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Thursday, 5 July 2018

सरकार और पूंजीपति केवल अपने हितों के ------ डॉ प्रमोद पाहवा



Parmod Pahwa
05-07-2018 
सरकार पर बाज़ार वाद का दबाव :-

कांग्रेस प्रवक्ता पर की गई अभद्र टिप्पणी के कारण उठाये गए सख्त कदम और उनके पीछे के दबावों पर एक विश्लेषण।

* फेसबुक तथा ट्वीटर सभी को निशुल्क अपने विचार व्यक्त करने एवं अनजान लोगों से जुड़ने की सुविधा उपलब्ध कराता है।

*फिर भी अथाह आय करता है जो विज्ञापनों के माध्यम से होती हैं।

*सामान्यता 30 से 40 आयुवर्ग के व्यक्ति ही अधिकतम खरीददारी करते हैं तो उनके द्वारा विज्ञापन देखना एवम प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध रहना ही आय का साधन है।

*गत कुछ समय से गालीबाजो/ट्रोल्स के कारण प्रबुद्ध वर्ग fb से विदा लेता जा रहा था और निम्न आयवर्ग के बच्चों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था।

*fb से ट्वीटर की ओर गया हुआ ट्रेफ़िक जब कम्पनियों की चिंता का कारण बनना शुरू हुआ तो भारत सरकार पर असहिष्णुता के आरोप लगने शुरू हो गए जो अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि चिंताजनक रूप से खराब कर रहे थे।

*हम सभी जानते है कि दोनों सोशल मीडिया कम्पनियों की मालकियत किस देश की है एवम मोदी सरकार किस दबाव में काम करती हैं।

*ऐसे में सरकार के पास कोई और चारा नहीं रहा कि सायबर ट्रोल्स के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करे।

*कुछ अच्छा लिखने वालों की गैर मौजूदगी पर कम्पनियों की तुरन्त निगाह रहती हैं। ऐसे में यदि आने वाले समय में कथित आईटी सेल के अपने ही लोगो के विरुद्ध सरकार कार्यवाही करने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

◆उदाहरण के लिए रवीश कुमार के प्राइम टाइम में सबसे अधिक सरकार की ही आलोचना होती हैं लेकिन सबसे अधिक विज्ञापन पतञ्जलि के ही होते है। 
क्योकि सरकार और पूंजीपति किसी के नही केवल अपने हितों के लिए होते है तो ऐसा तो होना ही था ! 
बाज़ार से बिगाड़ कर तो हज़ूर की भी हिम्मत नहीं है जो दो कदम चल सके◆
साभार : 
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=241155223338127&set=a.200468104073506.1073741829.100023309529257&type=3
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Monday, 9 October 2017

विनोद दुआ के अनुसार ट्रोल्स अच्छे हैं लेकिन एजुकेटेड इललिटरेट्स का क्या किया जाये ?

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )





विनोद पूर्ण परिचित शैली में विनोद दुआ जी ने ' ट्रोल्स ' को अच्छा बताते हुये उनकी उपेक्षा करना ही इस समस्या का समाधान बताया है। लेकिन फेसबुक पर तमाम एजुकेटेड इल लिटरेट्स भी सक्रिय हैं जो सत्ताधीशों के हितार्थ समाज और जनता को गुमराह करने की हरकतें करते रहते हैं उनकी भी उपेक्षा कर देने से उनके हौंसले बुलंद रहेंगे और समाज व जनता वास्तविक तथ्यों से अनभिज्ञ ही रहेगी। 







'भागवत पुराण ' और उसके रचियता संबन्धित जब उत्तर लिख कर पोस्ट करना चाहा तब तक इन साहब ने स्क्रीन शाट पर आपत्ति जता कर फेसबुक पर ब्लाक कर दिया लिहाजा उनको काउंटर ब्लाक करने के बाद उत्तर इस ब्लाग - पोस्ट के माध्यम से देने का विकल्प ही बचा था। 


वरिष्ठ पत्रकार और प्रगतिशील - कम्युनिस्ट विचारों का वाहक होने का दावा करने वाले यह साहब दिमागी तौर पर संकीर्ण पोंगापंथी नज़र आते हैं तभी तो ' भागवत ' पुराण का समर्थन करते हैं और उसको वैदिक ग्रंथ बताते हैं। 1857 की क्रांति में सक्रिय भाग लेने वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 में 'आर्यसमाज ' की स्थापना 'कृण्वंतोंविश्वमार्यम ' अर्थात सम्पूर्ण विश्व को 'आर्ष ' = श्रेष्ठ बनाने हेतु की थी। सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित 'सत्यार्थ प्रकाश ' के पृष्ठ : 314 - 315 पर  एकादशसमुल्लास : में भागवत पुराण में वर्णित अवैज्ञानिक, अतार्किक बातों के संबंध में स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचार दिये गए हैं, यथा ------ 
" वाहरे  वाह ! भागवत के बनाने वाले लालभुजक्कड़ ! क्या कहना ! तुझको ऐसी ऐसी मिथ्या बातें लिखने में तनिक भी लज्जा और शर्म न आई, निपट अंधा ही बन गया ! ........... शोक है इन लोगों की रची हुई इस महा असंभव लीला पर , जिसने संसार को अभी तक  भ्रमा रखा है। भला इन महा झूठ बातों को वे अंधे पोप और बाहर भीतर की फूटी आँखों वाले उनके चेले सुनते और मानते हैं। बड़े ही आश्चर्य की बात है कि, ये मनुष्य हैं या अन्य कोई ! ! !  इन भागवतादि  पुराणों  के बनाने वाले जन्मते ही ( वा ) क्यों नहीं गर्भ  ही में  नष्ट  हो गए ? वा जन्मते समय मर क्यों न गए  ? क्योंकि इन पापों से बचते तो आर्यावर्त्त देश दुखों से बच जाता । " 

एजुकेटेड इललिटरेट्  उक्त तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार महोदय को सही बात न जानना होता है न ही समझना उनको तो बस झूठ का प्रचार करके सत्ताधीशों का बचाव करना होता है। स्क्रीन शाट लेने का अभिप्राय  यह होता है कि, विचार ज्यों के त्यों  सार्वजनिक हों उनमें कोई मिलावट न हो पाये। अब जब स्वमभू  विद्वान साहब स्क्रीन शाट लेने का विरोध करते हैं तो सिद्ध होता है कि, उनके विचारों में उनके मन में छल - कपट छिपा हुआ था और वह अपनी पोस्ट को संशोधित  कर या हटा सकते थे जो कि, स्क्रीन शाट लेने से उनकी हेराफेरी  को उजागर कर देगा। 
उनके ही शहर  मुंबई  निवासी  गण मान्य  नेता  द्वारा वरिष्ठ पत्रकार रोहिणी सिंह  की फेसबुक पोस्ट का स्क्रीन शाट प्रयोग करना गलत कैसे हो सकता है ? फिर इन झूठेरे  विद्वान को आपत्ति का आशय समझने में किसी को भी गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। : 

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09-10-2017