Tuesday, 6 February 2018

गंगा- जल गंधक के समिश्रण से स्वास्थ्यवर्द्धक था ------ विजय राजबली माथुर

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वैज्ञानिक खूब रिसर्च करें यह अच्छी बात है लेकिन यह भी ध्यान रखें तो और भी अच्छी बात होगी कि, औषद्धीय पौधों या जड़ी - बूटियों का समिश्रण नहीं है गंगा जल में। वस्तुतः आज जिस स्थान पर बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण किया गया है वह स्थान 'गंधक' -SULFUR के पहाड़ों का है और गंगा की एक धारा जब उस से प्रवाहित होती हुई आती है तब उसका जल बहुत गरम होता है जो कि, दूसरी धारा से मिल कर सम हो जाता है। 

गंगा - जल में इस गंधक- सल्फर के मिले होने के कारण कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और उसमें लार्वा पनप नहीं सकते। इसी कारण गंगा - जल शुद्ध रहता था। किन्तु अब हरिद्वार के बाद गंगा में कारखानों का अम्ल व नालों का मल  मिलने के कारण गंगा की पवित्रता केवल नाम में रह गई है उसका जल सिर्फ हरिद्वार तक ही शुद्ध रह गया है। 
जब औद्योगीकरण नहीं हुआ था तब तक गंगा - जल में उपलब्ध गंधक इतना क्षमतावान होता था कि, इंसान को उसमें स्नान करने से स्वस्थ रख सके उससे रोग उत्पन्न होने का प्रश्न ही नहीं था। अब आजकल कानपुर से आगे गंगा - जल इतना अधिक प्रदूषित है कि, रोगी भी बना सकता  है। 
सरकारी स्वच्छता अभियान से इलाहाबाद से आगे कोलकाता तक बड़े जहाज चल सकेंगे और व्यापारियों का माल सस्ते परिवहन से आ - जा सकेगा किन्तु मानव - स्वस्थ्य हेतु वह गंगा - जल हितकर नहीं होगा बल्कि और अधिक प्रदूषित हो जाएगा । 

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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