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भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने मोदी सरकार द्वारा 500 और 1000 के नोट बैन को निरंकुश कार्रवाई जैसा बताया है। उन्होंने कहा है कि डिमोनेटाइजेशन सरकार की अधिनायकवादी प्रकृति को दर्शाता है। इंडियन एक्सप्रेस से खास बातचीत में प्रोफेसर सेन ने कहा, “लोगों को अचानक यह कहना कि आपके पास जो करेंसी नोट हैं वो किसी काम का नहीं है, उसका आप कोई इस्तेमाल नहीं कर सकते, यह अधिनायकवाद की एक अधिक जटिल अभिव्यक्ति है, जिसे कथित तौर पर सरकार द्वारा जायज ठहराया जा रहा है क्योंकि ऐसे कुछ नोट कुछ कुटिल लोगों द्वारा काला धन के रूप में जमा किया गया है।” उन्होंने कहा, “सरकार की इस घोषणा से एक ही झटके में सभी भारतीयों को कुटिल करार दे दिया गया जो वास्तविकता में ऐसा नहीं हैं।”
नोटबंदी से लोगों को हो रही मुश्किलों पर उन्होंने कहा, “केवल एक अधिनायकवादी सरकार ही चुपचाप लोगों को इस संकट में झेलने के लिए छोड़ सकती है। आज लाखों निर्दोष लोगों को अपने पैसे से वंचित किया जा रहा है और अपने स्वयं के पैसे वापस लाने की कोशिश में उन्हें पीड़ा, असुविधा और अपमान सहना पड़ रहा है।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या नोटबंदी का कुछ सकारात्मक असर दिखेगा जैसा कि प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं तो उन्होंने कहा, “यह मुश्किल लगता है। यह ठीक वैसा ही लगता है जैसा कि सरकार ने विदेशों में पड़े काला धन भारत वापस लाने और सभी भारतीयों को एक गिफ्ट देने का वादा किया था और फिर सरकार उस वादे को पूरा करने में असफल रही।”
सेन ने कहा, जो लोग काला धन रखते हैं उन पर इसका कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन आम निर्दोष लोगों को नाहक परेशानी उठानी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने हर आम आदमी और छोटे कारोबारियों को सड़कों पर ला खड़ा किया है। सेन ने सरकार के उस दावे का भी खंडन किया है कि हर दर्द के बाद का सुकून फलदायी होता है। सेन ने कहा ऐसा कभी-कभी होता है। उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, “अच्छी नीतियां कभी-कभी दर्द का कारण बनती हैं, लेकिन जो कुछ भी दर्द का कारण बनता है – चाहे कितना भी तीव्र हो – यह जरूरी नहीं कि वो अच्छी नीति ही हो।”
https://www.facebook.com/shiv.yadav.370515/posts/1276510362422519
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने मोदी सरकार द्वारा 500 और 1000 के नोट बैन को निरंकुश कार्रवाई जैसा बताया है। उन्होंने कहा है कि डिमोनेटाइजेशन सरकार की अधिनायकवादी प्रकृति को दर्शाता है। इंडियन एक्सप्रेस से खास बातचीत में प्रोफेसर सेन ने कहा, “लोगों को अचानक यह कहना कि आपके पास जो करेंसी नोट हैं वो किसी काम का नहीं है, उसका आप कोई इस्तेमाल नहीं कर सकते, यह अधिनायकवाद की एक अधिक जटिल अभिव्यक्ति है, जिसे कथित तौर पर सरकार द्वारा जायज ठहराया जा रहा है क्योंकि ऐसे कुछ नोट कुछ कुटिल लोगों द्वारा काला धन के रूप में जमा किया गया है।” उन्होंने कहा, “सरकार की इस घोषणा से एक ही झटके में सभी भारतीयों को कुटिल करार दे दिया गया जो वास्तविकता में ऐसा नहीं हैं।”
नोटबंदी से लोगों को हो रही मुश्किलों पर उन्होंने कहा, “केवल एक अधिनायकवादी सरकार ही चुपचाप लोगों को इस संकट में झेलने के लिए छोड़ सकती है। आज लाखों निर्दोष लोगों को अपने पैसे से वंचित किया जा रहा है और अपने स्वयं के पैसे वापस लाने की कोशिश में उन्हें पीड़ा, असुविधा और अपमान सहना पड़ रहा है।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या नोटबंदी का कुछ सकारात्मक असर दिखेगा जैसा कि प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं तो उन्होंने कहा, “यह मुश्किल लगता है। यह ठीक वैसा ही लगता है जैसा कि सरकार ने विदेशों में पड़े काला धन भारत वापस लाने और सभी भारतीयों को एक गिफ्ट देने का वादा किया था और फिर सरकार उस वादे को पूरा करने में असफल रही।”
सेन ने कहा, जो लोग काला धन रखते हैं उन पर इसका कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन आम निर्दोष लोगों को नाहक परेशानी उठानी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने हर आम आदमी और छोटे कारोबारियों को सड़कों पर ला खड़ा किया है। सेन ने सरकार के उस दावे का भी खंडन किया है कि हर दर्द के बाद का सुकून फलदायी होता है। सेन ने कहा ऐसा कभी-कभी होता है। उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, “अच्छी नीतियां कभी-कभी दर्द का कारण बनती हैं, लेकिन जो कुछ भी दर्द का कारण बनता है – चाहे कितना भी तीव्र हो – यह जरूरी नहीं कि वो अच्छी नीति ही हो।”
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शिव बदन यादव
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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