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हिंदुस्तान,लखनऊ,दिनांक-28-04-2013 के अंक मे शशि शेखर जी का यह संपादकीय तो 'यथार्थ' का प्रकटीकरण करता है किन्तु 'आज',आगरा के स्थानीय संपादक की हैसियत से तब वह भी 'विहिप' के विद्वेषात्मक आंदोलन को हवा देने में अग्रणी थे। विहिप के उसी आंदोलन की परिणति 'बाबरी मस्जिद/राम मंदिर विध्वंस'के रूप मे हुई थी और मुंबई के दंगे भी उसी का परिणाम थे। जिनको 'धर्म' की संज्ञा दी जाती है वस्तुतः वे धर्म नहीं 'अधर्म' के प्रतीक हैं। चाहें साप्रदायिक विषमता हो चाहे चारित्रिक उच्चश्रंखलता सभी का मूल कारण 'धर्म' के 'मर्म'को न समझना है।
'धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरि ग्रह
और ब्रह्मचर्य'। इनको ठुकरा कर जब 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को
धर्म का नाम दिया जाएगा और शोषकों -लुटेरों -व्यापारियों- उद्योगपतियों के
दलालों को साधू-सन्यासी माना जाएगा एवं पूंजी (धन)को पूजा जाएगा तो समाज
वैसा ही होगा जैसा चल रहा है। आवश्यकता है उत्पीड़नकारी
व्यापारियों/उद्योगपतियों तथा उनके दलाल पुरोहितों/पुरोहित् वादियों का
पर्दाफाश करके जनता को उनसे दूर रह कर वास्तविक 'धर्म' का पालन करने हेतु समझाने की।
'देवता=जो देता है और लेता नहीं है जैसे-वृक्ष,नदी,समुद्र,आकाश,मेघ -बादल,अग्नि,जल
आदि' और 'भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न
(नीर-जल)'चूंकि ये प्रकृति तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी ने बनाया नहीं है
इसीलिए ये ही 'खुदा' हैं। इन प्रकृति तत्वों का कार्य
G(जेनरेट-उत्पत्ति)+O(आपरेट-पाल न)+D
(डेसट्राय-संहार)। अतः झगड़ा किस बात का?यदि है तो वह व्यापारिक/आर्थिक
हितों के टकराव का है अतः 'शोषण/उत्पीड़न'को समाप्त कर वास्तविक 'धर्म' के
'मर्म' को समझना और समझाना ही एकमात्र हल है।
आजकल ब्लाग और फेसबुक तथा अखबारों में भी बेवजह खुराफ़ातों को धर्म का सम्बोधन देते हुये आपस मे कलह की बातें करते देखा जा सकता है या फिर प्रगतिशीलता/वैज्ञानिकता की आधारहीन बातों के आधार पर 'धर्म' और 'भगवान' की आलोचना करते। ये पढे-लिखे लोग खुद भी यथार्थ-सत्य को समझने व मानने को तैयार नहीं हैं तब जनता को कौन समझाएगा?
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
हिंदुस्तान,लखनऊ,दिनांक-28-04-2013 के अंक मे शशि शेखर जी का यह संपादकीय तो 'यथार्थ' का प्रकटीकरण करता है किन्तु 'आज',आगरा के स्थानीय संपादक की हैसियत से तब वह भी 'विहिप' के विद्वेषात्मक आंदोलन को हवा देने में अग्रणी थे। विहिप के उसी आंदोलन की परिणति 'बाबरी मस्जिद/राम मंदिर विध्वंस'के रूप मे हुई थी और मुंबई के दंगे भी उसी का परिणाम थे। जिनको 'धर्म' की संज्ञा दी जाती है वस्तुतः वे धर्म नहीं 'अधर्म' के प्रतीक हैं। चाहें साप्रदायिक विषमता हो चाहे चारित्रिक उच्चश्रंखलता सभी का मूल कारण 'धर्म' के 'मर्म'को न समझना है।
'धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरि
'देवता=जो देता है और लेता नहीं है जैसे-वृक्ष,नदी,समुद्र,आकाश,मेघ
आजकल ब्लाग और फेसबुक तथा अखबारों में भी बेवजह खुराफ़ातों को धर्म का सम्बोधन देते हुये आपस मे कलह की बातें करते देखा जा सकता है या फिर प्रगतिशीलता/वैज्ञानिकता की आधारहीन बातों के आधार पर 'धर्म' और 'भगवान' की आलोचना करते। ये पढे-लिखे लोग खुद भी यथार्थ-सत्य को समझने व मानने को तैयार नहीं हैं तब जनता को कौन समझाएगा?
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
शुभप्रभात
ReplyDeleteये पढे-लिखे लोग खुद भी यथार्थ-सत्य को समझने व मानने को तैयार नहीं हैं तब जनता को कौन समझाएगा?
कोई नहीं
आज के हालत के जिम्मेदार ऐसे लोग ही हैं