Tuesday, 28 February 2017

गुरमेहर ने युद्ध और नफरत की राजनीति पर सोचने को मजबूर किया ------ Girish Malviya

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Girish Malviya
गुरमेहर ने युद्ध और नफरत की राजनीति पर सोचने को मजबूर किया। शहीद की बेटी के वीडियो में कही गई बात एक बार पढ़ने से समझ में न आए, तो बार-बार पढ़िए।-

मैं भारत के जालंधर शहर की रहने वाली हूं.
ये मेरे पिता कैप्टन मनदीप सिंह हैं.
वो 1999 के कारगिल युद्ध में मारे गए थे.
मैं दो साल की थी, जब उनका निधन हुआ.
उनसे जुड़ी बहुत कम यादें हैं मेरे पास.
पिता नहीं होते तो कैसा महसूस होता है, इसकी ज़्यादा यादें हैं मेरे पास.
मुझे याद है कि मैं पाकिस्तान और पाकिस्तानियों से कितना नफ़रत करती थी, क्योंकि उन्होंने मेरे पिता को मारा था.
मैं मुसलमानों से भी नफ़रत करती थी, क्योंकि मैं सोचती थी कि सभी मुस्लिम पाकिस्तानी होते हैं.
जब मैं छह साल की थी तो बुर्का पहनी एक महिला को चाकू मारने की कोशिश भी की.
किसी अनजान वजह से मुझे लगा कि उसने मेरे पिता को मारा होगा.
मेरी मां ने मुझे रोका और समझाया कि.
पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा, बल्कि जंग ने मारा है.
वक़्त लगा लेकिन आज मैं अपनी नफ़रत को ख़त्म करने में कामयाब रही.
ये आसान नहीं था लेकिन मुश्किल भी नहीं था.
अगर मैं ऐसा कर सकती हूं तो आप भी कर सकती हैं.
आज मैं भी अपने पिता की तरह सैनिक बन गई हूं.
मैं भारत-पाकिस्तान के बीच अमन के लिए लड़ रही हूं.
क्योंकि अगर हमारे बीच कोई जंग ना होती, तो मेरे पिता आज ज़िंदा होते.
मैंने ये वीडियो इसलिए बनाया ताकि दोनों तरफ़ की सरकारें दिखावा करना बंद करें.
और समस्या का समाधान दें.
अगर फ़्रांस और जर्मनी दो विश्व युद्ध के बाद दोस्त बन सकते हैं.
जापान और अमरीका अतीत को पीछे छोड़ आगे देख सकते हैं.
तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते?
ज़्यादातर भारत और पाकिस्तानी शांति चाहते हैं, जंग नहीं.
मैं दोनों देशों के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा रही हूं.
हम तीसरे दर्जे के नेतृत्व के साथ पहले दर्जे का मुल्क़ नहीं बन सकते.
प्लीज़ तैयार हो जाइए. एक-दूसरे से बातचीत कीजिए और काम पूरा कीजिए.
स्टेट प्रायोजित आतंकवाद बहुत हो चुका.
स्टेट प्रायोजित जासूस बहुत हुए.
स्टेट प्रायोजित नफ़रत बहुत हुई.
सरहद के दोनों तरफ़ कई लोग मारे जा चुके हैं.
बस, बहुत हुआ.
मैं ऐसी दुनिया चाहती हूं, जहां कोई गुरमेहर कौर ना हो, जिसे अपने पिता की याद सताती हो.
मैं अकेली नहीं. मेरे जैसे कई हैं.

एक भाई की वाल पर मिला अभी अभी
https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/1433656299999347?comment_id=1433747266656917&comment_tracking=%7B%22tn%22%3A%22R2%22%7D




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 25 February 2017

स्वामी सहजानंद सरस्वती ------ राम कृष्ण

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राम कृष्ण .
स्वामी सहजानंद सरस्वती
पूरा नाम स्वामी सहजानंद सरस्वती
जन्म 22 फ़रवरी 1889
जन्म भूमि ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 25 जून, 1950
मृत्यु स्थान पटना, बिहार
अभिभावक पिता- बेनी राय
गुरु आदि शंकराचार्य
मुख्य रचनाएँ भूमिहार-ब्राह्मण परिचय, कर्मकलाप आदि
प्रसिद्धि समाज-सुधारक, क्रान्तिकारी, किसान-नेता
विशेष योगदान भारत में किसान आंदोलन शुरू करने का श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को ही जाता है।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी ब्राह्मणों की एकता और संस्कृत शिक्षा के प्रचार पर उनका ज़ोर रहा। सिमरी में रहते हुए सनातन धर्म के जन्म से मरण तक के संस्कारों पर आधारित 'कर्मकलाप' नामक 1200 पृष्ठों के विशाल ग्रंथ की हिन्दी में रचना की।
स्वामी सहजानन्द सरस्वती (जन्म:22 फ़रवरी 1889 ग़ाज़ीपुर - मृत्यु:25 जून, 1950 पटना) भारत के राष्ट्रवादी नेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। स्वामी जी भारत में 'किसान आन्दोलन' के जनक थे। वे आदि शंकराचार्य सम्प्रदाय के 'दसनामी सन्न्यासी' अखाड़े के दण्डी सन्न्यासी थे। वे एक बुद्धिजीवी, लेखक, समाज-सुधारक, क्रान्तिकारी, इतिहासकार एवं किसान-नेता थे।

आरंभिक जीवन
ऐसे महान सन्न्यासी, युगद्रष्टा और जननायक का जन्म उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले के देवा गांव में महाशिवरात्रि के दिन सन् 1889 ई. में हुआ था। स्वामीजी के बचपन का नाम नौरंग राय था। उनके पिता बेनी राय सामान्य किसान थे। बचपन में हीं मां का साया उठ गया। लालन-पालन चाची ने किया। जलालाबाद के मदरसे में आरंभिक शिक्षा हुई। मेधावी नौरंग राय ने मिडिल परीक्षा में पूरे उत्तर प्रदेश में छठा स्थान प्राप्त किया। सरकार ने छात्रवृत्ति दी। पढ़ाई के दौरान ही उनका मन अध्यात्म में रमने लगा। घरवालों ने बच्चे की स्थिति भांप कर शादी करा दी। संयोग ऐसा रहा कि पत्नी एक साल बाद ही चल बसीं। परिजनों ने दूसरी शादी की बात निकाली तो वे भाग कर काशी चले गये।
काशी प्रवास
वहाँ शंकराचार्य की परंपरा के स्वामी अच्युतानन्द से दीक्षा लेकर सन्न्यासी बन गये। बाद के दो वर्ष उन्होंने तीर्थों के भ्रमण और गुरु की खोज में बिताया। 1909 में पुनः काशी पहुंचकर दंडी स्वामी अद्वैतानन्द से दीक्षा ग्रहणकर दण्ड प्राप्त किया और दण्डी स्वामी सहजानंद सरस्वती बने। इसी दौरान उन्हें काशी में समाज की एक और कड़वी सच्चाई से सामना हुआ। दरअसल काशी के कुछ पंड़ितों ने उनके सन्न्यास पर सवाल उठा दिया। उनका कहना था कि ब्राह्मणेतर जातियों को दण्ड धारण करने का अधिकार नहीं है। स्वामी सहजानंद ने इसे चुनौती के तौर पर लिया और विभिन्न मंचों पर शास्त्रार्थ कर ये प्रमाणित किया कि भूमिहार भी ब्राह्मण ही हैं और हर योग्य व्यक्ति सन्न्यास ग्रहण करने की पात्रता रखता है। काफ़ी शोध के बाद उन्होंने भूमिहार-ब्राह्मण परिचय नामक ग्रंथ लिखा जो आगे चलकर ब्रह्मर्षि वंश विस्तर के नाम से सामने आया। इसके ज़रिये उन्होंने अपनी धारणा को सैद्धांतिक जामा पहनाया। सन्न्यास के तदुपरांत उन्होंने काशी और दरभंगा में कई वर्षो तक संस्कृत साहित्य, व्याकरण, न्याय और मीमांसा का गहन अध्ययन किया। साथ-साथ देश की सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों के अध्ययन भी करते रहे।
स्वामी सहजानंद के समग्र जीवन पर नजर डालें तो मोटे तौर पर उसे तीन खंडों में बांटा जा सकता है। पहला खंड है जब वे सन्न्यास धारण करते हैं, काशी में रहते हुए धार्मिक कुरीतियों और बाह्यडम्बरों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलते हैं। निज जाति गौरव को प्रतिष्ठापित करने के लिए भूमिहार ब्राह्मण महासभा के आयोजनों में शामिल होते हैं। उनका ये क्रम सन् 1909 से लेकर 1920 तक चलता है। इस दौरान काशी के अलावा उनका कार्यक्षेत्र बक्सर ज़िले का डुमरी, सिमरी और ग़ाज़ीपुर का विश्वम्भरपुर गांव रहता है। काशी से उन्होंने भूमिहार ब्राह्मण नामक पत्र भी निकाला।
किसान आन्दोलन
महात्मा गांधी ने चंपारण के किसानों को अंग्रेज़ी शोषण से बचाने के लिए आंदोलन छेड़ा था, लेकिन किसानों को अखिल भारतीय स्तर पर संगठित कर प्रभावी आंदोलन खड़ा करने का काम स्वामी सहजानंद ने ही किया। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में किसान आंदोलन शुरू करने का श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को ही जाता है। एक ऐसा दंडी सन्न्यासी जिसे भगवान का दर्शन भूखे, अधनंगे किसानों की झोपड़ी में होता है, जो परंपारनुपोषित सन्न्यास धर्म का पालन करने की बजाय युगधर्म की पुकार सुन भारत माता को ग़ुलामी से मुक्त कराने के संघर्ष में कूद पड़ता है, लेकिन अन्न उत्पादकों की दशा देख अंग्रेज़ी सत्ता के भूरे दलालों अर्थात देसी ज़मींदारों के ख़िलाफ़ भी संघर्ष का सूत्रपात करता है। एक ऐसा सन्न्यासी, जिसने रोटी को ही भगवान कहा और किसानों को भगवान से बढ़कर बताया।
कांग्रेस से जुड़ाव
स्वामीजी के जीवन का दूसरा अध्याय तब शुरू होता है, जब 5 दिसम्बर 1920 को पटना में कांग्रेस नेता मौलाना मजहरुल हक के आवास पर महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात होती है। गांधीजी के अनुरोध पर वे कांग्रेस में शामिल होते हैं। साल के भीतर हीं वे ग़ाज़ीपुर ज़िला कांग्रेस का अध्यक्ष चुने गये और कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में शामिल हुए। अगले साल उनकी गिरफ्तारी और एक साल की कैद हुई। जेल से रिहा होने के बाद बक्सर के सिमरी और आसपास के गांवों में बड़े पैमाने पर चरखे से खादी वस्त्र का उत्पादन कराया। ब्राह्मणों की एकता और संस्कृत शिक्षा के प्रचार पर उनका ज़ोर रहा। सिमरी में रहते हुए सनातन धर्म के जन्म से मरण तक के संस्कारों पर आधारित 'कर्मकलाप' नामक 1200 पृष्ठों के विशाल ग्रंथ की हिन्दी में रचना की। काशी से कर्मकलाप का प्रकाशन किया।
किसान संगठन
महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ असहयोग आंदोलन जब बिहार में गति पकड़ा तो सहजानंद उसके केन्द्र में थे। घूम-घूमकर उन्होंने अंग्रेज़ी राज के ख़िलाफ़ लोगों को खड़ा किया। इसी दौरान स्वामी जी को लगा कि बिहार के गांवों में ग़रीब लोग अंग्रेज़ों से नहीं वरन् गोरी सत्ता के इन भूरे दलालों से आतंकित हैं। किसानों की हालत ग़ुलामों से भी बदतर है। युवा सन्न्यासी का मन एक बार फिर से नये संघर्ष की ओर उन्मुख हुआ। वे किसानों को लामबंद करने की मुहिम में जुट गये। 17 नवंबर, 1928 को सोनपुर में उन्हें बिहार प्रांतीय किसान सभा का अध्यक्ष चुना गया। इस मंच से उन्होंने किसानों की कारुणिक स्थिति को उठाया। एक साथ जमींदारों के शोषण से मुक्ति दिलाने और ज़मीन पर रैयतों का मालिकाना हक दिलाने की मुहिम शुरू की। अप्रैल, 1936 में कांग्रेस के लखनऊ सम्मेलन में 'अखिल भारतीय किसान सभा' की स्थापना हुई और स्वामी सहजानंद सरस्वती को उसका पहला अध्यक्ष चुना गया। स्वामी सहजानंद ने नारा दिया था-
"जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा, अब सो क़ानून बनायेगा
ये भारतवर्ष उसी का है, अब शासन वहीं चलायेगा।"
कारावास के दौरान
कांग्रेस में रहते हुए स्वामीजी ने किसानों को जमींदारों के शोषण और आतंक से मुक्त कराने का अभियान जारी रखा। उनकी बढ़ती सक्रियता से घबड़ाकर अंग्रेज़ों ने उन्हें जेल में डाल दिया। कारावास के दौरान गांधीजी के कांग्रेसी चेलों की सुविधाभोगी प्रवृति को देखकर स्वामीजी हैरान रह गये। कांग्रेस के नेता कारावास के दौरान सुविधा हासिल करने के लिए छल-प्रपंच का सहारा ले रहे थे। स्वभाव से हीं विद्रोही स्वामीजी का कांग्रेस से मोहभंग होना शुरू हो गया। इस दौरान एक और घटना हुई। 1934 में जब बिहार प्रलयंकारी भूकंप से तबाह हुआ तब स्वामीजी ने बढ़-चढ़कर राहत और पुनर्वास के काम में भाग लिया।लेकिन किसानों जमींदारों के अत्याचार से पीड़ित थे। जमींदारों के लठैत किसानों को टैक्स भरने के लिए प्रताड़ित कर रहे थे। पटना में कैंप कर रहे महात्मा गांधी से मिलकर स्वामीजी ने ये हाल सुनाया। कहते हैं कि गांधीजी ने दरभंगा महाराज से मिलकर किसानों के लिए जरूरी अन्न का बंदोबस्त करने के लिए स्वामीजी को कहा। ऐसा सुनना था कि स्वामी सहजानंद गुस्से में लाल हो गये और चले गये। जाते-जाते उन्होंने गांधीजी को कह दिया कि अब आपका और मेरा रास्ता अलग-अलग है। स्वामीजी का मानना था कि जो राजे-रजवाड़े और जमींदार अंग्रेजों की सरपरस्ती कर रहे हैं, उनसे किसानों का भला नहीं हो सकता है। चाहे वो दरभंगा महाराज ही क्यों न हो। इसी प्रकरण के बाद सहजानंद ने कांग्रेस में अपनी सक्रियता कम कर दी और किसान सभा के कार्य में मन-प्राण से जुट गये।
ज़मींदारी विरोधी आंदोलन
स्वामी सहजानन्द सरस्वती के सम्मान में जारी डाक टिकट
स्वामीजी के जीवन का तीसरा चरण तब शुरू होता है जब वे कांग्रेस में रहते हुए किसानों को हक दिलाने के लिए संघर्ष को हीं जीवन का लक्ष्य घोषित करते हैं। उन्होंने नारा दिया- कैसे लोगे मालगुजारी, लट्ठ हमारा ज़िन्दाबाद । बाद में यहीं नारा किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया। वे कहते थे - अधिकार हम लड़ कर लेंगे और जमींदारी का खात्मा करके रहेंगे। उनका ओजस्वी भाषण किसानों पर गहरा असर डालता था। काफ़ी कम समय में किसान आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया। स्वामीजी का प्रांतीय किसान सभा संगठन के तौर पर खड़ा होने के बजाए आंदोलन बन गया। हर ज़िले और प्रखण्डों में किसानों की बड़ी-बड़ी रैलियां और सभाएँ हुईं। बाद के दिनों में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी नेताओं से हाथ मिलाया। सर्वश्री एम जी रंगा, ई एम एस नंबूदरीपाद, पंड़ित कार्यानंद शर्मा, पंडित यमुना कार्यजी जैसे वामपंथी और समाजवादी नेता किसान आंदोलन के अग्रिम पंक्ति में। आचार्य नरेन्द्र देव, राहुल सांकृत्यायन, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, पंडित यदुनंदन शर्मा, पी. सुन्दरैया और बंकिम मुखर्जी जैसे तब के कई नामी चेहरे भी किसान सभा से जुड़े थे। वामपंथी रुझान के चलते सीपीआई उन्हें अपना समझती रही और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ भी वे अनेक रैलियों में शामिल हुए। आज़ादी की लड़ाई के दौरान जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो नेताजी ने पूरे देश में 'फ़ारवर्ड ब्लॉक' के ज़रिये हड़ताल कराया।
स्वामी सहजानंद ने पटना के समीप बिहटा में सीताराम आश्रम स्थापित किया जो किसान आंदोलन का केन्द्र बना। वहीं से वे पूरे आंदोलन को संचालित करते रहे। संघर्ष के साथ-साथ स्वामी जी सृजन के भी प्रतीक पुरुष थे। अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद स्वामीजी ने सृजन का कार्य जारी रखा। दो दर्जन से ज़्यादा पुस्तकों की रचना की। मेरा जीवन संघर्ष नामक जीवनी लिखी।
अन्तिम समय
जमींदारी प्रथा के ख़िलाफ़ लड़ते हुए स्वामी जी 26 जून ,1950 को मुजफ्फरपुर में महाप्रयाण कर गये। आज़ादी मिलने के साथ ही सरकार ने क़ानून बनाकर ज़मींदारी राज को खत्म कर दिया। मरणोपरांत ही सही स्वामी जी की सबसे बड़ी मांग पूरी हो गयी, लेकिन किसानों को सुखी-समृद्ध और खुशहाल देखने की उनकी इच्छा पूरी न हो सकी। वैश्वीकरण की आंधी ने तो अब किसानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर छोड़ दिया है। किसान पहले से कहीं ज़्यादा असंगठित हैं और कर्ज़ के बोझ तले दबकर आत्महत्या करने को विवश हैं। देश में किसानों के संगठन कई हैं, लेकिन एक भी नेता ऐसा नहीं है, जो किसानों में सर्वमान्य हो और जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान हो। ऐसे समय में स्वामी सहजानंद और ज़्यादा याद आते हैं, जिन्होंने किसान को संगठित और शोषण मुक्त बनाने में अपना सम्पूर्ण जीवन बलिदान कर दिया। उनके निधन के साथ हीं भारतीय किसान आंदोलन का सूर्य अस्त हो गया। राष्ट्रकवि दिनकर के शब्दों में दलितों का सन्न्यासी चला गया। स्वामीजी द्वारा प्रज्जवलित ज्योति की लौ मद्धिम ज़रूर पड़ी है, बुझी नहीं है। देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे किसान-मज़दूर आंदोलन इसके उदाहरण हैं।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1846724022264391&set=a.1382415478695250.1073741826.100007804330133&type=3

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 10 February 2017

गुरू रविदास ने पाखंड़,आड़म्बर और जातीय भेदभाव की तीव्र निन्दा की ------ रजनीश कुमार श्रीवास्तव

#गुरू रविदास(रैदास)जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ#


Rajanish Kumar Srivastava
 10-02-2017 

संत कुलभूषण कवि रविदास उन महान संतों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इनकी रचनाओं एवं वाणी ने ज्ञानाश्रयी तथा प्रेमाश्रयी भक्ति शाखाओं के मध्य सेतु का कार्य करते हुए भक्ति आन्दोलन को पूर्णता प्रदान की।भक्ति मार्ग के निर्गुण सम्प्रदाय के सर्वप्रमुख संत रैयदास जी एक उच्चकोटि के दार्शनिक,कवि और समाज सुधारक थे।उनका जन्म हिन्दू कैलेंडर के माघ महीने की पूर्णिमा के दिन चमार जाति के मोची परिवार के पिता संतोख दास एवं माता कालसा देवी के घर वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर में 15 वीं शताब्दी में हुआ था।आप गृहस्थ संत थे और पत्नी लोना देवी और पुत्र विजय दास की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए आपने धर्म सुधार और समाज सुधार में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।सम्पूर्ण जीवन भेद भाव का दंश झेलने के बावजूद भी आपने हमेशा भाईचारे और शांति का सन्देश दिया।
प्रारम्भिक जीवन में आपने गुरू पंडित शारदानन्द से शिक्षा ली और आगे चलकर आप प्रसिद्ध भक्तिमार्गी संत रामानन्द के शिष्य बने।इस लिहाज से आप संत कबीर के गुरूभाई हुए।गृहत्याग के उपरान्त संत रैयदास ने बेगमपुरा शहर बसाया।आप प्रसिद्ध कवित्री मीराबाई और चित्तौड़ के राजा के आध्यात्मिक गुरू थे।आपकी वाणी का सर्वाधिक प्रभाव सिक्ख धर्म पर पड़ा और संत रविदास के 41 पद "गुरूग्रंथ साहिब" में संकलित किए गये।इसके अलावा दादूपंथ की "पंचवाणी" में भी संत रैयदास की कविताएँ शामिल हैं।पंजाब,राजस्थान,महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में संत रविदास के सर्वाधिक अनुयायी हुए।
गुरू रविदास ने पाखंड़,आड़म्बर और जातीय भेदभाव की तीव्र निन्दा की।उनकी उक्ति थी,"मन चंगा तो कठौती में गंगा" और उनका संदेश था कि,"इंसान जाति-धर्म से नहीं बल्कि अपने कर्म से पहचाना जाता है।अतः उसके कर्म ऊँचे होने चाहिए ,जाति नहीं।" वे सर्वधर्मसद्भाव पर जोर देते थे।उनका मानना था कि राम और रहीम एक ही परमेश्वर के विविध नाम है और वेद,पुराण और कुरान आदि ग्रंथों में एक ही परमेश्वर का गुणगान है।उनका मानना था कि सत्ता,धन और जाति के अभिमान का त्याग करने पर ही ईश्वर की कृपा प्राप्त हो सकती है।गुरू रविदास ने आजीवन कुष्ठ रोग के उपचार में अमूल्य योगदान दिया।मानवता के ऐसे पुजारी,समाज सुधारक और महान दार्शनिक संत रैयदास की जयन्ती पर उनका शत शत नमन।

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10-02-2017 

Friday, 3 February 2017

उपलब्धियां देश ने मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले हासिल कर ली थी.......... Shesh Narain Singh


Shesh Narain Singh
03-02-2017 
मोदी जी
आप उस देश के *प्रधान मंत्री* हो जो देश *तीन सौ साल ग़ुलाम* रहा !
जिस देश को अंग्रेजो ने लूट खसोट कर ओर जातीवाद में बाट के बर्बाद कर इस देश की बाग़डोर कोंग्रेस को सोपी थी !
*194 7* में देश में *सुई*
नही बनती थी !
सारा देश *राजा रजवाड़ों* के झगड़ो में *बटा* हुआ था
देश के मात्र *पचास गाँवों में बिजली* थी !
पूरे *राजस्थान में मात्र बीस राजाओं के महल* में फ़ोन था !
किसी गाँव में नल नही थे।
पूरे देश में *मात्र दस बाँध* थे ! सीमाओं पे *मात्र कुछ सेनिक* थे ! *चार विमान थे बीस टेंक* थे !
देश की *सीमाएँ चारो तरफ़ से खुली थी !*
*खजाना ख़ाली था ऐसे बदहाल* में हमारा *हिंदुस्तान कोंग्रेस* को मिला था !
इन *साठ सालों में कोंग्रेस* ने हिंदुस्तान में *विश्व की सबसे बड़ी ताक़त वाली सेन्य शक्ति तैयार की*
*हज़ारों विमान -हज़ारो टेंक -लाखों फ़ैक्ट्रीया लाखों गाँवों में बिजली*
*हज़ारों बाँध लाखों किलोमीटर सड़कों का निर्माण परमाणु बम*
*हर हाथ में फ़ोन -हर घर में मोटर साई किल वाला मजबूत देश साठ में बना कर दिया हे कोंग्रेस ने !*
भारत ने पिछले ६० सालों में तरक्की भी बहुत की है और भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों ने कई इतिहास रच दिए हैं जिसकी वजह से भारत आज एशिया की दूसरी सब से बड़ी ताकत है।
1-भारत दुनिया का सर्व *श्रेष्ठ संविधान* बना चुका था...
2-भारत *एशियाई खेलों की मेजबानी* कर चुका था...
3- *भारत में भाखड़ा और रिहंद जैसे बाँध बन* चुके थे...
4- *देश भामा न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर का उद्घाटन कर चुका था..*
5- *देश में तारापुर परमाणु बिज़ली घर शुरू हो चुका था...*
6- *देश में कई दर्जन AIIMS, IIT, IIMS और सैकड़ों विश्वविद्यालय खुल km चुके थे..*
7- *नेहरु ने नवरत्न कम्पनियाँ स्थापित कर दी थी...*
8- *कईसालों पहले भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को लाहौर के अंदर तक घुसकर मारा था और लाहौर पर कब्जा कर लिया था।*
9- *पंडित नेहरु पुर्तगाल से जीत कर गोवा को भारत में मिला चुके थे...*
10- *नेहरु जी ने ISRO (Indian Space Research Organization) की शुरुआत कर दी थी...*
11- *भारत में श्वेत क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी..*
12- *देश में उद्योगों का जाल बिछ चुका था..*
13- *इंदिरा जी पाकिस्तान के दो टुकड़े कर चुकी थी, पाकिस्तान १ लाख सैनिकों और कमांडरो के साथ भारत को सरेंडर कर चुका था।*
14- *तब भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो चूका था..*
15- *इंदिरा जी ने सिक्किम को देश में जोड़ लिया था....*
16- *देश अनाज के बारे में आत्म निर्भर हो गया था.*
17- *भारत हवाई जहाज और हेलीकाप्टर बनाने लगा था...*
18- *राजीव गाँधी ने देश के घर घर में टीवी पहुंचा दिया था।*
19- *देश में सुपर कम्प्यूटर, टेलीविजन और सुचना क्रांति ( Information Technology) पूरे भारत में स्थापित हो चुका था..*
20- *जब मोदी प्रधान मंत्री पद की शपथ ले रहे थे तब तक भारत सर्वाधिक विदेशी मुद्रा के कोष वाले प्रथम १० राष्ट्रों में शामिल हो चुका था*
21- *इनके अलावा..चन्द्र यान,*
22- *मंगल मिशन ,*
23- *GSLV,*
24- *मेट्रो,*
25- *मोनो रेल,*
26- *अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे,*
27- *न्यूक्लियर पनडुब्बी,*
28- *ढ़ेरों मिसाइल,पृथ्वी, अग्नि, नाग*
29- *दर्जनों परमाणु सयंत्र,*
30- *चेतक हेलीकाप्टर, मिग*
31- *तेजस, ड्रोन, अर्जुन टैंक, धनुष तोप,*
32- *मिसाइल युक्त विमान,*
33- *आई एन एस विक्रांत*
*विमान वाहक पोत......*
ये सब उपलब्धियां देश ने मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले हासिल कर ली थी.....