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Friday, 18 October 2013

'महर्षि वाल्मीकि'जयंती---विजय राजबली माथुर

आज 18 अक्तूबर 2013 'महर्षि वाल्मीकि'जयंती है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि वाल्मीकि जी को आज एक जाति विशेष से संबन्धित कर दिया गया है। उसी जाति से अब 'रावण' को भी संबन्धित करने के प्रयास कुछ विद्वान कर रहे हैं। महर्षि वाल्मीकि ने ही 'रावण-वध की पूर्व योजना' का निर्धार किया था। जिसके अनुरूप ही 'राम' को 'वनवास' दिलाया गया और 'साम्राज्यवादी' रावण का संहार किया गया। 'राम' और 'रावण' दोनों ही आर्य थे और वह युद्ध 'आर्य' एवं 'आर्य' के मध्य ही लड़ा गया था। किन्तु विदेशी साम्राज्यवादियों ने 'आर्यों' को विदेशी आक्रांता घोषित करके जो विभ्रम पैदा किया था वह आज तक भारत वर्ष के लिए अभिशाप बना हुआ है। 'वेदों' को आज हिन्दू धर्म का ग्रंथ घोषित किया जा रहा है पहले गड़रियों के गीत कहा गया था। 'हिटलर' खुद को 'आर्य' घोषित करने लगा था। हमारे विद्वान विदेशी साम्राज्यवादियों के षड्यंत्र को आज भी न समझ कर परस्पर संघर्ष रत हैं। 'वेदों' में समस्त मानवता के कल्याण की बात कही गई है।
किन्तु जब 'राम' भी अधिनायकवाद पर चलने लगे और लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं का क्षरण होने लगा तब पुनः 'महर्षि वाल्मीकि'ही सामने आए और उनकी प्रेरणा से 'गर्भवती' सीता जी ने राम के विरुद्ध 'विद्रोह' कर दिया तथा महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही शरण ली थी। सीता जी के पुत्रों 'लव' और 'कुश' को महर्षि वाल्मीकि ने खुद प्रशिक्षित किया था जिस कारण वे राम के 'अश्वमेध' को पकड़ कर राम को ललकार कर पराजित कर सके। आज महर्षि वाल्मीक जयंती पर हम अपेक्षा करते हैं कि हमारे देशवासियों को 'लोकतन्त्र रक्षा' की दृढ़ प्रेरणा उनके कृतित्व से मिल सके।