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प्रताप सोमवंशी साहब ने सही आंकलन पेश किया है। सिर्फ गांवों में ही नहीं शहरों में भी पहले घरों की खाली ज़मीन पर लोग सब्जियों की बेलें उगा लेते थे और जैसा कि उन्होने लिखा है अपनी ज़रूरत से ज़्यादा को पड़ौसियों मे वितरित कर देते थे। आगरा में हमारे घर के सामने किराये पर रहने वाले साहब ने अपने चपरासी से 'सेम'लगवा रखी थी उसी के जरिये हमारे यहाँ भी कई बार भिजवाया करते थे। हमारे घर में नींबू के पेड़ थे जिंनका उपयोग आस-पड़ौस के लोग भी सहज ही करते थे। अमरूद और पपीता भी हमने अगल-बगल के लोगों को बांटा है। 'तुलसी' की पौध भी लोग हमारे घर से ले जाते थे। ज़्यादातर लोगों ने पूरी ज़मीन पर निर्माण करा रखा था किसी ने खाली ज़मीन नहीं बचाई थी। यहाँ लखनऊ में हमारे यहाँ भी वही स्थिति है,बिल्डर ने पूरा निर्माण करा रखा है। कुछ पौधों को गमले में लगाना पड़ा है।
यदि अब भी लोग अपने-अपने घरों में सब्जियों की बेलें उगाएँ जैसा कि सोमवंशी जी का सुझाव है तो मंहगी सब्जियों का भी समाधान हो सकता है।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
प्रताप सोमवंशी साहब ने सही आंकलन पेश किया है। सिर्फ गांवों में ही नहीं शहरों में भी पहले घरों की खाली ज़मीन पर लोग सब्जियों की बेलें उगा लेते थे और जैसा कि उन्होने लिखा है अपनी ज़रूरत से ज़्यादा को पड़ौसियों मे वितरित कर देते थे। आगरा में हमारे घर के सामने किराये पर रहने वाले साहब ने अपने चपरासी से 'सेम'लगवा रखी थी उसी के जरिये हमारे यहाँ भी कई बार भिजवाया करते थे। हमारे घर में नींबू के पेड़ थे जिंनका उपयोग आस-पड़ौस के लोग भी सहज ही करते थे। अमरूद और पपीता भी हमने अगल-बगल के लोगों को बांटा है। 'तुलसी' की पौध भी लोग हमारे घर से ले जाते थे। ज़्यादातर लोगों ने पूरी ज़मीन पर निर्माण करा रखा था किसी ने खाली ज़मीन नहीं बचाई थी। यहाँ लखनऊ में हमारे यहाँ भी वही स्थिति है,बिल्डर ने पूरा निर्माण करा रखा है। कुछ पौधों को गमले में लगाना पड़ा है।
यदि अब भी लोग अपने-अपने घरों में सब्जियों की बेलें उगाएँ जैसा कि सोमवंशी जी का सुझाव है तो मंहगी सब्जियों का भी समाधान हो सकता है।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
सुझाव अतिउत्तम है-
ReplyDeleteकिन्तु एक शेर पढ़ें और आप गुनें न गुनें लोग गुण रहे हैं।
"माना कि संदल सिर-ए-दर्द में मुफीद है।
मगर उसका घिसना और लगाना सिर दर्द से कम है क्या?