Wednesday, 21 August 2013

नरेंद्र डभोलकर जी को श्रद्धांजली क्या हो?---विजय राजबली माथुर

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अंधविश्वास से संघर्ष करने वाले नरेंद्र डभोलकर जी की हत्या शोषकों/उतपीडकों की तात्कालिक जीत है। इस प्रकार संघर्ष करने वाले वह और उनके दूसरे  साथी भी जैसा कि हिंदुस्तान के लेख की कटिंग से स्पष्ट होता है 'धर्म' और 'ज्योतिष' के विरुद्ध भी अभियान चलाते हैं और ऐसा ही वामपंथी भी करते हैं। यहीं से इन संघर्षशील ताकतों की हार की पटकथा प्रारम्भ हो जाती है। 

'ज्योतिष'=अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला विज्ञान। 

'धर्म'=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। 

अब जब हम 'धर्म' और 'ज्योतिष' का ही विरोध करने लग जाएंगे तो हम खुद ही सद्गुणों एवं प्रकाश के मार्ग के विरोधी हो जाएँगे। 

वस्तुतः हमें ब्राहमनवाद द्वारा पोषित ढोंग-पाखंड-आडंबर का पर्दाफाश करके जनता को यह समझाना चाहिए कि टोना-टोटका-जादू फैलाने वाले 'अधर्म' फैला रहे हैं तथा 'तोता वाला','बैल वाला''मंदिर का पुजारी' ठग हैं ज्योतिषी नहीं। हमें जनता के समक्ष धर्म के वास्तविक गुणों की व्याख्या प्रस्तुत करके जनता को इन पाखंडियों के विरुद्ध लामबंद करना चाहिए। 

और अफसोस यह है कि हम मे से अधिकांश 'अध्यन',मनन' किए बगैर ही अधर्म को धर्म की संज्ञा व ठगी को ज्योतिष की संज्ञा देकर धर्म व ज्योतिष का ही विरोध करते हैं जो मानवता के हित मे नहीं है। शोषक-उत्पीड़क लोग अपने दलालों के माध्यम से,अपने संचार माध्यमों की सहायता से जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ने मे सफल हो जाते हैं। हमें 'नरेंद्र डभोलकर जी' सरीखे महात्माओं से वंचित होना पड़ जाता है।

आधुनिक युग में सर्वप्रथम महात्मा गौतम बुद्ध ने फिर सातवीं सदी में संत कबीर ने और 135 वर्ष पूर्व स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ढोंग-पाखड़-आडंबर पर जोरदार प्रहार किया था। मंडन मिश्र की छल द्वारा पराजय के बाद महात्मा बुद्ध को 'दशावतारों' में शामिल करके उनकी शिक्षाओं को धूमिल कर दिया गया। बौद्ध साहित्य जला दिया गया बौद्धों के मठ/विहार नष्ट कर दिये गए। 

कबीर दास जी के विरुद्ध घृनित प्रचार अभियान चला कर उनकी सीखों को दबा दिया गया। गायत्री परिवार तथा राधास्वामियों के माध्यम से दयानन्द जी की कुर्बानी को कुचल दिया गया। रही सही कसर RSS ने आर्यसमाज पर कब्जा कर पूरी कर दी। 

जब-जब किसी विद्वान ने साहस करके सत्य को उद्घाटित करने का प्रयास किया उसके मार्ग में रोड़े अटकाए गए चाहे वे गौतम बुद्ध, कबीर और दयानन्द ही क्यों न रहे हों। तुलसी दास जी ने जब विदेशी शासन के विरुद्ध 'राम चरित मानस' द्वारा 'क्रांति' का आव्हान किया तो उसकी मूल भावना को नष्ट करके उसे पूजनीय ग्रंथ घोषित कर दिया गया और उसके नायक को अलौकिक जो आज तक वैसे ही चला आ रहा है। जब आप सच्चाई को सामने लाते हैं तो लुटेरों के मंसूबों पर पानी फिरता है और वे चालाकी से धर्म का नाम लेकर आपके विरुद्ध जनता को गुमराह करते हैं। आप पहले ही धर्म और ज्योतिष का विरोध करने की गलती कर चुके होते हैं इसलिए आपको मार्ग से आसानी से  हटा दिया जाता है। 

मैं एक लंबे अरसे से 'एकला चलो रे' सिद्धान्त के अंतर्गत जनता को यह समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि धर्म वह नहीं है जो ढ़ोंगी-पाखंडी बताते हैं।  बल्कि वास्तविक 'धर्म','भगवान','ज्योतिष' की व्याख्या मैं अपने ब्लाग - http://krantiswar.blogspot.in के माध्यम से करता रहता हूँ परंतु खेद है कि मुझे प्रबुद्धजनों का समर्थन नहीं है। यदि हम वास्तव में नरेंद्र डभोलकर जी को श्रद्धांजली सच्चे तौर पर देना और उनके आंदोलन को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो हमे अपने संघर्ष की दिशा और धार बदलनी होगी।

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

1 comment:

  1. जब आप सच्चाई को सामने लाते हैं तो लुटेरों के मंसूबों पर पानी फिरता है और वे चालाकी से धर्म का नाम लेकर आपके विरुद्ध जनता को गुमराह करते हैं। आप पहले ही धर्म और ज्योतिष का विरोध करने की गलती कर चुके होते हैं इसलिए आपको मार्ग से आसानी से हटा दिया जाता है। sahi bat .....

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