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Wednesday, 27 June 2018

पैसा और पॉवर का मुक़ाबला सोशल मीडिया और सच की ताकत से ------ एकता जोशी



एकता जोशी
26-06-2018 

मीडिया की  पोल खोल !!

आपके कई लोग पिछले कई दिनों से पूछ रहे है की- मीडिया हमारा आन्दोलन क्यों नहीं दिखा रहा? बात एकदम सही है। आईये जानते है हर एक मीडिया चैनल और उनके मालिको का सच।

Zee news:
यह चैनल का मालिक सुभाष चंद्रा है।सुभाष चंद्रा नरेन्द्र मोदी के काफी करीबी व्यक्ति है। 2014 चुनाव में इन्होने न सिर्फ बीजेपी को पैसे दिए थे बल्कि खुद मोदी की हरयाणा में हुई हर चुनावी रैली में उपस्थित रहे थे।

इस चैनल के दुसरे अहम् व्यक्ति है- सुधीर चौधरी। जो जी न्यूज़ का एंकर है। और आप भी इन्हें जानते होगे। यह व्यक्ति पत्रकार के नाम पर कलंक है। यह दलाल 2012 में उद्योगपति नवीन जिंदल से 100 करोड़ की रिश्वत मांगते कैमरे में कैद हुआ था। और फिर तिहाड़ जेल की हवा भी खा चूका है। JNU छात्र कन्हैया कुमार का फर्जी नारों वाला विडियो भी इसीने बनवाया था।
इनकी मोदी भक्ति से खुश मोदी सरकार ने इन्हें z श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करवाई है।

IndiaTV :
यह चैनल का मालिक रजत शर्मा है। आप सभी इन्हें अच्छे से पहचानते होंगे। रजत शर्मा के पिता BJP के नेता थे। खुद रजत शर्मा ABVP के अध्यक्ष रह चुके है,और इनकी पत्नी आजभी बीजेपी की नेता है। इस चैनल की हर न्यूज़ मोदी को महान दिखाने के एंगल से बनायीं जाती है। हर न्यूज़ में मोदी-भक्ति दिखाई देती है। कहा जाता है इस चैनल का पूरा खर्च बीजेपी उठाती है। मोदी सरकार ने रजत शर्मा को Editor's Guild का अध्यक्ष बनाया है।

Aaj Tak:
यह चैनल India Today ग्रुप का एक हिस्सा है। जिनके मालिक अरुण पूरी है। इस ग्रुप द्वारा India Today नाम की मैगज़ीन प्रकाशित की जाती है। अगर आप एक बार भी इस मैगज़ीन को पढोगे या एक दिन के लिए आज तक/Headlines Today चैनल देखोगे तो आपको पता चल जायेगा की इस ग्रुप की वफ़ादारी किस तरफ है।

Times Now, IBN7, CNN-IBN-
यह तीनों चैनल TV18 ग्रुप का हिस्सा है। जिनके मालिक मुकेश अम्बानी है। मुकेश अम्बानी और नरेन्द्र मोदी के आपसी रिश्तो के बारे में जितना कहा जाये उतना कम होगा।

News24- 

यह चैनल के मालिक कोंग्रेस नेता राजीव शुक्ला है। जो अरुण जेटली के काफी अच्छे दोस्त भी है।

उपर दिये गये चैनल्स के साथ-साथ देशके बाकि बचे हुये लगभग हर चैनल्स और आज देशमें मौजूद 95% से ज्यादा अखबारों (न्यूजपेपर) के मालिक मनुवादी ब्राह्मण और बनिया लोगही हैं।

क्या अब भी आपको लगता है की यह लोग कभी भी मोदी सरकार के खिलाफ कोई खबर पुरे जोर से दिखायेगे??! या मनुवादियो के खिलाफ कुछ दिखायेंगें? ब्राह्मणवादविरोधी आंदोलन, आंबेडकरवादी आंदोलन, फुले,शाहू,आंबेडकरवादी विचार कभी अपने चैनल्स पे दिखायेंगें? अपने न्यूजपेपर्स या मैगजिनमें छापेंगें? वो ऐसा कभी नहीं करेंगें।

यह घिनोना सच जानकर हमें निराश नहीं होना है। क्योंकि अगर इन लोगो के पास पैसा और पॉवर है तो हमारे पास भी सोशल मीडिया और सच की ताकत है।

आप सभी से निवेदन है की एक बने रहिये, बिखर मत जाना। मीडिया आपके इस विराट आन्दोलन को दिखाये या ना दिखाये, आपको कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए । आप और हम सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करेंगे और सच की मशाल कायम करेंगे। याद रखे अगर हम मनुवादियो को सत्ता में ला सकते है तो उन्हें उखाड़ भी सकते है।

#आपकी एकता
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=210792949545734&set=a.108455693112794.1073741829.100018450913469&type=3

एकता जोशी

Friday, 27 October 2017

एक नारीवादी लेखिका का सच --- Er S D Ojha / सच स्वीकारने को कोई तैयार नहीं --- विजय राजबली माथुर




Er S D Ojha
2 hrs
एक नारीवादी लेखिका का सच ।
मशहूर लेखिका मैत्रेयी पुष्पा का छठ ब्रती महिलाओं पर कसा तंज उन पर हीं भारी पड़ गया । उन्होंने लिखा था -
"छठ के त्यौहार में बिहार वासिनी स्त्रियां मांग माथे के अलावा नाक पर भी सिंदूर पोत रचा लेती हैं । कोई खास वजह होती है क्या ?"
लोग उन्हें ट्रोल करने लगे । एक पाठक ने लिखा कि आपके पति हैं , फिर भी आप सिंदूर नहीं लगातीं । इस बात पर तो किसी ने आज तक तंज नहीं कसा । वैसे इस बात पर उन्हीं के शब्दों में यह सवाल तो बनता है - क्या कोई खास वजह है क्या ? ज्यादा हो हल्ला मचने पर मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी यह विवादित पोस्ट हटा ली है , पर जितनी सुर्खियां बटोरनी थी , वह बटोरने के बाद या जितना उनके व्यक्तित्व को नुकसान होना था , उसके हो चुकने के बाद ।
मैत्रेयी पुष्पा हिंदी अकादमी दिल्ली की उपाध्यक्ष हैं । उन्हें महिला हिंदी लेखन की यदि सुपर स्टार भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । उनकी कहानी " ढैसला " पर टेलिफिल्म बन चुकी है । उनके उपन्यास " बेतवा बहती रही " को हिंदी संस्धान द्वारा " प्रेमचंद सम्मान " दिया गया है । " कहैं ईसुरी फाग " एक स्थानीय लोक गायक ईसुरी पर लिखा उपन्यास है । मैत्रेयी पुष्पा को गांव की पहली लेखिका कहा जाता है , जिन्होंने गांव की गवईं स्त्री के दर्द को समझा है । लेकिन " इदन्नम " , "चाक "और "अलमा कबूतरी " में गांव की स्त्री का मैत्रेयी पुष्पा ने जो एडवांस रूप दिखाया है । वह वास्तव में वैसा नहीं है । यदि मांग में सिंदूर न पहनना , सिगरेट पीना और जींस पहनना हीं फेमिनिस्ट की पहचान है तो माफ कीजिए , मुझे आज तक कोई ऐसी औरत गांव में नहीं मिली । मैत्रेयी पुष्पा भी एक नारीवादी हैं , पर वह भी साड़ी पहनती हैं । ये और बात है कि वे मांग में सिंदूर नहीं पहनतीं । ये उनकी मर्जी है । मानिए वही जो मन भावे ।
सरिता से अपने कथा संसार का सूत्रपात करने वाली मैत्रेयी पुष्पा जब धर्मयुग , साप्ताहिक हिंदुस्तान और सारिका जैसी उच्च श्रेणी की पत्रिकाओं में अपनी पैठ कायम करती हैं तो सभी लोग उनके इस इल्म का लोहा मानने लगते हैं । वही मैत्रेयी पुष्पा जब होटल में राजेंद्र यादव के साथ पहुंचती हैं तो वह जल्दी जल्दी अपने कमरे में पहुंच जाना चाहती हैं । उन्हें डर है कि राजेंद्र यादव कहीं उनका हाथ न पकड़ लें । किंतु जब रात को मैत्रेयी पुष्पा को पानी की दरकार होती है तो रिस्पेशन में फोन न कर वह राजेंद्र यादव के कमरे का दरवाजा खटखटाती हैं । ऐसा क्यों ? यह बात किसी ने मैत्रेयी पुष्पा से नहीं पूछी । कारण , उनकी मर्जी । हो सकता है कि उनको होटल स्टाफ से ज्यादे राजेंद्र यादव पर विश्वास हो । या जल्दी से कमरे में अपने को बंद कर लेने से वे अपने आप को अपराधी मान रहीं हों । उनको ऐसा लगा हो कि ऐसा कर उन्होंने राजेंद्र यादव का अपमान किया है । कुछ भी हो सकता है । इस बात का तो किसी ने विवाद का विषय नहीं बनाया । फिर बिहार वासिनी औरतों के नाक ,मांग व माथे पर सिंदूर पोतने पर ऐसा तंज क्यों ?
कभी राजेंद्र यादव ने भी हनुमान को विश्व का पहला आतंकवादी कहा था । ऐसा कह उन्होंने काफी सुर्खियां बटोरी थीं । वैसे आप पूछ सकते हैं कि राजेंद्र यादव को सुर्खियों की क्या जरूरत थी ? वे तो पहले से हीं एक स्थापित कथाकार थे । लेकिन उनके इस कथन से जो उन्हें जानते तक नहीं थे वे भी जानने लगे । आम तौर पर साहित्यकारों को साहित्यिक अभिरूचि रखने वाले लोग हीं जानते हैं । लेकिन साहित्यकार कुछ इस तरह का उथल पुथल मचा दे कि वह पूरी मीडिया में खबर की खबर बन जाय तो उसको जानने वाले बहुत से लोग हो जाएंगे । कहीं यही मंशा मैत्रेयी पुष्पा की भी तो नहीं थी ।
राजेंद्र यादव ने मैत्रेयी पुष्पा के लिए एक बार लिखा था -"तुम स्त्री को गांव लेकर आईं ।" यहां बात विल्कुल उलट हुई है । गांव गवईं स्त्रियों के सिंदूर लगाने की परम्परा पर तंज कसकर मैत्रेयी ने स्त्री को शहर ले जाने की कोशिश की है । इनके पति श्री आर सी शर्मा ने भी इनसे एक बार कहा था कि तुम दूसरी औरतों जैसी क्यों नहीं हो ? इसका कारण मैत्रेयी ने यह बताया - मैंने खुद को पत्नी माना नहीं कभी । चलो मान लेते हैं कि आप अपने को पत्नी नहीं मानतीं , लेकिन एक दोस्त तो मानती होंगी ? तो दोस्त का भी यह कर्तव्य होता है कि टूर पर जाते वक्त दोस्त से एक बार पूछ तो ले कि वह कब आएगा ? आपने ऐसा कभी शर्मा जी से नहीं पूछा । ऐसा क्यों ? ऐसा शायद इसलिए कि आप एक फेमिनिस्ट हैं । ऐसा करेंगी तो आपकी छवि एक फेमिनिस्ट की नहीं रह जाएगी ।
आप कहती हैं कि कभी भी आपने जाते समय शर्मा जी की अटैची तैयार नहीं की । ठीक है । एक आदमी टूर पर जा रहा है । उसे जाने की जल्दी है । वह चीजों को सहेजने में तनाव ग्रस्त है । ऐसे में आप उसकी थोड़ा मदद कर देंगी तो आपका क्या जाएगा ? लेकिन नहीं , आप ऐसा कर देंगी तो आपके नाम से फेमिनिस्ट का तगमा हटा लिया जाएगा । आपकी बड़ी बेइज्जत हो जाएगी ।आपने यह भी कहा है कि शर्मा जी के जाने के बाद आप बहुत अच्छा महसूस करती हैं । अपने को आजाद महसूस करती हैं । अपना पसंददीदा गजल सुनती हैं । क्या शर्मा जी के रहते हुए आप पर बंदिश रहती है ? नहीं , ऐसा कुछ नहीं है । चूंकि आप एक फेमिनिस्ट हैं तो कुछ अलग हट कर करना चाहिए । कुछ अलग सोचना चाहिए । कुछ अलग लिखना चाहिए । तभी तो आप एक नारीवादी लेखिका कहलाएंगी !
राजेंद्र यादव ने एक बार "हंस" में आपको मरी हुई गाय कहा था । उसके बाद आपकी शान में कसीदे भी पढ़े थे । उस समय आपने राजेंद्र यादव से इसकी वजह क्यों नहीं पूछी । आपको भी एक लेख लिखना चाहिए था और राजेंद्र यादव से पूछना चाहिए था , " इसकी खास वजह है क्या ?" लेकिन नहीं । आपने नहीं पूछा । पूछती भी कैसे ? उस लेख में केवल आपकी बड़ाई हीं बड़ाई थी । बड़ाई सबको अच्छी लगती है । आपको भी लगी होगी । मन्नू भंडारी ने एक बार लिखा था कि आपको कथा लिखने की समझ विल्कुल नहीं थी । आपने अपना पहला उपन्यास मन्नू जी को हीं दिखाया था । मन्नू ने कोई टिप्पणी नहीं की थी । क्योंकि उसमें टिप्पणी करने जैसा कुछ था हीं नहीं । मन्नू भण्डारी आपको हताश भी नहीं करना चाहती थीं । इसलिए कोई टिप्पणी नहीं की थी । राजेंद्र यादव का साथ मिला तो आप में लेखन कौशल आया । आज आप इस मकाम पर पहुंची हैं तो राजेंद्र यादव की बदौलत । आदमी को कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि वह कौन सी सीढ़ियां चढ़कर इस मकाम पर पहुंचा है । अब आप इस मकाम पर पहुंच कर किसी परम्परा का मजाक उड़ाएं तो यह आपको कत्तई शोभा नहीं देता । आप पूछती हैं - इसकी कोई खास वजह है क्या ? जिस तरह से हर " क्यों" का जवाब नहीं होता , उसी तरह से हर परम्परा की हर बार वजह नहीं होती । यह पीढ़ी दर पीढ़ी बिना वजह के भी चलती रहती है ।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1927343070924903&set=a.1551150981877449.1073741826.100009476861661&type=3
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लेकिन सच्चाई तो यह है कि, आज के पूंजीवादी युग में जबकि 'पूंजी' की ही पूजा है बाजारवाद (उद्योगपति/ व्यापारी वर्ग ) ब्राह्मणवाद (पुरोहित वर्ग ) के सहयोग से जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहा है। जब भी सच्चाई को सामने लाने का प्रयास किया जाता है यह गठजोड़ उसे हर तरीके से दबाने - कुचलने का प्रयास करता है।  
(विजय राजबली माथुर )

देखिये प्रमाण :