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* जिनहोने भाजपा ऊमीद्वार पूर्व प्रधानमंत्री को सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनावी चुनौती दी थी जब उनकी ही यह पीड़ा है तब औरों का क्या कहना ?
** 11 नवंबर 2016 के हिंदुस्तान, लखनऊ अंक के पृष्ठ 02 पर समाचार छ्पा है कि, सपा किसी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी जिसको विलय करना हो वह सपा में विलय कर सकता है।
*** वस्तुतः 2017 का चुनाव 2012 की तर्ज़ पर और 2019 का चुनाव 2014 की तर्ज़ पर लड़ा जाएगा। अगर सपा का अन्य दलों से गठबंधन होता तब यह फार्मूला कैसे लागू हो पाता ? आर एस एस को भाजपा के अलावा दूसरे दलों में स्थित (बैठाये हुये ) अपने समर्थकों पर पूर्ण भरोसा है और उनका लाभ संविधान संशोधन के वक्त उठाना है।
**** यह तो भाजपा विरोधी दलों का कर्तव्य है कि, वे आपसी टांग - खिंचाई छोड़ कर एकजुट हों तथा भाजपा को उसके समर्थकों सहित पराजित करने हेतु जनता के समक्ष मजबूत विकल्प दें। यदि वास्तव में लक्ष्य भाजपा को परास्त करना होगा तब कांग्रेस,बसपा,वामपंथी दलों समेत सभी जंतान्त्रिक दलों का गठबंधन सपा/भाजपा गठजोड़ के विरुद्ध सामने आयेगा वरना तो होइहें वही जे आर एस एस रची राखा।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1223776617684312&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=3&permPage=1
("**** यह तो भाजपा विरोधी दलों का कर्तव्य है कि, वे आपसी टांग - खिंचाई छोड़ कर एकजुट हों तथा भाजपा को उसके समर्थकों सहित पराजित करने हेतु जनता के समक्ष मजबूत विकल्प दें। यदि वास्तव में लक्ष्य भाजपा को परास्त करना होगा तब कांग्रेस,बसपा,वामपंथी दलों समेत सभी जंतान्त्रिक दलों का गठबंधन सपा/भाजपा गठजोड़ के विरुद्ध सामने आयेगा वरना तो होइहें वही जे आर एस एस रची राखा।")
लेकिन अब प्रश्न यह है कि, क्या ऐसा होगा? अथवा भाजपा को हटाने/हराने का नारा सिर्फ नारा ही है केवल दिखावे का ढोंग है ढोंग !
सबसे पुरानी पार्टी आज 1925 में स्थापित 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ' ही है क्योंकि उससे पूर्व 1885 में स्थापित दो बैलों की जोड़ी वाली 'इंडियन नेशनल कांग्रेस ' 1969 में कांग्रेस (ओ ) व कांग्रेस ( आर ) में विभाजित हो गई थी एवं चरखा चलाती महिला वाला उसका संगठन पक्ष 1977 में 'जनता पार्टी ' में विलीन हो गया था। गाय -बछड़ा वाली कांग्रेस ( आर ) बाद में विभाजित हो कर 'पंजा ' वाली ' कांग्रेस ( आई )' बनी जो आज सोनिया/राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही है और अनधिकृत रूप से 131 वर्ष पुरानी कांग्रेस होने का दावा कर रही है। और क्यों न करे जब अब सबसे पुरानी भाकपा का ब्राह्मण वादी नेतृत्व ही अपने दावे को सामने लाने से कतराता है।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते थे- इंडिया दैट इज़ भारत दैट इज़ उत्तर प्रदेश - 1925 में स्थापित आर एस एस का दूसरा राजनीतिक संस्करण भाजपा इसी सिद्धान्त पर चल कर 1991 में यू पी में पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुका है। तभी 1998 से 2004 एवं पुनः 2014 से केंद्र की सत्ता में आ सका है।
लेकिन 1925 में स्थापित भाकपा के लिए उत्तर प्रदेश का कोई महत्व नहीं है। जबकि रघुवीर सहाय 'फिराक गोरखपुरी ' का विश्लेषण काफी सटीक है कि, मेरठ/ कानपुर डायगनल से शुरू आंदोलन विफल रहे हैं चाहे वे 1857 की प्रथम क्रांति हों अथवा किसान आंदोलन। एवं आगरा / बलिया डायगनल से प्रारम्भ आंदोलन पूरे उत्तर प्रदेश में फैल कर राष्ट्रीय आंदोलन बने और सफल रहे हैं। चाहे 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन हो अथवा अन्य कोई।
1992 में आगरा में सम्पन्न प्रदेश भाकपा के सम्मेलन के बाद बजाए भाकपा के प्रसार के 1994 में विभाजन हो गया। क्यों? क्योंकि ब्राह्मण वादी मानसिकता का नेतृत्व पिछड़ा वर्ग से संबन्धित मित्रसेन जी यादव / राम चंद्र बख्श सिंह जी को स्वीकार नहीं कर सका और उनको हटना पड़ा। उसी मानसिकता ने कौशल किशोर जी के नेतृत्व में दलित वर्ग को भाकपा से अलग किया। दो- दो विभाजनों के बाद भी 2015 में पिछड़ा व दलित वर्ग से संबन्धित पूर्व भाकपा विधायक प्रत्याशियों को पार्टी से अलग होना पड़ा । क्यों? क्योंकि, ब्राह्मण वादी मानसिकता के नायक का कथन है कि, पिछड़े व दलित कामरेड्स से सिर्फ काम लिया जाये उनको कोई पद न सौंपा जाये।
भारत का सर्व हारा वर्ग दलित समुदाय से ही संबन्धित है जिसका भाकपा में कोई सम्मानित स्थान नहीं है। बगैर सर्व हारा के समर्थन व सहयोग के 'मास्को रिटर्न ' ब्राह्मण वादी नेतृत्व 'आर्थिक आधार ' पर सफलता की कपोलकल्पित मृग मरीचिका में विचरण करते हुये 2017 के चुनाव में मात्र 200 सीटों पर चुनाव लड़ कर व्यवस्था परिवर्तन का थोथा दावा कर रहा है जबकि, पूर्ण बहुमत हेतु 202 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती है। नौ नवंबर की वामपंथी रैली से लखनऊ वासी राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान को दूर रखा गया व उनके स्थान पर डी राजा साहब से अङ्ग्रेज़ी में भाषण दिलवा कर हिन्दी प्रदेश की जनता को उपेक्षित किया गया है। क्या ब्राह्मण वादी / मोदीईस्ट इन गतिविधियों के बल पर भाजपा / सपा गुप्त - गठजोड़ को सत्ता से अलग रखा जा सकता है? यह विशेष विचारणीय विषय है।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
* जिनहोने भाजपा ऊमीद्वार पूर्व प्रधानमंत्री को सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनावी चुनौती दी थी जब उनकी ही यह पीड़ा है तब औरों का क्या कहना ?
** 11 नवंबर 2016 के हिंदुस्तान, लखनऊ अंक के पृष्ठ 02 पर समाचार छ्पा है कि, सपा किसी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी जिसको विलय करना हो वह सपा में विलय कर सकता है।
*** वस्तुतः 2017 का चुनाव 2012 की तर्ज़ पर और 2019 का चुनाव 2014 की तर्ज़ पर लड़ा जाएगा। अगर सपा का अन्य दलों से गठबंधन होता तब यह फार्मूला कैसे लागू हो पाता ? आर एस एस को भाजपा के अलावा दूसरे दलों में स्थित (बैठाये हुये ) अपने समर्थकों पर पूर्ण भरोसा है और उनका लाभ संविधान संशोधन के वक्त उठाना है।
**** यह तो भाजपा विरोधी दलों का कर्तव्य है कि, वे आपसी टांग - खिंचाई छोड़ कर एकजुट हों तथा भाजपा को उसके समर्थकों सहित पराजित करने हेतु जनता के समक्ष मजबूत विकल्प दें। यदि वास्तव में लक्ष्य भाजपा को परास्त करना होगा तब कांग्रेस,बसपा,वामपंथी दलों समेत सभी जंतान्त्रिक दलों का गठबंधन सपा/भाजपा गठजोड़ के विरुद्ध सामने आयेगा वरना तो होइहें वही जे आर एस एस रची राखा।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1223776617684312&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=3&permPage=1
("**** यह तो भाजपा विरोधी दलों का कर्तव्य है कि, वे आपसी टांग - खिंचाई छोड़ कर एकजुट हों तथा भाजपा को उसके समर्थकों सहित पराजित करने हेतु जनता के समक्ष मजबूत विकल्प दें। यदि वास्तव में लक्ष्य भाजपा को परास्त करना होगा तब कांग्रेस,बसपा,वामपंथी दलों समेत सभी जंतान्त्रिक दलों का गठबंधन सपा/भाजपा गठजोड़ के विरुद्ध सामने आयेगा वरना तो होइहें वही जे आर एस एस रची राखा।")
लेकिन अब प्रश्न यह है कि, क्या ऐसा होगा? अथवा भाजपा को हटाने/हराने का नारा सिर्फ नारा ही है केवल दिखावे का ढोंग है ढोंग !
सबसे पुरानी पार्टी आज 1925 में स्थापित 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ' ही है क्योंकि उससे पूर्व 1885 में स्थापित दो बैलों की जोड़ी वाली 'इंडियन नेशनल कांग्रेस ' 1969 में कांग्रेस (ओ ) व कांग्रेस ( आर ) में विभाजित हो गई थी एवं चरखा चलाती महिला वाला उसका संगठन पक्ष 1977 में 'जनता पार्टी ' में विलीन हो गया था। गाय -बछड़ा वाली कांग्रेस ( आर ) बाद में विभाजित हो कर 'पंजा ' वाली ' कांग्रेस ( आई )' बनी जो आज सोनिया/राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही है और अनधिकृत रूप से 131 वर्ष पुरानी कांग्रेस होने का दावा कर रही है। और क्यों न करे जब अब सबसे पुरानी भाकपा का ब्राह्मण वादी नेतृत्व ही अपने दावे को सामने लाने से कतराता है।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते थे- इंडिया दैट इज़ भारत दैट इज़ उत्तर प्रदेश - 1925 में स्थापित आर एस एस का दूसरा राजनीतिक संस्करण भाजपा इसी सिद्धान्त पर चल कर 1991 में यू पी में पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुका है। तभी 1998 से 2004 एवं पुनः 2014 से केंद्र की सत्ता में आ सका है।
लेकिन 1925 में स्थापित भाकपा के लिए उत्तर प्रदेश का कोई महत्व नहीं है। जबकि रघुवीर सहाय 'फिराक गोरखपुरी ' का विश्लेषण काफी सटीक है कि, मेरठ/ कानपुर डायगनल से शुरू आंदोलन विफल रहे हैं चाहे वे 1857 की प्रथम क्रांति हों अथवा किसान आंदोलन। एवं आगरा / बलिया डायगनल से प्रारम्भ आंदोलन पूरे उत्तर प्रदेश में फैल कर राष्ट्रीय आंदोलन बने और सफल रहे हैं। चाहे 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन हो अथवा अन्य कोई।
1992 में आगरा में सम्पन्न प्रदेश भाकपा के सम्मेलन के बाद बजाए भाकपा के प्रसार के 1994 में विभाजन हो गया। क्यों? क्योंकि ब्राह्मण वादी मानसिकता का नेतृत्व पिछड़ा वर्ग से संबन्धित मित्रसेन जी यादव / राम चंद्र बख्श सिंह जी को स्वीकार नहीं कर सका और उनको हटना पड़ा। उसी मानसिकता ने कौशल किशोर जी के नेतृत्व में दलित वर्ग को भाकपा से अलग किया। दो- दो विभाजनों के बाद भी 2015 में पिछड़ा व दलित वर्ग से संबन्धित पूर्व भाकपा विधायक प्रत्याशियों को पार्टी से अलग होना पड़ा । क्यों? क्योंकि, ब्राह्मण वादी मानसिकता के नायक का कथन है कि, पिछड़े व दलित कामरेड्स से सिर्फ काम लिया जाये उनको कोई पद न सौंपा जाये।
भारत का सर्व हारा वर्ग दलित समुदाय से ही संबन्धित है जिसका भाकपा में कोई सम्मानित स्थान नहीं है। बगैर सर्व हारा के समर्थन व सहयोग के 'मास्को रिटर्न ' ब्राह्मण वादी नेतृत्व 'आर्थिक आधार ' पर सफलता की कपोलकल्पित मृग मरीचिका में विचरण करते हुये 2017 के चुनाव में मात्र 200 सीटों पर चुनाव लड़ कर व्यवस्था परिवर्तन का थोथा दावा कर रहा है जबकि, पूर्ण बहुमत हेतु 202 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती है। नौ नवंबर की वामपंथी रैली से लखनऊ वासी राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान को दूर रखा गया व उनके स्थान पर डी राजा साहब से अङ्ग्रेज़ी में भाषण दिलवा कर हिन्दी प्रदेश की जनता को उपेक्षित किया गया है। क्या ब्राह्मण वादी / मोदीईस्ट इन गतिविधियों के बल पर भाजपा / सपा गुप्त - गठजोड़ को सत्ता से अलग रखा जा सकता है? यह विशेष विचारणीय विषय है।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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