Monday 28 May 2012

भ्रष्टाचार का पोषक धर्म और भूखी जनता

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )


(ये दोनों चित्र हिंदुस्तान,लखनऊ के 17 मई 2012 अंक के हैं )




(यह चित्र फेसबुक से लिया गया है और नीचे का नोट भी )




आदमी भूख से मरता है और गेहूँ सड़ता है.....
===========================
हमारे देश में सामाजिक ढांचा आज भी धार्मिक-सत्ता से शासित है....धार्मिक सत्ता पारंपरिक है.....उसका खुद का स्वरूप लोकतांत्रिक नहीं है। जनता को सरकार चुनने का हक तो मिल गया है....किन्तु लोकतांत्रिक मशीनरी को चलाने की शिक्षा उसे नहीं मिली है| वह कौन है जो आज भी आम आदमी को जाहिल बनाए रखना चाहता है। सामंती शासन में .....शिक्षा का अधिकार आम जनता को न था। आजादी के बाद अधिकार तो मिला.....किन्तु प्रभावकारी शैक्षिक-व्यवस्था आज भी लागू न हो सकी। लोकतंत्र की गाड़ी येनकेनप्रकारेण धर्म-तंत्र के ड्राइवर के हाथों में रहती है। अपरोक्ष रूप से वे उसे अपनी तरह.....से चलते हैं| यह सब असमानतावादी कुप्रबंधन और पाखंड की देन है। बहु-संख्यक जनता के अशिक्षित होने के परिणाम सबके सामने हैं| भारतीय लोकतंत्र का दिनोदिन दागदार इसी कारण होता जा रहा है| आदमी भूख से मरता है और गेहूँ सड़ता है।





 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

No comments:

Post a Comment

कुछ अनर्गल टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम है.असुविधा के लिए खेद है.