* निर्णायक पदों पर दंभी, मूढ़, कट्टर, पूर्वाग्रही बैठ गये हैं और अपने निर्णयों से पूरे देश को दुख दे रहे हैं, जीवन दुभर कर रहे हैं।
जिस पद पर शक्ति हो, ताकत हो, जहां बैठ कर कोई व्यक्ति अपने निर्णयों से बहुजन के जीवन को प्रभावित कर सकता हो तो उस पद पर निश्चित रूप से समझदार, संवेदनशील, बुद्धिमान, इंसानियत से भरे हृदय वाले को ही बैठना चाहिए...!
मैं इस देश का दुर्भाग्य ही मानूंगा कि ऐसे निर्णायक पदों पर दंभी, मूढ़, कट्टर, पूर्वाग्रही बैठ गये हैं और अपने निर्णयों से पूरे देश को दुख दे रहे हैं, जीवन दुभर कर रहे हैं।
मेरी नजर में, आज दुनिया में भारत सर्वाधिक बुरे दौर से गुजर रहा है...जिस तरह से हर शक्ति के पद पर कट्टरपंथी बैठ गये हैं...वह भयानक भविष्य के लिए आशंकित करता है...इतिहास गवाह है जब भी किसी देश में किसी जवाबदार पद पर इस तरह की मानसिकता का व्यक्ति जा बैठा...उस देश ने भयंकर तबाही देखी...हिटलर हो कि मुसोलिनी हो कि सद्दाम हो कि जोंग हो...अच्छे दिन के भ्रम में यह देश बुरे दिनों में आ गया...!
मैं लगातार लिखता रहा हूं...यह देश बहुत बड़ी तबाही की तरफ जा रहा है...आने वाले दिन बहुत बुरे होने वाले हैं...आर्थिक संकट, रोजगार, मंहगाई, सामाजिक सौहाद्र, दंगे, अपराध...आंधी आती दिख रही है...इससे बड़ी पेय की जल की समस्या...एक या दो सालों में प्यास से इस देश में करोड़ों लोग मर जायेंगे...बहुत सुना है कि आने वाले दिनों में पानी के लिए युद्ध होंगे...ऐसा कोई युद्ध पाकिस्तान से हो जाये तो हैरानी नहीं होगी...समस्याएं अनेक हैं, दिन-पर-दिन देश भयंकर समस्याओं में उलझ रहा है और शक्ति के पदों पर बैठे लोग अपनी अय्यासी में मशगूल हैं...!
https://www.facebook.com/santosh.bharti.5095/posts/10155622028134037
मैं जब भी अन्ना को सुनता तो वह एक साधारण ट्रक ड्रायवर को सुनने जैसा ही होता...कांग्रेस सरकार इस तरह के हमले से निपट नहीं पाई...तील का ताड़ बनाकर कांग्रेस को खूब बदनाम किया गया...ठीक चुनाव के पहले फिर से अचानक एक दुर्जन को पेश किया गया--मोदी, मोदी, मोदी...सारा मीडिया यूं झूमने लगा मानो बस जिस मसीहा की तलाश थी, इंतजार था अवतरण हो ही गया...यह भी एक चाल थी...पर्दे के पीछे से धन लग रहा था...!
फिर चुनाव में अच्छे दिन आने वाले हैं...भारत का आम आदमी जो कि मूलतः आलस्यी है, गैर-जिम्मेदार है, कर्मठ नहीं है...इस सम्मोहन में आ गया कि बस इस आदमी को चुन भर लो, वोट दे दो और दूसरे दिन घर के बाहर मर्सडिज खड़ी होगी, हाथ में आई फोन होगा औैर कुरुप पत्नी उर्वशी बन जायेगी....31 प्रतिशत औसत समझ के लोग ले आये मोदी को...पर्दे के पीछे से जो धन लगा, जो बिजनेस में इन्वेस्ट किया...उनका काम बन गया...चार ही सालों में उन्होंने सूद समेत धन वसूर लिया...!
अब ये दुर्जन कोई मसीहा-वसीहा तो थे नहीं...कुछ कारपोरेट के हाथों की कठपुतली थी...आनन-फानन में ऐसे निर्णय लिये गये ताकि कारपोरेट की तिजोरियां उफन पड़े और ऐसा हुआ भी...नोटबंदी को करार वार इसीलिए था...आम आदमी मर गया, गांव-गांव, नगर-नगर, शहर-शहर करोड़ों लोगों का जीवन उथल-पुथल हो गया...जब देखा कि यह उथल-पुथल गुस्सा बनकर फूट सकता है तो मोदी फिर आ गया--भाइयों-बहनों सिर्फ पचास दिन मुझे दे दो...यदि पचास दिन में सपनों का भारत ने दे दूं तो जिस चौराहे पर कहोगे आ जाउंगा सजा के लिए।’ पचास की जगह पांच सौ दिन बीत गये, जीवन दूभर हो गया...लेकिन गुस्से के उबाल को तरकीब से ठंड़ा कर दिया...फिर चली खरीद-फरोख्त, धन की ताकत...कुटील चालें, खींच-तान...देखते ही देखते देशभर में शासन फैलता चला गया...
एक बात समझने जैसी है कि इस देश का बुद्धिजीवी, सृजनशील, कलाकार, सोचने-समझने वाला, चिंतन-मनन करने वाला वर्ग इस सारे भुलावे में नहीं आया...न अन्ना के, न मोदी के...पर मोदी को उनकी जरूरत थी भी नहीं...आज तक भी भारत का बुद्धिजीवी वर्ग मोदी से दूर है...!
अब अन्ना फिर दिल्ली आये हैं...एक आदमी नहीं फटका...पर्दे के पीछे कोई नहीं है...अन्ना खुद में तो कोई दम न कभी था, न अब है...???
आधुनिक भारत के लोकतंत्र में धन का ऐसा खेल पहले कभी नहीं देखा...दो-तीन कारपोरेट ने एक सत्ता का उलट दी, एक आम मूर्ख को मसीहा बनाकर देश की छाती पर रख दिया...कोबरा पोस्ट का इंस्टिग आया है...छद्मश्री भजप शर्मा और गोबरस्वामी की पाले खोली है...पर देखा कोई असर नहीं हुआ...जरा कल्पना करो कि ऐसी कोई पोल कांग्रेस के खिलाफ कोई खोलता????
मैं देश को लेकर पूरी तरह से निराश हूं....हम बहुत बुरे दौर में आ गये हैं....???
https://www.facebook.com/santosh.bharti.5095/posts/10155613963034037
मोदी दूसरी तरह का व्यक्ति है। मैं आज तक भी समझ नहीं पाया कि नोटबंदी जैसा भयावह निर्णय इस व्यक्ति ने कैसे ले लिया? इतना क्रूर निर्णय लेते मोदी ने कुछ सोचा भी? करोड़ों-करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी को मूल रूप से तहस-नहस कर देने वाला निर्णय कैसे लिया गया? आज तक पता नहीं चला कि मोदी ने किसके कहने पर यह निर्णय लिया...किस की सलाह से? और क्यों? खुद मोदी ने जो कारण गिनाये थे उनमें से कोई भी कारण पूरा होता नहीं दिखा--आज तक! अलबत्ता अरबों-अरबों रुपये की चपत लग गई वो अलग और भारत में काम-धंधा कब वापस पटरी पर आयेगा पता नहीं...बेरोजगारी, गरीबी और अभाव के होते अपराध बढ़ रहे हैं, देश दुखी है...फिर इस साल प्रसन्नता की सूची में ग्यारह पायदान लुढ़का....!
मेरे लिए मोदी एक अभिशाप बनकर ही आया है...अब तक तो कुछ भी ऐसा नहीं किया कि लगे कि सवा अरब लोगों के जीवन में कोई सकारात्मक असर दिखाई देगा...हर तरफ से निराशाजनक खबरें आ रही हैं...विदेशी नीति हो, देश की सुरक्षा हो, आर्थिक स्थिति हो, सामाजिक सौहाद्र हो...कौन-सा ऐसा क्षेत्र है जिसमें कोई आशा नजर आ रही है?
उत्तर प्रदेश की खबरें तो बुरी तरह से विचलित करने वाली आ रही हैं....पता नहीं अब इस देश का होगा क्या? समस्याएं तो तेज गति से बढ़ रही हैं...पीने का पानी भी कहां से आयेगा? सुना है अगले तीन-चार मानसून अच्छे नहीं होंगे...प्यास के कारण तड़फ-तड़फ के करोड़ों लोगों की मौत हो सकती है...और मोदी झकाझक कपड़े पहनकर रोड शो करता फिर रहा है, रैलियां कर रहा है...कोई गंभीरता या समझदारी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती.. कभी सोचा न था कि भारत के बुरे दिन यूं आयेंगे???
https://www.facebook.com/santosh.bharti.5095/posts/10155611043749037
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08 नवंबर 2016 को यू एस ए में राष्ट्रपति पद का मतदान था और उसी दिन भारत में नोटबंदी की घोषणा हुई।
वस्तुतः बराक ओबामा साहब हटते - हटते अपने देश की उन कंपनियों को लाभ पहुंचाना चाहते थे जो दूने के कगार पर थीं। उनके भरोसेमंद मित्र ने अपने देश में नोटबंदी करके उन कंपनियों को भरपूर लाभ पहुंचा दिया, ऐसा जर्मन चांसलर ने एक प्रेस कान्फरेंस के दौरान रहस्योद्घाटन किया था।
------ विजय राजबली माथुर
** यह देश बहुत बड़ी तबाही की तरफ जा रहा है...आने वाले दिन बहुत बुरे होने वाले हैं..
*** इस देश का बुद्धिजीवी, सृजनशील, कलाकार, सोचने-समझने वाला, चिंतन-मनन करने वाला वर्ग इस सारे भुलावे में नहीं आया...न अन्ना के, न मोदी के...पर मोदी को उनकी जरूरत थी भी नहीं...आज तक भी भारत का बुद्धिजीवी वर्ग मोदी से दूर है...!
**** मोदी एक अभिशाप बनकर ही आया है...अब तक तो कुछ भी ऐसा नहीं किया कि लगे कि सवा अरब लोगों के जीवन में कोई सकारात्मक असर दिखाई देगा...हर तरफ से निराशाजनक खबरें आ रही हैं...विदेशी नीति हो, देश की सुरक्षा हो, आर्थिक स्थिति हो, सामाजिक सौहाद्र हो...कौन-सा ऐसा क्षेत्र है जिसमें कोई आशा नजर आ रही है?
***** पता नहीं अब इस देश का होगा क्या? समस्याएं तो तेज गति से बढ़ रही हैं...पीने का पानी भी कहां से आयेगा? सुना है अगले तीन-चार मानसून अच्छे नहीं होंगे...प्यास के कारण तड़फ-तड़फ के करोड़ों लोगों की मौत हो सकती है...और मोदी झकाझक कपड़े पहनकर रोड शो करता फिर रहा है, रैलियां कर रहा है...कोई गंभीरता या समझदारी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती.. कभी सोचा न था कि भारत के बुरे दिन यूं आयेंगे???
Santosh Bharti
मैं इस देश का दुर्भाग्य ही मानूंगा कि ऐसे निर्णायक पदों पर दंभी, मूढ़, कट्टर, पूर्वाग्रही बैठ गये हैं और अपने निर्णयों से पूरे देश को दुख दे रहे हैं, जीवन दुभर कर रहे हैं।
मेरी नजर में, आज दुनिया में भारत सर्वाधिक बुरे दौर से गुजर रहा है...जिस तरह से हर शक्ति के पद पर कट्टरपंथी बैठ गये हैं...वह भयानक भविष्य के लिए आशंकित करता है...इतिहास गवाह है जब भी किसी देश में किसी जवाबदार पद पर इस तरह की मानसिकता का व्यक्ति जा बैठा...उस देश ने भयंकर तबाही देखी...हिटलर हो कि मुसोलिनी हो कि सद्दाम हो कि जोंग हो...अच्छे दिन के भ्रम में यह देश बुरे दिनों में आ गया...!
मैं लगातार लिखता रहा हूं...यह देश बहुत बड़ी तबाही की तरफ जा रहा है...आने वाले दिन बहुत बुरे होने वाले हैं...आर्थिक संकट, रोजगार, मंहगाई, सामाजिक सौहाद्र, दंगे, अपराध...आंधी आती दिख रही है...इससे बड़ी पेय की जल की समस्या...एक या दो सालों में प्यास से इस देश में करोड़ों लोग मर जायेंगे...बहुत सुना है कि आने वाले दिनों में पानी के लिए युद्ध होंगे...ऐसा कोई युद्ध पाकिस्तान से हो जाये तो हैरानी नहीं होगी...समस्याएं अनेक हैं, दिन-पर-दिन देश भयंकर समस्याओं में उलझ रहा है और शक्ति के पदों पर बैठे लोग अपनी अय्यासी में मशगूल हैं...!
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Santosh Bharti
कुछ साल पहले अचानक अन्ना का नाम खबरों में आया। मैंने अपने जीवनकाल कभी यह नाम नहीं सुना था। और अचानक नाम आया ही नहीं...बकायदा मसीहा, गांधी के समकक्ष खड़ा कर दिया गया...उस समय की सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर ऐसा हल्ला मचाया कि यूं लगा कि बस इस सरकार ने तो सब कुछ तबाह ही कर दिया...मैं उस समय से लगातार लिखता रहा कि यह कोई बहुत बड़ी चाल है...पर्दे के पीछे कोई अपार धन लगा रहा था...एक तटस्थ व्यक्ति की छबि खड़ी कर सरकार को घेरना आम जनता पर काफी असर डालता है और डाला भी...मैं जब भी अन्ना को सुनता तो वह एक साधारण ट्रक ड्रायवर को सुनने जैसा ही होता...कांग्रेस सरकार इस तरह के हमले से निपट नहीं पाई...तील का ताड़ बनाकर कांग्रेस को खूब बदनाम किया गया...ठीक चुनाव के पहले फिर से अचानक एक दुर्जन को पेश किया गया--मोदी, मोदी, मोदी...सारा मीडिया यूं झूमने लगा मानो बस जिस मसीहा की तलाश थी, इंतजार था अवतरण हो ही गया...यह भी एक चाल थी...पर्दे के पीछे से धन लग रहा था...!
फिर चुनाव में अच्छे दिन आने वाले हैं...भारत का आम आदमी जो कि मूलतः आलस्यी है, गैर-जिम्मेदार है, कर्मठ नहीं है...इस सम्मोहन में आ गया कि बस इस आदमी को चुन भर लो, वोट दे दो और दूसरे दिन घर के बाहर मर्सडिज खड़ी होगी, हाथ में आई फोन होगा औैर कुरुप पत्नी उर्वशी बन जायेगी....31 प्रतिशत औसत समझ के लोग ले आये मोदी को...पर्दे के पीछे से जो धन लगा, जो बिजनेस में इन्वेस्ट किया...उनका काम बन गया...चार ही सालों में उन्होंने सूद समेत धन वसूर लिया...!
अब ये दुर्जन कोई मसीहा-वसीहा तो थे नहीं...कुछ कारपोरेट के हाथों की कठपुतली थी...आनन-फानन में ऐसे निर्णय लिये गये ताकि कारपोरेट की तिजोरियां उफन पड़े और ऐसा हुआ भी...नोटबंदी को करार वार इसीलिए था...आम आदमी मर गया, गांव-गांव, नगर-नगर, शहर-शहर करोड़ों लोगों का जीवन उथल-पुथल हो गया...जब देखा कि यह उथल-पुथल गुस्सा बनकर फूट सकता है तो मोदी फिर आ गया--भाइयों-बहनों सिर्फ पचास दिन मुझे दे दो...यदि पचास दिन में सपनों का भारत ने दे दूं तो जिस चौराहे पर कहोगे आ जाउंगा सजा के लिए।’ पचास की जगह पांच सौ दिन बीत गये, जीवन दूभर हो गया...लेकिन गुस्से के उबाल को तरकीब से ठंड़ा कर दिया...फिर चली खरीद-फरोख्त, धन की ताकत...कुटील चालें, खींच-तान...देखते ही देखते देशभर में शासन फैलता चला गया...
एक बात समझने जैसी है कि इस देश का बुद्धिजीवी, सृजनशील, कलाकार, सोचने-समझने वाला, चिंतन-मनन करने वाला वर्ग इस सारे भुलावे में नहीं आया...न अन्ना के, न मोदी के...पर मोदी को उनकी जरूरत थी भी नहीं...आज तक भी भारत का बुद्धिजीवी वर्ग मोदी से दूर है...!
अब अन्ना फिर दिल्ली आये हैं...एक आदमी नहीं फटका...पर्दे के पीछे कोई नहीं है...अन्ना खुद में तो कोई दम न कभी था, न अब है...???
आधुनिक भारत के लोकतंत्र में धन का ऐसा खेल पहले कभी नहीं देखा...दो-तीन कारपोरेट ने एक सत्ता का उलट दी, एक आम मूर्ख को मसीहा बनाकर देश की छाती पर रख दिया...कोबरा पोस्ट का इंस्टिग आया है...छद्मश्री भजप शर्मा और गोबरस्वामी की पाले खोली है...पर देखा कोई असर नहीं हुआ...जरा कल्पना करो कि ऐसी कोई पोल कांग्रेस के खिलाफ कोई खोलता????
मैं देश को लेकर पूरी तरह से निराश हूं....हम बहुत बुरे दौर में आ गये हैं....???
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Santosh Bharti
एक संवेदनशील, समझदार, इंसानियत रखने वाला व्यक्ति कोई भी कदम उठाने के पहले हजार बार विचार करता है कि उसके किसी कदम से किसी को दुख न पहुंच जाये। लेकिन इससे ठीक उल्टा, मूर्ख, दंभी, संवेदनहीन व्यक्ति कुछ भी कर सकता है...अपने खुद को महान बनाने के लिए या सच साबित करने के लिए किसी को भी दुख दे सकता है...पूरे देश, समाज या दुनिया को खतरे में डाल सकता है।मोदी दूसरी तरह का व्यक्ति है। मैं आज तक भी समझ नहीं पाया कि नोटबंदी जैसा भयावह निर्णय इस व्यक्ति ने कैसे ले लिया? इतना क्रूर निर्णय लेते मोदी ने कुछ सोचा भी? करोड़ों-करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी को मूल रूप से तहस-नहस कर देने वाला निर्णय कैसे लिया गया? आज तक पता नहीं चला कि मोदी ने किसके कहने पर यह निर्णय लिया...किस की सलाह से? और क्यों? खुद मोदी ने जो कारण गिनाये थे उनमें से कोई भी कारण पूरा होता नहीं दिखा--आज तक! अलबत्ता अरबों-अरबों रुपये की चपत लग गई वो अलग और भारत में काम-धंधा कब वापस पटरी पर आयेगा पता नहीं...बेरोजगारी, गरीबी और अभाव के होते अपराध बढ़ रहे हैं, देश दुखी है...फिर इस साल प्रसन्नता की सूची में ग्यारह पायदान लुढ़का....!
मेरे लिए मोदी एक अभिशाप बनकर ही आया है...अब तक तो कुछ भी ऐसा नहीं किया कि लगे कि सवा अरब लोगों के जीवन में कोई सकारात्मक असर दिखाई देगा...हर तरफ से निराशाजनक खबरें आ रही हैं...विदेशी नीति हो, देश की सुरक्षा हो, आर्थिक स्थिति हो, सामाजिक सौहाद्र हो...कौन-सा ऐसा क्षेत्र है जिसमें कोई आशा नजर आ रही है?
उत्तर प्रदेश की खबरें तो बुरी तरह से विचलित करने वाली आ रही हैं....पता नहीं अब इस देश का होगा क्या? समस्याएं तो तेज गति से बढ़ रही हैं...पीने का पानी भी कहां से आयेगा? सुना है अगले तीन-चार मानसून अच्छे नहीं होंगे...प्यास के कारण तड़फ-तड़फ के करोड़ों लोगों की मौत हो सकती है...और मोदी झकाझक कपड़े पहनकर रोड शो करता फिर रहा है, रैलियां कर रहा है...कोई गंभीरता या समझदारी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती.. कभी सोचा न था कि भारत के बुरे दिन यूं आयेंगे???
https://www.facebook.com/santosh.bharti.5095/posts/10155611043749037
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08 नवंबर 2016 को यू एस ए में राष्ट्रपति पद का मतदान था और उसी दिन भारत में नोटबंदी की घोषणा हुई।
वस्तुतः बराक ओबामा साहब हटते - हटते अपने देश की उन कंपनियों को लाभ पहुंचाना चाहते थे जो दूने के कगार पर थीं। उनके भरोसेमंद मित्र ने अपने देश में नोटबंदी करके उन कंपनियों को भरपूर लाभ पहुंचा दिया, ऐसा जर्मन चांसलर ने एक प्रेस कान्फरेंस के दौरान रहस्योद्घाटन किया था।
------ विजय राजबली माथुर