Monday 6 August 2018

कांवड़िया तांडव और "ॐ नमः शिवाय च "क़े अर्थ ------ विजय राजबली माथुर

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यदि हम अपने देश  व समाज को पिछड़ेपन से निकाल कर, अपने खोये हुए गौरव को पुनः पाना चाहते हैं, सोने की चिड़िया क़े नाम से पुकारे जाने वाले देश से गरीबी को मिटाना चाहते हैं, भूख और अशिक्षा को हटाना चाहते हैं तो हमें "ॐ नमः शिवाय च "क़े अर्थ को ठीक से समझना ,मानना और उस पर चलना होगा तभी हम अपने देश को "सत्यम,शिवम्,सुन्दरम"बना सकते हैं। आज की युवा पीढी ही इस कार्य को करने में सक्षम हो सकती है। अतः युवा -वर्ग का आह्वान है कि, वह सत्य-न्याय-नियम और नीति पर चलने का संकल्प ले और इसके विपरीत आचरण करने वालों को सामजिक उपेक्षा का सामना करने पर बाध्य कर दे तभी हम अपने भारत का भविष्य उज्जवल बना सकते हैं। काश ऐसा हो सकेगा?हम ऐसी आशा तो संजो ही सकते हैं। 
" ओ ३ म *नमः शिवाय च" कहने पर उसका मतलब यह होता है। :-
*अ +उ +म अर्थात आत्मा +परमात्मा +प्रकृति 
च अर्थात तथा/ एवं / और 
शिवाय -हितकारी,दुःख हारी ,सुख-स्वरूप 

नमः नमस्ते या प्रणाम या वंदना या नमन ******

'शैव' व 'वैष्णव' दृष्टिकोण की बात कुछ विद्वान उठाते हैं तो कुछ प्रत्यक्ष पोंगापंथ का समर्थन करते हैं तो कुछ 'नास्तिक' अप्रत्यक्ष रूप से पोंगापंथ को ही पुष्ट करते हैं। सार यह कि 'सत्य ' को साधारण जन के सामने न आने देना ही इनका लक्ष्य होता है।  शिव रात्रि  तथा सावन या श्रावण मास में सोमवार के दिन 'शिव ' पर जल चढ़ाने के नाम पर, शिव रात्रि पर भी तांडव करना और साधारण जनता का उत्पीड़न करना इन पोंगापंथियों का गोरख धंधा है। 

'परिक्रमा ' क्या थी ?: 
वस्तुतः प्राचीन काल में जब छोटे छोटे नगर राज्य (CITY STATES) थे और वर्षा काल में साधारण जन 'कृषि कार्य' में व्यस्त होता था तब शासक की ओर से राज्य की सेना नगर राज्य के चारों ओर परिक्रमा (गश्त) किया करती थी और यह सम्पूर्ण वर्षा काल में चलने वाली निरंतर प्रक्रिया थी जिसका उद्देश्य दूसरे राज्य द्वारा अपने राज्य की व अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। कालांतर में जब छोटे राज्य समाप्त हो गए तब इस प्रक्रिया का औचित्य भी समाप्त हो गया। किन्तु ब्राह्मणवादी पोंगापंथियों ने अपने व अपने पोषक व्यापारियों के हितों की रक्षार्थ धर्म की संज्ञा से सजा कर शिव के जलाभिषेक के नाम पर 'कांवड़िया ' प्रथा का सूत्रपात किया जो आज भी अपना तांडव जारी रखे हुये है। क्या दमित, क्या, पिछ्ड़ा, क्या महिलाएं सभी इस ढोंग को प्रसारित करने में अग्रणी हैं। 


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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