Thursday 27 July 2017

नीतीश का सियासी सिनेमा ------ नवेंदु कुमार



Navendu Kumar
२७-०७-२०१७ 
'सलीम-जावेद' की 'शोले' 
रिलीज़ होते ही हिट। कमाल की स्क्रिप्ट!
बीजेपी ने बिहार को लेकर जिस पोलिटिकल फ़िल्म की जो पटकथा लिखी उस फिल्म को आखिरकार नीतीश के चौंकाऊ इस्तीफे ने सियासी सिनेमा के पर्दे पर रिलीज़ कर दिया। सत्ता-सियासत की सलीम-जावेद की इस नयी जोड़ी ने ऐसा 'शोले' दिखाया कि फ़िल्म पहले दिन ही हिट भी कर-करा भी दी गयी। इधर लालू विचारते रहे कि बड़ी पार्टी के नाते राजभवन उन्हें सरकार बनाने का न्यौता भेजेगा और उधर बीजेपी को लेकर नीतीश बैठ गये एक-अणे मार्ग। फिर पहुँच गये राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के पास नयी सरकार बनाने का दावा लेकर।
नीतीश कुमार के बारे में लालू प्रसाद जब तब दोटूक और बेबाक टिप्पणी करते रहे हैं। पिछ्ले दिनों लालू ने कहा था कि नीतीश कुमार उनसे भी ज़्यादा एक परिपक्व नेता हैं।...कभी लालू ने ही नीतीश के बारे में कहा था कि नीतीश के पेट में दांत है या फिर कोई ऐसा सगा नहीं नीतीश ने जिसको ठगा नहीं। इस दूसरी वाली बात को जब तब नीतीश कुमार पर राजनीतिक प्रहार करते हुए सुशील मोदी भी दोहरा दिया करते थे। अब तो छोटे मोदी फिर नीतीश के सिपहसालार और डिप्टी सीएम हैं।
जब पुरानी नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम थे। सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें बर्खास्त किया था। तब एनडीए की बिहार सरकार थी। नीतीश का झगड़ा बीजेपी से नरेन्द्र मोदी के प्रोजेक्शन और उनके सांप्रदायिक छवि को लेकर था। तब नीतीश कुमार ने मोदी के साथ आयोजित भोज को भी रद्द कर दिया था।
अबकी बार की सरकार में डिप्टी सीएम तेजस्वी थे। सरकार आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस महागठबंधन की थी। मुद्दा बेनामी संपत्ति और सीबीआई केस का था। पटकथा में सीबीआई का किरदार भी स्पेशल अपीयरेंस के तौर पर अचानक एक कंप्लेन के ज़रिए आया और चार-पांच दिनों में तेजस्वी पर एफआईआर कर काम तमाम कर दिया। ऐसी एक्टिव सीबीआई आज़ाद भारत ने पहली बार देखा।...और फिर एक बार उनकी सरकार के डिप्टी सीएम की बर्खास्तगी की नौबत आई। सुशील मोदी लगातार तेजस्वी की बर्खास्तगी की मांग पर अड़े रहे। मोदी ने धमकी भी दे दी थी कि तेजस्वी को नीतीश ने सरकार से नहीं निकाला तो उनकी पार्टी बीजेपी 28 जुलाई से आहूत विधान सभा सत्र को नहीं चलने देगी। 
सवाल बड़ा कि फिर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सुशील मोदी की तरह मंत्रिमंडल से क्यों नहीं बर्खास्त किया? कमान तो उनके पास ही थी तो फिर खुद ही इस्तीफा क्यों दे दिया नीतीश ने? और बीजेपी के साथ मिलकर एक नयी सरकार बनाने भी चल दिये। सवाल ये रह जाता है कि नीतीश ने ये सब जो किया वो एक परिपक्व नेता नीतीश की करनी है या पेट में दांत वाले नीतीश की करनी है? तो क्या तेजस्वी की बर्खास्तगी से नहीं तेजस्वी मंथन से ही निकलने वाला था नया सत्ता कलश और नया सियासी अमृत! 
जो भी हो ये तो साफ़ दिख रहा है कि 'एन-स्कवायर' यानि नमो-नीतीश के गणितीय फॉर्मूले से बीजेपी को मिशन 2019 आसान और फ़तह होता हुआ दिख रहा होगा। नीतीश की जेडीयू अब केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार में भी शामिल होगी। दरअसल यह सच है कि बीजेपी के भारत दिग्विजय की राह का सबसे बड़ा अवरोध है बिहार। लालू-नीतीश-कांग्रेस महागठबंधन की जीत ने बीजेपी के इस रोड़े को पहाड़ बना दिया था। सरपट सड़क निकालनी हो तो पहाड़ को तोड़ना ज़रूरी होता है।
तो क्या इस 'शोले' से अब बिहार फ़तह का डंका बजा दिया जाएगा? क्या जय-वीरू की जोड़ी गब्बर को शिकस्त दे पायेगी या गब्बर एक बार फिर ठाकुर के दोनों हाथ काट डालेगा? फिलहाल ये कहना ज़्यादा संतुलित होगा कि फ़िल्म अभी बाक़ी है दोस्त!
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इस सियासी सिनेमा की वजह : 
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