Wednesday, 6 May 2015

भारतीय परिप्रेक्ष्‍य को अनदेखा कर दूसरे देशोँ के आधार पर क्राँति जैसी कोई चीज सँभव नहीँ.........Ramendra Jenwar

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क्‍या हमारे वामपँथी मित्र इस पर कुछ जानकारी दे सकते हैँ -
1 - लोकताँत्रिक व्‍यवस्‍था की सँसदीय राजनीतिक प्रणाली को स्‍वीकार कर उसमेँ भागीदार बनने के बाद सर्वहारा वर्ग की सशस्‍त्र क्राँति के द्वारा व्‍यवस्‍था परिवर्तन और सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के बारे मैं इस स्‍थिति मेँ उनकी पार्टी ( पार्टियोँ ) की क्‍या सोच है ?
2 - भारत मेँ वामपँथी पार्टी ( पार्टियाँ ) किसको सर्वहारा मान रही हैँ और प्रशिक्षित कर हरावल दस्‍ते के रूप मेँ तैयार कर रही हैँ ??
3 - या क्‍या वामपँथी पार्टी ( पार्टियोँ ) ने सैद्धाँतिक रूप से यह सुनिश्‍चित कर लिया है कि लोकताँत्रिक व्‍यवस्‍तथा मेँ चुनावोँ के जरिये ही सँसद और विधानसभाओँ मेँ बहुमत हासिल कर ही क्राँति को सँपन्‍न माना जाएगा और क्‍या यह माक्‍र्सवादी - लेनिन वादी क्राँति की अवधारणा के अनुरूप है ???
4 - अँत मेँ एक खास सवाल....भारत मेँ वामपँथी पार्टी ( पार्टियाँ ) इनमेँ से सर्वहारा वर्ग किसे मानती हैँ -
* औद्योगिक मजदूर
* औद्योगिक मजदूर + खेत मजदूर
* किसान ( सँदर्भ चीन मैं माओ के नेतृत्‍व वाली क्राँति 1949 )
* दलित वर्ग ( खास भारतीय परिप्रेक्ष्‍य )
वामपँथी मित्र अपनी पार्टी की सोच और नीति के आधार पर जवाब देँ अ-वामपँथी या निवर्तमान वामपँथी मित्र भी टिप्‍पणी कर सकते है...
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  • Ramendra Jenwar and 21 others like this.
  • Shachindra Trivedi aap ko samjhaana bekaar hai. itni der me ve 15 aadmi ko kraantikaari bana denge
  • Sudhir Ojha aise sawalon ke jabab pane ke liye aapko party journal padhna chahiye.
  • Ramendra Jenwar ओझा जी बहुत जानकारी जर्नल्‍स मेँ भी नहीँ मिलती और अगर उस विचार के मित्रोँ से पूछा जाए तोउनकी सोच भी पता चलती है बाकी यह तो हर सवाल का जवाब हो सकता है कि अमुक किताब/पत्रिका पढ लीजिए...चलिए आप उस जर्नल का नाम और अँक ही बता दीजिए जिसमेँ यह सब जानकारी मिल जाए । और अगर अपना दिमाग पार्टी आफिस मेँ जमाकर लाल किताब लेकर निकलते हैँ...परिपेक्ष्‍य के अनुसार सोच विचार कर अपनी राय नहीँ बनाते तो उनसे बात करना ही बेकार है...
    Like · Reply · 3 · Yesterday at 1:39pm · Edited
  • Ramendra Jenwar त्रिवेदी जी इतनी तेजी से कार्यकर्ता बना रहे हैँ तब तो 2019 मेँ क्राँति पक्‍की है...इतनी तेजी से तो मिसकाल वाले भी नहीँ बना रहे होँगे...उन्‍ही के नक्‍शेकदम पर हैँ क्‍या ?
  • Sudhir Ojha www.cpim.org ke about us me party program section pe ek nazar mar lijiye aapke sare sawal ke answer mil jayenge sambhavtah.

    Out of 133 countries rated on indicators of well-being...
    CPIM.ORG
  • Ramendra Jenwar का. तिवारी आप भी कुछ बताइये ? Anand Prakash Tiwari
  • Ramendra Jenwar ओझा जी क्‍या गाँव गँवई के आदमी को ऎसी कोई जिज्ञासा होगी तो उसे भी आप पार्टी की वेबसाइट पर जाकर अपनी जिज्ञासा शाँत करने को कहेँगे या यह पार्टी भी बस सँचारक्राँति पार्टी बनकर रहा गई है...? आआप की तरह ..??क्‍या सारा सर्वहारा वर्ग नेट पर है ?
  • Sudhir Ojha यह बात अाप पे लागू नही होती अॊर न ही आप वहां से समझने मे अक्षम ही हॆं। बाकी गांव का आदमी जब आयेगा तो उसको बताया जायेगा जो पूछेगा।
  • Anand Prakash Tiwari जो सबसे सब कुछ हार चूका हो (सर्वहारा) उसे ही इन पार्टियो में रहने का हक है ।जिसके पास थोडा सा भी बुद्धि विवेक बचा हुआ दिखाई पड़ेगा ,उसे पार्टी से बाहर कर देगे ।
    समाज से हारे हुओ की कैसी तानाशाही ? अपने अंदर की भेड़ो पर चाहे जैसी शाही लाद दे ।भारतीय समाज
     के किस अंग में इनकी स्वीकृति है ? आज ये आत्मलीन अफीम चाट कर सो रहे हैं । कृपया इन्हें जगाने की कोशिश न करे ।
    &
    रही बात सैद्धांतिक चर्चा की तो फिर कभी बौद्धिक अड़ी पर ।इनके पास कौन सा प्लेटफार्म बचा है जहाँ बहस/चर्चा की गुन्जाय्स हो ?
  • Ramendra Jenwar कृपया आप भी जानकारी देँ गिरीष जी क्या सुधीर ओझा जी ने जो लिँक भेजा है उस पर मुझे मेरे सवालोँ के जो जवाब मिलेँगे उसे मैँ भारतीय परिप्रेक्ष्‍य मेँ समग्र वामपँथ का जवाब या एकीकृत दृष्‍टिकोँण समझ सकता हूँ ?? DrGirish Cpi
  • Ramendra Jenwar राय साहब आप तो अक्षरश: वही जवाब देँगे जो ओझा जी ने कहा...?? Prem Nath Rai
  • Ramendra Jenwar क्राँति जी...क्राँति पर..आप भी..??? Kranti Kumar Singh
  • Ramendra Jenwar विद्रोही जी सिर्फ लाइक से काम नहीँ चलेगा..टिप्‍पणी भी चाहिए.. Vijai Raj Vidrohi
    Unlike · Reply · 3 · 23 hrs
  • Ritika Agarwal सब कामरेडोँ को साँप सूँघ गया लगता है
    Like · Reply · 3 · 21 hrs
  • Zoya Ansari सीपीएम वाले कुछ बोले तो बाकी सबकी बोलती बँद वाह रे वामपँथियोँ बहस बँद कमरोँ मेँ तो पार्टी भी बस उतनी ही...
    Like · Reply · 2 · 18 hrs
  • Choksh Vibhu बणे सीधे खरे सवाल हैं यदि चुनाव बहुमत लोकतात्रिक बहुदलीय व्यवस्था में यकीन है तो प्रजाताँत्रिक समाजवाद से अंतर क्या है
    Like · Reply · 3 · 16 hrs
  • Choksh Vibhu कितने भारतीय कम्यूनिस्ट पैत्रिक सम्पत्ति उत्तराधिकार का त्याग किये है
    Like · Reply · 2 · 15 hrs
  • Vijai Raj Vidrohi (वस्तुतः 'साम्यवाद' को जो कि भारतीय वाङ्ग्मय की देंन है को विदेशी दृष्टिकोण से लागू करवाने की असफल कोशिशें ही इसकी विफलता का हेतु हैं। समय-समय पर इस ओर ध्यानाकर्षण करने का प्रयास करता रहा हूँ परंतु मेरी हैसियत ही क्या है जो उस पर गौर किया जाये?)http://communistvijai.blogspot.in/2015/04/blog-post_15.html
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  • Vijai Raj Vidrohi वैसे अभी भी समय हाथ से निकला नहीं है अब भी संभल जाएँ और वास्तविक धर्म के मर्म को समझ कर जनता को जागरूक करने निकल पड़ें तो जनता लुटेरे अधार्मिकों के चंगुल से निकल सकती है।http://communistvijai.blogspot.in/2015/04/blog-post_11.html
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  • Vijai Raj Vidrohi तो क्या देश की जनता सशस्त्र क्रान्ति का साथ देगी? क्या सशस्त्र क्रान्ति के लिए समय उपयुक्त है और वह सफल हो सकेगी? 1857 का उदाहरण सामने है तभी तो गांधी जी को 'सत्य-अहिंसा' का सहारा लेना पड़ा था। आज मार्कन्डेय काटजू साहब की गांधी-विरोधी लेखनी व गोडसे के महिमा-मंडन के परिप्रेक्ष्य में नीतियाँ निर्धारित करके जनता को जागरूक करने की नितांत आवश्यकता है तभी 'संघ' के कुचक्र को नष्ट किया जा सकेगा। केवल और केवल 'आर्थिक-आंदोलन' जब तक कि 'सामाजिक-जाग्रति' न उत्पन्न हो कोई क्रान्ति नहीं कर सकता है।http://communistvijai.blogspot.in/2015/04/blog-post_4.html
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  • Ramendra Jenwar बहुत धन्‍यवाद विद्रोही जी आज ऎसी ही वैचारिक धार की कसौटी पर साम्‍यवाद को परखने की जरूरत है भारतीय परिप्रेक्ष्‍य को अनदेखा कर दूसरे देशोँ के आधार पर क्राँति जैसी कोई चीज सँभव नहीँ...
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  • Vijai Raj Vidrohi पूंजीवाद के समर्थक नेहरू जी ने बड़ी ही चालाकी से रूस से मित्रता करके भारतीय कम्युनिस्टों को प्रभाव हींन कर दिया। आज कम्युनिस्ट आंदोलन कई पार्टियों मे विभक्त होकर पूरी तरह बिखर गया है। कांग्रेस जहां कमजोर पड़ती है वहाँ RSS समर्थित भाजपा को आगे बढ़ा देती है। दोनों साम्राज्यवादी अमेरिका समर्थक पार्टियां हैं। ऐसे मे साम्यवाद के मजबूत होकर उभरने की आवश्यकता है परंतु सबसे बड़ी बाधा वे 'साम्यवादी विद्वान और नेता' खड़ी करते हैं जो आज भी अनावश्यक और निराधार ज़िद्द पर अड़े हुये हैं कि 'मार्क्स' ने धर्म को अफीम कह कर विरोध किया है अतः साम्यवाद धर्म विरोधी है।http://communistvijai.blogspot.in/2013/10/blog-post_13.html
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  • Vijai Raj Vidrohi http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post.html

    सम्पूर्ण वैदिक मत और हमारे अर्वाचीन पूर्वजों के इतिहास में...
    COMMUNISTVIJAI.BLOGSPOT.COM
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Friday, 1 May 2015

खेत मजदूर का भी ख्याल हो

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 17 April 2015

क्या लोकपाल का हश्र अनुसूचित जाति आयोग जैसा ही होगा ? --- अमित सिंह



 संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद आखिरकार देश को पांच दशक बाद भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बहुप्रतीक्षित लोकपाल मिल गया। आज का सवर्णपरस्त समाज अन्ना को दूसरे महात्मा की उपाधि देने लगा. यह किसका लोकपाल है? सरकार का या फिर  अन्ना का? पता नहीं ! फिर भी चालीस साल से इसकी मांग हो रही थी क्यों? अन्ना को जो अनशन करने पडे़ ? सांसदों को आधी-आधी रात तक माथापच्ची करनी पड़ी। और अब जब यह बन गया है, अन्ना कह रहे हैं कि यह लोकपाल जिसका भी है, अच्छा है। कम से कम चालीस-पचास फीसदी भ्रष्टाचार तो इससे कम हो ही जाएगा। बताते हैं कि राहुल ने इस मामले में अगुवाई की। अब अन्ना कम से कम लोकपाल को लेकर तो अनशन नहीं करेंगे। बाकी की देखी जायगी। अन्ना अब राहुल की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।
    वैसे लोकपाल का जो भी स्वरूप सामने आया है, उसमें पता चल रहा है, कि यह तो कोई जेल भेजने वाला कानून भर है। मगर इसमें गलत शिकायत पाये जाने पर सजा और जुर्माने का जो प्राविधान किया गया है, उसे लेकर आम आदमी की चिंता वाजिब लगती है। अगर लोकपाल जेल भेजने के लिए ही बनना था, तो उसके लिए तो पहले ही बहुत से कानून थे। बेचारे लालू तो बिना लोकपाल के ही कई बार जेल हो आये हैं। राजा, कनिमोझी, कलमाड़ी भी बिना लोकपाल के जेल हो आये हैं। अरविंद केजरीवाल ने साफ हाथ झाड़ लिये हैं कि जी, हमारा वाला तो है नहीं और अन्ना जी वाला तो बिल्कुल भी नहीं है। वह तो जनलोकपाल था। पर यह तो जोकपाल है। इससे नेता तो क्या चूहा भी जेल नहीं जा पायेगा।
    यह जानकर चूहे मस्त हैं। अब वे सरकारी गोदामों का अनाज एकदम तनावमुक्त होकर चट कर सकते हैं। लेकिन अन्ना कह रहे हैं कि चूहा तो क्या, इससे तो शेर भी जेल जायेगा। इससे शेर बेचारे और डर गये हैं। शिकारियों-तस्करों के चलते जिंदगी तो उनकी पहले ही खतरे में थी, पर अब तो देर-सबेर जेल भी जाना पड़ेगा। नेताओं ने समझा था कि लोकपाल उनके खिलाफ है, लेकिन उन्हें लोकपाल मिल गया। इस चक्कर में राजनीति थोड़ी-बहुत उनके हाथ से खिसक गई हो। यानी जो जिसको नहीं चाहिए था, वही उन सबको मिला।
  
    लोकपाल पर अन्ना और केजरीवाल के बयानों और सोच में जमीन-आसमान का अन्तर है । इस अन्तर की समीक्षा में जब हम अन्य संवैधानिक संस्थाओं के गठन के पूर्व के संघर्षों, घोषणाओं, नियमों और उसके अमल करने के तरीकांे पर आते हैं तो केजरीवाल की बातों में कुछ दम नजर आने लगता है ।
    उल्लेखनीय है कि समाज के सबसे पीडि़त तबके अनुसूचित जातियों एवं जन जातियों के कल्याण के लिए संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत गठित एक सदस्यीय आयोग सन् 1951 से कार्य कर रहा था जिसे अनुसूचित जातियों एवं जन जातियों के आयुक्त के नाम से जाना जाता था । उसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता था । उसके स्तर को उॅचा उठाने तथा विस्तृत अधिकार देने के लिए जनता पार्टी के शासन काल में सन् 1978 में कार्यकारी आदेश के तहत श्री भोला पासवान शास्त्री की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय बहुसदस्यीय आयोग बनाया गया। उसे संवैधानिक दर्जा देने एवं शक्तिशाली बनाने के लिए सत्तारूढ़ दल के साथ हीं साथ विपक्षी दलों एवं दलितों के उदीयमान नेता श्री राम विलास पासवान ने लगातार ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया, आंदोलन प्रदर्शन किया । बहुसदस्यीय आयोग को 65वें संविधान संशोधन द्वारा सन् 1992 में संवैधानिक दर्जा एवं संवैधानिक अधिकार मिला और आयुक्त का पद विलोपित हो गया।
    यहाॅ केन्द्र की सरकार ने संविधान के विरूद्ध चुपके से नियमावली बनाते समय आयोग के कार्यकाल को 5 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष और उसमें राजनीतिक व्यक्ति को भी आयोग में पदस्थापित करने का प्राविधान डाल दिया । जबकि संविधान के अनुच्छेद 338 का अवलोकन करने पर पता चलता है कि इसमें कहीं भी राजनीतिक नियुक्ति का प्राविधान नहीं हेै । जब कुछ लोगों  और संगठनों द्वारा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के दलीय राजनीति में भाग लेने का मामला उठाया गया तो सरकार ने मंत्रिमंडल से राजनीतिक नियुक्ति के समर्थन में नियमावली बनवाली, जिसके कारण यह आयोग व्यवहार में अपनी प्रभावशीलता, निष्पक्षता, पारदर्शिता और उपयोगिता को खो चुका  है ।
    उदीयमान नेता श्री राम विलास पासवान, उदित राज और दलितों के बड़े प्रतिनिधियों ने सरकार से मिली भगत कर ली और इसके विरूद्ध कोई आवाज नहीं उठायी। उस उदीयमान नेता को भी कल्याण मंत्रालय (अब सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) का प्रभार मिला । पर आयोग की बंधुआ आयोग वाली स्थिति पर कोई अन्तर नहीं आया । आज सैद्धान्तिक तौर पर अनुसूचित जातियों और जन जातियों के लिए बनाया गया शक्तिशाली आयोग व्यवहार में सत्तारूढ़ दल का (चाहे कांग्रेस, बी0जे0पी0 या अन्य दल) अनुसूचित जाति/जनजाति प्रकोष्ठ(सेल) के रूप में बंधुआ मजदूर आयोग बन कर रह गया है । नियमतः आयोग को स्वायत्त, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाया गया है । इसे सिविल कोर्ट के अधिकार दिये गये हैं । इसे प्रतिवर्ष अपनी वार्षिक रिपोर्ट तथा बीच में भी आवश्यकतानुसार कोई रिपोर्ट देने का अधिकार है तथा राष्ट्रपति को ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद और संबंधित विधान सभाओं में एक्शन टेकेन रिपोर्ट के साथ रखवाने और चर्चा करने का संवैधानिक अधिकार है। पर यह वार्षिक रिपोर्ट भी चार-पाॅच साल के अन्तराल पर ही दी जाती है और उसे भी सरकार चार-पाॅच साल तक अपने पास रखे रहती है। पर व्यवहार में आज पी0 एल0 पूनिया कांग्रेस सांसद, बाराबंकी को राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर सरकार द्वारा संवैधानिक प्राविधानों की खुलेआम धज्जियाॅ उड़ाई जा रही हैं । पूनिया राष्ट्रीय आयोग को कांग्रेस पार्टी के सेल के रूप में बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं।
        आज तक किसी भी राजनीतिक पार्टी और दलितों के किसी भी सामाजिक राजनीतिक संगठन ने इसका सक्रिय रूप से विरोध नहीं किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि सभी नेता इस कुर्सी पर देर सबेर बैठने की आश लगाये बैठे हैं । राष्ट्रीय आयोग के बारे में ‘‘पिंजरे का शेर है राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जन जाति आयोग’’ संबंधी एक महत्वपूर्ण शोधपरक आलेख ‘‘सम्यक भारत’’ नई दिल्ली मासिक पत्रिका के अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित हुआ था । यह आलेख सरकार की दुर्भावना और राजनीतिक दलों की चुप्पी को बड़े ही सिलसिलेवार ढ़ंग से उजागर करता है, जो चैंकानेवाला है।
        आज हमें राष्ट्र को सार्थक दिशा मे ले जाने के लिए नेक-नियत, इच्छाशक्ति और आत्मबल की जरूरत है। जहाॅ तक लोकपाल बिल की बात है यह लोकपाल को जांच, अभियोजन और दंड के अधिकार देता है । कुछ लोग इसे लोकतंत्र और देश की सम्प्रभुता के लिए खतरा कहते हैं  और यह अनुच्छेद 245 के तहत भारत के संविधान के खिलाफ है । अन्तर्राष्ट्रीय फंडिंग से ताकतवर बने कुछ एन0जी0ओ0 वालों ने मीडिया और ग्लोबलाईजेशन की अर्थनीति से ताकतवर मध्यम वर्ग के रूप में उभरे प्रभुवर्ग की संतानों के सहयोग से जिस तरह भ्रष्टाचार के खातमे की आड़ में लोगों को भ्रमित कर बहुजन राजनीति को हाशिये पर पहुॅचाने का काम किया है वह विचारणीय है । लोकपाल के पीछे छिपा एजेंडा राजनीतिक प्रणाली के रूप में लोकतंत्र का निजीकरण है। देश इस समय दोराहे पर खड़ा है। राजनीतिक लोग अपना स्वार्थ तलाश रहे हैं! इसके अलावा लोकपाल के सामने आने वाले मामलों को यदि समयबद्ध तरीके से नहीं निपटाया जा सका, तब तो स्थिति हमारी अदालतों जैसी ही हो जायेगी, जहां आज तीन करोड़ से अधिक मामले वर्षांे से लंबित हैं! मगर यह छद्म आभास क्या लोगों की सोच को बदल सकता है, या वे अपनी समझ और अनुभव पर यकीन करेंगे? उपर्युक्त पर नजर डालने पर अतीत का अनुभव बताता है कि क्या लोकपाल के साथ भी ऐसा ही होगा ? क्या केजरीवाल की बात सच होने जा रही है ?

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लेखक परिचय:
 लेखक-कंप्यूटर साइन्स - इंजिनियर , सामाजिक-चिंतक हैं । दुर्बलतम की आवाज बनना और उनके लिए आजीवन संघर्षरत रहना ही अमित सिंह का परिचय है।
--- विजय राजबली माथुर 
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Thursday, 16 April 2015

स्वम्य और भगवान --- अमित सिंह

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Wednesday, 15 April 2015

एक हिन्दुस्तानी हकीकत :रस्सी का साँप --- अमित सिंह शिवभक्त नंदी

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 एक हिन्दुस्तानी हकीकत :

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एक बार एक दरोगा जी का मुंह लगा नाई पूछ बैठा -
"हुजूर पुलिस वाले रस्सी का साँप कैसे बना देते हैं ?"

दरोगा जी बात को टाल गए।

लेकिन नाई ने जब दो-तीन
बार यही सवाल पूछा तो दरोगा जी ने मन ही मन तय किया कि इस भूतनी वाले को बताना ही पड़ेगा कि रस्सी का साँप कैसे बनाते हैं !

लेकिन प्रत्यक्ष में नाई से बोले - "अगली बार आऊंगा तब
बताऊंगा !"

इधर दरोगा जी के जाने के दो घंटे बाद ही 4 सिपाही नाई
की दुकान पर छापा मारने आ धमके - "मुखबिर से पक्की खबर मिली है, तू हथियार सप्लाई करता है। तलाशी लेनी है दूकान की !"

तलाशी शुरू हुई ...

एक सिपाही ने नजर बचाकर हड़प्पा की खुदाई से निकला जंग लगा हुआ असलहा छुपा दिया !

दूकान का सामान उलटने-पलटने के बाद एक सिपाही चिल्लाया - "ये रहा रिवाल्वर"

छापामारी अभियान की सफलता देख के नाई के होश उड़ गए - "अरे साहब मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानता"।

"आपके बड़े साहब भी मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं !"

एक सिपाही हड़काते हुए बोला - "दरोगा जी का नाम लेकर बचना चाहता है ?

साले सब कुछ बता दे कि तेरे गैंग में कौन-कौन है ...
तेरा सरदार कौन है ... तूने कहाँ-कहाँ हथियार सप्लाई किये ... कितनी जगह लूट-पाट की ...
आ चल तू अभी थाने चल !"

थाने में दरोगा साहेब को देखते ही नाई पैरों में गिर पड़ा - "साहब बचा लो ... मैंने कुछ नहीं किया !"

दरोगा ने नाई की तरफ देखा और फिर सिपाहियों से पूछा - "क्या हुआ ?"

सिपाही ने वही जंग लगा असलहा दरोगा के सामने पेश कर दिया - "सर जी मुखबिर से पता चला था .. इसका गैंग है और हथियार सप्लाई करता है.. इसकी दूकान से ही ये रिवाल्वर मिली है !"

दरोगा सिपाही से - "तुम जाओ मैं पूछ-ताछ करता हूँ !"

सिपाही के जाते ही दरोगा हमदर्दी से बोले - "ये क्या किया तूने ?"

नाई घिघियाया - "सरकार मुझे बचा लो ... !"

दरोगा गंभीरता से बोला - "देख ये जो सिपाही हैं न ...साले एक नंबर के कमीने हैं ...
मैंने अगर तुझे छोड़ दिया तो ये साले मेरी शिकायत ऊपर अफसर से कर देंगे ...
इन कमीनो के मुंह में हड्डी डालनी ही पड़ेगी ...
मैं तुझे अपनी गारंटी पर दो घंटे का समय देता हूँ , जाकर किसी तरह बीस हजार का इंतजाम कर ..
पांच - पांच हजार चारों सिपाहियों को दे दूंगा तो साले मान जायेंगे !"

नाई रोता हुआ बोला - "हुजूर मैं गरीब आदमी बीस हजार कहाँ से लाऊंगा ?"

दरोगा डांटते हुए बोला - "तू मेरा अपना है इसलिए इतना सब कर रहा हूँ तेरी जगह कोई और होता तो तू अब तक जेल पहुँच गया होता ...जल्दी कर वरना बाद में मैं कोई मदद नहीं कर पाऊंगा !"

नाई रोता - कलपता घर गया ... अम्मा के कुछ चांदी के जेवर थे

चौक में एक ज्वैलर्स के यहाँ सारे जेवर बेचकर किसी तरह बीस हजार लेकर थाने में पहुंचा और सहमते हुए बीस हजार रुपये दरोगा जी को थमा दिए !

दरोजा जी ने रुपयों को संभालते हुए पूछा - "कहाँ से लाया ये रुपया?"

नाई ने ज्वैलर्स के यहाँ जेवर बेचने की बात बतायी तो दरोगा जी ने सिपाही से कहा - "जीप निकाल और नाई को हथकड़ी लगा के जीप में बैठा ले .. दबिश पे चलना है !"

पुलिस की जीप चौक में उसी ज्वैलर्स के यहाँ रुकी !

दरोगा और दो सिपाही ज्वैलर्स की दूकान के अन्दर पहुंचे ...

दरोगा ने पहुँचते ही ज्वैलर्स को रुआब में ले लिया - "चोरी का माल खरीदने का धंधा कब से कर रहे हो ?"

ज्वैलर्स सिटपिटाया - "नहीं दरोगा जी आपको किसी ने गलत जानकारी दी है!"
दरोगा ने डपटते हुए कहा - "चुप ~~~ बाहर देख जीप में
हथकड़ी लगाए शातिर चोर बैठा है ... कई साल से पुलिस को इसकी तलाश थी ... इसने तेरे यहाँ जेवर बेचा है कि नहीं ? तू तो जेल जाएगा ही .. साथ ही दूकान का सारा माल भी जब्त होगा !"

ज्वैलर्स ने जैसे ही बाहर पुलिस जीप में हथकड़ी पहले नाई को देखा तो उसके होश उड़ गए..

तुरंत हाथ जोड़ लिए - "दरोगा जी जरा मेरी बात सुन लीजिये!

कोने में ले जाकर मामला एक लाख में सेटल हुआ !

दरोगा ने एक लाख की गड्डी जेब में डाली और नाई ने जो गहने बेचे थे वो हासिल किये फिर ज्वैलर्स को वार्निंग दी - "तुम शरीफ आदमी हो और तुम्हारे खिलाफ पहला मामला था इसलिए छोड़ रहा हूँ ... आगे कोई शिकायत न मिले !"

इतना कहकर दरोगा जी और सिपाही जीप पर बैठ के
रवाना हो गए !

थाने में दरोगा जी मुस्कुराते हुए पूछ रहे थे - "साले तेरे को समझ में आया रस्सी का सांप कैसे बनाते हैं !"

नाई सिर नवाते हुए बोला - "हाँ माई-बाप समझ गया !"

दरोगा हँसते हुए बोला - "भूतनी के ले संभाल अपनी अम्मा के गहने और एक हजार रुपया और जाते-जाते याद कर ले ...

हम रस्सी का सांप ही नहीं बल्कि नेवला .. अजगर ... मगरमच्छ सब बनाते हैं .. बस
 







 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश