर संविधान पर हमले होते रहे हैं। संविधान सभा की निर्मात्री समिति के चेयरमेन रहे डॉ भीमराव अंबेडकर के परिनिरवाण दिवस पर अयोध्या के विवादास्पद ढांचे को गिराते समय 06 दिसंबर 1992 दिये गए वक्तव्यों में साफ - साफ कहा गया था कि, यह ढांचा किसी बिल्डिंग का नहीं वरन संविधान का ढहाया गया है और शिलान्यास के समय उसे हिन्दू राष्ट्र की नींव रखना घोषित किया गया था।
पूर्वर्ती जनसंघ के नेता भारत में अमेरिकी राष्ट्रपति प्रणाली की तर्ज़ पर सीधे प्रधानमंत्री के चुनाव की मांग उठाते रहे थे। मधुकर दत्तात्रेय देवरस का दृष्टिकोण था कि जब ग्रामीण क्षेत्र का तीन प्रतिशत व शहरी क्षेत्र का दो प्रतिशत जनसमर्थन आर एस एस को मिल जाएगा तब वह देश में अपना अधिनायकत्व स्थापित कर सकेगा। 1975 में उन्होने एमर्जेंसी के दौरान इन्दिरा गांधी से कोई तथाकथित गुप्त समझौता भी किया था जिसके अंतर्गत 1980 में संघ के समर्थन से पूर्ण हिन्दू बहुमत से इन्दिरा कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई थी उसी के अंतर्गत 1985 के चुनाव में राजीव गांधी को भी संघ के समर्थन से पूर्ण हिन्दू बहुमत के आधार पर सफलता मिली थी। इसी का परिणाम था कि, अयोध्या के विवादास्पद भवन पर 1949 में लगाया गया ताला राजीव गांधी ने खुलवा दिया था। उनकी हत्या के बाद पूर्व संघी रहे कांग्रेसी पी एम पी वी नरसिंघा राव के शासन में वह विवादास्पद ढांचा ढहाया गया था। अतः केंद्रीय मंत्री हेगड़े का बयान आर एस एस की उसी नीति का प्रफुस्टन है जिसका उद्देश्य जनता की प्रतिक्रिया भाँप कर 2019 के चुनाव की दिशा तय करना है। यदि 2019 के चुनाव में पुनः भाजपा सत्तारूढ़ होती है तब फिर उसे चुनावों के जरिये नहीं हटाया जा सकेगा। जैसा कि, 1951 में संघ नेता लिमये से लिए साक्षात्कार को 1952 मे ' नया ज़माना ' , सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र ' प्रभाकर ' ने प्रकाशित कर खुलासा किया था कि शीघ्र ही दिल्ली की सड़कों पर संघियों और कम्युनिस्टों में सत्ता के लिए निर्णायक रक्त- रंजित संघर्ष होगा। वह समय अब आ गया लगता है जैसा कि हेगड़े साहब ने कहा भी है - संविधान बदलने का अब समय आ गया है। संविधान समर्थकों और संविधान विरोधियों के हिंसक संघर्ष को यदि टालना है तो 2019 के चुनावों में भाजपा को सत्ताच्युत करके ही ऐसा किया जा सकता है। ------(विजय राजबली माथुर )
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