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किसी का मामा, किसी का दुलारा, किसी का प्यारा सितारा है। समझ न आया, युग भी न बीता, अब हुड़ी तमाशा क्यों।
...दुनिया में चंद्र अभियान 30 फीसदी ही सफल रहे हैं। विज्ञानी जल्द बड़े चंद्रमिशन सफल करेंगे। यह विश्व गुरु बनने जैसा भी कुछ नहीं था, चंद्रमा के सभी अभियान दुनिया के साझा हैं। मानव के चंद्र अभियान का पहला चरण वो था जब चांद की धरती के गुरुत्व त्वरण 1.62 m/s² का पता चला। तभी से चांद पर जाने की कोशिशें चलती रहीं। कई देश जब चांद पर कदम रख आए तब भारत भी ऊपर चढ़ा। इसरो के अध्यक्ष के.सिवन भी रोज कह रहे हैं कि चंद्रयान-2 की यह साफ्ट लैंडिंग है, पर नेताओं ने इसे हार्ड बना दिया।
...कोई बात नहीं, चांद से ज्यादा चालाकी भला कौन समझता है। चंदा कभी आधा दिखता, कभी पूरा और कभी गायब रहता। दुनिया के राजनेता ही बाधक हैं कि चांद ने अब तक अपना अंधेरा हिस्सा किसी को न दिखाया। धरती का मानव ऐसा ही रहा तो अंधेरा हिस्सा खोजना संभव भी न होगा। इस तस्तरी का पिछला हिस्सा अब तक कोई नहीं जान पाया। असल में धरती के अलावा कोई भी ग्रह बाजार नहीं, किसी को बेचना संभव नहीं। नेता और नन्हे बच्चे इसरो मेें न जाने किस चक्कर में डटे रहे, सारी बातें इनकी समझ से परे थी।
...जो भी हो, धरती पर मानव की उत्पत्ति के बाद से ही सूर्य से ज्यादा इज्जत शीतल चांद ने पाई। सूर्य की तरफ फटकना संभव नहीं। चंद्रमा पृथ्वी का नजदीकी उपग्रह है, जिसके माध्यम से अंतरिक्ष की लिखित खोज के प्रयास गैलीलियो और आर्यभट के जमाने से चलते रहे। कोशिशें उससे पहले भी हुईं, पर तब की जानकारी जुटाना संभव नहीं। ग्रहों की बातें गहन अंतरिक्ष मिशन है, बच्चे इसकी गहराई समझें, नेता इस तरफ ध्यान न दें।
...बता रहे हैं चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव तक पहुंचा। यह दिलचस्प है क्योंकि इसकी सतह का बड़ा हिस्सा सूर्य की रोशनी नहीं ले पाता। विज्ञानी चाहते हैं कि चंद्रमा हमें पृथ्वी के क्रमिक विकास और सौर मंडल के पर्यावरण के बारे में बताए, यहां जीवन की उम्मीद बताए। खास मौके पर नेक चाह रखने वाले विज्ञानी किसी को नहीं दिखे, बेअक्ल नेता और नन्हे बच्चे ईवेंट का हिस्सा बन गए।
...खैर बांकी बातें कुछ दिनों बाद पता चलेंगी। फिलवक्त यह मिशन चंद्रयान-1 के बाद भारत का दूसरा चन्द्र अन्वेषण अभियान है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक इसे और विकसित करेंगे। इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्रकक्ष यान, एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल हैं। चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर चंद्रमा पर लगभग 70 दक्षिण के अक्षांश पर स्थित दो क्रेटरों मजिनस-सी और सिमपेलियस-एन के बीच एक उच्च मैदान पर उतरा। उम्मीद है कुछ चूकें जल्द सुधार ली जाएंगी फिर से इसका रोवर चंद्र सतह पर चलेगा और चंद्रधरा का रासायनिक विश्लेषण करेगा।
...इससे पहले चंद्रयान-1 ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा था। तब भी सैकड़ों लोग अद्भुत नजारे देखने पहुंचे थे। चंद्रयान-1 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम का पहला अंतरिक्ष यान था। इसमें एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर को चन्द्रमा पर भेजा गया। यह यान संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से भेजा गया था। इसे चन्द्रमा तक पहुंचने में 5 दिन लगे और चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिन लगे थे। सदियों से विज्ञानी चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे, पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना चाहते हैं। चंद्रयान-2 का मकसद भी यही है।
..ये रात बड़ी थी, बात बड़ी, हम बड़ी-बड़ी बातें समझेंगे..
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=704611920050462&set=a.222279241617068&type=3
( नौ लाख वर्ष पूर्व साईबेरिया के शासक ' कुंभकर्ण ' द्वारा कराये शोद्ध के अनुसार चंद्रमा ' राख़ व चट्टानों का ढेर ' है जिसकी पुष्टि अब की इस खबर से भी होती है कि, चंद्रमा की सतह समतल नहीं है )
------विजय राजबली माथुर
Chandrashekhar Joshi
07-09-2019
चंदा रे ये क्या : ---
किसी का मामा, किसी का दुलारा, किसी का प्यारा सितारा है। समझ न आया, युग भी न बीता, अब हुड़ी तमाशा क्यों।
...दुनिया में चंद्र अभियान 30 फीसदी ही सफल रहे हैं। विज्ञानी जल्द बड़े चंद्रमिशन सफल करेंगे। यह विश्व गुरु बनने जैसा भी कुछ नहीं था, चंद्रमा के सभी अभियान दुनिया के साझा हैं। मानव के चंद्र अभियान का पहला चरण वो था जब चांद की धरती के गुरुत्व त्वरण 1.62 m/s² का पता चला। तभी से चांद पर जाने की कोशिशें चलती रहीं। कई देश जब चांद पर कदम रख आए तब भारत भी ऊपर चढ़ा। इसरो के अध्यक्ष के.सिवन भी रोज कह रहे हैं कि चंद्रयान-2 की यह साफ्ट लैंडिंग है, पर नेताओं ने इसे हार्ड बना दिया।
...कोई बात नहीं, चांद से ज्यादा चालाकी भला कौन समझता है। चंदा कभी आधा दिखता, कभी पूरा और कभी गायब रहता। दुनिया के राजनेता ही बाधक हैं कि चांद ने अब तक अपना अंधेरा हिस्सा किसी को न दिखाया। धरती का मानव ऐसा ही रहा तो अंधेरा हिस्सा खोजना संभव भी न होगा। इस तस्तरी का पिछला हिस्सा अब तक कोई नहीं जान पाया। असल में धरती के अलावा कोई भी ग्रह बाजार नहीं, किसी को बेचना संभव नहीं। नेता और नन्हे बच्चे इसरो मेें न जाने किस चक्कर में डटे रहे, सारी बातें इनकी समझ से परे थी।
...जो भी हो, धरती पर मानव की उत्पत्ति के बाद से ही सूर्य से ज्यादा इज्जत शीतल चांद ने पाई। सूर्य की तरफ फटकना संभव नहीं। चंद्रमा पृथ्वी का नजदीकी उपग्रह है, जिसके माध्यम से अंतरिक्ष की लिखित खोज के प्रयास गैलीलियो और आर्यभट के जमाने से चलते रहे। कोशिशें उससे पहले भी हुईं, पर तब की जानकारी जुटाना संभव नहीं। ग्रहों की बातें गहन अंतरिक्ष मिशन है, बच्चे इसकी गहराई समझें, नेता इस तरफ ध्यान न दें।
...बता रहे हैं चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव तक पहुंचा। यह दिलचस्प है क्योंकि इसकी सतह का बड़ा हिस्सा सूर्य की रोशनी नहीं ले पाता। विज्ञानी चाहते हैं कि चंद्रमा हमें पृथ्वी के क्रमिक विकास और सौर मंडल के पर्यावरण के बारे में बताए, यहां जीवन की उम्मीद बताए। खास मौके पर नेक चाह रखने वाले विज्ञानी किसी को नहीं दिखे, बेअक्ल नेता और नन्हे बच्चे ईवेंट का हिस्सा बन गए।
...खैर बांकी बातें कुछ दिनों बाद पता चलेंगी। फिलवक्त यह मिशन चंद्रयान-1 के बाद भारत का दूसरा चन्द्र अन्वेषण अभियान है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक इसे और विकसित करेंगे। इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्रकक्ष यान, एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल हैं। चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर चंद्रमा पर लगभग 70 दक्षिण के अक्षांश पर स्थित दो क्रेटरों मजिनस-सी और सिमपेलियस-एन के बीच एक उच्च मैदान पर उतरा। उम्मीद है कुछ चूकें जल्द सुधार ली जाएंगी फिर से इसका रोवर चंद्र सतह पर चलेगा और चंद्रधरा का रासायनिक विश्लेषण करेगा।
...इससे पहले चंद्रयान-1 ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा था। तब भी सैकड़ों लोग अद्भुत नजारे देखने पहुंचे थे। चंद्रयान-1 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम का पहला अंतरिक्ष यान था। इसमें एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर को चन्द्रमा पर भेजा गया। यह यान संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से भेजा गया था। इसे चन्द्रमा तक पहुंचने में 5 दिन लगे और चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिन लगे थे। सदियों से विज्ञानी चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे, पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना चाहते हैं। चंद्रयान-2 का मकसद भी यही है।
..ये रात बड़ी थी, बात बड़ी, हम बड़ी-बड़ी बातें समझेंगे..
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( नौ लाख वर्ष पूर्व साईबेरिया के शासक ' कुंभकर्ण ' द्वारा कराये शोद्ध के अनुसार चंद्रमा ' राख़ व चट्टानों का ढेर ' है जिसकी पुष्टि अब की इस खबर से भी होती है कि, चंद्रमा की सतह समतल नहीं है )
------विजय राजबली माथुर
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