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Wednesday, 5 December 2018

काला धन सफ़ेद करने का खेल नोटबंदी और चुनावी बांड ------ अजेय कुमार

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 9 November 2017

काले धन की सच्चाई छिपाने को हुई डैफ्नी की हत्या ------ किंशुक पाठक

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संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Tuesday, 6 December 2016

कैशलेस की बात करना देश के रुपये में से विदेशियों को हिस्सा देना ही है ------ गिरीश मालवीय

डिजिटल और कैशलेस के शोर का क्या मतलब है? :


उत्तर प्रदेश की राजधानी तक का यह हाल है कि, बैंको के साथ साथ पोस्ट आफ़िसों में भी नई मुद्रा नहीं पहुंचाई गई है। जिन बुज़ुर्गों को पेंशन या अपना MIS का ब्याज लेकर घर खर्च चलाना होता है उनके सामने गंभीर संकट है। भोजन तो उधार लेकर भी खाया जा सकता है लेकिन सफाई कर्मी,अखबार,चौकीदार के भुगतान क्या वे पे टी एम या डेबिट कार्ड से ले सकते हैं? मजदूर जिसका रोजगार नोटबंदी ने छीन लिया है वह क्या करे?नोटबंदी द्वारा काला बाज़ारियों का धन नई मुद्रा से बदल दिया गया है और साधारण जनता को भूखे मरने को छोड़ दिया गया है। 'भूख इंसान को गद्दार बना देती है' , 'बुभुक्षुतम किं न करोति पापम ?' 
इंतज़ार किया जा रहा है कि, कब भूखी जनता बगावत करे और तब राष्ट्र द्रोह का आरोप लगा कर उसे कुचलने के लिए अर्द्ध सैनिक तानाशाही थोप दी जाये। देश को गृह युद्ध में धकेल कर यू एस ए की योजना ( जिसके अनुसार भारत को तीस भागों में विभक्त किया जाना है ) को साकार करने का उपक्रम है नोटबंदी ।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1254666757928631




डिजिटल कर रहे हैं , आधार कार्ड से लिंक कर रहे हैं लेकिन यह आधार कार्ड पूरे देश में मान्य नहीं किया जा रहा है। वर्तमान केंद्र सरकार के मित्र रिलायंस जियो पूरे उत्तर प्रदेश भी नहीं केवल यू पी ईस्ट के लोगों का ही आधार कार्ड मान्य कर रहा है। तब उत्तराखंड,हिमाचल,दिल्ली के लोग यू पी में अपने आधार कार्ड से कैसे ख़रीदारी करेंगे? फिर डिजिटल और कैशलेस के शोर का क्या मतलब है?

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1252039961524644


04-12-2016 
(विजय राजबली माथुर )

"कैशलेस का असली लाभ" :

साभार :
https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/1339142779450700


Girish Malviya

मेरा अनुरोध है कि "कैशलेस का असली लाभ" किसे हो रहा है इस तथ्य को समझने के लिए इस लेख को बेहद ध्यान से पढ़े...................
मेरी साधारण समझ के अनुसार हर तरह के व्यापार धंधों के लिए कैशलेस का मतलब क्रेडिट और डेबिट कार्ड आधारित व्यवस्था ही है.................
यह एक तरह की पेमेंट बैंकिग है.................
क्या आपको इस व्यवस्था के लिए तैयारी दिख रही है ,.....एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को कैशलेस इकोनोमी बनाने के लिए दो करोड़ पीओएस( swipe mahine) की जरुरत है। अभी लगभग सिर्फ 12 लाख स्वाइप मशीन हैं जो भारत के आकार को देखते हुए काफी कम है। इसका एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण व अ‌र्द्ध शहरी क्षेत्रों में लगाया जाएगा वहा भी पहले बिजली और इंटरनेट की उपलब्धता को सुनिश्चित करना होगा तभी यह पध्दति कारगर होगी...................
अब इस पध्दति की असलियत जान लीजिए जिसके लिए यह लेख लिखा गया है ....................
पहला इन् मशीनों को विदेशो से आयात किया जा रहा है जिससे बड़े पैमाने पर देश की पूंजी विदेश में जा रही है...............
दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है, क़ि देश के लगभग 80 फीसदी डेबिट और क्रेडिट कार्ड ,मास्टर और वीजा कंपनियों के है जो पूर्ण रूप से विदेशी है .......हर ट्रांसिक्शन पर भारतीय बैंके लगभग 2 रुपये 80 पैसे मिनिमम इन कंपनियों को देती है और कैशलेस के इस दौर में हमारे वित्तीय लेन-देन का लगभग आधे से ज्यादा तंत्र इन्हीं कार्डों पर आश्रित हो गया है .........
चाहे आप मोबाइल एप से भुगतान करे चाहे आप अन्य किसी और माध्यम का सहारा ले,......आप अपने हर ट्रांसिक्शन से इन विदेशी कंपनियों को लाभ पुहंचा रहे है और इसीलिए मास्टर कार्ड ने कैशलेस के समर्थन मे देश भर के बड़े अख़बारों मे पूरे पेज के विज्ञापन दिए है.....................
इन ट्रांसिक्शन से इन विदेशी कम्पनियो को कितना अधिक फायदा है इसे इस उदाहरण से समझें कि यदि आपने किसी वस्तु के लिए आनलाइन पेमेंट किया या कोई बिल अदा किया। या स्वाइप मशीन से भुगतान किया .........तकनीकी कारणों से पेमेंट फेल हो गया लेकिन राशि आपके खाते से कट गई तो जितने दिन राशि आपके खाते में वापस नहीं आएगी, उसमें इन विदेशी कम्पनियों का बहुत फायदा होगा एक तो अंतरणों की संख्या एक से बढ़कर दो हो जाएगी। ऊपर से, पेमेंट के लम्बित होने के वक्त का ब्याज भी उनकी जेब में जाएगा। ....................
चूंकि कैशलेस की तलवार अब बैंकों के सर पर लटकी है इसलिए इन विदेशी कंपनियों से सेवाएं लेना भी बैंकों की मजबूरी है और इन्हें ही भारत के कैशलेस होने से असली फायदा हुआ है यह कम्पनी अपनी शर्तों पर ही काम किया करती हैं इन्ही कंपनियों के सेवा शुल्क भी इतना ज्यादा है कि बैंकें एटीएम स्थापना के बाद अन्य शुल्क लगाकर इस खर्च की भरपाई किया करती हैं।...............
ऐसे में आवश्यकता थी कि किसी न किसी तरह विदेशी कार्डों का आधिपत्य समाप्त या बेहद कम कर दिया जाए 2011-12 मे rupay नामक पेमेंट सिस्टम की स्थापना इसी मोनोपॉली को तोड़ने के लिए की गयी थी लेकिन अभी भी यह सिस्टम जनधन खातों तक ही सीमित है बड़े ट्रासिक्शन की इसमें सुविधा नहीं है,..........सभी बड़े देशों ने कैशलेस अपनाने से पहले अपने देश के पेमेंट बैंकिंग को मजबूत किया है और उसके बाद ही कैशलेस को लागू किया है .....................

बिना इस सिस्टम को मजबूत किये इस कैशलेस की बात करना देश के रुपये में से विदेशियों को हिस्सा देना ही है और विडम्बना यह है कि कल तक चाइनीज सामान खरीदने के विरोधी आज इन विदेशी paytm और मास्टर और वीजा की गुलामी करने को सहर्ष तैयार है..................
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6-12-16

6-12-16

Monday, 28 May 2012

भ्रष्टाचार का पोषक धर्म और भूखी जनता

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(ये दोनों चित्र हिंदुस्तान,लखनऊ के 17 मई 2012 अंक के हैं )




(यह चित्र फेसबुक से लिया गया है और नीचे का नोट भी )




आदमी भूख से मरता है और गेहूँ सड़ता है.....
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हमारे देश में सामाजिक ढांचा आज भी धार्मिक-सत्ता से शासित है....धार्मिक सत्ता पारंपरिक है.....उसका खुद का स्वरूप लोकतांत्रिक नहीं है। जनता को सरकार चुनने का हक तो मिल गया है....किन्तु लोकतांत्रिक मशीनरी को चलाने की शिक्षा उसे नहीं मिली है| वह कौन है जो आज भी आम आदमी को जाहिल बनाए रखना चाहता है। सामंती शासन में .....शिक्षा का अधिकार आम जनता को न था। आजादी के बाद अधिकार तो मिला.....किन्तु प्रभावकारी शैक्षिक-व्यवस्था आज भी लागू न हो सकी। लोकतंत्र की गाड़ी येनकेनप्रकारेण धर्म-तंत्र के ड्राइवर के हाथों में रहती है। अपरोक्ष रूप से वे उसे अपनी तरह.....से चलते हैं| यह सब असमानतावादी कुप्रबंधन और पाखंड की देन है। बहु-संख्यक जनता के अशिक्षित होने के परिणाम सबके सामने हैं| भारतीय लोकतंत्र का दिनोदिन दागदार इसी कारण होता जा रहा है| आदमी भूख से मरता है और गेहूँ सड़ता है।





 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर