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Monday, 31 December 2018
Thursday, 22 November 2018
Tuesday, 3 July 2018
Sunday, 11 March 2018
नेहरू - तिब्बत -चीन : कारण और भ्रम निवारण ------ एस डी ओझा
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चीन ने अक्टूबर 1950 से तिब्बत को अपने कब्जे में लेना शुरु कर दिया था । शुरूआत में तिब्बत सरकार झुक गयी । चीन के साथ संधि हुई । उसमें तय हुआ कि बाहरी मामले चीन के और अंदरुनी मामले दलाई लामा के अधीन रहेंगे । लेकिन 1958 में चीन के सम्बंध तिब्बत से बहुत हीं खराब हो गये । यहां तक कि चीन ने यह धमकी दे दी कि तिब्बत की राजधानी ल्हासा को वह बम से उड़ा देगा । तिब्बत में यह अफवाह फैल गई कि दलाई लामा को अगवा कर बीजींग ले जाया जाएगा । 10 मार्च
1959 को दलाई लामा के आवास के चारों ओर 30 हजार तिब्बतियों ने एक मानव दीवार बना दी । यह दीवार अभेद्द थी । छः दिन तक यह दीवार बनी रही । लोग भूखे प्यासे डटे रहे ।
सातवें दिन यानी की 17 मार्च को चीन ने दलाई लामा के घर के सामने तोप व मशीन गन लगा दिए । उस तीस हजारी जनता पर इसका कोई फर्कन हीं पड़ा । 18 मार्च 1959 को चीनी सेना ने दलाई लामा के अंग रक्षकों को मौत के घाट उतार दिया । उन निहत्थे औरतों और बच्चों को मारना शुरु कर दिया । मारने से जनता तितर बितर हो गयी । चीनी सेना दलाई लामा के घर में दाखिल हुई । वहां दलाई लामा नहीं थे । 23 वर्षीय दलाई लामा वहां से भाग गये थे । दलाई लामा को वहां की स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त था । इसलिए वे भागने में कामयाब हो गये ।
बाद के दिनों में जब चीन को पता चला कि भारत ने दलाई लामा को अपने यहां शरण दे रखी है, वह आग बबूला हो गया । उसने भारत से सीमा विवाद का बहाना बनाया । चीन के साथ भारत की दोस्ती हमेशा कागजों में रही । अब यह कागजी दोस्ती भी दुश्मनी में बदल गयी । चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया । 1962 की लड़ाई में भारत की बुरी तरह हार हुई । चीन ने हमारे एक बड़े भू भाग पर कब्जा कर लिया । चीन की साम्राज्यवाद नीतियों ने भारत को कभी भी अपना दोस्त नहीं माना । आज भी चीन भारत का दुश्मन है । आज भी वह सीमा
विवाद सुलझाने में कोई रुचि नहीं ले रहा है ।
दलाई लामा हमारे शरणागत हैं । उन्होंने भारत के धर्मशाला धमें तिब्बत की राजधानी बना रखी है । दलाई लामा कहां जाते हैं ? क्या करते हैं ? सब पर चीन की नजर होती है । यदि दलाई लामा अरुणांचल प्रदेश भी जाते हैं तो चीन अपना विरोध जताना नहीं भूलता । आज यही चीन साम्यवाद को छोड़ अपना कायाकल्प कर चुका है । यह दुनिया के बाजार में अपना सिक्का जमा चुका है । वैश्वीकरण में चीन अब पहले पायदान पर आ गया है । चीन का आधिपत्य तिब्बत पर आज भी है , चीन का भारत के एक बड़े भू भाग पर कब्जा आज भी है ।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=2003189870006889&set=a.1680408095618403.1073741830.100009476861661&type=3
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Er S D Ojha
10 -03-2018
10 मार्च 1959 को तिब्बत में क्या हुआ था ? : चीन ने अक्टूबर 1950 से तिब्बत को अपने कब्जे में लेना शुरु कर दिया था । शुरूआत में तिब्बत सरकार झुक गयी । चीन के साथ संधि हुई । उसमें तय हुआ कि बाहरी मामले चीन के और अंदरुनी मामले दलाई लामा के अधीन रहेंगे । लेकिन 1958 में चीन के सम्बंध तिब्बत से बहुत हीं खराब हो गये । यहां तक कि चीन ने यह धमकी दे दी कि तिब्बत की राजधानी ल्हासा को वह बम से उड़ा देगा । तिब्बत में यह अफवाह फैल गई कि दलाई लामा को अगवा कर बीजींग ले जाया जाएगा । 10 मार्च
1959 को दलाई लामा के आवास के चारों ओर 30 हजार तिब्बतियों ने एक मानव दीवार बना दी । यह दीवार अभेद्द थी । छः दिन तक यह दीवार बनी रही । लोग भूखे प्यासे डटे रहे ।
सातवें दिन यानी की 17 मार्च को चीन ने दलाई लामा के घर के सामने तोप व मशीन गन लगा दिए । उस तीस हजारी जनता पर इसका कोई फर्कन हीं पड़ा । 18 मार्च 1959 को चीनी सेना ने दलाई लामा के अंग रक्षकों को मौत के घाट उतार दिया । उन निहत्थे औरतों और बच्चों को मारना शुरु कर दिया । मारने से जनता तितर बितर हो गयी । चीनी सेना दलाई लामा के घर में दाखिल हुई । वहां दलाई लामा नहीं थे । 23 वर्षीय दलाई लामा वहां से भाग गये थे । दलाई लामा को वहां की स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त था । इसलिए वे भागने में कामयाब हो गये ।
बाद के दिनों में जब चीन को पता चला कि भारत ने दलाई लामा को अपने यहां शरण दे रखी है, वह आग बबूला हो गया । उसने भारत से सीमा विवाद का बहाना बनाया । चीन के साथ भारत की दोस्ती हमेशा कागजों में रही । अब यह कागजी दोस्ती भी दुश्मनी में बदल गयी । चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया । 1962 की लड़ाई में भारत की बुरी तरह हार हुई । चीन ने हमारे एक बड़े भू भाग पर कब्जा कर लिया । चीन की साम्राज्यवाद नीतियों ने भारत को कभी भी अपना दोस्त नहीं माना । आज भी चीन भारत का दुश्मन है । आज भी वह सीमा
विवाद सुलझाने में कोई रुचि नहीं ले रहा है ।
दलाई लामा हमारे शरणागत हैं । उन्होंने भारत के धर्मशाला धमें तिब्बत की राजधानी बना रखी है । दलाई लामा कहां जाते हैं ? क्या करते हैं ? सब पर चीन की नजर होती है । यदि दलाई लामा अरुणांचल प्रदेश भी जाते हैं तो चीन अपना विरोध जताना नहीं भूलता । आज यही चीन साम्यवाद को छोड़ अपना कायाकल्प कर चुका है । यह दुनिया के बाजार में अपना सिक्का जमा चुका है । वैश्वीकरण में चीन अब पहले पायदान पर आ गया है । चीन का आधिपत्य तिब्बत पर आज भी है , चीन का भारत के एक बड़े भू भाग पर कब्जा आज भी है ।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=2003189870006889&set=a.1680408095618403.1073741830.100009476861661&type=3
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
Thursday, 5 January 2017
एक प्राइवेट कम्पनी जिसका चीन कनेक्शन जग जाहिर है : भारतीय बैंकिंग प्रणाली को जोड़ा जा रहा है.......: गिरीश मालवीय
Girish Malviya
05-01-2017 ·
स्टेट बैंक व्दारा पेटीएम को ब्लॉक करने का असली सच
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आखिरकार स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने पेटीएम और अन्य मोबाइल वॉलेट में नेट बैंकिंग से पैसे डालना प्रतिबंधित कर दिया .................
अब शायद उन अंधे लोगों को समझ मे आये जो अब तक पेटीएम के समर्थन मे ये तर्क देते आये है कि आप कोई अन्य दूसरी ऐप्प क्यों नहीं इस्तेमाल कर लेते और पेटीएम से कोई फर्क नहीं पड़ता................
स्टेट बैंक ने यह कदम उठा कर साबित कर दिया कि पेटीएम अब भारतीय बैंकों के लिए खतरा बन गया है और उसके कारोबारी और सुरक्षा हित बुरी तरह से प्रभावित हो रहे है..............
लेकिन आप यह जानकर आश्चर्य करेंगे क़ि सरकार इस मामले मे पूरी तरह पेटीएम के साथ खड़ी नजर आ रही है सरकार ने पहले तो पेटीएम को पेमेंट बैंक बनाने की अनुमति दे दी और उसकी हर मनमानी पर मुहर लगा दी..................
दरअसल ये जो निर्णय स्टेट बैंक को लेना पड़ा है उसकी एक बेहद खास वजह है जो छुपाई जा रही है ................
वास्तव मे सरकार ने UPI यानि यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस से पेटीएम को जोड़ दिया है, और यह सिस्टम मूलतः नेशनल पेमेंट कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया ने डेवलप किया जो बैंक अकाउंट से मोबाइल बैंकिंग को सरल बनाने के लिए बनाया है, अब किसी प्राइवेट कंपनी को इस सिस्टम से क्यों जोड़ा गया इसके क्या मायने निकाले जाये विद्वान पाठक स्वयं समझ सकते है......................
पेटीएम के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नितिन मिश्रा ने कहा, "हमने अपनी भुगतान प्रणाली और यूपीआई के बीच गहरा एकीकरण लागू किया है। इससे सिर्फ उपभोक्ताओं को सिर्फ अपने पेटीएम वॉलेट में पैसे डालने में ही नहीं, बल्कि यह हमारे आगामी बैंक भुगतान के लिए एक मजबूत नींव के रूप में कार्य करेगा।".............
पेटीएम ने यह सिस्टम ऐसा डिज़ाइन किया है कि आपको बस एक बार अकाउंट की जानकारी फीड करनी है और बेहद आसानी से आप उसमे से कितने ही बार पैसा निकाल सकते है, यह कदम स्टेट बैंक को बहुत नागवार गुजरा है..................
मतलब साफ है कि एक प्राइवेट कम्पनी जिसका चीन से कनेक्शन जग जाहिर है उस भारतीय बैंकिंग प्रणाली को जोड़ा जा रहा है....... और आश्चर्य तो उस बीजेपी के मातृ संगठन की खामोशी से हो रहा है जो कुछ दिनों पहले तक चीनी सामानों की होली जलाने मे विश्वास रखता था..................
https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/1377244812307163
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